Friday, March 29, 2024

पुलिस कस्टडी में अतीक-अशरफ हत्याकांड के अनसुलझे सवाल

प्रयागराज। 15 अप्रैल की रात 10 बजकर 37 मिनट पर पुलिस कस्टडी में 21 पुलिसकर्मियों और मीडिया के कैमरों के सामने हुए अतीक-अशरफ हत्याकांड में कुछ भी अप्रत्याशित नहीं था। आम जनता से लेकर पुलिस, सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष और यहां तक की खुद अतीक और अशरफ को भी इस अंजाम के बारे में बहुत पहले से पता था। बस सब होने का इंतज़ार कर रहे थे।

अतीक-अशरफ मीडिया का इस्तेमाल अपने बचाव के लिए कर रहे थे और हत्यारे मीडियाकर्मी बनकर जान लेने पहुंच गये। सरकार में शामिल लोग लगातार अतीक-अशरफ की गाड़ी पलटने जैसे बयान सार्वजनिक रूप से देते आ रहे हैं। कुल मिलाकर योगी सरकार और यूपी पुलिस का हर मूव जनता के बीच प्रिडेक्टेबल हो गया है।

वहीं अतीक के बेटे और उमेशपाल हत्याकांड के आरोपी असद के कथित एनकाउंटर के बाद यूपीएसटीएफ ने एक कहानी सुनायी। वास्तव में दो कहानी सुनायी। एक कहानी असद एनकाउंटर की। दूसरी कहानी में यूपी एसटीएफ ने सुनाया कि साबरमती से प्रयागराज आते समय झांसी में पुलिस वैन पर हमला करके अतीक और अशरफ को छुड़ाकर भगा ले जाने की असद और गुलाम के योजना थी। इसीलिए दोनों झांसी आये थे। सवाल यह भी उठता है कि जब पुलिस ने दोनों का एनकाउंटर किया यानि वो दोनों पुलिस के हाथ नहीं आये, तो उन दोनों ने यूपीएसटीएफ को अपनी योजना के बारे में कब बता दिया।

असल में ये योजना खुद यूपीएसटीएफ की थी। यानि असद और गुलाम को पकड़ना था और साबरमती से प्रयागराज आते समय झांसी में चारों (अतीक, अशरफ, असद और ग़ुलाम) का एनकाउंटर कर देना था। कहानी यह रहती कि असद और गुलाम ने पुलिस वैन पर हमला करके अतीक और अशरफ को छुड़ा लिया और भागते समय चारों पुलिस एनकाउंटर में मारे गये। लेकिन टाइमिंग खराब हो गई। शायद असद और गुलाम को समय से नहीं पकड़ा जा सका।

हालांकि प्रयागराज से साबरमती जाते समय झांसी में चारों के एनकाउंटर का एक और मौका बनता। लेकिन असद और गुलाम को पकड़ने के बाद उन दोनों को ज्यादा देर अपने पास रखने से मामला बाहर आ जाने का भी डर था। दूसरी संभावना यह भी थी कि कोर्ट से अतीक और अशरफ को 14 दिनों की पुलिस रिमांड में भेजा जा सकता है तो वो संयोग नहीं बनता दिखा। अतः असद और ग़ुलाम दोनों को निपटा दिया गया। फिर अतीक-अशरफ के लिए दूसरी योजना बनी।

कौन है वो एसटीएफ अधिकारी जिसने 2 सप्ताह में अतीक-अशरफ को मारने की धमकी दी

28 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट में पेशी के बाद वापस लौटने पर बरेली जेल के गेट के पास पत्रकारों से अशरफ ने कहा था कि उसे दो सप्ताह बाद निपटा दिया जाएगा। उसने पत्रकारों से कहा था कि उसे एक बड़े यूपीएसटीएफ के अधिकारी ने धमकी दिया है कि दो सप्ताह बाद जेल से निकालकर तुम्हें निपटा दिया जाएगा।

