Friday, March 29, 2024

किस करवट बैठेगा बसपा का हाथी?

बहुजन समाज पार्टी चुनाव के इवेंट मैनेजमेंट और मीडिया मैनेजमेंट से दूर रहकर शांति से चुनाव लड़ती है। मीडिया और मीडिया में पिटता पार्टियों का ढोल देख जनमत बनाने वाले बसपा को चुनावी लड़ाई से बाहर बता रहे हैं और यूपी की लड़ाई को द्विपक्षीय (सपा बनाम बसपा) बताकर चुनाव को सांप्रदायिक रंग देकर एक तरह से भाजपा की ओर झुकाने में लगे हुये हैं।

भाजपा की भी सारी कोशिश यही है कि वो बसपा को चुनावी लड़ाई से बाहर साबित करके मतदाता को कन्फ्यूज करे। यही कारण है कि तमाम चुनावी मंचों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत तमाम भाजपाई दिग्गज सिर्फ़ सपा और अखिलेश पर निशाना साधते हुए नज़र आये हैं।

लेकिन पहले चरण में थोक में ब्राह्मण व मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर तथा अंबेडकरवाद को नई परिभाषा देकर बसपा अध्यक्ष ने सपा और भाजपा दोनों के कान खड़े कर दिये हैं।

बसपा द्वारा 53 उम्मीदवारों की पहली सूची में 17% ब्राह्मण, 26% मुस्लिम उम्मीदवार और 34% दलित को टिकट देकर आगामी विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण-दलित-मुस्लिम गठजोड़ को साधने की कोशिश की है।

15 जनवरी को अपने जन्मदिन पर बसपा अध्यक्ष मायावती ने आंबेडकवाद को परिभाषित करते हुये बताया कि “हम जब आंबेडकरवाद की बात करते हैं तो हमें यह समझना चाहिए कि वह किसी जाति के ख़िलाफ़ नहीं थे बल्कि जाति व्यवस्था के ख़िलाफ़ थे। वह इस बुराई को मिटाकर समतामूलक समाज के निर्माण की बात करते थे। इसलिए उच्च जातियों के जो लोग इसके ख़िलाफ़ हैं, उन्हें साथ लेकर चलना होगा। जब समाज में सद्भाव होगा, तभी तो समतामूलक समाज बन पाएगा।”

उच्च बिरादरियों से सद्भाव का संदेश दे बसपा अध्यक्ष ने सीधे तौर पर सवर्ण समुदाय को साधने का संकेत दिया। यही नहीं इस दौरान उन्होंने अपनी पहली लिस्ट भी जारी की। इसमें मुस्लिमों और ब्राह्मणों को सबसे ज्यादा टिकट दिए गए हैं। जिसमें ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम गठजोड़ पर वह बसपा को आगे ले जाते हुए नज़र आती हैं।

2017 विधानसभा चुनाव के वोट प्रतिशत को देखें तो भाजपा क़रीब 41 फीसदी वोट हासिल करके सत्ता में आई थी और समाजवादी पार्टी को 21.8 फीसदी वोट मिले थे। उसे 47 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन महज 19 सीटें ही जीतने वाली बसपा के खाते में 22.2 फीसदी वोट थे।

बसपा को 22.2 प्रतिशत मत तब मिले थे जबकि गैरजाटव दलित और ब्राह्मण मतदाता भाजपा के साथ चले गये थे।

भाजपा की आक्रामक राजनीति की आदी हो चुके राजनीतिक विश्लेषक और कार्पोरेट मीडिया बसपा अध्यक्ष मायावती के चुपचाप काम करने को चुप्पी, साइलेंट मोड का नाम देकर बसपा के कोर वोटरों के भाजपा के साथ जाने की बात कर रहे हैं। लेकिन जो बहुजन समाज पार्टी को जानते हैं वो जानते हैं उनका काम करने का तरीका यही है। वो मीडिया में जाना पसंद नहीं करतीं। अपने जन्मदिन पर भी उन्होंने मीडिया का उल्लेख करते हुए कहा कि – ‘’जनता विपक्ष के हथकंडों से सावधान रहे। जातिवादी और बीएसपी विरोधी मीडिया से बचे”।

बसपा कार्यकर्ताओं के लिये अपने सन्देश में उन्होंने कहा था कि पांच राज्यों में जो कार्यकर्ता घर में मेरा जन्मदिन मना रहे हैं, वे घर में ही रहकर पार्टी के पक्ष में प्रचार करें। इस चुनाव में मेरे विपक्ष की मीडिया को जब कोई मुद्दा नहीं मिल रहा है तो मेरे चुनाव ना लड़ने का मुद्दा ही उठाते हैं। मैं कई चुनाव लड़ी हूँ। उन्होंने कहा कि खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचने वाली मीडिया को मैं जवाब नहीं देना चाहती हूं। आकाश आनन्द के बारे में भी मीडिया बातें कर रहा है, जो मेरे लिए चुनावी राज्यों में प्रचार कर रहा है। मेरा खुद का निजी परिवार नहीं है, मेरे लिए दलित, गरीब शोषित ही मेरा परिवार है। इशारे में उन्होंने कहा कि मेरे महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र के पुत्र कपिल भी अपने नौजवान साथियों के साथ पूरे जोश के साथ लगे हुए हैं। लगातार प्रचार कर रहे हैं।

बसपा की ओर से जिन 53 उम्मीदवारों की सूची घोषित की गई है उनमें 14 मुस्लिम प्रत्याशी हैं, यानी 26 फीसदी। जिन सीटों पर बसपा ने मुस्लिम कैंडिडेट्स को उतारा गया है, उनमें अलीगढ़, कोल, शिकारपुर, गढ़मुक्तेश्वर, धौलाना, बुढ़ाना, चरथावल, खतौली, मीरापुर, सीवाल खास, मेरठ दक्षिण, छपरौली, लोनी और मुरादनगर खास हैं।

बसपा के मुकाबले सपा-रालोद गठबंधन ने 29 सीटों में से 9 सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारा है, यानी 31 फीसदी। इन 29 सीटों में से राष्ट्रीय लोकदल के कोटे में 19, जबकि समाजवादी पार्टी को 10 सीटें मिली हैं। आरएलडी ने 19 में से 3 जबकि समाजवादी पार्टी ने 10 में से 6 कैंडिडेट मुस्लिम उतारा है।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles