पंजाब में पहली बार दो महिला IPS अधिकारी बनीं DGP, राज्य में अब 13 पुलिस महानिदेशक!

1947 के बाद संयुक्त अथवा महापंजाब में कभी कोई महिला अधिकारी पुलिस महानिदेशक के पद तक नहीं पहुंच पाईं। 1966 के बाद पंजाब तीन हिस्सों में बंट गया। हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और मौजूदा पंजाब सामने आया। तीनों प्रदेशों में विभिन्नताओं के बावजूद एक बात समान रही कि किसी महिला पुलिस अधिकारी को पुलिस महानिदेशक बनने का मौका नहीं मिला। पंजाब के पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश व जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के सरहदी राज्य राजस्थान का भी यही हाल रहा।

लेकिन इस बाबत पंजाब ने इतिहास रच दिया है। पंजाब में एक नहीं बल्कि दो महिला पुलिस अधिकारियों को डीजीपी यानी पुलिस महानिदेशक का पद और रैंक दिया गया है। राज्य सरकार ने महिला आईपीएस अधिकारी गुरप्रीत कौर देयो और एक अन्य महिला पुलिस अधिकारी शशि प्रभा द्विवेदी को पुलिस महानिदेशक बनाया है। इसे ऐतिहासिक घटना के तौर पर दर्ज किया जाएगा। देओ और द्विवेदी 1993 बैच की आईपीएस हैं और उन्हें पंजाब कैडर मिला था।

गुरप्रीत कौर देयो 5 सितंबर 1993 में राज्य में पुलिस अधिकारी के तौर पर नियुक्त हुईं थीं। वह कई जिलों में पुलिस प्रमुख रहीं। अब पुलिस महानिदेशक बनने से पहले वह अतिरिक्त डीजीपी (सामुदायिक मामले तथा महिला मामले) थीं। वह एडीजीपी एंटी ड्रग्स स्पेशल टास्क फोर्स और विजिलेंस में भी प्रमुख पदों पर कार्यरत रही हैं। एडीजीपी (अपराध) रहते हुए उन्होंने काफी उल्लेखनीय काम किया। उनकी छवि खेंमेबाजी से परे रहकर काम करने वालीं आईपीएस अधिकारी की रही है।

वहीं दूसरी पुलिस महानिदेशक बनाई जाने वालीं आईपीएस शशि प्रभा द्विवेदी डीजीपी बनने से पहले एडिशनल डीजीपी, रेलवे थीं। वह भी 1993 बैच की आईपीएस हैं। शशि प्रभा भी पुलिस विभाग में कई अहम पदों पर रही हैं। कई जिलों की कमान संभालने के साथ-साथ उन्होंने बतौर अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (मानव संसाधन विकास) और एडीजीपी, लोकपाल के तौर पर भी काम किया।

दोनों नईं महिला पुलिस महानिदेशक अवाम में अच्छी छवि रखती हैं। दोनों से बात करने की कोशिश की गई लेकिन बात हो नहीं पाई। गुरप्रीत कौर देयो और शशि प्रभा द्विवेदी के अलावा आईपीएस आरएन ढोके, वरिंदर कुमार, ईश्वर सिंह, सतीश कुमार अस्थाना, जितेंद्र कुमार जैन और वरिंदर कुमार को तत्काल प्रभाव से डीजीपी रैंक में पदोन्नति दी गई है।

इससे पहले ये सब आईपीएस अधिकारी विभिन्न विभागों में एडीजीपी के रूप में तैनात थे। इन सब को मिलाकर अब राज्य में पंजाब कैडर के पुलिस महानिदेशक पद रखने वाले आईपीएस की संख्या 13 हो गई है। यानी पंजाब में अब तेरह पुलिस महानिदेशक हैं।

हालांकि इनमें से तीन पूर्व डीजीपी दिनकर गुप्ता, हरप्रीत सिंह सिद्धू और पराग जैन केंद्र में डेपुटेशन पर हैं। बताया जाता है कि मौजूदा आम आदमी पार्टी की सरकार और मुख्यमंत्री भगवंत मान से उनका तालमेल नहीं बैठा और वह राज्य से किनारा करते हुए डेपुटेशन पर चले गए। 

खैर, पंजाब की चरमराई कानून-व्यवस्था और कई स्तरों पर मिल रहीं इस सरहदी सूबे को गंभीर चुनौतियों के बीच नए पुलिस महानिदेशक आम लोगों के लिए उम्मीद की किरण हैं। बशर्ते उन्हें खुलकर काम करने दिया जाए। गौरतलब है कि फिलवक्त पुलिस महकमे की कमान आईपीएस गौरव यादव के हाथों में है जो इनमें से कईयों के कनिष्ठ हैं। बेशक वह तकनीकी रूप से अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक हैं लेकिन उनके पास सरकार प्रदत अधिकार डीजीपी वाले ही हैं।

