Thursday, April 25, 2024

महान गणितज्ञ रामानुजन की सौवीं पुण्यतिथि पर विशेष: ‘वह शख्स़ जो अनंत जानता था’

वह 1913 का साल था जब श्रीनिवास रामानुजन, नामक मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में काम कर रहे साधारण क्लर्क ने, केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्यापन कर रहे प्रोफेसर जी एच हार्डी को पत्र लिखा, जिसमें शामिल कागज़ों में उनके गणितीय प्रमेय/थियरम शामिल थे। और इसके बाद की घटनाएं अब इतिहास हो चुकी हैं।

प्रोफेसर हार्डी, ने इन कागज़ों में लिखे गए प्रमेयों को पढ़ते हुए तुरंत पहचाना कि इन्हें किसी ‘‘अत्यधिक प्रतिभाशाली गणितज्ञ ने भेजा है, एक ऐसा शख्स जिसमें असाधारण मौलिकता और शक्ति हो’ और उन्होंने बेहद संकोची स्वभाव के रामानुजन को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वह आगे की पढ़ाई के लिए केम्ब्रिज आएं। उनके द्वारा काफी समझाने-बुझाने और प्रोत्साहित करने के बाद ही रामानुजन केम्ब्रिज पहुंचे और वहां रह कर उन्होंने प्रोफेसर हार्डी और अन्य अग्रणी गणितज्ञों के साथ लगभग पांच साल तक काम किया।

उच्च श्रेणी के उनके अनुसंधान/रिसर्च के लिए उन्हें वहां फेलो ऑफ द रॉयल सोसायटी चुना गया। यह सम्मान पाने वाले वह दूसरे भारतीय थे। इसके पहले इस सम्मान को 1841 में अरदेसीयर करसेटजी को दिया गया था। वह पहले भारतीय थे जिन्हें फेलो आफ ट्रिनिटी कॉलेज चुना गया। यह बेहद दुखद था कि स्वास्थ्य की समस्याएं ताउम्र उनका पीछा करती रहीं और उनका इन्तक़ाल महज 32 साल की उम्र में हुआ। ( 26 अप्रैल 1920)

दुनिया के महानतम गणितज्ञों में शुमार किए जाने वाले रामानुजन ने अपने छोटे से जीवन में गणितीय विश्लेषण, नंबर थियरी, इनफाइनाइट सीरीज आदि विभिन्न क्षेत्रों में अहम योगदान दिए और जैसा कि उनके जीवनीकार बताते हैं कि किस तरह उनकी ‘नोटबुक्स – जिसमें उनके प्रकाशित और अप्रकाशित निष्कर्ष शामिल हैं – उन पर उनकी मौत के बाद भी निरंतर काम होता रहा और इनमें से नए-नए गणितीय विचार हासिल किए जाते रहे।’

आज जब हम भारत के इस महान गणितज्ञ को उनकी सौंवी पुण्यतिथि पर याद कर रहे हैं, हम इस बात को भूल नहीं सकते कि यही वह दौर था, जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था और बेहद पिछड़ा मुल्क था, जब अकाल और महामारियों से लाखों लोगों का मरना आम बात थी, उन्हीं दिनों हिन्दुस्तान ने भौतिकी के जगत में भी अद्भुत प्रतिभाओं को उभरते देखा, ऐसी शख्सियतें जिन्होंने अपने सिद्धांतों से भौतिकी जगत को क्रांतिकारी मोड़ दिए। इस कड़ी में हम याद करते हैं सी वी रमन (1888-1970) को जिन्होंने रौशनी और रंग को देखने के हमारे नज़रिये को पुनर्परिभाषित किया, जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से नवाज़ा गया ; या मेघनाथ साहा (1893-1956), सत्येन बोस (1894-1974)।

हमारे लिए यह एक पहेली है, कि किस तरह एक पिछड़े, औपनिवेशिक भारत ने, ऐसी प्रतिभाओं को जन्म दिया – जिन्हें आज भी उनके योगदानों के लिए याद किया जाता है और क्यों आज- जबकि दुनिया में तीसरी वैज्ञानिक और टेक्नोलॉजिकल हयूमन पॉवर होने का हम दावा करते हैं, हम पिछड़ते जा रहे हैं।

उमंग लाइब्रेरी ने डॉ. रवि सिन्हा को, जो भौतिकीविद हैं और एक्टिविस्ट हैं, जिन्होंने एमआईटी से अपनी पीएचडी हासिल की है और देश-विदेशों के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाया है, उन्हें बात रखने के लिए आमंत्रित किया है, ताकि वह न केवल श्रीनिवास रामानुजन की जीवन पर रौशनी डालें बल्कि साथ-साथ ही इस पहेली को सुलझाने में भी हमारी मदद करें।

इस व्याख्यान में शामिल होने के लिए हम छात्रों को तथा वैज्ञानिक रूप से रूचि रखने वालों को भी आमंत्रित करते हैं।

  • Today at 5 PM – 7 PM
    Zoom Meeting ID 9370769913, Password 210352

इस आयोजन में सीधे जुड़ सकते हैं।

आयोजक: उमंग लाईब्रेरी                                                                                 

….क्योंकि किताबें कुछ कहना चाहती हैं।

(सुभाष गाताडे लेखक और चिंतक हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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