हालांकि पत्रकारों ने जब उक्त अफ़सर का नाम पूछा तो अशरफ ने नाम बताने से इन्कर करते हुए कहा था कि वह नाम तो नहीं बताएगा लेकिन अगर उसके साथ कुछ होता है तो अफ़सर का नाम लिखा बंद लिफाफा सुप्रीमकोर्ट, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और मुख्यमंत्री के पास पहुंच जाएगा।

12 अप्रैल को जब अशरफ को दोबारा बरेली से प्रयागराज ले जाया जा रहा था तब पुलिस ने उसे मीडिया से बात नहीं करने दिया। तब अशरफ ने दो अंगुली उठाकर पत्रकारों की ओर इशारा किया था कि 2 सप्ताह हो चुके हैं। अशरफ की बहन आयशा ने भी बरेली में पत्रकारों से कहा था कि एक बड़े यूपी एसटीएफ के अधिकारी ने उसके भाई व पूर्व विधायक अशरफ को निपटाने की धमकी दी है।

दरअसल अंदरखाने की बात यह है कि मार्च के आखिर में अशऱफ की हाईकोर्ट में पेशी के दौरान प्रयागराज में एक बड़े एसटीएफ अधिकारी की उससे डील हुई थी। उक्त अधिकारी ने अशरफ से कहा था कि अगर वह तीन शूटरों को पकड़वा दे तो उसके भतीजे असद के एनकाउंटर को टाला जा सकता है। लेकिन अशरफ ने जब कहा कि वह नहीं जानता तो उक्त यूपीएसटीएफ अधिकारी ने धमकी दिया कि 2 सप्ताह में उसे निपटा दिया जाएगा।

वहीं 27 मार्च को साबरमती से प्रयागराज आते समय अतीक अहमद को क़रीब दो घंटे तक झांसी के पुलिस लाइन में रोककर रखा गया था। तब अतीक ने भी मीडिया से अपनी हत्या की आशंका जतायी थी। दोबारा भी जब उसे साबरमती से प्रयागराज लाया जा रहा था तब झांसी से गुज़रते समये उसने कहा कि उसकी हत्या हो सकती है।

तीन अलग-अलग जिलों के शूटरों को साथ लाने वाला सूत्रधार कौन

घटना के बाद तीनों शूटरों ने सरेंडर कर दिया। तीनों से पूछताछ के बाद पुलिस की थियरी है कि तीनों शूटर अपराध की दुनिया में नाम कमाना चाहते थे इसलिए उन्होंने सरेआम माफिया भाईयों की हत्या कर दिया। साथ ही पुलिस का यह भी दावा है तीनों अलग-अलग जिले हैं, तीनों कंट्रैक्ट किलर हैं और वे तीनों एक दूसरे को पहले से नहीं जानते थे। हालांकि हत्याकांड के तुरन्त बाद पुलिस की पहली थियरी यह थी कि हत्यारों में से एक के रिश्तेदार को अतीक अहमद ने मार डाला था उसी की बदला लेने के लिए तीनों ने अतीक-अशरफ की हत्या की है।

तीनों हमलावरों ने अतीक-अशरफ की हत्या के लिए जो पिस्टल इस्तेमाल किया है। उनमें से दो पिस्टल तुर्किए की बनी जिगाना और गिरसान पिस्टल है। जबकि एक देशी पिस्टल है। तुर्किए पिस्टल भारत में प्रतिबंधित है। यानि दोनों पिस्टल भारत में तस्करी के जरिए ही ले आयी गयी। तुर्किए की एक पिस्टल की कीमत 6-7 लाख रुपये है। यानि दोनों पिस्टल की कीमत 12 लाख रुपये से अधिक है। जिगाना पिस्टल से लवलेश तिवारी ने अतीक की कनपटी पर सटाकर गोली मारी थी जबकि गिरसाना पिस्टल से सनी ने पहली गोली अशरफ को मारी थी। वहीं देशी पिस्टल अरुण ने हत्याकांड को अंजाम देने में इस्तेमाल किया।

