सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों पर रोक के साथ ही बनाई कमेटी, सीजेआई ने कहा- नतीजे पर पहुंचना चाहती है अदालत

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केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों के अमल पर उच्चतम न्यायालय के चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने रोक लगा दी है। पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कानूनों पर रोक लगाई, साथ ही एक कमेटी का गठन कर दिया है, जो कि सरकार और किसानों के बीच कानूनों पर जारी विवाद को समझेगी और सर्वोच्च अदालत को रिपोर्ट सौंपेगी।

केंद्र सरकार ने जिन तीन कृषि कानूनों को पास किया, उसका लंबे वक्त से विरोध हो रहा था। दिल्ली की सीमाओं पर हजारों की संख्या में किसान आंदोलन कर रहे हैं, इसी के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट के पास जा पहुंचा।

मंगलवार की सुनवाई में किसानों की ओर से पहले कमेटी का विरोध किया गया और कमेटी के सामने न पेश होने को कहा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख बरता और कहा कि अगर मामले का हल निकालना है तो कमेटी के सामने पेश होना होगा, ऐसे में अब कोई भी मुद्दा होगा, तो कमेटी के सामने उठाया जाएगा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया कि कमेटी कोई मध्यस्थ्ता कराने का काम नहीं करेगी, बल्कि निर्णायक भूमिका निभाएगी।

उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित कमेटी में  भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान, डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, अशोक गुलाटी (कृषि विशेषज्ञ) और अनिल घनवंत शामिल हैं। ये कमेटी अपनी रिपोर्ट सीधे उच्चतम न्यायालय को ही सौंपेगी, जब तक कमेटी की रिपोर्ट नहीं आती है, तब तक कृषि कानूनों के अमल पर रोक जारी रहेगी।

गौरतलब है कि बीते दिन की सुनवाई में केंद्र सरकार की ओर से अदालत में कृषि कानूनों के अमलीकरण पर रोक लगाने पर आपत्ति जताई गई थी। साथ ही केंद्र ने कहा था कि ऐसा करना ठीक नहीं होगा, अभी सरकार-किसानों में बातचीत हो रही है। हालांकि, अदालत ने साफ किया था कि लंबे वक्त से कोई नतीजा नहीं निकला है, सरकार का रुख सही नहीं है।

दिल्ली की सीमा पर किसानों का प्रदर्शन पिछले डेढ़ महीने से ज्यादा दिनों से हो रहा है। अलग-अलग बॉर्डर पर हजारों की संख्या में किसान जिनमें बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं, डटे हुए हैं। अब तक कई किसानों की मौत भी हो चुकी है, जिनमें से कुछ ठंड से जान गंवा बैठे हैं तो कुछ ने आत्महत्या कर ली।

कृषि कानून की मुश्किलों को दूर करने के लिए सरकार और किसान संगठन कई राउंड की बैठक भी कर चुके थे, लेकिन सहमति नहीं बन सकी। किसान तीनों कानूनों की वापसी की मांग पर ही अड़े थे, लेकिन सरकार कुछ विषयों पर संशोधन के लिए राजी थी।

सुनवाई में चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा कि हम समस्या का समाधान चाहते हैं और इसके लिए कमेटी का गठन जरूरी है। हम अपने लिए कमेटी बना रहे हैं। चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा कि किसी भी किसान की जमीन नहीं बिकेगी। हम समस्या का समाधान चाहते हैं। हमारे पास अधिकार है, जिसमें एक यह है कि हम कृषि कानूनों को सस्पेंड कर दें।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हमें समिति बनाने का अधिकार है, जो लोग वास्तव में हल चाहते हैं वो कमेटी के पास जा सकते हैं। हम अपने लिए कमेटी बना रहे हैं। कमेटी हमें रिपोर्ट देगी। कमेटी के समक्ष कोई भी जा सकता है। हम जमीनी हकीकत जानना चाहते हैं, इसलिए समिति का गठन चाहते हैं।

चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा कि कल किसानों के वकील दवे ने कहा कि किसान 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली नहीं निकालेंगे, अगर किसान सरकार के समक्ष जा सकते हैं तो कमेटी के समक्ष क्यों नहीं? अगर वो समस्या का समाधान चाहते हैं, तो हम ये नहीं सुनना चाहते कि किसान कमेटी के समक्ष पेश नहीं होंगे। हम चाहते हैं कि कोई जानकार व्यक्ति (कमेटी) किसानों से मिले और पॉइंट के हिसाब से बहस करे कि दिक्कत कहां है।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोई भी ताकत हमें कृषि कानूनों के गुण और दोष के मूल्यांकन के लिए एक समिति गठित करने से नहीं रोक सकती है। यह न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा होगी। समिति यह बताएगी कि किन प्रावधानों को हटाया जाना चाहिए। फिर वो कानूनों से निपटेगा। CJI ने कहा कि हम कानून को सस्पेंड करना चाहते हैं, लेकिन सशर्त। हालांकि, अनिश्चितकाल के लिए नहीं।

चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा की हम प्रधानमंत्री से कुछ नहीं कह सकते हैं। प्रधानमंत्री इस केस में पक्षकार नहीं हैं। उनके लिए हम कुछ नहीं कहेंगे। यह राजनीति नहीं है। राजनीति और न्यायपालिका में अंतर है और आपको सहयोग करना होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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