ढूंढ-ढूंढ कर मंदिर खुलवाने वाले सुप्रीम कोर्ट ने मुहर्रम पर मुंह फेरा

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उच्चतम न्यायालय को अचानक यह इल्हाम हुआ कि देश भर में मुहर्रम जुलूस निकालने के लिए सामान्य निर्देश देने से अराजकता पैदा होगी और एक विशेष समुदाय को फिर वायरस फैलाने के लिए टारगेट किया जा सकता है। हालाँकि उच्चतम न्यायालय ने तबलीगी जमात मामले में मीडिया के खिलाफ साम्प्रदायिकता फैलाने के आरोप पर कोई भी टिप्पणी करने या मीडिया को प्रतिबंधित करने से अप्रैल में ही यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि हम प्रेस पर पाबंदी नहीं लगा सकते। नतीजतन पूरे देश में कोरोना के फैलाव के लिए तबलीगी जमात और एक विशेष समुदाय को टारगेट किया गया।

लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने न केवल दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात मामले में देश और विदेश के जमातियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया बल्कि यहाँ तक कहा कि इस मामले में तबलीगी जमात को ‘बलि का बकरा’ बनाया गया। इन लोगों को ही कोरोना संक्रमण का जिम्मेदार बताने का प्रॉपेगेंडा चलाया गया। औरंगाबाद पीठ के इस फैसले के बाद उच्चतम न्यायालय को भी यह एहसास हुआ है कि कैसे किसी  विशेष समुदाय को टारगेट किया जाता है।

चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने गुरुवार को कोविड-19 संक्रमण के बीच मुहर्रम जुलूस को अनुमति देने से इनकार कर दिया और कहा कि देश भर में जुलूस निकालने के लिए सामान्य निर्देश देने से अराजकता पैदा होगी और एक विशेष समुदाय को फिर वायरस फैलाने के लिए टारगेट किया जा सकता है।

शिया धर्म गुरु कल्बे जव्वाद ने इस मामले में याचिका दाखिल की थी। धर्मगुरु की तरफ से पेश वकील ने कहा कि पूरा एहतियात बरतते हुए जुलूस निकालने की अनुमति दी जानी चाहिए. जिस तरह पुरी में रथयात्रा की अनुमति दी गई। पर्यूषण पर्व के दौरान जैन समुदाय को मंदिर में जाने की अनुमति दी गई। वैसा ही इस मामले में भी किया जाना चाहिए।

इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि रथयात्रा सिर्फ एक शहर में होनी थी। उसमें यह भी पता था कि यात्रा कहां से शुरू होकर कहां तक जाएगी। इस मामले में जुलूस पूरे देश में निकलने हैं। कुछ स्पष्ट नहीं है कि किस शहर में कहां से यात्रा शुरू होगी और कहां तक जाएगी। हम राज्य सरकारों को सुने बिना पूरे देश में लागू होने वाला कोई आदेश कैसे दे सकते हैं? बेहतर हो कि हर जगह फैसला वहां के प्रशासन को लेने दिया जाए। पर्यूषण के दौरान भी सिर्फ मुंबई में तीन जैन मंदिरों को खोलने की अनुमति दी गई थी। वहां एक बार में सिर्फ 5 लोगों को जाने की इजाजत थी।

वकील ने कोर्ट से मुहर्रम के धार्मिक महत्व को बताते हुए मामले पर विचार की दरख्वास्त की। लेकिन पीठ ने कहा कि आप हमारी दिक्कत नहीं समझ रहे हैं। पूरे देश के लिए कोई एक आदेश नहीं दिया जा सकता है। हर जगह जुलूस का आदेश दे दिया गया तो हालात बेकाबू हो सकते हैं। लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो सकता है। कल को एक समुदाय विशेष पर लोग कोरोना फैलाने का आरोप लगाएंगे।ऐसी स्थिति की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

उच्चतम न्यायालय के इस रुख को देखते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि लखनऊ में शिया समुदाय की सबसे ज्यादा आबादी है। कम से कम वहां पर जुलूस निकालने की अनुमति दी जाए । इस पर चीफ जस्टिस ने कहा अगर बात सिर्फ लखनऊ में जुलूस निकालने की है तो इस पर सुनवाई की उचित जगह इलाहाबाद हाईकोर्ट है। आप वहां जा सकते हैं।

इसके पहले पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा था कि वह अपनी याचिका में 28 राज्यों को पार्टी बनाएं और केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को निर्देश देने की मांग करें, जिसमें जुलूस को केवल एक सीमित क्षमता में होने दिया जाए। पीठ ने कहा था कि जैसा कि प्रार्थना की गई, याचिकाकर्ता को याचिका में 28 राज्यों को उत्तरदाता पक्षकार के रूप में पेश करने की अनुमति है। याचिकाकर्ता ने कहा कि मुहर्रम हर साल मनाया जाता है और केवल यह आग्रह कर रहे हैं कि 5 लोगों को इसमें शामिल होने की अनुमति दी जाए। चीफ जस्टिस ने जवाब दिया कि लेकिन कोविड-19 हर साल नहीं आता। पीठ ने कहा कि हर जगह स्थानीय प्रशासन स्थिति के हिसाब से निर्णय लेता है। पूरे देश पर लागू होने वाला कोई आदेश नहीं दिया जा सकता।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।) 

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