यूपी : कौड़ियों के मोल बिजली विभाग की अरबों-खरबों की परिसंपत्तियां बेचने की साजिश

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उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने दक्षिणांचल और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड को पीपीपी मॉडल (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) पर निजी हाथों में देने की तैयारी तेज कर दी गई है। इसे लेकर कैबिनेट में भी प्रस्ताव लाया जा सकता है। हालांकि, बिजली विभाग के छोटे-बड़े 27 से ज्यादा संगठनों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है।

कर्मचारी संगठनों का दावा है कि कॉरपोरेट घरानों को बिजली वितरण व्यवस्था देने पर 77 हजार से ज्यादा कर्मचारियों की नौकरी जाएगी और उपभोक्ताओं को दोगुने से भी अधिक दाम पर बिजली भी खरीदनी पड़ेगी। निजीकरण का असर सबसे पहले प्रदेश के एक करोड़ 60 लाख उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।

दक्षिणांचल और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड को निजी कंपनियों के हवाले करने के प्रस्ताव का कड़ा विरोध शुरू हो गया है। बिजली विभाग के इंजीनियर और कर्मचारी इसे लेकर लगातार अभियान चला रहे हैं।

कर्मचारी संगठन आम जनता और सामाजिक संगठनों के बीच इस बात को लेकर जा रहे हैं। पीपीपी मॉडल में निजीकरण लागू करने की व्यवस्था, कर्मचारियों का विरोध आने वाले दिनों में सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।

मौजूदा समय पूर्वांचल और दक्षिणांचल को मिलाकर करीब 42 जिले इस सूची में आते हैं। इसमें पूर्वांचल में जहां 1 करोड़ 4 लाख उपभोक्ता है, तो वहीं, दक्षिणांचल में 56 लाख से ज्यादा उपभोक्ता है।

दलील है कि निजी हाथों में जाने के बाद बिजली महंगी हो जाएगी। इसके लिए विभाग के लोग मुंबई महाराष्ट्र सरकार का उदाहरण दे रहे हैं, जहां निजी हाथों में जाने के बाद बिजली 15 रुपए प्रति यूनिट तक सप्लाई हो रही है। यूपी में घरेलू उपभोक्ता को अभी बिजली का अधिकतम रेट 6 रुपए 50 पैसे प्रति यूनिट देना पड़ रहा है।

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे बताते हैं कि यहां भी ऐसे ही बिजली महंगी हो जाएगी। ओडिशा, महाराष्ट्र जैसे प्रदेश इसका उदाहरण हैं। दूसरी ओर, पावर कॉर्पोरेशन निजीकरण के पीछे दो बड़े कारण बता रहा है। इसमें पहला कारण बिजली का बकाया और डिमांड के हिसाब से बजट न होने की स्थिति में सप्लाई पर असर बताया जा रहा है।

कॉर्पोरेशन प्रबंधन का कहना है कि मौजूदा समय पूरे प्रदेश में 1 लाख 10 हजार रुपए का घाटा है। इसके अलावा पूरे साल में बिजली सप्लाई के लिए विभाग को 1 लाख 6 हजार करोड़ रुपए की जरूरत है।

इस वर्ष नवंबर के महीने तक वसूली 62 लाख करोड़ तक पहुंची है। ऐसे में 42 हजार करोड़ रुपए की जरूरत है। अब विभाग इसको घाटा बता रहा है।

सूत्र बताते हैं कि यूपी सरकार सब्सिडी बढ़ाने को तैयार नहीं है। ऐसे में इसी दो दलील के आधार पर पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड को सबसे पहले निजी हाथों में देने की तैयारी है।

हालांकि, पावर कॉर्पोरेशन की दलील है कि विभाग के इंजीनियर गलत बता रहे हैं। उनका कहना है कि आंकड़ों की आड़ में आम जनता को गुमराह किया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के महासचिव जितेंद्र सिंह गुर्जर का कहना है कि प्रबंधन के लोग आंकड़ों में फंसा रहे हैं, जबकि सच्चाई इससे अलग है। उन्होंने बताया कि विभाग का घाटा 1 लाख 10 हजार करोड़ रुपए है, लेकिन यह नहीं बताया जा रहा है कि बिजली का बकाया 1 लाख 15 हजार करोड़ रुपए है।

अगर यह बिल वसूली प्रबंधन ठीक से करवाता है तो एक साल में विभाग 5 हजार करोड़ रुपए के फायदे में आ जाएगा। उन्होंने बताया कि इसके अलावा इस साल जो सप्लाई के लिए 46 हजार करोड़ रुपए की कमी बताई जा रही है। उन्होंने बताया कि सरकार हर साल 20 हजार करोड़ रुपए ग्रामीण और अन्य उपभोक्ताओं को सब्सिडी पर देती है।

वह निजी या सरकारी किसी के हाथ में होगा। ऐसे में वह पैसा अभी हमारे पास आएगा। ऐसे में 26 हजार करोड़ रुपए की जरूरत है। 8 हजार करोड़ रुपए सरकारी विभागों पर बकाया है। पैसा भी सरकार और प्रबंधन के लोग ही दिलाएंगे।

