Thursday, April 25, 2024

टूटते सपने के साथ कब्रों में दफ़्न होतीं युवा ज़िंदगियां

युवाओं के सपनों को पंख देने वाले शहर प्रयागराज से एक बार फिर आ रही एक 21 वर्षीय छात्र की आत्महत्या की खबर ने स्तब्ध कर दिया। मूल रूप से गाजीपुर का रहने वाला मनीष यादव सलोरी स्थित किराए के लॉज में रहकर एसएससी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था, जब मनीष ने फांसी लगाई उस समय उसका रूम पार्टनर गांव गया हुआ था। सचमुच यह खबर बेहद परेशान करने वाली थी क्योंकि 27 फरवरी को घटित इस घटना से पहले 23 फरवरी को भी एक 27 साल के छात्र विजय द्वारा ट्रेन से कटकर आत्महत्या करने की खबर सामने आई ।
विजय भी प्रयागराज शहर में रहकर ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। सिलसिला यहीं नहीं थमता है, बस थोड़ा और पीछे जाएं तो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों द्वारा इसी शहर में की जाने वाली आत्महत्याओं की कड़ी दर कड़ी जुड़ती चली जाएगी। जब पूरा देश वर्ष 2021 के आगमन का जश्न मना रहा था, तब एक युवा जिंदगी अपने पीछे कई सवाल छोड़कर एक ऐसे रास्ते पर चलने का फैसला ले चुकी थी जो बेहद घातक था। इसी शहर से दो जनवरी को एक प्रतियोगी छात्र द्वारा आत्महत्या करने की खबर सामने आई। इससे पहले भी कई ऐसे नौजवान इसी शहर में अपनी जीवन लीला समाप्त कर चुके हैं जो कुछ पाने की चाहत लेकर इस उम्मीद से यहां आए थे कि जब यहां से निकलेंगे तो कुछ हासिल करके ही निकलेंगे लेकिन जिंदगी को मौत में बदल देंगे ऐसा तो उन्होंने भी नहीं सोचा होगा। 

यह मात्र देश के किसी एक शहर का सच नहीं, खासकर ऐसे शहर जहां नौजवानों के लिए भविष्य के सपने बेचने से लेकर उन्हें हासिल कैसे करें, तक की सीढ़ी तैयार की जाती हैं, वहां युवा जिंदगियां किस कदर तनाव और अवसाद का भी शिकार हो रही हैं यह भी एक विचलित करने वाला सच है। वर्षों से कोटा (राजस्थान) का उदाहरण हमारे सामने है। नीट और इंजीनियरिंग की तैयारी करने वाले असंख्य छात्र निराशा और हताशा में अपने जीवन को खत्म कर चुके हैं और अभी भी सिलसिला बदस्तूर जारी है जिसके चलते उसे सुसाइड कैपिटल तक का नाम दे दिया गया है और अब इसी दिशा की ओर इलाहाबाद शहर भी देखा जा सकता है बाकी दिल्ली, मुंबई, पुणे आदि बड़े शहर इन नौजवान जिंदगियों के लिए सुरक्षित हैं, ऐसा भी कतई नहीं ।

यदि आंकड़ों को देखें तो वह भी इसी ओर इशारा करते हैं कि हमारे देश में सबसे ज्यादा युवा वर्ग के लोग आत्महत्या कर रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB)के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019 में देश में एक लाख 39 हजार लोगों ने आत्महत्या की जिसमें 67 प्रतिशत लोग 18 से 45 साल के उम्र के बीच के थे। निश्चित ही यह आंकड़ा चौंकाने वाला है। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO ने अपनी एक रिपोर्ट में भारत को उन बीस देशों की सूची में रखा था जहां सबसे ज्यादा आत्महत्या की घटनाएं होती हैं, जबकि भारत के पड़ोसी देशों की हालत इससे बेहतर है। संगठन के मुताबिक श्रीलंका 29वें, भूटान 57वें, बांग्लादेश 120वें, नेपाल 81वें, म्यांमार 94 वें, चीन 69वें और पाकिस्तान 169 वें पायदान पर है। 

और इन सबके बीच सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि भारत में दिन प्रतिदिन युवाओं की आत्महत्याओं की दर बढ़ रही है जिसे नेशनल क्राइम ब्यूरो ने भी माना है और इन युवाओं में छात्र, नौकरीपेशा और गृहणियां भी शामिल हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर चार मिनट में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है और इन आत्महत्या करने वालों में नौजवानों की तादाद ज्यादा है । आत्महत्या का एक सबसे महत्वपूर्ण कारण अवसादग्रस्त स्थिति का उत्पन्न होना है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले भारत में सबसे ज्यादा अवसादग्रस्त लोगों की संख्या है यानी भारतीय सबसे ज्यादा अवसादग्रस्त हैं । रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर छठवां भारतीय गंभीर मानसिक विकार से पीड़ित है, हो भी क्यों न दिन प्रतिदिन बढ़ते प्रतियोगिता के इस माहौल में बच्चों पर अत्यधिक पढ़ाई और अच्छे नंबरों का दबाव है तो युवाओं पर अच्छी नौकरी और परिवार को बेहतर जिंदगी देने का दबाव और जिम्मेदारी तो वहीं महिलाओं पर घर और बाहर दोनों जगहों की जिम्मेदारियां संभालने का दबाव तब ऐसे में तनाव पैदा होना स्वाभाविक है और यही तनाव, अवसाद का कब रूप ले लेती है पता भी नहीं चलता और यही अवसाद किसी की आत्महत्या का एक मजबूत कारण बन जाता है। 

