जिस तरह पिछले तीन दशक से भी अधिक समय से बोफोर्स कांड ने भारतीय राजनीति में बवंडर मचा रखा था, यह तय है की आने वाल दशकों में राफेल डील में भारी भ्रष्टाचार, अनियमितता और दलाली का मुद्दा छाया रहेगा। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी से पूछा है कि राफेल सौदे के स्कैंडल में पैसे किसने लिए? इस सौदे के अनुबंध से भ्रष्टाचार विरोधी प्रावधानों को किसने हटाया और बिचौलिए सुशेन गुप्ता को किसने रक्षा मंत्रालय के अहम दस्तावेज उपलब्ध कराए? राहुल ने ट्वीट करते हुए परीक्षा पर चर्चा के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के छात्रों को भयमुक्त और नर्वस हुए बिना कठिन सवाल का जवाब देने की सलाह पर तंज कसते हुए ये तीन सवाल पूछे हैं।
कांग्रेस ने फ्रेंच न्यूज वेबसाइट मीडियापार्ट की रिपोर्ट का हवाला देते हुए राफेल लड़ाकू विमान खरीद में बिचौलिए के लेन-देन की कथित भूमिका को लेकर एक बार फिर सरकार पर निशाना साधा है।
कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने फ्रेंच मीडिया रिपोर्ट के जरिये सामने आई जानकारियों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से स्पष्टीकरण की मांग करते हुए राफेल सौदे में लेन-देन के कथित भ्रष्टाचार की स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने की मांग की। सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि इस सौदे में भ्रष्टाचार हुआ है और सरकारी खजाने को 21,075 करोड़ रुपये की चपत लगी है। उन्होंने कहा कि संवेदनशील दस्तावेज आखिर मिडिलमैन तक कैसे पहुंचे।
सुरजेवाला ने इस मुद्दे पर प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि फ्रेंच न्यूज पोर्टल से सामने आई जानकारी से साफ है कि राफेल खरीद में बड़ा भ्रष्टाचार हुआ है। इस बारे में मोदी सरकार को यह बताना चाहिए कि क्या ये सही है कि बिचौलिए से पकड़े गए दस्तावेज के मुताबिक जो 36 राफेल की कीमत 5.6 बिलियन यूरो निर्धारित की गई?
सुरजेवाला ने पूछा कि क्या यह भी सही है कि रक्षा मंत्रालय के विपरीत दसॉल्ट कंपनी अपनी इंटर्नल मीटिंग में 20 जनवरी, 2016 को ये निर्णय किया कि वो 36 राफेल जहाज की कीमत 7.87 बिलियन यूरो लगाएंगी? क्या ये भी सही है कि इंडियन नेगोसियेशन टीम ने दसॉल्ट के इस प्रस्ताव को अगले दिन ही खारिज कर दिया? मगर इसके बाद भी सौदे को मंजूरी दी गई।
सुरजेवाला ने कहा कि क्या कारण है कि 2.81 बिलियन यूरो यानि 21 हजार करोड़ रुपये से अधिक का अतिरिक्त भुगतान किया गया? उन्होंने कहा कि इन साक्ष्यों के सामने आने के बाद पूरे मामले की सार्वजनिक जांच नहीं होनी चाहिए? सुरजेवाला ने कहा कि दूसरा सवाल यह है कि क्या ये सही नहीं कि ईडी ने 26 मार्च 2019 को जब राफेल के एक सहयोगी पर रेड की तो उस रेड में रक्षा मंत्रालय के सबसे गुप्त कागजात पकड़े गए जिसमें कीमत निर्धारण का कागज ईडी ने पकड़ा। सुरजेवाला ने दावा किया कि रुपयों की कीमत का आकलन कैसे होगा उसे भी ईडी ने पकड़ा था। राफेल सौदे के अनुबंध से भ्रष्टाचार विरोधी प्रावधान हटाए जाने पर सरकार से स्पष्टीकरण की मांग करते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि राफेल पर सामने आई ताजा जानकारी के बाद इसकी स्वतंत्र एजेंसी से जांच करायी जानी चाहिए।
सुरजेवाला ने कहा कि 2015 में 36 राफेल की डील 5.06 बिलियन यूरो में तय की गई। इसमें एयरक्राफ्ट के साथ मिलने वाले सभी हथियार भी शामिल थे।सुरजेवाला ने सवाल किया कि एक बिचौलिया कैसे इतना शक्तिशाली हो सकता है कि वह सबसे बड़े रक्षा सौदे में मोदी सरकार के निर्णयों को प्रभावित कर दे? क्या इसकी गहन और स्वतंत्र जांच नहीं होनी चाहिए?
सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि भारत सरकार के रेट तय करने के बाद दसॉ एविएशन ने 20 जनवरी 2016 को कंपनी की इंटरनल बैठक रखी। इसमें कंपनी ने 36 राफेल की कीमत 7.87 बिलियन तय कर दी। मोदी सरकार ने 23 सितंबर 2016 को दसॉ की तय की गई कीमत पर डील स्वीकार कर ली। सुरजेवाला ने सवाल किया कि आखिर ऐसी क्या वजह थी, जो रक्षा मंत्रालय के मना करने पर भी 21,075 करोड़ रुपए ज्यादा देकर राफेल डील की गई।सुरजेवाला ने कहा कि 26 मार्च 2019 को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बिचौलिए के पास से एक गोपनीय दस्तावेज जब्त किया था। उस पर भी कोई जांच नहीं कराई गई कि आखिर बिचौलिए तक दस्तावेज कैसे पहुंचे। उन्होंने पूछा कि डील में नो रिश्वत, नो गिफ्ट, नो इंफ्लूएंस, नो कमीशन और नो मिडिलमैन जैसी शर्तें क्यों नहीं रखी गईं।
कांग्रेस ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा है कि 1.1 मिलियन यूरो के जो क्लाइंट गिफ्ट दसॉ के ऑडिट में दिखा रहा है, क्या वो राफेल डील के लिए बिचौलिये को कमीशन के तौर पर दिए गए थे?जब दो देशों की सरकारों के बीच रक्षा समझौता हो रहा है, तो कैसे किसी बिचौलिये को इसमें शामिल किया जा सकता है?क्या इस सबसे राफेल डील पर सवाल नहीं खड़े हो गए हैं?क्या इस पूरे मामले की जांच नहीं की जानी चाहिए, ताकि पता चल सके कि डील के लिए किसको और कितने रूपए दिए गए? क्या प्रधानमंत्री इस पर जवाब देंगे?
गौरतलब है कि मीडियापार्ट ने फ्रांस द्वारा भारत को 36 राफेल लड़ाकू विमान के विवादास्पद बिक्री की जांच में तीन रिपोर्ट जारी की है जिसमें खुलासा किया गया है कि अब तक अप्रकाशित दस्तावेजों के साथ, कैसे एक प्रभावशाली भारतीय व्यापार मध्यस्थ अर्थात बिचौलिए को राफेल निर्माता डसॉल्ट एविएशन और उसकी साझीदार फ्रांसीसी रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स फर्म थेल्स द्वारा गोपनीय ढंग से लाखों यूरो यानि करोड़ों रुपयों का भुगतान किया गया था।वे इतने प्रभावशाली थे कि उन्होंने रक्षा सौदे के अनुबंध से भ्रष्टाचार-विरोधी धारा को हटवा दिया। यही नहीं इस बिचौलिए ने सौदे की बातचीत के दौरान रक्षा मंत्रालय के गोपनीय दस्तावेज हासिल करके फ्रेंच पक्ष को उपलब्ध कराया। यह विवरण इस तथ्य के मद्देनजर विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि भारत सरकार ने मानक विरोधी भ्रष्टाचार खंड को हटा दिया जो कि दोनों पक्षों द्वारा समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले बिचौलियों के उपयोग के खिलाफ संरक्षित था।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)
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