वह पैसा आ जाता है तो उसके बाद 18 हजार करोड़ रुपए की जरूरत पड़ेगी। बाकी विभाग करीब 8 हजार करोड़ रुपए की वसूली हर महीने करता है। ऐसे में दिसंबर, जनवरी, फरवरी और मार्च मिलाकर आसानी से बाकी 18 हजार करोड़ की भरपाई हो जाएगी। यहां तक की 14 हजार करोड़ रुपए का मुनाफा रहेगा। उन्होंने बताया कि अप्रैल से लेकर सितंबर तक बकाए पर हम जल्दी कनेक्शन भी नहीं काटते हैं।

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति पूरे प्रदेश में एक पर्चा बांट रहा है। इसमें उनकी दलील है कि 77 हजार नौकरियां जाएंगी। इसमें चीफ इंजीनियर से लेकर संविदा पर काम करने वाले कर्मचारी तक शामिल हैं, क्योंकि नया प्रबंधन होने के बाद उनकी मर्जी से नौकरी और सैलरी दोनों तय होगी।

सेंट्रल फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन के प्रदेश सचिव प्रेमनाथ राय का कहना है कि अभी तक के आकलन में सामने आ रहा है कि दोनों डिस्कॉम में मिलाकर करीब 77491 लोगों की नौकरी जाएगी। दलील है कि उड़ीसा और दिल्ली में जब निजीकरण हुआ था तो ऐसा देखने को मिला था।

यही वजह है कि इस बार उन लोगों के विरोध को देश के 27 लाख बिजली कर्मचारियों का समर्थन हासिल है। जिनकी नौकरी जा सकती है, उनमें करीब 27 हजार पद चीफ इंजीनियर से लेकर क्लर्क पद पर बैठे लोग हैं। इसके अलावा बाकी 50 हजार पद पर संविदा और आउटसोर्सिंग पर काम करने वाले हैं।

आरक्षण पर होगा सबसे बड़ा हमला

दलित और पिछड़े इंजीनियरों के संगठन उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन के कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश वर्मा का कहना है कि अभी सरकारी व्यवस्था में आरक्षण व्यवस्था लागू है। निजीकरण के बाद सबसे बड़ा हमला आरक्षण पर होगा। नौकरी जाने के बाद भविष्य में दलित और पिछड़ा वर्ग के युवा को यहां नौकरी मिलना मुश्किल होगा।

अभी संविधान के नियमों के हिसाब से आरक्षण व्यवस्था के तहत लाखों लोगों को नौकरी मिलती है। लेकिन अगर निजी सेक्टर के हाथों में कमान दी गई तो दलित समाज पीछे हो जाएगा। योगी 0.1 सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे श्रीकांत शर्मा निजीकरण के खिलाफ थे। वह कई बार इस प्रस्ताव का विरोध कर चुके हैं।

बताया जा रहा है कि बड़े-बड़े घरानों को निजी बिजली देने की तैयारी काफी पहले से है। शैलेन्द्र दुबे बताते हैं कि यूपी में आगरा और ग्रेटर नोएडा, दो जगह पर निजीकरण का अनुभव देखा जा सकता है।

आगरा पर्यटन के हिसाब से बड़ा शहर है, ऐसे में वहां पर कॉमर्शियल बिजली 8 रुपए प्रति यूनिट तक है। उन्होंने बताया कि आगरा में टोरेंट पावर को सरकार 5.55 पैसे प्रति यूनिट बिजली खरीद कर 4.25 रुपए के हिसाब से देती है। ऐसे में वहां प्रति यूनिट पहले से ही 1 रुपए से ज्यादा का नुकसान है।

आंकड़ों में प्रति वर्ष 275 करोड़ रुपए का नुकसान है। साल 2010 से यहां निजीकरण हुआ। ऐसे में पिछले 14 साल में नुकसान करीब 2434 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। इसके अलावा ऐसे ही ग्रेटर नोएडा में इंडस्ट्री और कामर्शियल उपभोक्ताओं को 85 फीसदी बिजली दी जाती है।

वहीं घरेलू ग्राहकों 14 और किसानों को महज 1 फीसदी बिजली मिलती है। स्थिति यह है कि इंडस्ट्री को 24 घंटे बिजली मिल रही है, लेकिन उपभोक्ताओं के यहां आए दिन कटौती होती है।

इंजीनियरों और कर्मचारी संगठन के नेताओं का कहना है कि मौजूदा समय में सबसे बड़ी लूट विभाग के इंफ्रास्ट्रक्चर पर होगी। अरबों रुपए की प्रॉपर्टी को कौड़ी के भाव निजी कंपनियों को 90 साल की लीज कर दिया जाएगा। इसमें कई जगह महज 1 रुपए पर यह प्रापर्टी दी जाएगी।

