भोपाल। बीसवें शैलेन्द्र शैली स्मृति व्याख्यान में बोलते हुए पिजरा तोड़ आंदोलन की एक्टिविस्ट और हाल ही में जेल से जमानत पर रिहा हुई नताशा नरवाल ने कहा कि देश को एक पुलिस स्टेट में बदला जा रहा है। विरोध करने के लोकतांत्रिक अधिकार पर अंकुश और नियंत्रण लगाया जा रहा है। पेगासस जासूसी काण्ड से साफ़ हो गया है कि अब पुलिस का नियंत्रण इस कदर बढ़ गया है कि घर में बैठकर बात करने पर भी उनकी निगाहें हैं। किसान आंदोलन में जब किसान अपनी संसद लगाने पहुँचते हैं तो उन्हें बैरिकेड्स से घेर दिया जाता है। फरीदाबाद के खोरी गाँव में जबरिया उजाड़े जा रहे नागरिकों के प्रति सहानुभूति जताने भी कोई पहुंचता है तो उस पर एफआईआर दर्ज कर दी जाती है।
“यूएपीए और राजद्रोह के मुकदमों के पीछे छुपा असली एजेंडा” विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि इस क़ानून की परिभाषा इतनी व्यापक और इसका दायरा इतना विस्तृत है कि इसका किसी के भी खिलाफ दुरुपयोग कर उसे वर्षों तक बिना जमानत के जेल में रखा जा सकता है। दुरुपयोग को भी अपर्याप्त शब्द बताते हुए उन्होंने कहा कि इसका उपयोग ही अलोकतांत्रिक है और मकसद ही दमन करना है। वैसे बाकी जितने भी इस तरह के क़ानून हैं उनका इस्तेमाल भी सत्ता जनांदोलनों को दबाने के लिए ही करती है।
यूएपीए हो या बाकी दमनात्मक क़ानून इनका रिश्ता सत्ता और राजनीतिक ढाँचे से है। जैसे जेल अपवाद होती है बेल (जमानत) अधिकार होती है। मगर शासक वर्गों ने इसे उलट कर रख दिया है। जेल नियम बना दी गयी है बेल अपवाद हो गयी है।
नताशा ने कहा कि सेडिशन क़ानून ही गलत है- यहां उसकी व्याख्या और भी गलत तरह से की जाती है। राजद्रोह को राष्ट्रद्रोह बता दिया जाता है और उसे एक ऐसे राष्ट्रवाद से नत्थी कर दिया जाता है जो कुछ ही लोगों को राष्ट्र मानता है। महिला, दलित, आदिवासी उसके राष्ट्र में नहीं आते। उनके अधिकारों के आने का तो सवाल ही नहीं है, आजादी के दिनों में तिलक और गांधी द्वारा सेडिशन की इस व्याख्या के खिलाफ लड़ी गयी लड़ाई का उन्होंने जिक्र किया।
अपने जेल जीवन के अनुभव बताते हुए उन्होंने कहा कि जिन्हें सुधारगृह कहा जाता है वे जेलें मानवता छीन लेने की जगहें हैं, जहां बंदी के जीवन पर उसके अधिकार से ही उसे वंचित कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि जेल में कैदी की सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि से भी फर्क पड़ता है; गरीबों और निम्नतर सामाजिक पृष्ठभूमि से आने वाले बंदियों के लिए जेलें और भी ज्यादा यातनापूर्ण जगह बन जाती हैं। जेल के 80 प्रतिशत कैदी विचाराधीन कैदी हैं। जिन पर दोष साबित नहीं हुआ। मगर वकील के लिए पैसे न होने की वजह से जिस जुर्म में 3 महीने की सजा है उसमें भी वे महीनो से बंद हैं; जमानत होने के बाद भी जमानतदार न मिलने के चलते एक-एक साल से जेल में लटके हैं।
पाकिस्तानी कम्युनिस्ट शायर हबीब जालिब को उद्धृत करते हुए नताशा नरवाल ने कहा कि जनांदोलन और उसके कार्यकर्ताओं को जेल से डराने की साजिशें कामयाब नहीं होंगी।
+ There are no comments
Add yours