पिछले तीन वर्षों से दिल्ली में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे बस्ती जिले के 26 वर्षीय दिवाकर पटेल (बदला हुआ नाम) कहते हैं “वह भी एक बार अवसाद का शिकार हुए हैं, क्योंकि जब आप रात दिन एक करके किसी परीक्षा की तैयारी करते हैं और परिणाम आपके उम्मीद से एकदम विपरीत आए और आप के साथ के छात्र बाजी मार ले जाएं तो न चाहते हुए भी आप कब अवसाद का शिकार हो जाते हैं पता भी नहीं चलता।” वे कहते हैं दिल्ली में रहकर कोचिंग लेना और किराए के मकान में रहना बहुत महंगा होता है फिर भी अपना सपना पूरा करने के लिए हर साल यहां हजारों छात्र आते हैं, वे भी उनमें से एक हैं और हम सब जल्दी सफलता हासिल करना चाहते हैं ।

दिवाकर के मुताबिक गहरे अवसाद के उन दिनों में यदि उनका परिवार और दोस्त उन्हें न संभालते तो शायद वे भी जिंदगी के विपरीत कोई कदम उठा लेते लेकिन उन्होंने सबके सहयोग से जल्दी ही अपने को उस स्थिति से बाहर निकाल लिया तो वहीं लखनऊ में रहकर नीट की तैयारी कर रही शिल्पा कहती हैं, आखिर कौन ऐसा इंसान है जो अपने जीवन से प्रेम नहीं करता लेकिन कभी-कभी जिंदगी में ऐसे हालात पैदा होते हैं जहां आप खुद को दूसरों की तुलना में “लूजर” मानने लगते हैं यानी एक हारा हुआ इंसान। तब ऐसी स्थिति में वो कर बैठते हैं जिसकी कल्पना तक उसके मन में कभी नहीं आई होगी। शिल्पा के मुताबिक वे दो बार नीट के एग्जाम में चूक गई और अब वे आगे के अपने मौके को बिल्कुल गंवाना नहीं चाहती। वे कहती हैं जब हम अपने सामने चौक चौराहों पर सफल विद्यार्थियों के बड़े बड़े हॉर्डिंग देखते हैं तो अपनी हार का फ्रस्टेशन और बढ़ता है। 

हालात की भयावता इसी से समझी जा सकती है कि एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि साल 2018 में दस हजार से ज्यादा छात्रों ने आत्महत्या की जबकि साल 2017 में आंकड़े इससे कम यानी 9905 थे और साल 2016 में आंकड़ा 9478 था। ये सब आंकड़े देखते हुए हमें इस सच्चाई को भी स्वीकार करना होगा कि 36% की दर के साथ भारत विश्व के सबसे ज्यादा अवसाद ग्रस्त देशों में से एक है। पिछले कुछ सालों से छात्रों की आत्महत्या की दर 3.5 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ी है। वर्ष 2019 में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर दुनिया भर में आत्महत्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया गया साथ ही इस पर भी हम सब आत्महत्याओं को रोकने के लिए क्या कर सकते हैं क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में करीब आठ लाख लोग आत्महत्याओं की वजह से मौत के मुंह में चले जाते हैं ।

हम जानते हैं कि भारत के संदर्भ में यह स्थिति और भयावह होती जा रही है क्योंकि यहां आत्महत्याओं का प्रतिशत हर साल बढ़ ही रहा है पर बेहद चिंताजनक बात यह है कि सबसे अधिक युवा जिंदगियां इस कृत्य की भेंट चढ़ रही हैं, कारण चाहे पारिवारिक हो, सामाजिक हो, चाहे करियर संबंधित हो या पढ़ाई का दबाव, किंतु हमें यह सच स्वीकार करना ही होगा कि हम और हमारा सिस्टम इन जिंदगियों को बचाने में फेल साबित हो रहा है। शायद हम चाहते तो बहुत सी जिंदगियां बच सकती थीं। सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर हमें सचेत होकर इस ओर कदम बढ़ाना ही होगा, जहां हम गंभीरता से इस पर विचार कर सकें कि आख़िर हम हर जिंदगी को सुरक्षा की गारंटी क्यों नहीं दे पा रहे। जब तक हम अपनी कमी को स्वीकार नहीं करेंगे तब तक भारत आत्महत्याओं के मामले में अग्रणी भी रहेगा।

(इस स्टोरी के लिखे जाने तक 2 मार्च को फिर एक बार प्रयागराज शहर से बीस वर्षीय छात्रा द्वारा आत्महत्या की खबर सामने आई, मृतका प्रयागराज में रहकर कोचिंग लेती थी साथ ही बीएससी की छात्रा भी थी, कोटा की ही भांति कोचिंग हब बन चुके प्रयागराज में हद से ज्यादा बढ़ती आत्महत्याओं को देखते हुए कम से कम अब तो योगी सरकार को सचेत हो जाना चाहिए और इस ओर गंभीरता से सोचना चाहिए कि आखिर हम इन बच्चों का जीवन कैसे सुरक्षित कर पाएं। इस दिशा में कोचिंग सेंटर को भी कारगर कदम उठाने चाहिए।)

(सरोजिनी बिष्ट पत्रकार और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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