यह अपने आप में सबसे बड़ा घोटाला होगा। देखा जाए तो औसत कास्ट पॉवर कॉर्पोरेशन के लिए बिजली 5.23 रुपए प्रति यूनिट पड़ती है। उपभोक्ताओं तक पहुंचते-पहुंचते यही बिजली करीब 7 रुपए प्रति यूनिट तक हो जाती है।

उसके बाद भी यूपी में आम उपभोक्ता के लिए सबसे ज्यादा दर 6.50 पैसे है। निजी कंपनी के आने के बाद यह रेट मुनाफे पर होगा। कर्मचारी संगठनों की दलील है कि निजीकरण के बाद यह बिजली काफी महंगी हो जाएगी।

वित्तीय और कानूनी अड़चनें

पूर्वांचल और दक्षिणांचल को पीपीपी मॉडल पर चलाने के लिए तैयार किए गए मसौदे में कई तरह की वित्तीय और कानूनी अड़चनें आड़े आ रही हैं। ऐसे में बिल्डिंग गाइडलाइन व नियमों के उल्लंघन पर इस मसौदे को दोबारा एनर्जी टास्क फोर्स में ले जाने की तैयारी है।

दोनों निगमों को पीपीपी मॉडल पर देने के लिए तैयार किया गया मसौदा पहले निदेशक मंडल की बैठक में रखा गया। यहां से प्रस्ताव पारित होने के बाद उसी दिन एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में भी इस मसौदे को मंजूरी दे दी गई।

इसे कैबिनेट में ले जाने की तैयारी थी, लेकिन उपभोक्ता परिषद ने मसौदे के तथ्यों को सार्वजनिक करते हुए कानूनी पहलू उठा दिया। इतना ही नहीं नियामक आयोग ने कई विरोध प्रस्ताव भी दाखिल कर दिया।

सूत्रों का कहना है कि मसौदे को कैबिनेट में ले जाने के बजाय अब नए सिरे से उसकी खामियां दूर करने की तैयारी है। कई तरह की आपत्तियों के साथ पत्रावली पुनः लौट आई है। बताया जा रहा है कि एनर्जी टास्क फोर्स द्वारा प्रस्तावित मसौदे में स्टैंडर्ड बिल्डिंग गाइडलाइन में भारत सरकार के नियमों का का उल्लंघन किया गया है।

नियमों के तहत 15 प्रतिशत से अधिक एग्रीगेटेड टेक्निकल एंड कॉमर्शियल (एटीएंडसी) हानियों के आधार पर पीपीपी मॉडल अपनाया जाता है, लेकिन पावर कॉर्पोरेशन की तरफ से एनर्जी टास्क फोर्स में दाखिल प्रस्ताव रिजर्व प्राइस के आधार पर है।

विधान परिषद में उछला मुद्दा

वाराणसी के विधान परिषद सदस्य आशुतोष सिंह ने 18 दिसंबर को सदन में बिजली विभाग के निजीकरण के मुद्दे को लेकर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार जनता की मेहनत से बनी लगभग एक लाख करोड़ रुपये की संपत्ति को महज 6000 करोड़ रुपये में बेचने की तैयारी कर रही है।

यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है, जब हाल ही में बिजली विभाग के इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारने के लिए 50,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।

आशुतोष सिंह ने आरोप लगाया कि यह योजना केवल बड़े कॉर्पोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई गई है। बिजली विभाग की बेशकीमती संपत्तियों और ढांचागत सुविधाओं को नाममात्र की कीमत पर सौंपा जा रहा है।

यह नीति न केवल जनता के पैसों का दुरुपयोग है, बल्कि गरीब और मध्यम वर्ग पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ भी डालने की तैयारी है।

सरकार की इस नीति पर कई सवाल खड़े होते हैं:

  1. निजीकरण की जरूरत क्यों? जब हाल के वर्षों में राजस्व घाटा कम हुआ है और बिजली की वसूली में सुधार हुआ है, तब निजीकरण की आवश्यकता क्यों महसूस हुई?
  2. कौड़ियों के दाम पर बिक्री क्यों? जब बिजली विभाग की संपत्ति एक लाख करोड़ से अधिक की है, तो इसे 6000 करोड़ रुपये में क्यों बेचा जा रहा है?

निजीकरण का विरोध क्यों जरूरी?

बिजली जैसी आवश्यक सेवाओं का निजीकरण करना न केवल सरकार की जवाबदेही को कम करता है, बल्कि इसे महंगा और आम लोगों की पहुंच से दूर भी बना सकता है।

निजी कंपनियां केवल मुनाफे पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग के उपभोक्ताओं के लिए परेशानी बढ़ सकती है।

आशुतोष सिंह के आरोप केवल बिजली विभाग के निजीकरण तक सीमित नहीं हैं। यह मामला सरकार की नीतियों, पारदर्शिता और जनता के हितों की अनदेखी का बड़ा उदाहरण है। ऐसे में, यह जरूरी है कि जनता जागरूक हो और अपनी संपत्तियों के संरक्षण के लिए आवाज उठाए।

यदि यह निजीकरण योजना लागू होती है, तो यह उत्तर प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं के लिए वित्तीय और सामाजिक संकट का कारण बन सकती है। सवाल यह है कि क्या सरकार जनता के हितों की रक्षा करेगी, या कॉर्पोरेट्स को मुनाफा पहुंचाने के लिए जनता की संपत्ति का सौदा करेगी?

यूपी विधान परिषद में बिजली का मुद्दा उठाते एमएलसी आशुतोष सिन्हा

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बिजली विभाग के निजीकरण को लेकर उठाए गए कदमों पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। वाराणसी के विधान परिषद सदस्य आशुतोष सिन्हा ने इसे जनता की संपत्ति को पूंजीपतियों के हवाले करने की साजिश बताया। उनके आरोपों में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य और आंकड़े शामिल हैं, जिन्हें समझना जरूरी है:

1. बकाया राशि और शोषण का खतरा

पूर्वांचल डिस्कॉम के 67.67 लाख उपभोक्ताओं पर वर्तमान में ₹23,978 करोड़ का बकाया है। आशंका है कि आने वाली निजी कंपनियां इस बकाया को बलपूर्वक वसूल करेंगी, जिससे गरीब उपभोक्ताओं का शोषण होगा।

2. पूर्व में हुए निवेश की अनदेखी

पूर्वांचल डिस्कॉम में पहले से स्थापित अरबों-खरबों के विद्युत उपकरणों के अतिरिक्त हाल ही में RDSS योजना और बिजनेस प्लान के तहत ₹23,000 करोड़ का निवेश किया गया है। इन भारी निवेशों के बावजूद, विभाग को मात्र ₹6,000 करोड़ में बेचने की तैयारी की जा रही है।

3. जमीन कौड़ियों के दाम पर

प्रकाशित खबरों के अनुसार, पूर्वांचल डिस्कॉम के अंतर्गत आने वाले 21 जिलों की अरबों-खरबों की जमीन मात्र ₹1 के लीज पर निजी कंपनियों को दी जा रही है।

4. आगरा मॉडल का नुकसानदायक उदाहरण

आगरा में टोरेंट पावर को विद्युत आपूर्ति के लिए औसत ऊर्जा खरीद मूल्य पर सब्सिडी दी गई, जिससे 2023-24 में सरकार को ₹178 करोड़ का नुकसान हुआ। इसके अलावा, निजीकरण से पहले आगरा की विद्युत व्यवस्था पर ₹2,200 करोड़ का बकाया था, जिसे टोरेंट पावर ने वसूल कर मुनाफा कमाया।

जनता के पैसे से अपग्रेड किए गए सिस्टम को निजी कंपनियों के हवाले क्यों किया जा रहा है? इतने भारी निवेश के बावजूद विभाग को नाममात्र के मूल्य पर बेचने की क्या वजह है? क्या यह डील कुछ खास पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए की जा रही है?

इस स्थिति में यह समझना जरूरी है कि निजीकरण के नाम पर जनता की संपत्ति को बेचा जा रहा है, जिसका असर अंततः उपभोक्ताओं और कर्मचारियों पर पड़ेगा। सरकार की इन नीतियों की पारदर्शिता पर सवाल खड़े होते हैं, जिन्हें जनता के सामने लाना जरूरी है।

पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और सरकार के सुशासन के दावे पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। सरकारी आंकड़े दिखाते हैं कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष सितंबर 2024 तक: राजस्व वसूली में ₹1,377 करोड़ की वृद्धि हुई है।

राजस्व घाटा ₹3,413 करोड़ से घटकर ₹2,505 करोड़ रह गया है। लाइन लॉस 27% से घटकर 17% हो गया है। जब सरकार खुद इन उपलब्धियों को गिनाती है, तो सवाल उठता है कि ऐसी प्रगति के बावजूद निजीकरण की आवश्यकता क्यों है?

2000 करोड़ का सवाल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में ₹2,000 करोड़ की योजनाओं को स्वीकृत किया गया है। यह पैसा निवेश करने के बाद, सरकार किस पूंजीपति को वाराणसी की विद्युत व्यवस्था सौंपने की योजना बना रही है?

एक लाख करोड़ से अधिक की जनता के पैसे से बनी संपत्तियों को बिना उचित मूल्यांकन के मात्र ₹6,000 करोड़ में बेचने की तैयारी हो रही है। यह स्पष्ट करता है कि सरकार अपने कुछ पूंजीपति मित्रों को लाभ पहुंचाने के लिए यह कदम उठा रही है।

जब उपलब्धियां खुद सरकार के पक्ष में हैं, तो यह स्पष्ट है कि निजीकरण केवल कुछ उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने का माध्यम है। सरकार को यह बताना होगा कि कौन से पूंजीपति या उद्योगपति इस डील के पीछे हैं और उनकी क्या भूमिका है।

जनता के पैसे और अधिकारों के साथ यह समझौता किसी भी हाल में स्वीकार्य नहीं हो सकता। ऐसे निर्णयों की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है।

भड़क रही असंतोष की आग

विद्युत क्षेत्र के निजीकरण को लेकर उत्तर प्रदेश में असंतोष की आग तेज़ी से भड़क रही है। दक्षिणांचल और पूर्वांचल डिस्कॉम के निजीकरण के खिलाफ विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने सरकार और पावर कारपोरेशन प्रबंधन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि अरबों-खरबों की सार्वजनिक परिसंपत्तियों को चुनिंदा निजी कंपनियों के हवाले करने की साजिश रची जा रही है।

समिति का दावा है कि पावर कारपोरेशन प्रबंधन ने यह कहते हुए, “निजीकरण के बाद शेष बचे विभाग में पदों में वृद्धि की जाएगी,” खुद यह स्वीकार कर लिया है कि निजीकरण से कर्मचारियों की पदावनति और छंटनी होना तय है। संघर्ष समिति के अनुसार, यह बयान सीधे-सीधे प्रबंधन की मंशा को उजागर करता है।

संघर्ष समिति के आह्वान पर राजधानी लखनऊ सहित प्रदेशभर में कर्मचारियों ने निजीकरण के खिलाफ जोरदार सभाएं कीं। इन सभाओं में कर्मचारियों ने स्पष्ट चेतावनी दी कि निजीकरण की कोई भी एकतरफा कार्यवाही लोकतांत्रिक संघर्ष को मजबूर करेगी।

संघर्ष समिति का कहना है कि निगम प्रबंधन अब पूरी तरह से अविश्वसनीय हो चुका है। 3 दिसंबर 2022 को मुख्यमंत्री के मुख्य सलाहकार और ऊर्जा मंत्री की उपस्थिति में हुए समझौते को अब तक लागू नहीं किया गया है। इतना ही नहीं, 19 मार्च 2023 को ऊर्जा मंत्री के निर्देश के बावजूद, हड़ताल के कारण हुए उत्पीड़नात्मक कार्यों को वापस नहीं लिया गया।

हजारों संविदा-निविदा कर्मचारियों की नौकरी छीन ली गई है, जिससे वे भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं। वहीं नियमित कर्मचारियों पर भी लगातार उत्पीड़नात्मक कार्रवाइयां हो रही हैं। संघर्ष समिति ने साफ कहा है कि कर्मचारियों को प्रबंधन के झूठे आश्वासनों से गुमराह नहीं किया जा सकता।

संघर्ष समिति के अनुसार, वर्ष 2000 में विद्युत परिषद के विघटन से पहले अभियंता प्रबंधन के नेतृत्व में परिषद का घाटा सिर्फ 77 करोड़ रुपये था।

लेकिन आईएएस प्रबंधन के अधीन यह घाटा 24 वर्षों में एक लाख दस हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया। यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि घाटे के लिए मुख्य रूप से प्रबंधन जिम्मेदार है, लेकिन दोष कर्मचारियों पर मढ़ा जा रहा है।

सरकार और प्रबंधन पर समिति का आरोप है कि घाटे की आड़ में सार्वजनिक परिसंपत्तियों को कौड़ियों के मोल चुनिंदा निजी घरानों को सौंपने की तैयारी की जा रही है। निजीकरण के इस प्रयास के खिलाफ संघर्ष समिति का रूख और मजबूत होता जा रहा है।

उनका कहना है कि यदि प्रबंधन ने अपने कदम वापस नहीं लिए, तो बिजली कर्मचारी और अभियंता लोकतांत्रिक तरीके से अपना संघर्ष तेज़ करेंगे।

सरकारी आंकड़े झूठे और भ्रामक

पावर कारपोरेशन प्रबंधन द्वारा घाटे को लेकर प्रस्तुत किए गए आंकड़े न केवल भ्रामक हैं, बल्कि पूरी तरह झूठ का पुलिंदा हैं। उनके पीपीटी प्रेजेंटेशन के अनुसार, बिजली राजस्व बकाया धनराशि 1,15,825 करोड़ रुपये बताई गई है, जिसमें दक्षिणांचल का 24,947 करोड़ रुपये और पूर्वांचल का 40,962 करोड़ रुपये शामिल है।

सवाल यह उठता है कि यदि यह राजस्व वसूल लिया जाए, तो पावर कारपोरेशन 5,825 करोड़ रुपये के मुनाफे में होगा। ऐसे में घाटे का झूठ फैलाकर निजीकरण को आगे बढ़ाना किस गहरी साजिश का हिस्सा है?

वर्ष 2010 में आगरा का फ्रेंचाइज़ी मॉडल टोरेण्ट पॉवर को सौंपा गया था। उस समय आगरा में 2,200 करोड़ रुपये का राजस्व बकाया था। आज 14 साल बीतने के बाद भी टोरेण्ट पॉवर ने इस बकाए का एक भी रुपया पावर कॉरपोरेशन को नहीं लौटाया।

अब दक्षिणांचल और पूर्वांचल डिस्कॉम, जिन्हें निजीकरण की प्रक्रिया के तहत बेचा जा रहा है, का बकाया 66,000 करोड़ रुपये से अधिक है। निजीकरण के बाद यह 66,000 करोड़ रुपये डूब जाएगा और निजी कंपनियों की जेब में चला जाएगा। ऐसा प्रतीत होता है कि पावर कारपोरेशन प्रबंधन इस साजिश का हिस्सा है।

पावर कारपोरेशन ने बयान देकर खुद यह स्वीकार किया है कि निजीकरण के बाद पदों का सृजन नहीं किया जाएगा, न ही किसी की पदावनति या छंटनी होगी। लेकिन सच्चाई यह है कि निजीकरण से पदावनति और छंटनी निश्चित है। प्रबंधन के इस बयान से कर्मचारियों में रोष और बढ़ गया है।

संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने निजीकरण के खिलाफ एकजुट होकर अपनी नाराजगी जाहिर की। समिति ने स्पष्ट कर दिया है कि कर्मचारियों की उपेक्षा और सार्वजनिक संपत्तियों को कौड़ियों के मोल निजी घरानों को बेचने की किसी भी साजिश को सफल नहीं होने दिया जाएगा।

कंपनिया करेंगी बड़े पैमाने पर छंटनी

इस बीच उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने बताया कि जब भारत सरकार ने आरडीएसएस योजना के तहत दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की एटीएंडसी हानियां 18.97 प्रतिशत और पूर्वांचल की 18.49 प्रतिशत वर्ष 2024 -25 के लिए अनुमोदित किया है।

एनर्जी टास्क फोर्स में पूर्वांचल के लिए एटीएंडसी हानियां 49.22 प्रतिशत और दक्षिणांचल के लिए 39.42 प्रतिशत आकलित करके प्रस्ताव भेज दिया गया।

दक्षिणांचल और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण पर दोनों डिस्काम में कार्यरत अभियंताओं और कार्मिकों को तत्काल निजी कंपनी से छुटकारा नहीं मिलेगा। एक वर्ष तक सभी को निजी कंपनी में ही काम करना होगा।

दूसरे वर्ष में भी सिर्फ एक-तिहाई ही पावर कारपोरेशन के अन्य डिस्कॉम में जा सकेंगे। आउटसोर्स कार्मिकों की भी मौजूदा अनुबंध की अवधि तक ही निजी कंपनी में कुर्सी सलामत रहेगी।

अनुबंध की समाप्ति के बाद निजी कंपनी ही तय करेगी किसे बनाए रखना है और किसकी छुट्टी करनी है। पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन ने बढ़ते घाटे के मद्देनजर पहले-पहल जिन दो डिस्कॉम पूर्वांचल और दक्षिणांचल की बिजली व्यवस्था पीपीपी मॉडल पर निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में है उनमें 42 जिलों के लगभग 1.71 करोड़ उपभोक्ता हैं।

इन उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति के लिए लगभग 16 हजार नियमित अभियंता व अन्य के साथ ही 44 हजार संविदा कर्मी दोनों डिस्कॉम में कार्यरत हैं। पीपीपी मॉडल में दोनों डिस्काम को निजी हाथों में सौंपने पर अपने भविष्य को लेकर चिंतित इंजीनियर व अन्य कार्मिक निजीकरण का लगातार विरोध कर रहे हैं।

हालांकि, कारपोरेशन प्रबंधन का दावा है कि निजीकरण में तीन विकल्पों के माध्यम से सभी इंजीनियर व कार्मिकों के हित सुरक्षित रहेंगे और संविदाकर्मियों को नहीं हटाया जाएगा।

गौर करने की बात यह है कि निजी सहभागिता से बिजली आपूर्ति संबंधी अंडमान विद्युत वितरण निगम के आरएफपी (प्रस्ताव के लिए अनुरोध) के आधार पर कारपोरेशन प्रबंधन द्वारा तैयार किए गए जिस आरएफपी को मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह की अध्यक्षता वाली एनर्जी टास्कफोर्स/इंपावर्ड कमेटी ने मंजूर किया है उसमें मौजूदा अभियंताओं व कार्मिकों को एक वर्ष तक किसी भी विकल्प का लाभ नहीं मिलेगा।

मतलब यह है कि निजी कंपनी के बिजली व्यवस्था संभालने के एक वर्ष तक सभी को जहां हैं वहीं काम करना होगा। अन्य डिस्काम में स्थानांतरित किए जाने का विकल्प देने वालों में से कारपोरेशन प्रबंधन सिर्फ एक-तिहाई को दूसरे वर्ष के अंत में मौका देगा। शेष दो-तिहाई को निजी कंपनी से निकलने के लिए अगले दो वर्ष तक इंतजार करना पड़ेगा।

निजी कंपनी में बने रहने का विकल्प देने वालों की नौकरी भी तभी सुरक्षित रहेगी जब उसके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई न हो। वीआरएस लेने का विकल्प भी एक वर्ष बाद लागू होगा। आउटसोर्स कर्मचारियों के संबंध में स्पष्ट किया गया है कि मौजूदा अनुबंध की अवधि तक ही सभी अपने पदों पर बने रहेंगे।

अनुबंध अवधि खत्म होने के बाद निजी कंपनी इन कर्मचारियों को रखने के लिए बाध्य नहीं होगी। कार्य दक्षता के आधार पर उसे छटनी करने का पूरा अधिकार होगा।

भाजपा के एजेंडे में नौकरी नहीं

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार के एजेंडे में नौकरी और रोजगार नहीं है। उत्तर प्रदेश हो, बिहार या फिर पूरा देश। जहां-जहां भाजपा की सरकारें हैं, वहां एक सा ही पैटर्न है।

कभी डबल शिफ्ट, डबल डे, तो कभी नार्मलाइजेशन के नाम पर, सर्वर में गड़बड़ी करवाकर, पेपर लीक कराकर, कॉपी बदलवाकर, आरक्षण मारकर, रिजल्ट रोककर या कभी रिजल्ट को कोर्ट में घसीटकर भाजपा वाले नौकरी पाने के हर तरीके को फंसा देते हैं।

सपा अध्यक्ष ने जारी अपने बयान में कहा कि भाजपा हर काम ठेके पर देना चाहती है, जिससे ठेकेदारों से वसूली की जा सके। भाजपा सरकार ने प्रदेश की बिजली व्यवस्था को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर ली है। कुछ पूंजीपति घरानों को मनमाने दामों पर बिजली देने की छूट मिल जाएगी।

अखिलेश कहते हैं कि भाजपा कुछ कंपनियों को बिजली व्यवस्था सौंप देगी तो वे सरकारी कर्मचारियों को निकाल कर आउटसोर्सिंग से कर्मचारी रखेगी। इस तरह सरकारी कर्मचारी और संविदा कर्मी दोनों बेरोजगार हो जाएंगे।

भाजपा का धीरे-धीरे सरकारी नौकरियों को खत्म करने के पीछे उसका छिपा हुआ एजेंडा भी है, क्योंकि ठेकेदारी में आरक्षण लागू नहीं होता है। यह काम केंद्र और राज्य की दोनों सरकारें कर रही हैं। भाजपा नहीं चाहती है कि पीडीए को उसका हक और सम्मान मिले।

इस बीच, उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) के दक्षिणांचल व पूर्वांचल विद्युत वितरण निगमों के प्रस्तावित निजीकरण से जहां बिजली महंगी होने और अभियंताओं-कार्मिकों का आरक्षण खत्म होने की आशंका जताई जा रही है। वहीं युवा सरकारी नौकरियों के अवसर घटने से आशंकित हैं।

कुछ रोज पहले उप्र राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के साप्ताहिक वेबिनार में युवाओं ने इस पर चिंता जताई। वेबिनार में रितु यादव, हरेन्द्र कुमार, विजय सिंह कुशवाहा और राहुल सिसोदिया ने कहा कि युवाओं को अधिक से अधिक सरकारी नौकरियां दिलाने पर सरकार का जोर होना चाहिए लेकिन यहां तो निजीकरण कर हमने अवसर छीना जा रहा है।

डिप्लोमा व बीटेक डिग्री होने के बावजूद भी सरकारी नौकरी आगे नहीं मिल पाएगी, क्योंकि सरकार निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। इंजीनियर के पदों पर भर्ती की आस लगाए बैठे युवाओं ने कहा कि उन्हें तो इससे झटका लगा है। वहीं कुछ उपभोक्ताओं ने निजीकरण होने के बाद बिजली महंगी होने की आशंका जताई।

अनुपम राय, राजकुमार पराशर और प्रशांत पचौरी ने कहा कि निजीकरण होने से कंपनियां सिर्फ मुनाफे के बारे में ही सोचेंगी और उपभोक्ताओं का नुकसान होगा। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने कहा कि वह निजीकरण रोकने के लिए आंदोलन चलाएंगे।

आर-पार की लड़ाई का ऐलान

यूपी में पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के विरोध में 27 श्रमिक संघों ने समर्थन का ऐलान किया है। इस ऐलान के बाद बिजली कर्मियों ने विरोध-प्रदर्शन और तेज कर दिया है।

सरकार से आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर चुके संगठनों ने लामबंदी शुरू कर दी है। बिजली कर्मियों के साथ ही 27 संगठनों के कर्मचारी भी निजीकरण के फैसले का कड़ा विरोध कर रहे हैं।

संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि यदि सरकार ने शांतिपूर्वक तरीके से आंदोलन कर रहे बिजलीकर्मियों की बात नहीं मानती है उग्र आंदोलन किया जाएगा। कर्मचारियों का उत्पीड़न किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। दुबे ने राज्य के सभी कर्मचारी और शिक्षकों को आंदोलन में शामिल होने का आह्वान किया।

माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कुमार त्रिपाठी ने कहा कि सरकार को अपने कर्मचारियों के हितों को ध्यान रखना चाहिए। निजीकरण का प्रस्ताव वापस लेकर सरकार संविदा कर्मचारियों की सेवा सुरक्षा की नीति लाए। संविदा कर्मचारी पूरी मेहनत और निष्ठा से मामूली मानदेय पर जोखिम भरा काम करके उपभोक्ताओं के हित में काम करते हैं।

