भाजपा, आरएसएस और मोदी की सरकार ने देश की संप्रभुता, स्वतन्त्रता और आत्मसम्मान गिरवी रख दिया है। गिरवी भी उन अमेरिकी दैत्याकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों के यहां रखा है, जो खुद अपने देश और उसकी जनता को नहीं बख्श रही है। हमारे यहां एक कहावत है कि डायन भी सात घर छोडकर इंसान को खाती है।
ये डायन बहुराष्ट्रीय कंपनियां तो अपना घर भी नहीं छोड़ रही हैं। ऐसे में ये हमारे देश के साथ क्या कर सकती हैं, इसकी भयावहता का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है।
मोदी सरकार ने बेहयाई की हद तक जाकर अमेरिका के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। क्या प्रधानमंत्री इतना जल्दी भूल गए कि इन्हीं कंपनियों ने हमे गुलाम बनाया था? और हजारों-लाखों देशवासी अपना खून बहाकर इनसे आजादी छीनकर लाये थे।
गुलामी का नशा इतना भी नहीं होना चाहिए कि अपने शहीदो को ही शर्मिंदा कर दे। शहीदों की रूह कांप गयी होगी, जब वे सुने होगे कि जिन हत्यारों-लुटेरी कंपनियों से लड़कर आजादी का दिन लाये थे, आज उसी दिन इन लुटेरी कंपनियों के लिए पूरे देश को समर्पित किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री देश की आजादी के दिन गुलामी का उद्घोष करते है। कहते है कि “विदेशी निवेश के लिए सब कुछ बदल दो, अगर राज्यों को अपनी नीति बदलनी पड़े तो बदल दो”।
मोदी को रूस जाने पर अमेरिका की फटकार लगी तो आनन-फानन में यूक्रेन पहुंच गए। यूक्रेन से आते ही मालिक बाइडेन को फोन करके पूर ब्यौरा रखा। अमेरिका ने भारतीय कंपनियों को मना किया कि रूसी कंपनियों को लड़ाकू हथियार बनाने के उपकरण निर्यात नहीं करोगे।
इन्होंने सिर झुकाकर मान लिया। जबकि राजनाथ सिंह, जो रक्षा मंत्री है, अमेरिका जाकर उनके साथ सैनिक समझौता करके आए हैं। दोनों देश एक दूसरे की जरूरत में ये उपकरण भेजेंगे।
अमेरिकी शार्क एलोन मस्क भारत आने वाला था। उसकी सुविधा के लिए नियम में बदलाव कर दिये, कर कम कर दिया। लेकिन वह फिर भी नहीं आया। चीन चला गया। हमारे प्रधान मंत्री पलक-पावड़े बिछाए बैठे ही रह गए।
एप्पल, अमेज़न और दूसरी नयी ‘ईस्ट-इंडिया कंपनियों’ को पूरे देश का कच्चा माल और सस्ता श्रम कौड़ियों के मोल देकर, प्रधानमंत्री बोलते हैं कि देश को उत्पादन का केंद्र बना रहे हैं। इन्हीं कंपनियों के लिए अमरीका से खनिज-पदार्थों का समझौता किया है। जो खनिज-पदार्थ बहुत कम मात्रा में पाये जाते हैं।
पीयूष गोयल, वाणिज्य मंत्री, बोलते है कि “अमेज़न देश के लिए खतरा बन रही है, यह देश के सभी खुदरा व्यापारियों को खत्म कर देगी”। दूसरे ही दिन माफी की मुद्रा में आ गए।
कहने लगे कि मेरा ये मतलब नहीं था कि अमेज़न देश के लिए जरूरी नहीं है। हम अपने लाल किले के उद्घोष पर अडिग हैं कि इन कंपनियों के बिना देश तरक्की नहीं कर सकता है। ये है इस देश के हुक्मरानों की हिम्मत!
अंग्रेजों ने भी 1947 के पहले भारत को दुनिया में कच्चे माल और सस्ते श्रम के केंद्र में तब्दील कर दिया था। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री देश कि गुलामी का ऐलान खुलेआम आजादी के समारोह के दिन लाल किले से करते है, और देशवासी थिरकने लगते हैं, क्या हम गुलामी के नशे में इतना डूब गए है? कि इतनी जल्दी अपनी गुलामी का इतिहास भूल गए।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की दक्षिण-एशिया की निदेशक गीता गोपीनाथ बोलती कि भारत की औरतों की आजादी और सुरक्षा की गारंटी होनी चाहिए। मोदी भी लाल किले से यही हुंकार भरते है। एप्पल के लिए काम करने वाले फॉक्सकॉन और टाटा हॉस्टल बनाकर लड़कियों की भर्ती शुरू कर चुके हैं।
18-25 साल की लड़कियां देशभर से इन हॉस्टलों में रहेगी तथा इन लुटेरी विदेशी कंपनियों की लूट को बढ़ाएंगी। क्या यही औरतों की सुरक्षा और आजादी के मायने है? मंशा सुरक्षा की नहीं है, उनके श्रम की लूट की है।
मोदी लाल किले से घोषणा करते हैं कि हम पूरी दुनिया को काम करने वाले देंगे। क्या अपने देश में सब काम पूरे हो गए, जो अब हम दुनिया के कामों में हाथ बंटायेंगे! पिछले दिनों सभी गरीब मजदूर इजरायल जैसे युद्ध क्षेत्रों में भेजे गए।
जहां उनकी जान की कोई गारंटी नहीं होती। यूरोप के शहरों में कचरा और नालियां साफ करने के कामों में गए। यानि हम गुलामों की तरह अमेरिका और यूरोपीय आकाओं की गुलामी करेंगे। इस गुलामी का आगाज प्रधानमंत्री आजादी के दिन लाल किले से करते है।
बात बहुत साफ है कि हमारे हुक्मरान अपनी स्वतन्त्रता, अपनी संप्रभुता, अपनी आत्मा, अपना मान-सम्मान सब-कुछ अमेरिका के चरणों में समर्पित कर चुके हैं। उनके तलवे चाटते हैं। बदले में अमेरिका इनके सामने पूंजी के टुकड़े फेंकता है। हमारे पूंजीपति और सरकार कृतज्ञता में अमेरिकी आका का शौर्यगान गाते हैं।
देश की जनता मदहोशी में इस गुलामी पर थिरकती है। आजादी के शहीदों के खून को लजाया जाता है। क्या यही आजादी है, जिसका हमारे शहीदों ने सपना देखा था?