Friday, April 19, 2024

बंगाल या बिहार? क्या यूपी में AIMIM का अंजाम

        

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने बाराबंकी में सीएए-एनआरसी की वापसी का मुद्दा उठाकर और उत्तर प्रदेश की सड़कों को शाहीन बाग़ बनाने की चेतावनी देकर चुनाव से पहले भाजपा को एक सांप्रदायिक लाइन दे दिया है।

ये निष्कर्ष ओवैसी के एक दूसरे बयान जो उन्होंने दो सप्ताह पूर्व मुरादाबाद में दिया था को इस संदर्भ में रखकर देखना होगा। 12 नवंबर को मुरादाबाद में एक चुनावी रैली को संबोधित ,करते हुये ओवैसी ने कहा कि- “भारत विभाजन के लिए कांग्रेस और जिन्‍ना जिम्‍मेदार थे, मुस्लिम नहीं।”

ओवैसी ने अपने बयान में जिन्ना के अलावा कांग्रेस को भारत विभाजन के लिये जिम्मेदार बताया न कि अखिल भारतीय हिंदू महासभा और आरएसएस को। ये आरएसएस-भाजपा की लाइन है, जो ओवैसी के ज़ुबान से निकल रही है।

दरअसल असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM मुस्लिमों को अपना कोर मतदाता मानती है। ओवैसी की राजनीति भी बहुत हद तक आरएसएस भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति पर टिकी हुई है। असदुद्दीन की कोशिश यही रहती है कि मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण हो और मुस्लिम मतदाता उनके साथ आयें।

AIMIM का मिशन उत्तर प्रदेश वाया बिहार बंगाल

असदुद्दीन ओवैसी ने घोषणा किया है कि वो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे। बता दें कि उत्तर प्रदेश में 403 विधानसभा सीटें हैं। जिसमें 100 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक की भूमिका में हैं।

बता दें कि उत्तर प्रदेश में करीब 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं और सूबे की कुल 143 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का प्रभाव है। जिनमें क़रीब 107 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता चुनावी नतीजों को प्रभावित करते हैं। सूबे की इन्हीं सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी की खास नज़र है, जहां से चुनावी मैदान में कैंडिडेट उतारने की तैयारी है इनमें से 70 सीटों पर मुस्लिम आबादी 20-30 प्रतिशत के बीच है जबकि 73 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता 30% से ज्यादा हैं।

असद्द्दीन ओवैसी उत्तर प्रदेश की 75 जिले में से 55 जिलों की सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी है, जिनमें से ज्यादातर सीट पश्चिम यूपी की है। AIMIM पश्चिम यूपी के बरेली, पीलीभीत, रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, अमरोहा, मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, संभल, बुलंदशहर, फिरोजाबाद, आगरा और अलीगढ़ जिले की अपने 60 कैंडिडेट उतारेगी और पूर्वांचल के गोरखपुर, श्रावस्ती, जौनपुर, बस्ती, गाजीपुर, आजमगढ़, वाराणसी, बहराइच, बलरामपुर, संतकबीरनगर, गोंडा, प्रयागराज और प्रतापगढ़ जिले की 30 सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी। जबकि सेंट्रल यूपी कानपुर, लखनऊ, सीतापुर और सुल्तानपुर जिले की 10 से 15 सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी। 

असदुद्दीन की सियासी सफ़र और मुस्लिम मतदाता

असदुद्दीन ओवैसी ने यूपी में जिन विधानसभा चुनाव पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है, उन पर मुस्लिम वोटरों की संख्या 35 से 45 फीसदी तक है अगर असद्दीन ओवैसी के पिछले एक साल के चुनावी सफ़र और कोर मतदाताओं पर नज़र डालें तो काफ़ी कुछ तस्वीर साफ हो जाती है।

AIMIM ने साल 2017 के विधानसभा चुनाव में 38 सीटों पर उम्मीदवार उतारा था। विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में। लेकिन उनमें से 37 सीटों पर उनकी जमानत ज़ब्त हो गई थी। यानि एक तरह से मुस्लिम मतदाताओं ने AIMIM को नकार दिया था। लेकिन इन पांच सालों में बहुत पानी बह चुका है। पिछले साल बिहार में हुये विधानसभा चुनाव में ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट का हिस्सा बनकर 20 सीटों पर चुनाव लड़ा और 5 सीटों पर जीत दर्ज़ की। बिहार में 1.24 प्रतिशत वोट मिला

बिहार चुनाव में गठबंधन करके लड़ने और चुनावी सफलता हासिल करने के बाद AIMIM ने पश्चिम बंगाल में अकेले दम चुनाव मैदान में उतरने की ठानी। पश्चिम बंगाल में गठबंधन के सवाल पर ओवैसी ने दो टूक कहा था कि हम भाजपा के ख़िलाफ़ नहीं एक पार्टी के तौर पर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।

बंगाल चुनाव में एआईएमआईएम ने मुस्लिम बाहुल्य 7 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और सभी सीटों पर उन्हें मुंह की खानी पड़ी। यह तब हुआ जबकि जालंगी सीट पर 73 % मुस्लिम मतदाता, सागरदिघी सीट पर 65 % मुस्लिम), भरतपुर सीट पर 58 फीसदी मुस्लिम, इतहार सीट 52 % मुस्लिम मतदाता),  रतुआ सीट पर 41 % मुस्लिम मतदाता, मालतीपुर सीट पर 37 % मुस्लिम मतदाता, आसनसोल उत्तर सीट पर 20 % मुस्लिम मतदाता थे। मुस्लिम बाहुल्य सीट होने के बावजूद पश्चिम बंगाल में ओवैसी की पार्टी की हार का मतलब है कि बंगाल के मुस्लिमों ने उन्हें ख़ारिज कर दिया।