उत्तर प्रदेश इंजीनियर एसोसिएशन के महासचिव इं. आशीष यादव ने बिजलीकर्मियों का समर्थन करते हुए कहा कि निजीकरण के इस प्रस्ताव को वापस लिया जाए। यह न केवल कर्मचारियों के हित में है, बल्कि प्रदेश की जनता के लिए भी नुकसानदायक साबित हो सकता है।

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जेएन तिवारी ने कहा कि बिजली विभाग में निजीकरण का व्यापक प्रभाव सरकारी विभागों पर भी पड़ेगा। बिजली महंगी होगी, यातायात सेवाएं एवं उपभोक्ता को मिलने वाली सभी सेवाएं महंगी हो जाएंगी। निजीकरण एवं संविदा कर्मियों के साथ हो रहे शोषण पर सभी संगठनों को एक एकजुट होकर संघर्ष करना होगा।

फैसला वापस ले सरकार

जवाहर भवन कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सतीश पांडेय ने कहा कि यदि प्रदेश में विद्युत वितरण निगम का निजीकरण किया गया तो बिजली दरों में बेतहाशा वृद्धि होगी।

उन्होंने मुंबई का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां दो बड़ी निजी कंपनियों के होने के बावजूद घरेलू उपभोक्ताओं के लिए बिजली की दरें 17 से 18 रुपए प्रति यूनिट हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में अभी घरेलू उपभोक्ताओं के लिए बिजली दर 6.50 रुपए प्रति यूनिट है।

यूपी मिनिस्ट्रियल कलेक्ट्रेट कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुशील कुमार त्रिपाठी ने कहा कि निजीकरण के बाद यूपी में बिजली महंगी हो जाएगी। लोगों की जेब पर अधिक भार पड़ेगा। सरकार को अपनी फैसले पर विचार करना चाहिए और कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखना चाहिए।

विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष संतोष तिवारी ने बिजलीकर्मियों के आंदोलन को समर्थन करते हुए कहा सरकार व्यवस्था सुधारने की बजाय निजीकरण पर जोर दे रही है। सरकार की नीतियां जन विरोधी होती जा रही हैं। निजीकरण का फैसला जनता के विश्वास का गला घोटना है।

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष हरिकिशोर तिवारी ने कहा कि आगरा और ग्रेटर नोएडा में बिजली के निजीकरण का प्रयोग पहले ही विफल हो चुका है। इन दोनों क्षेत्रों में निजी कंपनियों का संचालन गरीब उपभोक्ताओं और किसानों के लिए समस्याएं उत्पन्न कर रहा है।

निजी कंपनियां अधिकतर मुनाफे वाले औद्योगिक और व्यापारिक उपभोक्ताओं पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, इससे गरीब और किसान वर्ग को उचित बिजली आपूर्ति में कठिनाई हो रही है।

मानवीयता के आधार पर काम करे सरकार

राज्य कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष कमल अग्रवाल ने बताया कि सरकार को अपनी हठवादी रवैया को छोड़कर बिजली कर्मचारियों की समस्या का निदान मानवीयता के आधार पर करना चाहिए।

बिजली विभाग में दो निगमों का निजीकरण का विरोध करते हुए उन्होंने आरपार के संघर्ष का ऐलान किया। उत्तर प्रदेश पूर्व माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष सुरेश जायसवाल ने बिजली विभाग में निजीकरण का विरोध किया है। उन्होंने आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा कि सरकार को अपने कर्मचारियों के हितों का ध्यान में रखना चाहिए।

कर्मचारी अपने खून पसीने से राज्य के विकास के लिए योगदान देता है। ऐसे में इनके हितों की अनदेखी से आक्रोश और बढ़ेगा। 14 घंटे काम करने वाले कर्मचारियों की बात सुने सरकार।

विद्युत मोर्चा कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष आरएस राय ने कहा कि 8- 9 हज़ार रुपए के मामूली वेतन और बिना सुरक्षा उपकरणों के प्रदेश में लगभग 65 हज़ार संविदा कर्मचारी काम कर रहे हैं।

विद्युत व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए दिन रात 12 से 14 घंटे काम कर रहे हैं। इनमें से लगभग 30 हज़ार संविदा कर्मचारियों की आजीविका पर निजीकरण के कारण ख़तरा उत्पन्न हो गया है।

विद्युत मोर्चा संविदा कर्मचारी संघ के प्रभारी पुनीत राय ने कहा कि ऊर्जा मंत्री एवं चेयरमैन के आश्वासन के बावजूद पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम द्वारा गत मार्च 2023 की हड़ताल में निकाले गए और हाल मे छंटनी किए गए निर्दोष संविदा कर्मियों को अभी तक काम पर वापस नहीं लिया गया है। उन्होंने कर्मचारियों के सेवा सुरक्षा के लिए सरकार से कदम उठाने की मांग की।

(आराधना पांडेय स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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