नीलगाय और छुट्टा मवेशियों से पहले ही तबाह पूर्वांचल के किसानों को इस बार हुई बे-मौसम की बारिश ने बर्बादी की कगार पर खड़ा कर दिया है। महंगी हो चुकी जुताई-बुआई और खाद-पानी की किसी तरह व्यवस्था करके गेहूं की खेती करने वाले किसानों के अरमानों पर प्रकृति की मार पड़ने से उनका बुरा हाल हो गया है। दो-तीन दिनों के तेज आंधी-पानी के साथ पड़े ओलों से किसानों की फसलें बर्बाद हो गई हैं।
मिर्जापुर जिले के हलिया विकास खंड के 4 दर्जन गांवों में तेज आंधी के साथ ओले बरसने से किसानों की बोई गई फसलें- अलसी, सरसों, चना, मसूर, गेहूं इत्यादि बर्बाद हो गई हैं। किसानों का कहना है कि समितियों से खाद बीज कर्ज पर लेकर खेती किए थे, लेकिन प्रकृति के कोप ने सबकुछ तहस-नहस करके रख दिया है।
तीन दिन से हो रही हल्की बारिश के बाद रविवार को ओले बरसने से किसानों की फसलें बर्बाद हो गई हैं। मड़ाई के लिए किसानों ने अपने खलिहान पर जो फसलें रखीं थीं, वो पानी भर जाने के कारण वह अब सड़ने के कगार पर पहुंच गई हैं।
भदोही के डीह निवासी विजय शंकर प्रजापति ने 7 बीघे में गेहूं की फसल उगाई हुई थी, जिसे बेमौसम की बरसात ने पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। नष्ट हुई फसल देखकर उनके आंखों से आंसू निकल पड़ते हैं। कुछ ऐसी ही पीड़ा श्यामधर बिंद की है, जिनके मुख से शब्द निकलने से पहले ही खेत में गिरी गेहूं की फसल को देख आंसू आ जाते हैं।
मिर्जापुर के हलिया निवासी किसान अभिनेष प्रताप सिंह का कहना है कि ‘बारिश के साथ ओले पड़ने से किसानों की फसल बर्बाद हो गई है। गेहूं की बालियां पकने को हुई थीं कि बारिश हो गई, जिससे फसलें नष्ट हो चुकी हैं। सरसों और अरहर की फसलों का और भी बुरा हाल है। वह शासन-प्रशासन से मुआवजे की मांग कर रहे हैं।

गाजीपुर के सोनहड़ा गांव निवासी रामदुलार गिरी का दर्द है कि ‘उन्होंने करीब 10 बीघे में गेहूं तथा करीब डेढ़ दो बीघे में सरसों और अलसी की फसल उगाई थी। इस वर्ष फसल भी अच्छी हुई थी। कुछ ही दिनों में उसे काटने की तैयारी चल रही थी कि अचानक बेमौसम की हुई बरसात ने उनके अरमानों पर न केवल पानी फेर दिया है, बल्कि उनकी कमर तोड़ कर रख दी है’।
उन्होंने बताया कि ‘महंगे दर पर खाद पानी के साथ ट्रैक्टर से खेतों की जुताई पर अच्छी खासी रकम खर्च की थी। उम्मीद थी कि फसल अच्छी होने पर काफी मुनाफा होगा और लागत भी निकल आएगी, लेकिन प्रकृति के कोप ने उनकी उम्मीदों को ही नहीं, बल्कि कई महीनों की मेहनत पर पानी फेर दिया है।
मिर्जापुर के मड़िहान के भावां गांव निवासी प्रगतिशील किसान दिनेश सिंह पटेल प्रकृति की इस बेरुखी पर कहते हैं कि ‘बे-मौसम की इस बरसात ने किसानों को बड़ा नुकसान किया है, इससे उबर पाना शायद ही किसानों के लिए सहज होगा।
पहाड़ी क्षेत्र राजगढ़ विकासखंड, जहां सिंचाई के संसाधनों का घोर अभाव है, यहां किसानों ने अपने निजी संसाधन से गेहूं, सरसों, अलसी, चना और अरहर जैसी फसलें उगाई थी। खेतों में लहलहा रही अच्छी फसलों को देखकर किसानों में काफी उम्मीद भी जगी थी, लेकिन उनकी उम्मीदें बरसात होते ही चकनाचूर हो गईं।
बारिश से ज्यादा ओलावृष्टि से हुआ नुकसान
बीते शुक्रवार और शनिवार की रात से मौसम के मिजाज बदल गया था। कई जगह बारिश से फसलों को नुकसान हुआ। रविवार देर शाम एक बार फिर तेज बारिश हुई, घंटों बारिश के साथ ओले भी पड़े। कृषि विभाग के मुताबिक भदोही जनपद में 14 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलती रही हैं। दो दिनों में 19 एमएम बारिश दर्ज की गई।

