Thursday, March 28, 2024

थाली बजाने से पहले समझ लें, उसकी आवाज आपकी कार्य क्षमता पर पड़ रही है भारी!

अगस्त का महीना खत्म होने वाला है और हिंदू त्योहारों का टाइम आ गया है। मुझे ये बताने की आपको ज़रूरत नहीं थी, आपके आसपास के ‘लाउड स्पीकरों’ ने आपको स्वयं सूचना दे दी होगी।ऐसे ही एक शाम मैंने हल्की झपकी मारने की सोचा, लेकिन समय का ख़याल नहीं रख पाया। पांच बज गए थे। अचानक भयंकर शोर शुरू हो गया। शंख, घंटी, थालियां न जाने क्या-क्या बजने लगा।

सरकार ने कोरोना टेस्टिंग के सवाल से बचने के लिए देश के नागरिकों से थालियां पिटवा दीं। लगे लोग थाली पीटने और जो भी मिला उसको पीटने। जैसे हमारे प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री छोड़ कर सब कुछ हैं, फ़कीर, चौकीदार, पठान के बच्चे, सेवक न जाने क्या-क्या। उन्होंने डॉक्टरों, पुलिसवालों को कोरोना योद्धा घोषित करवा दिया। इससे हुआ क्या? क्या उनकी ज़िंदगी में कोई बदलाव आया? लोग पुलिस से प्रेम करने लगे क्या?

थाली बजी, बहुत ज़ोर से बजी। अभी अमित शाह बिहार में रैली करने पहुंचे तो विरोधी पार्टी ने फिर थाली बजा के अपना विरोध जताया। फिर थाली बहुत ज़ोरों की बजी। छीछालेदर हो गया थाली का, इतनी बदनाम, थाली इससे पहले कभी नहीं हुई थी। थाली ने कितना शोर मचाया? न राज्य सरकारें कुछ बोलती हैं न केंद्र सरकारें, क्योंकि समाज में बदलाव लाने से उनके वोट कम हो सकते हैं। इस अनावश्यक शोरगुल से हो क्या रहा है, आइये देखते हैं।

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव 
शायद ही कोई भारतीय शहर हो जो ध्वनि प्रदूषण के मानकों पर खरा उतरता हो। पूरा साउथ एशिया ध्वनि प्रदूषण फैलाने के मामले में विश्व गुरु है। एक रिसर्च के दौरान पता चला कि ध्वनि प्रदूषण में 10 डेसिबल (dB) की बढ़ोतरी से आम जन के काम करने की क्षमता पर पांच फीसदी तक का फ़र्क पड़ता है। पीक आवर्स में हम तो 20dB-25dB आगे निकल जाते हैं। आपके काम करने की क्षमता पर ही देश का विकास, इकोनोमी निर्भर करती है। आपको शायद अंदाज़ा न हो, लेकिन ध्वनि प्रदूषण के चलते आपके देश की विकास-दर भी कम हो रही है। इसके अलावा ह्रदय रोग, तनाव और बच्चों के बौद्धिक विकास पर ध्वनि प्रदूषण से बहुत बुरा असर लगातार पड़ रहा है।

ध्वनि प्रदूषण और हमारा-दूसरी प्रजातियों के विकास में अवरोध
ज़्यादातर जीव जंतु हमारे पूर्वज हैं। हमें अपने इंसानी पूर्वजों और संस्कृति पर गर्व करना सिखाया जा रहा है। वहीं असल मायने में जो हमारे पूवर्जों के भी पूर्वज हैं, अनजाने में ही हम उन्हें इस दुनिया से एग्जीक्यूट कर रहे हैं।

हमारा ध्वनि प्रदूषण दूसरी प्रजातियों के विकास में समस्या पैदा कर रहा है। समुद्र के जिन क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव कम है, वहां आप तरह-तरह की प्रजातियां देख पाएंगे। पक्षी और अन्य जीव-जन्तु साउंड से ही कम्युनिकेट करते हैं, लेकिन हमारे ध्वनि प्रदूषण की वजह से उसमें अप्रकृतिक बाधाएं आती हैं।

हमें नहीं पता, हो सकता है इनसान के बाद अगला प्राणी डॉलफिन हो जो ज़मीन पर इंसानों की तरह राज करे (डाल्फिन इंसानों के बाद सबसे समझदार प्राणियों में से एक है), लेकिन जिस हिसाब से हम तरह-तरह के प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं, लगता नहीं कि हम हमारे बेहतरीन क्लाइमेट को रहने देंगे, न ही ख़ुद को, न किसी और प्राणी को।

ध्वनि प्रदूषण और हमारे पूर्वाग्रह
सोनू निगम ने सुबह-सुबह अज़ान से होने वाले शोरगुल के बारे में सवाल उठाया था। बड़ा ड्रामा हुआ। मैं स्वयं जिस हिस्से में रहता हूं, वहां से कई बार सुबह-सुबह शोरगुल करते हुए, “गौरी शंकर सीता राम” करते हुए प्रभात फेरियां निकलती रही हैं। गणेश उत्सव, दुर्गा पूजा, दशहरा, दीवाली इन बड़े उत्सवों के दौरान 115dB तक ध्वनि प्रदूषण होता है। शंख और घंटिया अक्सर ध्यान भंग करने में कोई कसर नहीं छोड़तीं। कई लोग तो अपने बहुत छोटे बच्चों को कानों को चीरते शोरगुल वाली जगहों पर दर्शन कराने, आशीर्वाद लेने ले जाते हैं, बिना ये सोचे कि उनके बच्चे के कान अभी इस तरह के प्रदूषण के लिए परिपक्व नहीं हुए हैं। 

डिस्को-पब वाले भी अति कर देते हैं और कई लोग ख़ुद के घरों को ही डिस्को पब बना देते हैं। अब तो फिल्मों का पुराने स्टाइल का प्रमोशन बंद हो गया, नहीं तो ऑटो में लाउड स्पीकर पर चिल्लाते हुए व्यक्ति आपके कान फोड़ देता था। आज भी ऐसे व्यक्तियों का इंतजाम सरकारें अपने चुनावी प्रचार के लिए करवाती हैं। डिजिटल युग में चुनावी रैलियों पर होने वाला खर्चा और शोरगुल पूरी तरह अनावश्यक है। होंकिंग कल्चर हमारे यहां ख़त्म होने का नाम अभी भी नहीं ले रहा है।

ज़रूरत है ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ सख्त कानून की
बहुत बड़ी जनसंख्या वाले हमारे देश के संविधान में ध्वनि प्रदूषण को लेकर बेहतर क़ानून बनने चाहिए। आम आदमी के पालन न करने पर तो जुर्माना हो ही लेकिन…

1. ट्रेफ़िक होंकिंग पेनाल्टीज़ होनी चाहिए और इसके साथ ही ड्राइविंग लाइसेंस की प्रॉसेस में ही ध्वनि प्रदूषण के प्रति जागरूक कर देना ही बहुत ज़रूरी है।
2. कोई सरकारी कर्मचारी, अधिकारी या संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति अगर ध्वनि प्रदूषण करते पाया जाए तो कठोर दंडों का प्रावधान होना चाहिए।
3. चुनाव प्रचार के दौरान होने वाले ध्वनि-प्रदूषण पर पूरी तरह रोक लगे।
4. धार्मिक सभाओं में होने वाले ध्वनि-प्रदूषण पर पूरी तरह रोक लगे।
5. जनसंख्या को लेकर और अधिक जागरूकता फैला कर जनसंख्या विकास दर को निगेटिव किया जाए।

हम ख़ुद क्या कर सकते हैं?
वायु और जल प्रदूषण पर थोड़ा ध्यान देना हमने शुरू किया है। थोड़ा ध्वनि प्रदूषण पर भी देना शुरू करें। हमारे मोबाइल में नॉइस मीटर जैसे कई एप्स हैं, जो हमें बता सकते हैं कि हम अपने कानों पर अत्यधिक ज़ोर तो नहीं दे रहे हैं।

हम बेहतर हेडफोंस का इस्तेमाल करें, ख़ास तौर पर फ़ोन पर बात करते वक़्त और भीड़ वाली जगहों पर। ट्रैफ़िक ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है। होंकिंग हम बिलकुल बंद करें और अपने आस-पास लोगों को भी इसके लिए जागरूक करें। 

अपने धार्मिक और सांस्कृतिक क्रियाकलापों में हम जिस तरह के बदलाव ला सकते हैं, ले आएं। त्योहारों का मुख्य उद्द्देश्य खुशियां बांटना पूरा करें, लेकिन अपने त्योहार की आड़ में किसी की प्राइवेसी में दखलंदाजी न करें।

प्रदूषण हम सब ने मिल कर फैलाया है, तो हम सबको ही मिल कर इसे साफ़ करना होगा। संतों से हमें और कुछ सीखने को मिले न मिले उनके धीमे, मधुर स्वर में बात करने के अंदाज़ को ज़रूर सीखिए।

(आदित्य अग्निहोत्री फिल्ममेकर और पटकथा लेखक हैं। आजकल मुंबई में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles