Thursday, April 25, 2024

उत्तराखंड: भाजपा को क्या इसी बर्बरता के लिए लोगों ने दोबारा चुना था?

साल भी नहीं गुजरा था जब उत्तराखंड के लोगों ने भाजपा को भर-भर कर वोट दिये थे और परम्परा को तोड़ते हुए भाजपा को लगातार दूसरी बार सत्ता सौंप दी थी। भाजपा सरकार ने एक साल पूरा होने से पहले ही पहाड़ के नौनिहालों के सिर पुलिस के डंडों से लहूलुहान कर दिये। इन नौनिहालों का दोष सिर्फ इतना था कि वे भर्ती परीक्षाओं में बार-बार हो रहे घोटालों से नाराज थे और सीबीआई जांच कराने की मांग कर रहे थे। 

पिछले वर्ष 14 फरवरी को उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव हुए थे। राज्य के लोगों ने 70 में से 47 सीटें भाजपा की झोली में डालकर लगातार दूसरी बार इस पार्टी की सरकार बनाई थी। अपनी सीट हारने के बावजूद पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बनाये गये। बाद में उनके लिए उपचुनाव करवाया गया।

इन चुनाव परिणामों के विश्लेषण में यह बात सामने आई कि राज्य में महिलाओं ने भाजपा को एकतरफा वोट किया था। लेकिन अभी महिलाओं का वोट पाये एक साल भी नहीं हुआ था, भाजपा ने महिलाओं को रिटर्न गिफ्ट के रूप में उनके नौनिहालों को लहूलुहान कर दिया। जो लहूलुहान नहीं हो पाये उन्हें गिरफ्तार कर जेल परिसर के एक खुले मैदान में ले जाया गया और 16 छात्राओं सहित इन लोगों को देर रात तक वहां बिठाकर रखा गया।

प्रशासन उत्तराखंड बेरोजगार संघ के आंदोलन को हर हाल में कुचलना चाहता था। पुलिस ने 8 फरवरी की रात को गांधी पार्क के बाहर सत्याग्रह कर रहे छात्र-छात्राओं के साथ बदसलूकी और मारपीट की थी। उन्हें वहां से उठा दिया गया था। पुलिस और प्रशासन ने उस रात मान लिया था कि अब आंदोलन खत्म हो गया है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

9 फरवरी की सुबह हजारों की संख्या में बेरोजगार युवक-युवतियां और उनके अभिभावक गांधी पार्क पहुंच गये। दिन भर ये युवा और उनके अभिभावक प्रदर्शन करते रहे। लेकिन देर शाम पुलिस ने लाठियां भांजनी शुरू कर दी। कुछ युवकों के सिर से खून निकलने लगा तो कुछ के हाथ पैरों में चोटें आईं। कुछ बेहोश हो गये तो कुछ के कपड़े फट गये।

इसके बाद कई छात्र-छात्राओं को गिरफ्तार कर लिया गया। एसएफआई से जुड़ी डीएवी काॅलेज छात्रसंघ की उपाध्यक्ष सोनाली नेगी सहित करीब 16 छात्राएं जो जमीन पर बैठकर नारे लगा रही थीं, उन्हें जबरन खींचकर गाड़ी में डाल दिया था। पुलिस किस तरह बर्बर हो चुकी थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खींचतान में छात्राओं के कपड़े फट गये और जूते-चप्पल तक छूट गये। 

घटनाक्रम इस प्रकार घटित हुआ

उत्तराखंड में लगभग हर सरकारी नौकरी में धांधली हो रही है। कभी भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक हो जाते हैं तो कभी नकल करवाकर चहेतों और पैसे देने वालों को पास करवा दिया जाता है। यूकेएसएसएससी परीक्षा में धांधली का मामला खुलने के बाद एक के बाद एक कई नौकरियों में धांधली किये जाने की बात सामने आई है।

