Friday, March 31, 2023

पड़ताल: इलाहाबाद में युवा क्यों दे रहे हैं अपनी जान?

सुशील मानव
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इलाहाबाद/प्रतापगढ़। गांव गाल्हन, विश्वनाथगंज जिला प्रतापगढ़ की एक बूढ़ी मां की सूनी आंखों में बेपनाह पीड़ा है। बेटे का जिक्र सुनते ही आंसू आंखों की हदबंदी तोड़ बाहर आ जाते हैं। वो सुबक सुबककर रोने लगती हैं। वो किसी से बात नहीं करती, न ही किसी से मिलती हैं।

मरहूम बीनू के चचेरे भाई मंजीत बताते हैं कि दो साल पहले बीनू काम की तलाश में मुंबई गये थे। वहां काम तो नहीं मिला उल्टा कोरोना में लॉकडाउन में बहुत बुरी तरह फंस गये। बीनू के पास न खाने को कुछ था, न ख़रीदने के पैसे। ज़िंदा रहने के लिये मांग जांचकर खा लेते। कभी पैदल कभी ट्रक, कभी कुछ करके वापस अपने गांव चले आये थे। सूखकर लकड़ी हो गये थे। मां से मिले तो लिपटकर रो पड़े। कहने लगे मां तुझे छोड़कर अब कभी कहीं नहीं जाऊंगा। लेकिन यहां कोई काम काज नहीं मिला। थोड़ा खेत है उसमें खाने भर का चावल गेहूँ हो जाता।

नीलगाय और छुट्टा सांडों के मारे खेतों में अरहर वगैरह नहीं होता। नून, तेल, साग भाजी, दाल तो बाज़ार से ख़रीदना पड़ता। कुछ दिन के बाद ख़र्चे चलने मुश्किल हो गये। परिवार में मां के अलावा बेवा भावज और दो भतीजे थे। कोरोना काल के दौरान ही मई 2021 को पिता कृष्णा तिवारी की मौत हो गई। पिता की मौत के बाद से बीनू लगातार परेशान और उदास रहता था। और 13 नंवबर 2021 की दोपहर घर में ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। परिवार के लिए यह कोई पहली दुखद घटना नहीं थी।

मरहूम बीनू की चाची सुशीला बताती हैं बीनू के बड़े भाई बबलू की 6-7 साल पहले विश्वनाथगंज में रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। अब घर में कोई कमाने वाला नहीं बचा है। बबलू के बच्चे बहुत छोटे हैं। बेरोज़गारी के चलते कई साल पहले बीनू की बीवी नवजात बच्चे के साथ घर छोड़कर चली गई। बीनू काम की तलाश में मुंबई गया था। सोचा था कि मोटा-महीन जो काम मिल जायेगा वही कर लेंगे। चार पैसे हाथ आयेंगे तो बीवी बच्चों को मनाकर वापस घर ले आएंगे। लेकिन …….। 

इलाहाबाद जिले के सिसवां मदारी गांव के मनीष पटेल (18-19 वर्ष) अभी ठीक से बालिग भी नहीं हुये थे कि जिम्मेदारियों का बोझ उनके कंधे पर आ पड़ा। पिता की मौत के बाद चार भाई बहनों में तीसरे नंबर के मनीष ने परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली। डेढ़ बीघा खेत है। मनीष उसी से किसी तरह परिवार चला रहे थे। बड़ी बहन की शादी पहले ही हो गई थी। कुंवारी छोटी बहन घर में बैठी है। छोटा भाई हाईस्कूल में पढ़ रहा। घर में बूढ़ी मां है जो अक्सर बीमार ही रहती है।

