अमेरिका और तालिबान के बीच कब्जे की फिक्सिंग!

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तालिबान दुनिया के सबसे निकृष्ट लोगों में से एक हैं। जो न दूसरों की सुनना जानते हैं और न समझना। स्वतंत्रता-समता, लोकतंत्र इनके बंदूक के आगे है ये दुनिया को वापस ज़हालत, धार्मिक कट्टरता की अंधी सुरंग में ले जाना चाहते हैं जहां मानवीय मूल्यों की समाप्ति हो जाए। इन लोगों का जड़ से समूल नाश जरूरी है। तालिबान के उदय के पीछे भी कहीं न कहीं अमेरिका ही खड़ा मिलेगा। अफगानिस्तान में तालिबान ने नब्बे के दशक में सिर उठाना शुरू किया सोवियत सेनाओं की वापसी का वो दौर था जब अमेरिका ने तालिबान के कंधे पर हाथ रख अपना हित साधने की दूरगामी योजना को अंजाम दिया।

इनके हाथों में हथियार भी अमेरिका ने ही थमाया। लोग शायद भूल गए होंगे कि किस तरह अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति नजीब को इन्हीं लोगों ने मारकर लैंप पोस्ट पर लटका दिया था। वो अंधेरे दिनों की शुरुआत भर थी जो आगे चलकर गहराता गया। बाद में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद आतंकवाद की समाप्ति के नाम पर अमेरिका ने जिस तालिबान के खात्मे के लिए अफगानिस्तान में प्रवेश किया वही तालिबान आज काबुल पर कब्जा कर बैठा है।

इस पूरे घटनाक्रम का एक दूसरा छोर भी है जहां अमेरिका और उस जैसे और कई गुंडे देश खड़े हैं जो चाहते हैं तालिबान कभी खत्म न हो। कहीं कोने-अतरे में ये फलता-फूलता रहे ताकि शांति के नाम पर भ्रांति फैलाने का इनका कारोबार भी फलता-फूलता रहे। ये कारोबार दुनिया भर में हथियार बेचने के साथ ही संसाधनों की असीम लूट पर टिका है। इसके लिए जरूरी है कि तालिबान जैसों को फलते-फूलते रहने दिया जाए। वैसे आगे चलकर तालिबान और अमेरिका के बीच कब्जे की फिक्सिंग की ये कहानी भी सामने आ ही जायेगी।

आतंकवाद बनाम शांति का ये तालि-अमेरिकी स्क्रिप्ट को समझने की जरूरत है कि हथियार थमाकर फिर हथियार छीनने से शांति नहीं आती। जिन लोगों ने यह भ्रम पाल रखा है कि तालिबान ताकतवर हीरो हैं और अमेरिका इस दौर का महानतम मानवतावादी वो जान लें ये दोनों ही इंसानियत के सबसे बड़े मुजरिम हैं जिन्हें समता-समानता पसंद नहीं। कमोबेश दुनिया भर में आतंक और जंग का माहौल बनाये रखना ही इनके जिंदा रहने की खुराक है।

वैसे देखें तो तालिबान जैसी मानसिकता आपको हर मुल्क में दिखेगी इसे ऐसे समझिए जैसे आपके हल्के की पुलिस नहीं चाहती उसके इलाके से अराजकता, दबंगई, लफंगई, अवैध धंधे कभी खत्म हों। क्योंकि इससे कमाई का बड़ा जरिया बंद हो जाएगा। इसी लिए अपराध और अराजकता को बनाए रखना इनके लिए जरूरी है और मजबूरी भी।

लेकिन हमारे और आपके लिए जरूरी है कि हम और आप अपनी खुले दिल और दिमाग से तालिबान पर लानत भेजें। समता, समानता और मानवीय सरोकार असली हिरो हैं। इन्हें जीवन और व्यवहार में उतारें न कि हत्यारे, गुंडा तालिबान और अमेरिका को।

 (भास्कर गुहा नियोगी पत्रकार हैं और आजकल वाराणसी में रहते हैं।)

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