खास बात यह है कि लगभग सभी मामलों में कोई न कोई भाजपा नेता जुड़ा हुआ है। उत्तराखंड का बेरोजगार पहले भी उत्तराखंड बेरोजगार संघ के बैनर तले सड़कों पर उतरा था, लेकिन हाल ही में जेई, एई और पटवारी भर्ती परीक्षाओं में धांधली सामने आने के बाद युवा बेहद हताश और नाराज हैं।

उत्तराखंड बेरोजगार संघ ने विभिन्न पदों की भर्ती में हुई धांधली की सीबीआई जांच करवाने की मांग को लेकर 8 फरवरी को सत्याग्रह शुरू किया था। दिनभर गांधी पार्क के बाहर बैठे रहने के बाद युवाओं ने रात को भी सत्याग्रह जारी रखा। देर रात करीब 40 छात्र-छात्राएं धरने पर बैठे थे।

इसी दौरान पुलिस वहां पहुंच गई और युवाओं को खींचकर वहां से हटाने की कोशिश करने लगी। आरोप है कि बिना महिला पुलिस के धरने पर बैठी छात्राओं को खींचने का प्रयास किया गया। युवाओं ने इसका विरोध किया तो पुलिस ने संघ के अध्यक्ष बाॅबी पंवार की पिटाई करके उन्हें घसीटना शुरू कर दिया। युवाओं ने इस घटना की वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दी और साथ ही 9 फरवरी को सुबह गांधी पार्क पहुंचने की अपील भी कर दी। 

सुबह तक पुलिस की ओर से की गई छीना-छपटी और युवकों को घसीटने और डंडे से उनके पैर तोड़ने का प्रयास करने वाला वीडियो लाखों लोगों तक पहुंच गया। नतीजा यह हुआ है कि सुबह 9 बजे ही गांधी पार्क पर युवाओं की भीड़ जुटनी शुरू हो गई। 11 बजने तक करीब 10 हजार युवाओं की भीड़ घंटाघर से गांधी पार्क और एस्लेहाॅल तक पहुंच गई।

युवा जगह-जगह सड़कों पर बैठ गये। करीब डेढ़ किमी तक राजपुर रोड पर सड़क के साथ ही मुंडेरें भी युवाओं से भर गई। संभवतः प्रशासन को यह अंदाजा नहीं था कि एक साथ इतनी बड़ी संख्या में युवा और अभिभावक पहुंच जाएंगे। शुरू में पुलिस ने एक-दो राउंड आंसू गैस के गोले भी छोड़े, लेकिन कुछ युवकों ने इन्हें उठाकर वापस पुलिस वालों की तरफ उछाल दिया। 

संभवतः पुलिस का यह अंदाजा था कि आंसू गैस के गोले छोड़ने पर होने वाले धमाके और धुएं से भीड़ तितर-बितर हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इससे युवा और उत्तेजित हो गये और एस्लेहाॅल चैक से घंटाघर के पास तक युवाओं के नारे पहले से भी ज्यादा तेज हो गये। इसके बाद प्रशासन ने आंसू गैस के गोले छोड़ने या लाठीचार्ज करने के इरादा बदल दिया। युवक सड़कों पर ही बैठ गये और नारेबाजी करते रहे। दिनभर यही सिलसिला चलता रहा।

घंटाघर से लेकर एस्लेहाॅल तक राजपुर रोड पर युवाओं ने कब्जा जमाये रखा। लेकिन, शाम को पहले दोनों तरफ से पथराव हुआ और फिर पुलिस ने बर्बरतापूर्वक लाठियां चलानी शुरू कर दी। पुलिस अपनी पुरानी लीक के अनुसार बयान दे रही है कि भीड़ ने पथराव शुरू किया। 20 पुलिस वाले भी घायल हुए इसके बाद पुलिस ने लाठियां चलाई।

लेकिन, मौके से आई तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है कि पुलिस कर्मियों के हाथों में भी पत्थर हैं। एक वीडियो में युवकों का एक समूह पुलिस की तरफ पत्थर फेंक रहा है। एक पुलिसकर्मी उनके बीच जाता है और बड़े प्यार से उनके हाथों में उठाये पत्थर फिंकवा देता है। यह वीडियो यह साबित करने के लिए काफी है कि युवक हिंसक नहीं हुए थे, बल्कि जवाब में पत्थर फेंक रहे थे।

बेरोजगारों के समर्थन में उतरे अभिभावक 

9 फरवरी को देहरादून में आंदोलन कर रहे बेरोजगारों पर लाठीचार्ज और उन पर अलग-अलग पांच मुकदमे दर्ज किये जाने के खिलाफ अब अभिभावक और सामाजिक संगठन सड़क पर उतर आये हैं। पिछले कुछ दिन से लगभग शांत पड़ा बेरोजगार आंदोलन अभिभावकों के सड़कों पर उतरते ही फिर से तेज हो गया है। 20 फरवरी को अभिभावकों के इस आंदोलन में अनेक सामाजिक संगठन और विपक्षी दलों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए।

सैकड़ों की संख्या में अभिभावक, सामाजिक संगठनों के लोग, विपक्षी दलों के प्रतिनिधियों के साथ ही छात्र संगठनों के कार्यकर्ता दीन दयाल पार्क में जमा हुए। यहां से लोगों सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए डीएम ऑफिस की तरफ मार्च किया। इस दौरान कुछ देर के लिए सड़कों पर जाम भी लगा, लेकिन अभिभावक लगातार इस प्रयास में जुटे रहे कि सड़कों पर जाम न लगे।

डीएम ऑफिस के बाहर एक सभा का आयोजन किया गया और उसके बाद मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन सिटी मजिस्ट्रेट को सौंपा गया। ज्ञापन में बेरोजगार युवाओं की सभी मांगें मानने के साथ ही आंदोलन के दौरान उनके खिलाफ दर्ज सभी मुकदमें वापस लेने और 9 फरवरी के लाठीचार्ज के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गई है।

आंदोलन की अगुआई 1994 से अब तक मातृशक्ति का नेतृत्व कर रहे उत्तराखंड महिला मंच ने किया। प्रदर्शन में शामिल अन्य संगठनों में जनवादी महिला समिति, अभिभावक मंच, चेतना आंदोलन, कर्मचारी संघ, किसान सभा, उत्तराखंड पीपुल्स फोरम, राज्य आंदोलनकारी संयुक्त मंच, पीएमएम, जन विज्ञान, जन संवाद समिति, आरयूपी, फ्रीडम फाइटर एसोसिएशन, सीटू, एटक, एसएफआई और एनएसयूआई के प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया।

विपक्षी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि भी अभिभावकों के इस मार्च में शामिल हुए। इनमें कांग्रेस, उत्तराखंड क्रांति दल, जेडीएस, सपा, पहाड़ी पार्टी, सीपीएम, सीपीआई, जेडीएस सहित अन्य पार्टियों के प्रतिनिधि, अभिभावक और जन सरोकारों से जुड़े पत्रकार मौजूद थे।

अभिभावकों में देहरादून के एसएसपी को लेकर बेहद नाराजगी नजर आई। डीएम ऑफिस के बाहर आयोजित बैठक में लगभग सभी वक्ताओं ने बेरोजगार छात्रों के आंदोलन के दौरान एसएसपी देहरादून की भूमिका पर सवाल उठाये। वक्ताओं का कहना था कि एसएसपी का फोकस हालात को संभालना नहीं बल्कि प्रदर्शनकर रहे युवाओं को डराना-धमकाना था।

