Thursday, March 28, 2024

गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विष्णु पांड्या ने ‘शववाहिनी गंगा’ को दिया अराजक कविता का खिताब

‘शववाहिनी गंगा’ कविता लिखने वाली गुजराती कवि  पारुल खाखर ‘अराजक’ हैं और इस कविता को सराहने वाले ‘साहित्यिक नक्सली’! ये मेरा नहीं गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विष्णु पांड्या का कहना है। 

दरअसल गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विष्णु पांड्या ने साहित्य अकादमी प्रकाशन की पत्रिका के जून संस्करण के संपादकीय में गुजराती कविता की आलोचना करते हुये इसकी कवि पारुल खाखर को ‘अराजक’ बताया है। गौरतलब है कि कोरोना काल में भाजपा शासित उत्तर प्रदेश और बिहार की गंगा नदी में तैरती संदिग्ध लाशों को लेकर पारुल खाखर ने एक कविता ‘शववाहिनी गंगा’ लिखी थी। वो कविता सोशल मीडिया पर  वायरल हो गयी थी। गुजरात साहित्य अकादमी ने पारुल पर कविता लिखकर “अराजकता” फैलाने का आरोप लगाया है। जिन लोगों ने पारुल की कविता पर चर्चा की है विष्णु पांड्या ने उन लोगों को “साहित्यिक नक्सली” बताया है। 

गौरतलब है कि पारुल खाखर ने 11 मई, 2021 को अपने फेसबुक पेज पर ‘शव वाहिनी गंगा’ कविता पोस्ट की थी जो देखते ही देखते वायरल हो गयी और हिंदी समेत देश की तमाम भाषाओं में इसका अनुवाद भी हो गया। ध्यातव्य है कि मूल कविता गुजराती भाषा में हैं। पारुल खाखर की कविता ‘शव वाहिनी गंगा’ कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर में भारतीय जनों की पीड़ा को अभिव्यक्ति देते हुये केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करती है। साथ ही कविता रामराज्य लाने का दावा करने वाले गुजरात मॉडल को भी कठघरे में खड़ा करती है। ये रही वो कविता-

 ‘शव वाहिनी गंगा ‘

एक साथ सब मुर्दे बोले ‘सब कुछ चंगा-चंगा’

साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

ख़त्म हुए श्मशान तुम्हारे, ख़त्म काष्ठ की बोरी

थके हमारे कंधे सारे, आंखें रह गईं कोरी

दर-दर जाकर यमदूत खेले

मौत का नाच बेढंगा

साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

नित लगातार जलती चिताएं

राहत मांगे पलभर

नित लगातार टूटे चूड़ियां

कुटती छाती घर-घर

देख लपटों को फ़िडल बजाते वाह रे ‘बिल्ला-रंगा’

साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

साहेब तुम्हारे दिव्य वस्त्र, दैदीप्य तुम्हारी ज्योति

काश असलियत लोग समझते, हो तुम पत्थर, ना मोती

हो हिम्मत तो आके बोलो

‘मेरा साहेब नंगा’

साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

वहीं गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विष्णु पांड्या ने मीडिया से पत्रिका की विवादास्पद संपादकीय लिखने की पुष्टि की है।

अपने संपादकीय में गुजरात साहित्य अकादमी अध्यक्ष विष्णु पांड्या कविता को “आंदोलन की स्थिति में व्यक्त व्यर्थ क्रोध” के रूप में वर्णित करते हुए, संपादकीय में कहा गया है कि शब्दों का “उन ताकतों द्वारा दुरुपयोग किया गया था जो केंद्र विरोधी और केंद्र विरोधी राष्ट्रवादी विचारधाराएं हैं”। “उक्त कविता का इस्तेमाल ऐसे तत्वों द्वारा कंधे से कंधा मिलाकर किया गया है, जिन्होंने एक साजिश शुरू की है, जिनकी प्रतिबद्धता भारत के लिए नहीं बल्कि कुछ और है, जो वामपंथी, तथाकथित उदारवादी हैं, जिनकी ओर कोई ध्यान नहीं देता है … ऐसे लोग भारत में जल्दी से अराजकता फैलाना चाहते हैं और अराजकता पैदा करना चाहते हैं… वे सभी मोर्चों पर सक्रिय हैं और इसी तरह वे गंदे इरादों से साहित्य में कूद गए हैं। इन साहित्यिक नक्सलियों का उद्देश्य उन लोगों के एक वर्ग को प्रभावित करना है जो अपने दुख और खुशी को इससे (कविता) जोड़ेंगे। जबकि गुजराती में, संपादकीय “साहित्यिक नक्सल” शब्द का प्रयोग करता है।