अब सवाल उठता है कि जब तीनों शूटरों का बैकग्राउंड बहुत ही साधारण है, किसी तरह परिवार रोटी रोजी कमाता है तो इतनी महंगी और प्रतिबंधित पिस्टल इनके पास कहां से आयी। साथ ही तीनों को एक साथ लाने, होटल में रुकवाने, अत्याधुनिक हथियार मुहैया कराने और मीडिया का फर्जी कार्ड बनवाने जैसे काम करने वाला असली मास्टरमाइंड कौन है। यहां यह भी बता दें कि 14 अप्रैल से जंक्शन के पास जिस लॉज में वो तीनों ठहरे हुए थे वो घटनास्थल से बमुश्किल एक किलोमीटर की दूरी पर है।

तीनों शूटरों का बैकग्राउंड

सनी सिंह उर्फ मोहित उर्फ पुराने पुत्र जगत सिंह हमीरपुर के कुरारा का निवासी है। सनी सिंह का ननिहाल बांदा जिले के जसपुरा क्षेत्र के सिकहुला गांव में है। उसका बड़ा भाई मंगल सिंह क्रिमिनल था और उसकी मौत हो चुकी है। पिता की भी मौत हो चुकी है। उसके पिता ट्रैक्टर ड्राइवर थे और बटाई पर खेती करते थे। सनी सिंह पर जिले के थानों में कुल 16 मुक़दमें दर्ज़ हैं। सनी सिंह पश्चिमी यूपी के कुख्यात माफिया सुन्दर भाटी गैंग का शूटर है। सनी सिंह बमुश्किल कक्षा 2 तक ही पढ़ा है।

लवलेश तिवारी पुत्र यज्ञ कुमार तिवारी केवतरा (क्योटरा) क्रॉसिंग नगर कोतवाली बांदा का निवासी है। लवलेश तिवारी एक छात्रा को तमाचा मारने के मामले में डेढ़ साल जेल में भी रह चुका है। लवलेश के पिता यज्ञ कुमार का कहना है कि बेटे के कारनामे से उनके परिवार का कोई लेना-देना नहीं है। लवलेश के पिता व परिवार एक अधिवक्ता के घर में किराये के कमरे में रहते हैं। पिता एक प्राइवेट स्कूल में बस चलाते हैं। लवलेश चार भाईयों में तीसरे नंबर पर है। लवलेश ने स्नातक की पढ़ाई बीच में छोड़ दिया।

अरुण कुमार मौर्य पुत्र दीपक कुमार मौर्य कादरवाड़ी, सोरों थाना जिला कासगंज का निवासी है। उसके पिता गांव में गोल गप्पे का ठेला लगाते हैं। हालांकि घटना के बाद से ही पूरा परिवार घर से ग़ायब है। अरुण मौर्या पानीपत में रहता है। उस पर ट्रेन में एक व्यक्ति की हत्या का केस दर्ज़ है।

यूपी पुलिस, यूपीएसटीएफ की भूमिका पर सवाल

अतीक अहमद और अशरफ लगातार मीडिया के सामने अपने एनकाउंटर के बारे में सवाल उठाते रहे। घटना वाले दिन भी दोनों ने तबीअत खराब होने की बात की थी। सवाल है कि जब उन्होंने शाम को तबीअत खराब होने की बात की थी तो रात 10 बजने तक का इंतज़ार क्यों किया गया। पुलिस उन्हें तुरन्त क्यों अस्पताल नहीं ले गयी। दूसरी बात तबीअत खराब होने और अस्पताल ले जाने की बात मीडिया तक कैसे पहुंची। मामले में धूमनगंज पुलिस थाने के इंस्पेक्टर राजेश कुमार मौर्या ने तहरीर दिया है कि 15 अप्रैल की शाम को अतीक और अशरफ ने बेचैनी होने की बात बतायी थी।

कॉल्विन अस्पताल से महज 50 कदम की दूरी पर थाना होने के बावजूद शाहगंज पुलिस मौके पर क्यों नहीं मौजूद थी। अतीक और अशरफ़ लगातार अपनी जान का ख़तरा बता रहे थे फिर उनकी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किया गया था।

