कपिल सिब्बल ने 2जी पर कहा था कि ये ज़ीरो लॉस है। पूरा देश उन पर हंसा था, आज कपिल सिब्बल ज़रूर हंस रहे होंगे। सिब्बल काबिल वकील रहे हैं, वो जानते ही थे कि ये घोटाला साबित नहीं हो सकेगा।
तो घोटालों की बात सुनते ही नथुने फुलाने वाले साहेबान.. अब समझ लें कि या तो 2जी कोई घोटाला नहीं था , या फिर अब मान जाइए कि मोदी सरकार भी घोटालेबाजों को बचाने में जुटी हुई थी।
अरे साहब, सीबीआई और ईडी इस केस को लड़ रहे थे। इन दोनों का बॉस कौन है? क्या बॉस की निगरानी में ही केस को हल्का बनाकर लड़ा गया?? क्योंकि कोर्ट तो कह रही है कि सीबीआई कुछ साबित ही नहीं कर सकी। क्यों नहीं कर सकी?
आज जो सरकार में बैठे हैं कल तक तो उनके पास झोलाभर सबूत थे तो अब क्यों सांप सूंघ गया? उनके पास सीबीआई को देने के लिए जो सबूत थे वो कहां गए?
अब असली बात। जो कांग्रेस आज जश्न मनाएगी सवाल उससे भी पूछे जाएं। सबसे पहले तो मुकदमे यूपीए ही कर रही थी। जेल में आरोपियों को डाल रही थी। अगर उसे तब मालूम था कि घोटाला नहीं हुआ तो आखिर उसने इस टेक पर रहकर चुनाव क्यों नहीं लड़ा? उस वक्त बीजेपी के हल्ले में पड़कर उसने लोगों का वक्त ज़ाया क्यों किया? अदालतों का वक्त क्यों बर्बाद किया? निर्दोषों को जेल में क्यों रखा? क्या हल्ले के आधार पर ही उसने भी लोगों को बीजेपी के हल्ले में बहरा होने दिया?
सीधी बात है। साल 2008 में स्पेक्ट्रम बेचने के लिए सरकार ने पहले आओ-पहले पाओ की नीति तय की थी। जितने दाम में स्पेक्ट्रम दिया जाना था वो सरकार ने खुद ही तय कर लिया था। शोर किया गया कि दाम कम रखे गए.. तो बीजेपी को तभी बताना था कि दाम कम होना घोटाला कैसे हो गया.. और जवाब यूपीए को भी देना था कि ये घोटाला नहीं बल्कि नीतिगत फैसले में ज़रा सी चूक का मामला हो सकता है। दोनों में से किसी ने भी लोगों को मुद्दे की बारीकी में नहीं जाने दिया। बस पब्लिक की भावनाओं से खिलवाड़ किया। असंतोष फैलाया और फैलने दिया गया।
आज फाइनली देश का जब तमाशा बन गया तब जवाब देनेवाला ना इधर देख रहा है और ना उधर। खैर, जो हुआ है वो यही है कि ना नेता पकड़े गए हैं… ना कॉरपोरेट पकड़े गए हैं और ना घोटाला पकड़ा गया है। अलख निरंजन।
(नितिन ठाकुर टीवी पत्रकार हैं।)