Friday, April 19, 2024

देश पर नई गुलामी थोपने की तैयारी है-‘अग्निपथ भर्ती योजना’

ताजातरीन खबर यह है कि अब सरकार सेना में ‘अग्निपथ भर्ती योजना’ के तहत तीन वर्ष के लिए सैनिकों को संविदा पर भर्ती करने जा रही है। इन्हें ‘अग्निवीर’ कहा जायेगा। बताया जा रहा है कि इससे सशस्त्र बलों की औसत उम्र में कमी आयेगी और साथ ही रिटायरमेंट बैनिफिट्स  एवं पेंशन का ‘बोझ’ भी सरकार पर नहीं पड़ेगा। तीन साल बाद अपनी जरूरत को देखते हुए सेना इन अग्निवीरों में से कुछ को सेना की स्थाई सेवा में भी शामिल कर सकेगी। तीन साल बाद सेना से निकलकर ये अग्निवीर कॉरपोरेट क्षेत्र में भी नौकरी कर सकेंगे। कहा जा रहा है कि इस ‘अग्निपथ भर्ती योजना’ के लिए सेना के तीनों अंगों ने उच्चाधिकारियों को अपनी तरफ से संस्तुतियां भेज दी हैं।

अब यह समझना बेहद जरूरी है कि इस ‘अग्निपथ भर्ती योजना’ के निहितार्थ क्या हैं, क्योंकि यह आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के उस खतरनाक खेल का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है जो बहुत पहले ही शुरू हो चुका है।

पहले थोड़ा इतिहास में जाकर देखते हैं, जब कथित रामजन्मभूमि स्थल पर मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया गया था, तब हिंदुओं के लिए उस अत्यंत महत्वपूर्ण अवसर पर पूजा-अर्चना के लिए चारों पीठों में से किसी एक भी शंकराचार्य को आमंत्रित ही नहीं किया गया। उनकी जगह पर सरसंघचालक मोहन भागवत स्वयं बैठ गये थे। क्यों? क्या सरसंघचलक शंकराचार्य से भी अधिक पूजनीय और समस्त हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं? नहीं। तो फिर शंकराचार्य को उपेक्षित कर मोहन भागवत क्यों बैठ गये?

इसका एकमात्र कारण है आरएसएस की अपने सरसंघचालक को 1979 के ईरानी शिया नेता आयतुल्ला खोमैनी मुसावी की तरह हिंदुओं की धार्मिक आस्था और राजसत्ता का एकछत्र अधिष्ठाता देवता बनाने की योजना। जिसके आधे हिस्से में आरएसएस अपने जेबी संगठन भाजपा के जरिये केंद्र व कुछेक राज्यों की सरकार का पर्दे के पीछे से संचालन कर ही रहा है। तो इसका दूसरा आधा भाग था अयोध्या वाली पूजा-प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में शंकराचार्य के स्थान पर मोहन भागवत का बैठ जाना।

आरएसएस ने अपनी दूरगामी योजना के तहत ही सबसे पहले केंद्र सरकार के उच्च प्रशासनिक स्तर पर संयुक्त सचिव और उससे नीचे के पदों पर निजी क्षेत्र से अपने स्वयंसेवकों की सीधे-सीधे नियुक्ति कराने का रास्ता खुलवा दिया। अब वे अधिकारी आजीवन आरएसएस के प्रति वफादार रहेंगे और सरकारी सेवाओं के दौरान समय-समय पर सरकार की नीतियों, निर्णयों, योजनाओं और कार्यक्रमों को आरएसएस के अनुसार संचालित करेंगे। आरएसएस के वित्तपोषक पूंजीपतियों का हित-लाभ करेंगे। आरएसएस का कृपापात्र होने से वे सदैव मुख्य प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से चुने गये ऐसे अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के लिए सिरदर्द पैदा करते रहेंगे जो आरएसएस से असहमत हों।

आरएसएस के ऐसे कृपापात्र अधिकारी धीरे-धीरे जिला व तहसील स्तर पर डीएम और एसडीएम के पदों पर भी बिठाये जायेंगे। तो दूसरी तरफ सेना के खर्चे पर प्रशिक्षित और तीन साल नौकरी कर चुके ‘अग्निवीरों’ की भारी तादात निजी सुरक्षा ऐजेंसियों के नाम पर कॉरपोरेट घरानों के पास मौजूद होगी ही जो ठीक हिटलर की एस.एस. की तरह डीएम और एसडीएम के मार्फत जनता को नियंत्रित करने का काम करेगी।

इस तरह सत्ता पर आधिपत्य जमाने का आरएसएस का काम पूरा हो जाने के बाद अगले चरण में-सबसे पहले साम्प्रदायिक दंगे करवा कर मुस्लिम आबादी, विरोधी नेताओं एवं बुद्धिजीवियों का सफाया शुरू किया जायेगा। इस काम में आरएसएस के कृपापात्र आईएएस, आईपीएस अधिकारी स्थानीय स्तर पर व्यवस्था को पंगु कर सहयोग करेंगे। वे यातायात, दूर संचार और खाद्य आपूर्ति सेवाओं को दुरूह बना देंगे। इसके साथ ही लोगों का ध्यान बंटाने और उन्हें चुप कराने के लिए सीमा पर सैनिक हलचल तेज कर दी जायेगी।  

इतना सब करने के बाद आरएसएस के सरसंघचालक को 1979 के ईरानी शिया नेता आयतुल्ला खोमैनी मुसावी की तरह हिंदुओं की धार्मिक आस्था और देश की राजसत्ता का एकछत्र अधिष्ठाता देवता बनने से कौन रोक सकेगा?

इसके बाद संविधान को निलंबित/संशोधित या पूर्णतया समाप्त कर दिया जायेगा। न्यायालयों का संचालन तालिबानी और शिया अदालतों की तरह मनुस्मृति के आधार पर किया जायेगा। समाज में वर्ण-व्यवस्था कठोरतापूर्वक लागू की जायेगी। दलितों, बौद्धों और स्त्रियों की दशा दोयम दर्जे के नागरिकों जैसी होगी। जनता के लिए ‘सम्राट’ की आज्ञा सर्वोपरि होगी।

और यह सब आपकी आंखों के सामने होगा क्योंकि इसके लिए सहमति आपने ही दे रखी है। और, 2024 में भी जनता को सद्बुद्धि आ जायेगी, इसकी सम्भावना कम से कम मुझे तो नहीं दिखाई दे रही है, अपनी आप जानें।

(श्याम सिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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