कृषि विज्ञान केंद्र बेजवां के कृषि विशेषज्ञ डॉ आरपी चौधरी ने बताया कि बारिश के कारण किसानों की फसल को जितना नुकसान नहीं हुआ है, उससे अधिक ओलावृष्टि से हुआ है। कृषि केंद्र बेजवां के मौसम विभाग के सर्वेश बरनवाल ने बताया कि 21 मार्च तक बादलयुक्त मौसम के साथ बारिश की स्थित बनी रहेगी।
पहले सूखा, अब बे-मौसम की बारिश ने मारा
मिर्जापुर के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कभी शुमार रहे मड़िहान के किसान आज भी पारंपरिक खेती के जरिए अपना जीविकोपार्जन करते आ रहे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो मड़िहान तहसील क्षेत्र में हजारों हेक्टेयर भूमि पर खेती होती है। जंगल एवं पहाड़ी भू-भाग होने के कारण जंगलों से सटे हुए गांव के किसान दलहनी फसलों को प्रमुखता देते हैं। इनमें चंदनपुर, खोराडीह, बघौड़ा, मटियानी, विशुनपुर, अटारी, लालपुर, खटखरियां, डीह भवानीपुर, सेमरा बरहो, चौखड़ा, दरवान, सरसो, लूसा इत्यादि प्रमुख गांव हैं। इस इलाके ज्यादातर किसान दलहनी खेती करते हैं।
इसी प्रकार हलिया विकास खंड के बबुरा रघुनाथ सिंह, करनपुर, ड्रमंडगंज, गड़बड़ा, सोनगढ़ा, मनिगढ़ा आदि गांवों के किसान भी दलहनी फसलों के जरिए अपनी जीविका को संचालित करते आ रहे हैं। यहां जुलाई और अगस्त के महीने में जब पानी की जरूरत थी तो सूखे की मार ने फसलों को मारा। अब जब पानी की जरूरत नहीं है, तो बे-मौसम की बारिश ने किसानों को रुलाने का काम किया। बताते चलें कि डेढ़ दशक पूर्व उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के कई जनपद जब जबरदस्त सूखे की चपेट में थे तो उस दौर में मिर्जापुर जनपद सूखे की मार से कराहता रहा।
बीमा कंपनियों की मनमानी से त्रस्त हैं किसान
कहने को तो सरकार, फसलों के नुकसान से किसानों को बचाने के लिए बीमा कंपनियों के जरिए राहत दिलाने की बात करती है, लेकिन किसानों का दुखड़ा सुनने पर हकीकत कुछ और ही सामने आती है। किसानों की माने तो बिना बताए किसानों के बैंक खाते से बीमा कंपनियों द्वारा प्रीमियम काट लिया जाता है। लेकिन फसलों के नुकसान के बाद बीमा कंपनियां भुगतान करने के बजाय किसानों का शोषण करती हैं।

करीब डेढ़ दशक पूर्व किसानों की इन्हीं समस्याओं को लेकर मड़िहान के प्रगतिशील किसान एवं किसान नेता राम नगीना सिंह पटेल ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। उनकी याचिका पर कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला भी सुनाया था बीमा कंपनियों को किसानों से लिया गया प्रीमियम वापस करना पड़ा था। लेकिन पुनः बीमा कंपनियों द्वारा किसानों को ठगने का काम किया जा रहा है।
किसान दिनेश सिंह पटेल बताते हैं कि ‘शासन-प्रशासन द्वारा बीमा कंपनियों पर नकेल ना कसने के कारण उनके हौसले बुलंद बने हुए हैं, और वह किसानों का आर्थिक शोषण करने से बाज नहीं आ रही हैं।
निष्पक्ष ढंग से नहीं होता क्षतिपूर्ति का आकलन
प्रकृति और बीमा कंपनियों के कोप के बाद किसानों को लेखपाल और पटवारी की मनमानी से भी जूझना पड़ता है। प्राकृतिक आपदाओं के बाद नुकसान के आकलन में लगाए गए राजस्व कर्मियों की भूमिका भी किसानों के लिए किसी शोषण से कम नहीं होती है। किसानों की माने तो क्षतिपूर्ति का सही आकलन नहीं कर इसमें भी जबरदस्त खेल किया जाता है। प्रकृति की मार के बाद किसानों को पटवारी रूपी अधिकारियों की भी मार सहनी पड़ती है।
हालांकि भदोही जिले में बारिश और ओलावृष्टि के बाद हुए नुकसान के आकलन के लिए जिलाधिकारी गौरांग राठी ने तीन सदस्यीय टीम का गठन किया है। जिलाधिकारी ने राजस्व व कृषि विभाग एवं फसल बीमा कम्पनी की संयुक्त टीम बना कर तीन दिन में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा कि बारिश और ओलावृष्टि के कारण जिन भी किसानों की फसलों का नुकसान हुआ है। उसकी रिपोर्ट दें, जिससे किसानों को लाभ पहुंचाया जा सके।
(उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल से संतोष देव गिरि की रिपोर्ट)