Saturday, April 20, 2024

‘श्री सम्मेद शिखरजी’ और ‘मराङ बुरू’ के नाम से मशहूर पारसनाथ पर्वत को लेकर क्या है विवाद?

झारखंड के गिरिडीह जिला अंतर्गत मधुबन स्थित पारसनाथ पर्वत है जिसे आदिवासी समुदाय खासकर संथाल समाज मराङ बुरू कहता है और जिसकी वर्ष में एक बार पूजा करता है। संथाली में मराङ बुरू का अर्थ बड़ा पहाड़ होता है। वहीं इस पहाड़ पर जैन धर्मावलम्बियों के 24 तीर्थंकरों में 20 तीर्थंकरों के (सर्वोच्च जैन गुरुओं) के मंदिर स्थापित हैं जो विश्वस्तरीय तीर्थस्थल के रूप में चर्चित है। जो ‘श्री सम्मेद शिखरजी’ के रूप में प्रचारित है।

आजकल यह क्षेत्र चर्चा में इसलिए है क्योंकि केंद्रीय वन मंत्रालय द्वारा गजट नोटिफिकेशन क्रमांक 2795, दिनांक 2 अगस्त, 2019 को पारसनाथ पहाड़ को वन्य जीव अभयारण्य का एक भाग घोषित कर पारसनाथ वाइल्ड लाइफ सेंच्युरी एवं उसकी तलहटी को ईको सेंसिटिव जोन घोषित कर दिया गया। वहीं हाल के दिनों में झारखंड सरकार ने इसे पर्यटन स्थल बनाने घोषणा कर दी। जिसे लेकर जैन समाज के लोग आंदोलित हैं। उनका मानना है कि यह क्षेत्र उनका धर्म स्थल है जो पर्यटन स्थल बनने के बाद सार्वजनिक क्षेत्र बन जाएगा जिससे उनके तीर्थंकरों का अपमान होगा।

इसे लेकर 1 जनवरी 2022 को दिल्ली के इंडिया गेट के समक्ष जैन समुदाय के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। जैन समाज ने झारखंड सरकार और केंद्र सरकार से अपना प्रस्ताव वापस लेने की मांग की। जैन समाज के लोगों का मानना है कि ऐसा होने से तीर्थस्थल की मौलिकता समाप्त हो जाएगी। जैन समाज के आन्दोलन के बाद 5 जनवरी को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पारसनाथ पहाड़ (सम्मेद शिखर जी) को पर्यटन स्थल घोषित नहीं करने की उनकी मांगों को मान लिया। केंद्र सरकार ने सम्मेद शिखर जी को पर्यटन स्थल बनाने के फैसले पर तत्काल रोक लगा दी है। साथ ही तीन सदस्यीय कमेटी का भी गठन करने का ऐलान किया है, जिसमें जैन समाज के दो लोगों को शामिल किया जायेगा और कमेटी में एक व्यक्ति स्थानीय होगा।

बता दें कि पारसनाथ पहाड़ को पर्यटन स्थल और ईको टूरिज्म क्षेत्र बनाये जाने का जैन समाज के लोगों ने विरोध किया। लगातार कई दिनों से उनका विरोध प्रदर्शन जारी रहा। झारखंड की राजधानी रांची से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक पारसनाथ पहाड़ को इको टूरिज्म क्षेत्र घोषित किये जाने का विरोध हुआ। यहां तक कि सात समंदर पार टोरंटो में भी जैन समाज के लोगों ने इसके विरोध में प्रदर्शन किया।

5 दिसंबर 2023 को जैन समाज के लोगों ने गिरिडीह में ‘विशाल मौन रैली’ निकाली। जैन समुदाय के विरोध-प्रदर्शन के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखी और सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल घोषित करने के फैसले पर उचित निर्णय लेने का आग्रह किया। केंद्र सरकार ने भी विरोध-प्रदर्शन को देखते हुए बड़ा फैसला लिया। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (वन्य जीव प्रभाग) ने चिट्ठी जारी कर कहा कि सभी पर्यटन स्थलों एवं इको टूरिज्म पर फिलहाल रोक लगायी जाती है।

केंद्र सरकार ने इको सेंसिटिव अधिसूचना खंड 3 के प्रावधानों पर रोक लगाने की बात कही। केंद्र ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि पारसनाथ वन्यजीव अभयारण्य की प्रबंधन योजना, जो पूरे पारसनाथ पर्वत क्षेत्र की रक्षा करता है, के खंड 7.6.1 के प्रावधानों को सख्ती से लागू करने के लिए तत्काल सभी कदम उठाये।

वहीं यह बताना जरूरी हो जाता है कि पारसनाथ पहाड़ के आसपास आदिवासियों के साथ-साथ कुछ दलित व पिछड़ी जातियां बसती हैं और इनकी रोजी रोटी का केंद्र पारसनाथ पहाड़ पर अवस्थित जैन धर्म स्थल हैं। क्योंकि जब जैन धर्मावलम्बी लोग यहां आते हैं तो यही लोग डोली मजदूर के रूप में उन्हें डोली में बिठाकर 9 किमी की ऊंचाई पर ले जाते हैं और 9 किमी की परिक्रमा भी कराते हैं। ऊपर से नीचे उतारने की दूरी भी 9 किमी हो जाती है, यानी पूरे 27 किमी का सफर तय करवाते हैं। इस काम में लगभग 15 हजार लोगों की जीविका जुड़ी है।

वहीं दूसरी तरफ पर्वत की सतह पर जैन धर्मावलम्बियों ने कई कोठी बना रखी है, जिससे उन्हें दान की एक बड़ी रकम हासिल हो जाती है। वहीं उनके लोगों ने कई धर्मशाला खोल रहा है जिसमें जैन धर्मावलम्बी तीर्थ यात्रियों की ठहरने की सुविधा है, जिससे भी अच्छी कमाई हो जाती है। जाहिर सरकार द्वारा पर्यटन स्थल बना देने के बाद इन सारी चीजों पर सरकार का कब्जा हो जाएगा, जिससे इनकी कमाई का स्रोत बंद हो जाएगा।

दूसरी तरफ इस पर्वत को संथाल समुदाय मराङ बुरू मानता है और इसकी पूजा करता है। जैन समाज के इस विरोध के बाद राज्य का आदिवासी समाज भी आंदोलित हो गया है क्योंकि उनका मानना है यह पर्वत जिसे वे मराङ बुरू मानते हैं और मराङ बुरू की पारंपरिक व सांस्कृतिक रूप से पूजा करते है। यह पर्वत माला आदिकाल से संथाल समाज की आस्था से जुड़ा बताया है। आदिवासी समाज पूजा के क्रम में अपनी संस्कृति व परंपरा के अनुसार चावल का रस जिसे माड़ी कहा जाता है और मुर्गा या बकरे की बलि के बाद मराङ बुरू को समर्पित करता है।

वहीं गिरिडीह के सांसद, चन्द्र प्रकाश चौधरी ने केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव को पत्र भेजकर कहा है कि मेरे लोकसभा क्षेत्र अन्तर्गत गिरिडीह जिला में जैन समुदाय के पवित्र स्थल सम्मेद शिखरजी पारसनाथ पहाड़ स्थित है। यह जैन धर्म का एक पवित्र स्थल है एवं आस्था का एक महत्वपूर्ण स्थल है। केंद्रीय वन मंत्रालय द्वारा गजट नोटिफिकेशन क्रमांक 2795, दिनांक 2 अगस्त, 2019 को झारखंड में गिरीडीह जिले के मधुबन में पारसनाथ पहाड़ को वन्य जीव अभयारण्य का एक भाग घोषित कर पारसनाथ वाइल्डलाइफ सेंच्युरी एवं उसकी तलहटी को ईको सेंसिटिव जोन घोषित कर दिया गया। इस निर्देश में जैन समुदाय से कोई विचार विमर्श नहीं लिया गया एवं इस ग़ज़ट नोटिफिकेशन को राष्ट्रीय अखबार या स्थानीय अखबार में भी प्रकाशित नहीं किया गया। जिससे जैन समाज इस नोटिफिकेशन से अनभिज्ञ रहा।

ज्ञात हो कि श्री सम्मेद शिखरजी “पारसनाथ पहाड़” जैन धर्म के वर्तमान 20 तीर्थकर भगवानों की मोक्षस्थली है। इस पहाड़ पर हजारों वर्षों से जैन समाज के सभी अनुयायी पूर्व पवित्रता पालते हुए नंगे पाँव, शुद्ध वस्त्र पहनकर वर्ष में अनेक बार 27 किलोमीटर पैदल चलकर पूर्ण पारसनाथ पहाड़ की वंदना करते है एवं हज़ारों यात्री पूरे पहाड़ कि तलहटी में 58 किलोमीटर परिक्रमा भी करते है। इस लिये हमे जैन समाज की धार्मिक आस्था, पवित्रता एवं गरिमा का ध्यान रखते हुए इस सर्वोच्च तीर्थ स्थल एवं आस्था के प्रतीक पर निम्नलिखित बिंदुओं पर कदम उठाने की आवश्यकता है।

(1) पारसनाथ पर्वतराज एवं मधुबन क्षेत्र को अन्य धार्मिक नगरों यथा काशी विश्वनाथ, अयोध्या, मथुरा, वैष्णो देवी आदि की तरह 5 किलोमीटर के घेरे को शराब, मांस और नशा मुक्त क्षेत्र घोषित किया जाए।

(2) संपूर्ण तीर्थराज पर्वत को ही पवित्र एवं जैन आस्था का क्षेत्र घोषित किया जाए। अधिसूचना व अभयारण्य की प्रबंध योजना में केवल एक भाग को ही जैन धर्म की आस्था का प्रतीक माना गया है।

(3) प्रबंध योजना में वर्णित ईको टूरिज्म जोन के स्थान पर पवित्रतम शिखरजी को धार्मिक आध्यात्मिक केंद्र के रूप में पुनर्स्थापित किया जाए।

(4) जैन धार्मिक परंपरा और रीति रिवाज के अनुसार ही पर्वतराज पर दर्शन, पूजन एवं भ्रमण कि व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जाए।

(5) सभी तरह की प्रबंधन समितियों में जैन समाज का भी प्रतिनिधित्व हो, व अभयारण्य के विकास व संचालन में भी जैन समुदाय का प्रतिनिधित्व हो।

इसके साथ ही पारसनाथ अभयारण्य क्षेत्र प्रबंधन महायोजना में लिपिबद्ध कुछ प्रावधानों में संशोधन की आवश्यकता है

(1) प्रबंधन योजना के चैप्टर 5(पेज 33) में प्रबंधन के उद्देश्यों में अभयारण्य में ईको पर्यटन के रूप में विकसित करने का लेख किया गया है। ईको पर्यटन के स्थान पर इसे पवित्र धार्मिक तीर्थ स्थल और जैव विविधता का केंद्र बनाया जाए, जिससे ईको धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिल सके।

(2) बिंदु क्रमांक 7.4 (पेज 52 ) में उल्लेखित अधोसंरचना विकास में कैंपिंग सुविधाओं की कमी का उल्लेख किया गया है। पर्वत पर कैंपिंग की सुविधाएँ, दुकान एवं वाणिज्य प्रयोजन की संस्थाओं का निर्माण नहीं किया जाए।

(3) बिंदु क्रमांक 7.5.2 (पेज 53 ) में वर्णित प्रवेश मर्गों पर यात्रियों से किसी प्रकार का प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाए।

(4) पर्वतराज में धार्मिक आस्था के अनुसार परिक्रमा पथ का निर्माण किया जाए।

(5) बिंदु क्रमांक 7.6.1 (पेज 54 ) में यात्रियों को केवल दिन में ही भ्रमण के निर्देशों से मुक्त किया जाए। क्योंकि परंपरा के अनुसार मध्यरात्रि के बाद जैन तीर्थ यात्री पर्वत में प्रवेश कर अगले दिन तीर्थ यात्रा सायं 4 बजे तक पूर्ण करते है। इसी प्रकार बिंदु क्रमांक (c) में वर्णित टूरिज्म जोन के बाहर अनुमति नहीं होने पर पर्वत परिक्रमा संभव नहीं हो पाएगी। पर्वत परिक्रमा की अनुमति आवश्यक है।

अतः उपर्युक्त संदर्भ में देश विदेश के जैन समाज की भावनाओं, संवेदनाओं पर गंभीरता पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। श्रीमान से आग्रह है कि उपर्युक्त विषयों पर जल्द कार्रवाई करने की कृपा की जाए। सांसद के पत्र में पहली मांग कि “पारसनाथ पर्वतराज एवं मधुबन क्षेत्र को अन्य धार्मिक नगरों यथा काशी विश्वनाथ, अयोध्या, मथुरा, वैष्णो देवी आदि की तरह 5 किलोमीटर के घेरे को शराब, मांस और नशा मुक्त क्षेत्र घोषित किया जाए।”

वहीं दूसरी तरफ यह मांग पूरी तरह आदिवासियों की आस्था, संस्कृति व परंपरा के खिलाफ है, क्योंकि उनकी आस्था, संस्कृति व परंपरा के अनुसार पूजा के क्रम में चावल का रस जिसे माड़ी कहा जाता है और मुर्गा या बकरे की बलि के बाद उनके मांस को मराङ बुरू को चढ़ाया जाता है। अतः सांसद के इस पत्र की आदिवासी समाज ही नहीं यहां के मूलवासी में भी सोशल मिडिया पर आलोचना शुरू हो गई है।

इस मामले में अहम तथ्य यह है कि सांसद, केंद्र सरकार व राज्य सरकार किसी ने भी संथाल समाज की भावना या आस्था का कहीं कोई जिक्र नहीं किया। जबकि राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद संथाल समाज से आते हैं।

पूर्व सांसद सालखन मुर्मू मामले पर कहते हैं कि पारसनाथ पहाड़ संताल आदिवासियों का सर्वाधिक बड़ा पूजा स्थल व तीर्थ स्थल है और इसको मरांग बुरु या ईश्वर का दर्जा प्राप्त है। इसको जैन धर्मावलंबियों ने अनाधिकृत रूप से हथिया लिया है, कब्जा कर लिया है।

वे आगे कहते हैं कि पारसनाथ पहाड़ अर्थात “मरांग बुरु” बचाओ आंदोलन की शुरुआत 17 जनवरी 2023 को 5 प्रदेशों के 50 ज़िलों में धरना प्रदर्शन से की जाएगी तथा जल्द ही भारत बंद की भी घोषणा होगी।

उल्लेखनीय है कि बीते 26 दिसम्बर 2022 को जब कुछ आदिवासी छात्र व उनके साथ गये विद्यालय कर्मी पारसनाथ पर्वत पर घुमने गये थे तो उनके साथ जैन यात्रियों द्वारा अभद्र व्याहार किया गया और उन्हें अपमानित किया गया, जिसको लेकर मधुबन शाखा के मजदूर संगठन समिति (MSS) ने एक बैठक करके विरोध दर्ज किया। बैठक में कहा गया कि पारसनाथ (मरांङ बुरु) में वर्षों से जैन व अजैन सौहार्द के साथ जीवन यापन करता आ रहा हैं। लेकिन हाल के दिनों में कुछ तत्व संस्था से मिलकर जैन अजैन करने पर लगा हुआ है।

मजदूर संगठन समिति शाखा मधुबन सभी समुदाय के लोगों से अपील करती है कि मधुबन शिखरजी में अशांति फैलाने का कार्य न करें। बैठक में बताया गया कि (मराङ बुरु) पारसनाथ हजारीबाग मनभूम बांकुरा और संथाल परगना के संथाल आदिवासी समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है। मरांग बुरु पारसनाथ पर्वत पर आदिवासी समुदाय की हकदरी के लिए विवरण अंग्रेज सरकार द्वारा बनाये गये है जो 1911 के संथाल मैनुअल रिकॉर्ड आफ राइटस में दर्ज हैं। अंग्रेज की सरकार ने बार बार मरांग बुरु पारसनाथ पर आदिवासी समाज की हकदरी की मान्यता दी है।

बता दें कि ज्यूडिशियल कमिश्नर न्यायिक आयुक्त से लेकर हाई कोर्ट उच्च न्यायालय और यहाँ तक की अंग्रेज सरकार और ब्रिटेन की महारानी को सलाह देने वाली विशिष्ट प्रिवी कौंसिल भी मरांग बरु पारसनाथ संथाल आदिवासी समुदायों की हकदारी को सुनिश्चित करती है। तो फिर ऐसा क्या हुआ की अंग्रेजों से आजादी मिलने के 75 साल बीत जाने के बाद भी जैन- अजैन के बीच पारसनाथ पहाड़ में आये दिन विवाद बढ़ता जा रहा है?

बता दें कि 3 जनवरी 2022 को गिरिडीह जैन समाज के मंत्री लोकेश जैन, महिला समिति की मंत्री मंजू जैन, उपमंत्री धीरज जैन और अजय जैन ने संयुक्त रूप से पत्रकारों से कहा था कि प्रस्ताव के विरोध में देशभर में समाज के लोग उद्वेलित हैं।

जैन समाज के पदाधिकारियों ने कहा था कि हमारी एक सूत्री मांग सिर्फ यही है कि तीर्थ क्षेत्र को तीर्थ क्षेत्र रहने दिया जाय। सम्मेद शिखर जैन समाज की आत्मा है, जिसपर हमले करना कदापि उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि हम सरकार से विनती करते हैं कि तीर्थ क्षेत्र की पवित्रता को बनाये रखने के लिए तत्काल जैन समाज के प्रस्ताव वापस ले लिया जाये।

अब जब केंद्र सरकार व राज्य सरकार ने चिट्ठी जारी कर जैन समाज की धार्मिक भावनाओं को देखते हुए पारसनाथ को पर्यटन स्थल एवं इको टूरिज्म पर फिलहाल रोक लगायी है। तो सवाल यह उठता है कि यह पर्वतमाला जो आदिकाल से संथाल आदिवासियों की ईश्वरीय आस्था मराङ बुरू पर सरकार का क्या रवैया है, स्पष्ट नहीं है। कहीं यह पर्वतमाला को आदिवासियों से मुक्त कराने और इस पर कारपोरेट का कब्जा स्थापित कराने का यह कोई षडयंत्र तो नहीं है? क्योंकि इस पारसनाथ पर्वत के गर्भ में कितनी खनिज सम्पदा है इसका अभी तक किसी को कोई अनुमान नहीं है। अगर ऐसा है तो जाहिर कुछ ही दिनों में सब कुछ सामने आ जाएगा।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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