बिहार और बंगाल चुनाव की सफलता असफलता से सबक सीखकर असदुद्दीन ओवैसी ने ओम प्रकाश राजभर के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश में 10 छोटे दलों को साथ लेकर ‘भागीदारी संकल्प मोर्चा’ बनाया। लेकिन ओम प्रकाश राजभर सपा के साथ चले गये और मोर्चा बिखर गया।  

जिन्ना का विवाद

ओवैसी का जिन्ना पर हालिया बयान सपा के अखिलेश यादव, ओम प्रकाश राजभर, योगी आदित्य नाथ, स्वतंत्र देव सिंह, मोहसिन ख़ान के बयानों की कड़ी में किया था। 31 अक्टूबर को उत्तरप्रदेश के हरदोई में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा था कि सरदार पटेल, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और जिन्ना एक ही संस्था में पढ़ कर बैरिस्टर बनकर आए थे। उन्होंने एक ही जगह पर पढ़ाई लिखाई की। वो बैरिस्टर बने और उन्होंने आजादी दिलाई। अगर उन्हें किसी भी तरह का संघर्ष करना पड़ा होगा तो वो पीछे नहीं हटे।

अखिलेश यादव के जिन्ना वाले बयान के बाद उनके गठबंधन सहयोगी सुभासपा के नेता ओम प्रकाश राजभर ने भी जिन्ना को लेकर बयान दिया था। ओम प्रकाश राजभर ने कहा था कि अगर जिन्ना को भारत का पहला प्रधानमंत्री बनाया गया होता तो देश का विभाजन नहीं होता।  यानि एक तरह से राजभर ने भी विभाजन की जिम्मेदारी कांग्रेस और नेहरू के मत्थे मढ़ दी।

अखिलेश यादव के बयान पर नाराज़गी जताते हुये ओवैसी ओवैसी ने कहा था कि भारतीय मुस्लिमों का मोहम्मद अली जिन्ना से कोई सरोकार नहीं है। हमारे पूर्वजों ने पहले ही जिन्ना की टू नेशन थ्योरी को नकार दिया और भारत को अपने देश के रूप में स्वीकार किया। अखिलेश यादव को ग़लतफ़हमी है कि उनके इस तरह के बयान से लोगों का एक तबका खुश होगा। 

एनआरसी सीएए का जिक़्र

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव की जंग में उतरने की तैयारी कर रहे एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने बाराबंकी में रैली को संबोधित करते हुए कहा कि अगर सरकार NRC का कानून लाती है तो हम दोबारा सड़क पर उतरेंगे। साथ ही कहा कि बारबंकी में ही हम ‘शाहीनबाग’ बना देंगे। हमारी मांग है कि हुकूमत ने जिस तरह से तीनों कृषि क़ानून को वापस लिया है उसी तरह CAA, NRC का क़ानून भी वापस ले।

इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी ने ‘मुस्लिम वोटों’ को लेकर भाजपा, सपा और कांग्रेस पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि सबको मुस्लिमों के वोटों से मतलब है, उनकी मुद्दों से नहीं। मुसलमानों का वोट सबको चाहिए लेकिन मुसलमानों के मुद्दों पर कोई आवाज़ नहीं उठाना चाहता, जब हमने आवाज़ उठाई तो योगी आदित्यनाथ बाबा ने हमारे ख़िलाफ़ केस दर्ज कर दिया।

यूपी का मुस्लिम मतदाता ओवैसी को RSS-BJP का आदमी मानता है

इस बात में कोई शक़ नहीं कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM मुस्लिम मतदाताओं को अपना कोर वोटर मानकर चल रही है इसीलिये वो सिर्फ़ मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर ही प्रत्याशी उतारने जा रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश का मुस्लिम मतदाता भी कमोवेश पश्चिम बंगाल के मतदाताओं की तरह ही सोचता है।

पश्चिम बंगाल चुनाव में मुस्लिम मतदाता ओवैसी को भाजपा का आदमी बता रहे थे। और टीएमसी के साथ जाने की बात कह रहे थे। और वो टीएमसी के साथ गये भी। उत्तर प्रदेश का मुस्लिम मतदाता भी ओवैसी का आरएसएस भाजपा का एजेंट बता रहा है। और उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाताओं के पास भी पश्चिम बंगाल की टीएमसी की तर्ज़ पर सपा, बसपा, कांग्रेस आदि पार्टियां हैं। क्योंकि ओवैसी अपने चुनावी बयानों से लगातार मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं। और मुस्लिम मतदाता जानता है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का मतलब है भाजपा को वापिस सत्ता सौंपना।

वहीं कल सोमवार को लखनऊ में आयोजित किसान महापंचायत से पहले सीएए को लेकर पूछे गए एक सवाल पर भाकियू नेता राकेश टिकैत ने कहा कि एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी और भाजपा का रिश्ता चाचा-भतीजा जैसा है। वे कहेंगे तो भाजपा सीएए भी वापस ले लेगी।ओवैसी और भाजपा का रिश्ता चाचा-भतीजे जैसा है। ओवैसी को सीएए और एनआरसी कानून रद्द करने के लिए टीवी पर बात नहीं करनी चाहिए बल्कि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा से सीधे बात करनी चाहिए।

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