Friday, April 19, 2024

पत्रकार गौरी लंकेश हत्याकांड: हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीमकोर्ट में फैसला सुरक्षित

उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक की पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब उच्चतम न्यायालय तय करेगा कि आरोपी मोहन नायक के खिलाफ केसीओसीए के तहत मुकदमा चलेगा या नहीं। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने गौरी लंकेश की बहन और फिल्म निर्माता कविता लंकेश द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा है। आरोपी मोहन नायक के खिलाफ कर्नाटक संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (केसीओसीए) के तहत आरोपों को खारिज करने के फैसले को चुनौती दी गई है।

पीठ ने पक्षकारों को तीन दिनों में लिखित दलीलें दाखिल करने को भी कहा है। पिछली सुनवाई में पीठ ने गौरी लंकेश की बहन कविता लंकेश की याचिका पर नोटिस जारी कर सभी पक्षों से जवाब मांगा था। मंगलवार को मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। कविता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती दी है। हाईकोर्ट ने गौरी लंकेश हत्या मामले में आरोपी मोहन नायक के खिलाफ कर्नाटक संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (केसीओसीए) के तहत आरोपों को खारिज कर दिया था।

गौरी लंकेश की 2017 में बेंगलुरु में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। कविता लंकेश की ओर से पेश वकीलों ने अदालत को बताया कि मामले में आरोपी नंबर 6 मोहन नायक जमानत लेने के लिए इस फैसले पर भरोसा कर रहा है। इस पर पीठ ने कहा कि जमानत अर्जी पर फैसले से प्रभावित नहीं होना चाहिए।

झूठे मुकदमों से नाराज सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने झूठे मुकदमों पर रोक लगाने की जरूरत बताई है। इनसे बेवजह समय की बर्बादी होती है। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बी आर गवई की पीठ ने मंगलवार को कहा कि वैसे एक दीवानी मुकदमे को रद्द करना कठोर कार्रवाई है। यह और बात है कि अदालतें किसी वादी को कोई ऐसा मुकदमा आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं दे सकती हैं जो कानूनी कार्रवाई करने की जरूरत नहीं पैदा करता हो। दरअसल, झूठे मुकदमों पर रोक लगाने की जरूरत है ताकि अदालतों का वक्त बर्बाद नहीं हो।

पीठ ने अदालतों में दीवानी मुकदमे खारिज करने के मुद्दे से जुड़ी दीवानी दंड संहिता के ऑर्डर सात नियम 11 की व्याख्या पर आर बाजोरिया नाम के व्यक्ति की ओर से दायर अपील पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह कहा। पीठ ने कहा कि किसी दीवानी मुकदमे को खारिज करने का एक आधार यह है कि यह कानूनी कार्रवाई की जरूरत नहीं पैदा करता हो। शीर्ष न्यायालय ने कलकत्ता हाईकोर्ट की एक खंडपीठ के फैसले के खिलाफ बाजोरिया की अपील खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

शैक्षिक योग्यता का अंतर प्रोन्नति चयन के लिए वैध आधार

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने मंगलवार को प्रोन्नति में उचित उम्मीदवार के चयन को लेकर एक बेहद अहम फैसला सुनाया। पीठ ने कहा कि समान श्रेणी के दावेदारों का वर्गीकरण करने के लिए शैक्षिक योग्यता एक वैध आधार है। साथ ही ऐसा करने पर संविधान के अनुच्छेद-14 या 16 का उल्लंघन नहीं होता है।

पीठ ने कहा कि शैक्षिक योग्यता का उपयोग एक निश्चित श्रेणी के दावेदारों के लिए प्रोन्नति में आरक्षण व्यवस्था शुरू करने के लिए किया जा सकता है या प्रोन्नति को पूरी तरह एक श्रेणी तक सीमित करने में भी इसका उपयोग हो सकता है। पीठ ने कहा कि वर्गीकरण के मामलों में न्यायिक समीक्षा इस बात के निर्धारण तक सीमित है कि वर्गीकरण उचित है या नहीं और उससे संबंधित है या नहीं, जिसकी मांग की गई थी। अदालत वर्गीकरण के आधार के गणितीय मूल्यांकन में शामिल नहीं हो सकती।

इसके साथ ही पीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट के एक निर्णय को बरकरार रखा है, जिसमें कोलकाता नगर निगम (केएमसी) के 3 जुलाई, 2012 के एक सर्कुलर को वैध घोषित किया गया था। इस सर्कुलर में डिप्लोमा और डिग्रीधारक सब असिस्टेंट इंजीनियरों (एसएई) के लिए असिस्टेंट इंजीनियर (एई) पद पर प्रोन्नति की अलग-अलग शर्तें तय की गई थीं। पीठ ने कहा कि यह मानते हुए कि केएमसी की अतिरिक्त पदों के लिए प्रोन्नति नीति तर्कहीन या मनमानी नहीं है और न ही इसकी मंशा डिप्लोमा धारक एसएई की हानि के लिए नहीं है।

पीठ ने कहा, सार्वजनिक नीति और सार्वजनिक रोजगार के मामलों में, विधायिका या उसके प्रतिनिधि को अलग-अलग पदों पर नियुक्त करने वाले व्यक्तियों की गुणवत्ता तय करने के लिए पर्याप्त मौका देना चाहिए और तब तक नीति के मामले में हस्तक्षेप से बचना चाहिए, जब तक ये निर्णय मनमाने नहीं होते। पीठ ने उच्चतम न्यायालय के पुराने निर्णयों का हवाला देते हुए कहा, सामान्यतया, शैक्षिक योग्यता पदोन्नति के मामलों में एक ही वर्ग के व्यक्तियों के बीच वर्गीकरण के लिए एक वैध आधार है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन नहीं है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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