21 पुलिसकर्मियों की टीम होने के बावजूद वाहन से उतारकर अस्पताल के भीतर ले जाते वक़्त कोई सुरक्षा घेरा क्यों नहीं बनाया गया था। हत्या के वीडियो में साफ दिख रहा है कि दोनों भाईयों के अगल-बगल ही पुलिस वाले चलते रहे। बता दें कि अतीक-अशरफ की हत्या के समय एक इंस्पेक्टर, 7 दरोगा और 13 सिपाही और दीवान उनके साथ थे। अतीक और अशरफ को धूमनगंज थाने से लेकर पुलिस टीम रात 10 बजकर 19 मिनट पर निकली और क़रीब पंद्रह मिनट बाद टीम कॉल्विन अस्पताल के बाहर पहुंची।

टीम का नेतृत्व धूमनगंज थाने के इंस्पेक्टर और उमेशपाल हत्याकंड के विवेचक राजेश कुमार मौर्य कर रहे थे। उनके साथ एसआई रणविजय सिंह, सौरभ पांडेय, सुभाष सिंह, विवेक कुमार सिंह, प्रीत पांडेय, विपिन यादव, शिव प्रसाद वर्मा पीछे पीछे चल रहे थे। इनके अलावा हेडकांस्टेबल विजय शंकर, कांस्टेबल सुजीत यादव, गोविन्द कुशवाहा, दिनेश कुमार, धनंजय शर्मा, राजेंद्र कुमार, रविंद्र सिंह, संजय कुमार प्रजापति, जयमेश कुमार, हरिमोहन मान सिंह, और दो ड्राइवर महावीर सिंह और सत्येंन्द्र कुमार मौजूद थे।

क्या सफेदपोशों का नाम लेना बना काल

लोगों के बीच इस बात की भी चर्चा है कि कहीं पुलिस रिमांड के दौरान अतीक और अशरफ के मुंह से सफेदपोश लोगों का नाम लेना तो उनकी हत्या की वजह नहीं बन गया। गौरतलब है कि 101 संगीन मुक़दमें होने के बावजूद अभी तक किसी भी मामले में अतीक अहमद को कभी रिमांड पर नहीं लिया गया था।

माफिया अतीक अहमद से रिश्ते की आंच कुछ मंत्रियों, नेताओं और अफ़सरों के पास तक पहुंच सकती थी। इसी वजह से कस्टडी रिमांड पूरी होने से पहले ही उसकी हत्या करवा दी गई हो। अतीक-अशरफ की हत्या के साथ ही प्रयागराज से पूर्वांचल तक फैली रियल एस्टेट से अवैध कमाई की राजनीति- नौकरशाही-माफिया के गठजोड़ के राज भी दफ़न हो गये।

कुछ इसी तरह की चर्चा लोगों के बीच उस समय भी थी जब सरेंडर करने के बाद माफिया विकास दूबे की हत्या भी पुलिस ने मध्यप्रदेश से कानपुर ले जाते समय रास्ते में एक कथित एनकाउंटर में कर दिया था। तब भी लोगों ने कहा था कि विकास दूबे नहीं सच का एनकाउंटर किया गया है ताकि सफेदपोश बच सकें।

सरकार ने गठित की जांच कमेटी

सूबे की योगी सरकार ने अतीक-अशरफ हत्याकांड की जांच के लिए दो सेवानिवृत्त जजों और एक पूर्व डीजीपी की जांच कमेटी गठित की है। हाईकोर्ट के पूर्व जज अरविंद कुमार त्रिपाठी इस कमेटी के अध्यक्ष होंगे जबकि पूर्व जज बृजेश कुमार सोनी और पूर्व डीजीपी सुबेश कुमार सिंह सदस्य होंगे। फिलहाल पूरे प्रदेश में धारा 144 लागू है और इलाहबाद व आस-पास के गांवों में इंटरनेट सेवायें हत्याकांड के बाद से ही बंद पड़ी हैं। अतीक-अशरफ के सुरक्षा में तैनात 17 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया है।

(प्रयागराज से स्वतंत्र पत्रकार सुशील मानव की रिपोर्ट)

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