उन्हें हर हाल में पद से हटाने की मांग की गई। एसएसपी पर यह भी आरोप लगाया गया कि उन्होंने बेरोजगार युवाओं के समर्थन में शहीद स्मारक पहुंचने वाले अभिभावकों और सामाजिक संगठनों के लोगों के साथ भी दु्र्व्यवहार किया। अभिभावकों ने इस आंदोलन में हालात बिगाड़ने के लिए देहरादून सदर के एसडीएम और यूकेएसएसएससी के चेयरमैन को भी दोषी ठहराया और इन दोनों अधिकारियों को भी तुरंत पद से हटाने की मांग की।

इस बीच प्रशासन बेरोजगारों के आंदोलन को तोड़ने में लगभग सफल हो चुका था, लेकिन अभिभावकों की हुंकार ने प्रशासन के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। 9 फरवरी के लाठीचार्ज के बाद और उससे अगली रात को पुलिस ने कुल 5 मुकदमे बेरोजगार युवाओं के खिलाफ दर्ज करवाये थे। 9 फरवरी को करीब 60 युवाओं को गिरफ्तार किया गया था। इनमें 13 को छोड़कर बाकी को देर रात रिहा कर दिया गया था।

10 फरवरी को बड़ी संख्या में युवा, अभिभावक, सामाजिक संगठनों और विपक्षी दलों ने शहीद स्मारक पर धरना शुरू कर दिया था। गिरफ्तार किये गये 13 युवकों की गिरफ्तारी के बाद धरना उठा दिया गया था। लेकिन, अब फिर से युवाओं ने प्रशासन की ओर से बताई गई जगह पर धरना शुरू कर दिया है। 

अभिभावकों के अनुसार 9 फरवरी को हुए पथराव के मामले में यह बात भी सामने आई है कि एक पार्टी से जुड़े युवा संगठन का गांधी पार्क के कुछ दूर एक बैंक्वेट हाॅल में लंच का कार्यक्रम चल रहा था। लंच के बाद युवाओं का एक दल आंदोलन को समर्थन देने के नाम पर गांधी पार्क पहुंचा और कुछ देर बाद पथराव शुरू हो गया

हालांकि इस बात के पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं कि पथराव युवाओं के इसी दल ने आंदोलन को खराब करने के लिए किया था या वास्तव में आंदोलन कर रहे युवाओं की तरफ से पत्थर फेंके गये थे। हालांकि देहरादून के एसएसपी दिलीप कुंवर ने भी एक वीडियो जारी करके कहा है कि युवाओं के आंदोलन में कुछ असामाजिक तत्व घुस गये थे।

पथराव के बाद पुलिस ने 60 युवकों को गिरफ्तार किया। इनमें 16 छात्राएं भी शामिल थीं। इन सभी को सिद्धोवाला जेल परिसर में एक मैदान में बिठा दिया गया। छात्राओं को भी रात साढ़े 8 बजे तक वहां बिठाकर रखा गया। इन सभी के मोबाइल भी स्विच ऑफ करवा दिये गये थे। गिरफ्तार की गई छात्राओं में शामिल सोनाली नेगी ने बताया कि उनके साथ 15 और छात्राएं थीं। कुछ के कपड़े फट गये थे और कुछ के जूते चप्पल छूट गये थे। जिस खुले मैदान में उन्हें बिठाया गया, वहां पीने का पानी और वाॅशरूम तक की सुविधा नहीं थी। 

इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर घटना पर अफसोस जताने के साथ ही लानत-मलानत का दौर भी चल रहा है। यह लानत मलानत भाजपा, उसकी सरकार और उसके हैंडसम कहे जा रहे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए तो हैं ही, उन लोगों के लिए भी हैं, जिन्होंने आज से एक साल पहले भाजपा के पक्ष में जमकर वोट दिये थे।

लहूलुहान युवकों और बर्बरता से लाठी चलाती पुलिस के फोटो और वीडियो शेयर करके लोग कह रहे हैं कि ये तस्वीरें साबित करती हैं कि अपने आपने गलत लोगों के हाथों में उत्तराखंड सौंप दिया है।

( त्रिलोचन भट्ट उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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