आप की सरकार जैसे ही सत्तासीन हुई, वैसे ही तब के डीजीपी भंवरा को किनारे करने की कवायद शुरू हो गई थी। बहुचर्चित सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड में ‘नाकाम’ रहने का बहाना बनाकर उन्हें अपेक्षाकृत कम महत्व वाले विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया था। जबकि उनका कार्यकाल थोड़ा ही बचा था लेकिन भंवरा ने इसे अपनी फजीहत मानते हुए लंबी छुट्टी ले ली। पुलिस हाउसिंग बोर्ड के डीजी के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई थी और उन्हें अपने से जूनियर गौरव यादव को रिपोर्ट करना था।

हरप्रीत सिंह सिद्धू को भी यह नामंजूर था। उन्होंने भी कुछ दिन कार्यकारी पुलिस महानिदेशक गौरव यादव के मातहत काम किया, जबकि वह यादव से वरिष्ठता में एक क्रम आगे हैं। सिद्धू को भी बहुत लायक आईपीएस अधिकारी माना जाता है लेकिन उन्होंने डेपुटेशन लेने का फैसला कर लिया। राज्य सरकार ने इसके लिए अपनी सहमति भी दे दी।

सरगोशियां हैं कि गौरव यादव को पुलिस महानिदेशक की ‘शक्तियां’, नाम अथवा पद इसलिए भी मिले क्योंकि वह आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के करीबी दोस्त हैं। कभी गौरव यादव को बादल परिवार का करीबी माना जाता था। नियमानुसार पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति के लिए तीन नामों का पैनल यूपीएससी को भेजना पड़ता है लेकिन भगवंत मान सरकार ने फिलहाल तक ऐसा नहीं किया।

भगवंत मान ने यूपीएससी को तीन नामों का पैनल नहीं भेजा क्योंकि जूनियर होने के चलते गौरव यादव का नाम उक्त पैनल में शुमार नहीं किया जा सकता। इसलिए उन्हें कार्यकारी पुलिस महानिदेशक पद अनिश्चितकाल के लिए दे दिया गया और उनसे सीनियर पुलिस निदेशक रैंक के अन्य अधिकारी उनके अधीन काम करने को मजबूर हैं।

इनमें से बातचीत में एक अधिकारी ने कहा कि आईपीएस अधिकारियों को अनुशासन में चलना पड़ता है और जो शासनादेश होता है, उसका पालन करना पड़ता है। इससे ज्यादा वह कुछ नहीं बोले। 

प्रसंगवश, आम आदमी पार्टी को सिविल पुलिस के मुखिया गौरव यादव के अतिरिक्त जो आला पुलिस अधिकारी सबसे ज्यादा पसंद हैं, वह हैं डीजीपी रैंक में पदोन्नत किए गए वरिंदर कुमार। वह विजिलेंस के प्रभारी हैं और सरकार में आने के बाद जिन विपक्ष से जुड़े बड़े नेताओं और अन्य लोगों को विजिलेंस ने काबू किया, उनकी सारी फाइलें और ऑपरेशन वीरद्र कुमार की निगरानी में ही परवान चढ़े। एक दिन पहले तक वह भी अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक थे।

गणतंत्रत दिवस (26 जनवरी) को राज्य स्तरीय समागम में जिन पुलिस अधिकारियों को बेहतर सेवाओं के लिए विशेष अवॉर्ड से नवाजा जा रहा है, उनमें बहुसंख्या सतर्कता ब्यूरो से जुड़े अधिकारियों और कर्मचारियों की है। इसी से समझा जा सकता है कि विजिलेंस पर सरकार खासतौर पर मेहरबान है। पंजाब विजिलेंस ब्यूरो भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे विपक्ष के कई नेताओं और उनके खासमखास लोगों के लिए हौआ है।

ब्यूरो के हाथ आईएएस और पीसीएस अधिकारियों की गर्दन तक भी पहुंच जाते हैं। आईएएस अधिकारी नीलिमा का उदाहरण सामने है। एक अन्य पीसीएस अधिकारी को तो लुधियाना में बाकायदा गिरफ्तार भी कर लिया गया था और उसके बाद पीसीएस अधिकारी सामूहिक हड़ताल पर चले गए थे। आईएएस अधिकारियों की एसोसिएशन भी उनके समर्थन में थी। लेकिन शासन ने निलंबन की धमकी देकर उनकी ‘बगावत’ को दबा दिया। बेशक मुख्यमंत्री भगवंत मान के इन तेवरों का सूबे की आम जनता ने स्वागत किया था लेकिन ब्यूरोक्रेसी में बेचैनी संक्रमण रोग की तरह फैल रही है।

(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक की रिपोर्ट।)

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