रिश्तेदारों ने दबाव बनाया कि मनीष शादी कर ले तो घर के कामों में कोई हाथ बँटाने वाली आ जाये। किसी तरह घर का खर्चा चला रहे उमेश पर जब शादी का बोझ आ पड़ा तो उनके पांव डगमगा गये। कहां से जुटायें शादी के लिये पैसे, गहने, कपड़े। एक ओर कोरोना की दूसरी लहर ज़ोर पकड़े हुये थी। उसी बीच 12 मई 2021 को मनीष ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। छोटे भाई के मौत की कथा व्यथा सुनाते हुये बहन पूनम पटेल अपना हताशा व्यक्त करते हुये कहती हैं कि सब नाश होइ गवा।

पांच हजार रुपये की उधारी से परेशान होकर दी जान

इलाहाबाद शहर के राजापुर में रहने वाले 26 साल के नीरज पाल पुत्र मानिकचंद्र ने 10 दिसंबर, 2021 शुक्रवार को उधारी से परेशान होकर जान दे दी। पिता मानिकचंद्र अपने इकलौते बेटे की मौत का दर्द लिये हुये कहते हैं, “कर्ज़दारों ने उसका जीना मुहाल कर दिया था। उसने पिछले साल कोरोना के लाकडाउन के दौरान पांच हजार रुपये कर्ज लिया था। वह रुपये लौटा नहीं पा रहा था। इसे लेकर लगातार उसे धमकाया जा रहा था। 15 दिन पहले उसकी पिटाई भी की गई थी। वह नहीं लौटा पा रहा था, जिससे वह तनाव में था। उधार देने वाले उसकी जान के पीछे पड़ गए थे। उसे रास्ते में मारा-पीटा जाने लगा था”।

बूढ़े पिता बताते हैं नीरज पाल उनका अकेला पुत्र था, दो बेटियां हैं। पूरे घर की जिम्मेदारी उसी पर थी। वह ई-रिक्शा चलाकर परिवार का पेट भरता था। 9 दिसंबर गुरुवार देर रात लगभग 2:30 बजे उसकी बहन की तबियत खराब हुई तो वह उसे अस्पताल लेकर गया। इलाज कराने के बाद वापस घर ले आया। इसके बाद अपने कमरे में चला गया। शुक्रवार सुबह बहनें कमरे में गईं तो देखा नीरज का शव साड़ी के फंदे से लटक रहा था।

वैसे तो इलाहाबाद कभी अफसर उत्पादन की फैक्ट्री के रूप में जाना जाता था। लेकिन अब यहां की तस्वीर बदल गयी है। प्रतियोगी छात्रों के पास न रोजगार है और न ही भविष्य का कोई सपना। ऐसे में उनका दिमाग अवसाद का स्थायी घर बनता जाता है। 32 वर्षीय विकास सिंह प्रयाग राज के शिवकुटी थाना इलाके में एक किराए के कमरे में रहकर लंबे समय से परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। उन्होंने असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी के लिए भी इंटरव्यू दिया था। लेकिन वहां भी उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया। ऐसे में विकास काफी हताश और परेशान रहने लगे थे। नौकरी ना मिल पाने का दर्द उसके दिल में घर कर गया था। जब स्थिति उनसे संभाली नहीं गई, तो उन्होंने अपनी जान देने का फैसला ले लिया। और 13 जुलाई, 2021 को विकास ने अपने किराए के कमरे में ही पंखे से लटक कर फांसी लगा ली।

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विकास सिंह पुत्र अनिल सिंह मूल रूप से अंबेडकरनगर के मानिकपुर जमूकला महाउबा गोला के रहने वाले थे। उनके पिता अनिल सिंह किसान हैं। विकास उनके इकलौते बेटे थे। विकास ने एक सुसाइड नोट छोड़ा था जिसमें उन्होंने लिखा था, “मैं विकास सिंह पुत्र अनिल सिंह अपने पूरे होशोहवास में फांसी लगाने जा रहा हूं। नौकरी न मिलने के कारण मैं यह कदम उठा रहा हूं। मुझसे अगर कोई भूल हुई हो तो मुझे माफ कर दीजिएगा। आप सभी लोग लवली, शिवानी, मम्मी, पापा आपका अच्छा बेटा नहीं बन पाया मैं। कुछ इतने क़रीब हैं जिनके बारे में कभी ग़लत नहीं सोच सकता हूं। हम उनको विश्वास दिलाते हैं कि हम उनको खुद से ज्यादा मानते हैं। आपका अपना विकास सिंह”।