कौन हैं विष्णु पांड्या 

विष्णु पांड्या दक्षिणपंथी पत्रकार और आरएसएस विचारक रहे हैं। साल 2017 में उन्हें गुजरात साहित्य अकादमी अध्यक्ष पद पर बिठाया गया। साल 2017 में केंद्र की मोदी सरकार ने उन्हें पद्म श्री पुरस्कार देकर उनका कद बढ़ाने की भी कोशिश की थी। 

विष्णु पांड्या ने पिछले साल गाँधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देश भक्त का ख़िताब दिया था। लोकसभा चुनाव के दौरान भगवा आतंकी प्रज्ञा ठाकुर के उक्त बयान के समर्थन में विष्णु पांड्या ने गांधी के हत्यारे नाथूराम को देशभक्त बताया था। 

‘अर्बन नक्सल’ के बाद अब ‘साहित्य नक्सली’ 

दक्षिणपंथ, नस्लीय फासीवाद  का विरोध करने वाले बुद्धिजीवियों को सबक सिखाने और उन्हें देशद्रोही बताकर सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिये पहले ‘अर्बन नक्सल’ शब्द बनाया गया और फिर भीमा कोरेगांव केस में गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वेरनोन गोन्जाल्विस, पी वरवर राव, अरुण फरेरा दर्जनों बुद्धिजीवियों को यूएपीए क़ानून के तहत जेल पहुंचा दिया गया। 

शर्मनाक ये कि मीडिया अर्बन नक्सल का ऐसा प्रोपेगैंडा तैयार किया कि साधरण जन से लेकर देश की ज्यूडिशियरी तक इसके प्रभाव में आ गयीं। 

अर्बन नक्सल से बाद अब दक्षिणपंथ विरोधी साहित्यकारों पर नकेल कसने के लिये साहित्यिक नक्सली शब्द उछाला जा रहा है। कार्पोरेट मीडिया ‘ साहित्यिक नक्सली’ शब्द पर भी कुछ दिन में ज्यूडिशियरी तक को प्रभावित करने वाला विमर्श खड़ा कर देगी।

इससे पहले ‘लव जेहाद’ का विमर्श और प्रभाव देश औक समाज देख भोग ही चुका है। ऐसे ही आज साहित्यिक नक्सली शब्द उछला है इसके पीछे कोई असली साजिश कुछ दिन बाद दिखेगी ।

बता दें कि मोदी सरकार के थिंकटैंक और प्रोपगैंडा फिल्मों के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने ‘अर्बन नक्सल’ शीर्षक से एक किताब लिखा था।  27 मई 2018 को इस किताब का विमोचन केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने किया था। इस दौरान स्मृति ईरानी ने कहा था कि एक रिसर्च में पाया गया है कि दुनिया में मौजूद कम से कम 21 ऐसे संगठन हैं जो भारत में शिक्षाविदों की शक्ल में लोगों को भेजते हैं जो माओवाद का अध्ययन कर अपने देश लौट जाते हैं। वे माओवाद का समर्थन करने के साथ-साथ उनकी फंडिंग का भी ध्यान रखते हैं हालांकि ईरानी ने ये नहीं बताया कि ये 21 संगठन कहां से जुड़े हैं और वे किस रिसर्च के आधार पर ये बात कह रही हैं। 

‘अर्बन नक्सल’ पर अपनी किताब की लॉन्चिंग से पहले 2017 मई को एक आर्टिकल में ‘अर्बन नक्सल’ शब्द के अर्थ और इसकी अवधारणा के बारे में बताते हुये विवेक ने लिखा था कि ये देश के एक तरह से ‘अदृश्य दुश्मन’ हैं। इनमें से कई को पकड़ा जा चुका है, जबकि कुछ लोग विद्रोह फैलाने के आरोप में पुलिस के राडार पर हैं। इन सभी में एक बात कॉमन है, जो बेहद ख़तरनाक है। इनमें देखा गया है कि ये सभी शहरी बुद्धिजीवी हैं या फिर कार्यकर्ता हैं। इन शहरी नक्सलियों की उपलब्धियों से एक अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये सभी सामाजिक मुद्दों के प्रति चिंतित होने का नाटक करते हैं। साथ ही युवाओं को प्रभावित करते हैं। 

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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