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विकास का सुसाइड नोट।

रिजेक्ट होने पर लगाई फांसी

तमाम प्रतियोगी परीक्षाएं दरअसल सेलेक्शन के बजाय रिजेक्शन के लिये आयोजित की जाती हैं। हर परीक्षा में मुट्ठी भर छात्र चुने जाते हैं और लाखों छात्र रिजेक्ट कर दिये जाते हैं। ऐसी ही एक परीक्षा में रिजेक्ट होने के बाद एक प्रतियोगी छात्र राजीव पटेल ने 13 सितंबर 2020 को खुदकुशी कर ली। राजीव इलाहाबाद के छोटा बघाड़ा इलाके में रहते थे। अपने पीछे उन्होंने परिवार के लिये एक सुसाइड नोट छोड़ा था जिसमें लिखा था, “पूज्यनीय बड़े पिताजी और माताजी आप लोग मुझे माफ़ करना, मैं आप का अच्छा बेटा नहीं बन पाया।

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राजीव का सुसाइड नोट।

मेरे छोटे भाई-बहन आप लोग भी मुझे माफ़ करना, मैं आप लोगों का बड़ा बेटा नहीं बना पाया। मित्रों श्रीप्रकाश वर्मा, नारेंद्र चौधरी (SI ), संजय चौधरी, ज्ञान प्रकाश चौधरी …………. आप सब मेरे परिवार का हमेशा ध्यान रखना। मै जा रहा हूं, मैं जिंदगी से परेशान हो गया हूं। आप लोग मुझे माफ़ करना”। 

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25 हजार लोगों ने की आत्महत्या

ऊपर की तस्वीर बताती है कि देश में बेरोजगारी की स्थिति कितनी भयावह है। वह मौत के अंधकार का एक ऐसा पीचरोड तैयार कर रही है जिस पर हर कोई युवा उतरने के लिए तैयार है। केंद्र सरकार के आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं। बुधवार को संसद में देश में बेरोज़गारी व दिवालिया होने के कारण आत्महत्या करने वालों के आंकड़े पेश किए गए। सरकार ने कहा कि 2018 से 2020 के बीच 16,000 से अधिक लोगों ने दिवालिया होने या कर्ज में डूबे होने के कारण आत्महत्या कर ली जबकि 9,140 लोगों ने बेरोज़गारी के चलते अपनी जान दे दी। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को जानकारी देते हुये बताया कि साल 2020 में 5,213 लोगों ने दिवालियापन या कर्ज में डूबे होने के कारण आत्महत्या की जबकि साल 2019 में यह संख्या 5,908 और 2018 में 4,970 थी। उन्होंने कहा कि 2020 में 3,548 लोगों ने जबकि 2019 में 2,851 और 2018 में 2,741 लोगों ने बेरोज़गारी के चलते आत्महत्या की है।

सरकार पर होना चाहिए मुक़दमा

इंक़लाबी नौजवान सभा के अध्यक्ष सुनील मौर्या इसे दुखद बताते बताते हुये कहते हैं कि इसके लिए सरकार पर केस होना चाहिये। उनके मुताबिक कई बार बेरोज़गार युवाओं की हत्या को अलग अलग एंगल, अलग नाम दे दिया जाता है। कहीं उसे ‘प्रेम में नाकाम युवक की आत्महत्या’ कह दिया जाता है। तो कहीं ‘मानसिक रूप से परेशान युवक की आत्महत्या बता दिया जाता है। माने बेरोज़गारी को उससे अलग कर दिया जाता है। पिछले तीन साल का जो सरकारी आंकड़ा है 25 हजार आत्महत्याओं का ज़मीनी हक़ीक़त उससे कई गुना ज़्यादा भयावह है। फिर भी सरकार के आंकड़ों को ही लें तो 25 हजार नौजवान सरकारी की नाकामियों से मरे हैं। इसके लिये सरकार पर मुक़दमा चलना चाहिये।

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इंककलाबी नौजवान सभा नेता सुनील मौर्या।

बेरोज़गार युवाओं का आंदोलन होगा और तेज

इलाहाबाद में बेरोज़गारी के मुद्दे पर लंबा शांति पूर्ण छात्र आंदोलन चलाने वाले राजेश सचान कहते हैं, “सरकार के ऑफिशियल आँकड़े से ज़्यादा भयावह है ज़मीनी स्थिति और असली आंकड़े। सरकार की ऑफिश्यल रिपोर्ट भी परेशान करने वाली है। पिछले पांच साल में आत्महत्या की दर युवाओं में बढ़ी है। इसकी वजह यह है कि बेरोज़गारी दर बढ़ी है। और किसी भी तरह के रोज़गार का जो अवसर है उसमें बहुत बुरी स्थिति है। खासकर जो शिक्षित युवा है उसके सामने बहुत खराब स्थिति है। उनको बेमौत मरने के लिये अपने रहमों करम पर छोड़ दिया गया है। कोरोना पीरियड और नोटबंदी के बाद से यह और ज़्यादा हुआ है। कोरोना आपदा में भी जहां छोटे मझोले उद्म चौपट हुये वहीं कार्पोरेट और अरबपतियों की मुनाफाख़ोरी ज्यादा बढ़ी है। इसके लिये सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं”।

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बैनर के पास कुर्ता पहनकर खड़े राजेश सचान।

उन्होंने आगे कहा कि “इसके ख़िलाफ़ हाल के दिनों में जो युवा आक्रोश फूटा है आंदोलन हुये हैं उनका दमन इसीलिये सरकार ने किया क्योंकि उनका विस्तार हो रहा है। युवा वर्ग के संज्ञान में यह बात है और उसकी धारणा बनती जा रही है और आक्रोश का तेजी से विस्तार हो रहा है। चुनाव के मद्देनज़र उन्होंने तात्कालिक दमन किया है भविष्य में यह आंदोलन और आगे बढ़ेगा।”

बेरोज़गारी का समाजशास्त्र

बेरोज़गारी किसी परिवार, समाज या देश के लिये समस्या हो सकती है। लेकिन मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था में बेरोज़गारी जहाँ एक ओर वर्ग संरचना को ढाँचागत मजबूती प्रदान करती है, वहीं दूसरी ओर सस्ते श्रम की सुलभता को भी सुनिश्चित करती है। दरअसल एक सभ्य, शान्त,स्वस्थ, खुशहाल एवं प्रगतिशील समाज पर न तो राजनैतिक रूप से सहजतापूर्ण शासन किया जा सकता है और न ही उन्हें बाज़ारवादी व्यवस्था के खाँचे में मनमाने रूप से समायोजित किया जा सकता है। तो होता कुछ यूँ है कि पूँजीवादी व्यवस्था एवं उनके समर्थक तमाम राष्ट्रों की राजनैतिक सरकारें आपसी गठजोड़ से बाकायदा एक दुष्चक्र के तहत समाज में ‘बेरोज़गारी विस्फोट’ पैदा करती हैं। इससे समाज में भय, अशान्ति, असुरक्षा एवं अस्थिरता उपजती है। समाज के भीतर लोगों में अवसाद, हीनता भाव एवं व्यक्तित्वविहीनता पैदा होने लगती है ; और वो हर समस्या, विडंबना या ग़लत चीज के लिए व्यवस्था के बजाय स्वयं को या समाज को क़सूरवार मानने लगता है।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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