चंपा व रजनी कब होंगी जंजीरों से आजाद, जानें पर्यटकों के लिए क्यों हैं दोनों खास ?

झारखंड का सरायकेला-खरसावां जिले के चांडिल प्रखंड के दलमा इको सेंसेटिव जोन के मुख्य द्वार पर चंपा व रजनी नाम की एक हथिनी व एक हाथी बच्चा जिनकी उम्र क्रमशः 48 व 13 वर्ष है, रहते हैं। दलमा वन प्राणी पश्चिमी प्रक्षेत्र, चाण्डिल के रेंजर दिनेश चन्द्रा की मानें तो रजनी चाण्डिल के कुआं में गिरने के बाद घायल अवस्था में उसे 2009 में टाटा जू लाया गया था। इलाज के बाद उसे दलमा लाया गया था। जिसकी उम्र आज 13 वर्ष हो गई है। वहीं चंपा हथनी को धनबाद से जब्त कर दलमा लाया गया है जिसकी उम्र आज 48 वर्ष के करीब है। उन्हें जंजीरों से बांधकर रखा गया है।

बता दें कि मुख्य द्वार पर्यटकों के लिए इनके साथ की सेल्फी का केंद्र बना हुआ है। वहीं संयुक्त ग्राम सभा मंच, झारखंड का आरोप है कि रजनी और चंपा की शारीरिक स्थिति दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है। क्योंकि इनका उचित रखरखाव व देखभाल नहीं हो रहा है। सवाल उठता है कि आखिर इनके हिस्से का खाना कौन खा रहा है? इनके इन हालात के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या जानवरों के साथ खिलवाड़ करने का अधिकार वन विभाग को मिला हुआ है?

संयुक्त ग्राम सभा मंच का कहना है कि दलमा इको सेंस्टिव जोन बनने से पहले इसी जंगल में मनुष्य व जानवर दोनों साथ-साथ रहा करते थे, लेकिन कभी भी जानवरों की स्थिति इस तरह नहीं थी। ना तो कभी जंगल में रहने वाले इंसान ने वन विभाग से गुहार लगाया है कि आप जंगल में रहने वाले हाथियों को लोहे की जंजीर में बांध के कैद करके रखें।

क्या इन्हें इस हालत को देखते हुए यह नहीं लगता है कि जानवरों के हक अधिकारों के साथ ये व्यवस्था खिलवाड़ कर रही है। जल-जंगल-जमीन की लूट से सिर्फ आदिवासी-मूलवासी ही नहीं जंगल में रहने वाले जानवर भी दमन का शिकार हो रहे हैं। मामले को लेकर दिनांक 30 नवंबर 2022 से संयुक्त ग्राम सभा मंच के तत्वावधान में दलमा इको सेंसेटिव जोन के मुख्य द्वार पर चंपा व रजनी के भोजन, स्वास्थ्य व जंजीर से आजादी को लेकर गांव-गांव में जनसंपर्क अभियान चलाया जा रहा है।

दलमा पहाड़ के तराई क्षेत्र शहर बेड़ा गांव के परम्परागत ग्राम प्रधान मान सिंह मार्डी के नेतृत्व में ग्रामीणों से चंपा व रजनी के सवालों को लेकर संवाद किया गया। परम्परागत ग्राम प्रधान मान सिंह मार्डी कहते हैं कि वन विभाग के डीएफओ व रेंजर की मिलीभगत से इको सेंसेटिव जोन के नाम पर वन प्राणी अश्राणियों अभ्यारण्य के नाम पर जो पैसा आ रहा है, उसमें लूट खसोट मची हुई है। जिसका परिणाम है कि चंपा व रजनी की स्थिति दिनों – दिन खराब होती जा रही है। चंपा व रजनी को देखने से ये पता चलता है कि अब ये लोग तो इन जानवरों के हिस्से का भोजन तक नहीं खा रहे हैं।

शहरबेड़ा के नौजवान विजय तंतुबाई कहते हैं कि संयुक्त ग्राम सभा के साथियों का जिस तरह वन प्राणी से प्रेम है। चंपा व रजनी के साथ सेल्फी लेने वाले लोग तो बहुत हैं लेकिन हमारे शुकलाल पहाड़िया व अनूप महतो की तरह बहुत कम लोग देखने को मिलते हैं जो उनके स्वास्थ्य व भोजन के सवाल को लेकर चिंतित हैं। हम सब नौजवान इस मुहिम में उनके साथ हैं क्योंकि वन प्राणी का दर्द वही समझ सकता है जो इनके बीच पहला कदम बढ़ाया है।

संयुक्त ग्राम सभा मंच के संयोजक अनूप महतो कहते हैं कि हम आदिवासी-मूलवासी कृषि व प्रकृति से अपना जीवन यापन करते हैं एवं कृषि से जो फसल उपजाते हैं, उसका पहला हिस्सा हम जीव-जंतुओं को देते हैं। उसके बाद जो उनसे बचता है, उसे हम समेट कर घर लाते हैं। यह हक हमारे पूर्वजों से लेकर अब तक की पीढ़ी इन जीव जंतुओं को देती आयी है। हम आदिवासी -मूलवासी इस देश के मालिक हैं फिर हमारे जीव-जंतुओं के ऊपर अत्याचार करने का हक इस वन विभाग के पदाधिकारियों को कौन देता है? हम सरकार से मांग करते हैं कि चंपा व रजनी की इस हालत के लिए जो भी जिम्मेदार है। वक्त रहते हुए उस पर कठोर से कठोर कार्रवाई करें, अन्यथा वृहद पैमाने पर आंदोलन चलाया जाएगा।

संयुक्त ग्राम सभा मंच के संयोजक सह पूर्व दलमा क्षेत्र ग्राम सभा सुरक्षा मंच के सचिव शुकलाल पहाड़िया कहते हैं कि किस तरह से दलमा पहाड़ में रहने वाले आदिवासी -मूलवासी के ऊपर इको सेंसेटिव जोन घोषित होने के बाद हक अधिकार व हमारी संस्कृतियों पर हमला किया गया। इसका गवाह मैं हूं! यहां तक कि हम आदिवासी -मूलवासी जब उस समय अपने हक अधिकार को बचाने के लिए आवाज उठाए तो हम आदिम जनजातियों को सलाखों के पीछे साजिश के तहत बंद कर दिया गया था।

आज जब हम चंपा व रजनी को देखते हैं तो हमें लगता है कि ये सिर्फ हमारे आदिवासी -मूलवासियों पर ही हमला नहीं है, ये हमारे बीच रहने वाले वन प्राणियों पर भी हमला है। आज दलमा इको सेंसेटिव जोन के नाम पर जो फंड आता है उसका कोई भी फायदा यहां रहने वाले आदिवासी -मूलवासियों को नहीं मिल पा रहा है बल्कि उस फंड का बंदरबांट हो रहा है। हम पूछना चाहते हैं यहां के वन विभाग के पदाधिकारियों से चंपा व रजनी के हिस्से का भोजन कौन खा रहा है? इनके स्वास्थ्य के लिए जिम्मेवार कौन है? डीएफओ जो अखबार में बयान जारी करता है कि चंपा 48 वर्ष की है और रजनी 13 वर्ष की है। तो इसे जंजीरों में कैद करके रखने का अधिकार इसे कौन देता है? क्या वो चंपा व रजनी को जंजीर में कैद करके रखने से पहले दलमा पहाड़ में रहने वाले परम्परागत ग्राम सभा से कोई अनुमति ली है। अगर नहीं ली है तो ये भी एक तरह से ग्राम सभा का उल्लंघन ही है।

क्या दलमा पहाड़ में वन प्राणियों को स्वतंत्र घूमने का अधिकार नहीं है? आखिर ये कौन लोग होते हैं जो हमारे प्रकृति के साथ रहने वाले इंसानों से लेकर वन प्राणियों के साथ खिलवाड़ करते हैं? आज हमारे देश में वन प्राणियों व पर्यावरण को लेकर बड़े-बड़े आयोजन तो होते हैं, उस पर हमारे नेता व बुद्धिजीवी बड़ी बात तो करते हैं, लेकिन चंपा व रजनी को जंजीरों में कैद करके रखा गया है, इस पर चुप्पी साधे हुए हैं। क्योंकि चंपा, रजनी एवं उनके वंशज उन्हें वोट नहीं करेंगे। क्योंकि जो बोल नहीं सकते हैं जो अपना दर्द किसी के साथ साझा नहीं कर सकते हैं, उसके पक्ष में बोलने से हमारे सभ्य समाज के तथाकथित इंसान कतराते हैं। हम देखते हैं कि हमारे सभ्य समाज के तथाकथित इंसान चंपा व रजनी के पास पहुंच कर सेल्फी तो लेते हैं, लेकिन उनकी गिरती स्वास्थ्य की स्थिति व उनको जंजीर में कैद रहने के बावजूद उनका दिल नहीं सिहरता है। हम जानना चाहते हैं ये कौन लोग हैं जो अपनी आंखों के सामने एक प्रताड़ित जानवर को देखते हुए सेल्फी लेने में मशगूल हैं।

चंपा व रजनी को जंजीरों में कैद देखने के बाद तो यही लगता है कि इस देश के अंदर वन प्राणियों के लिए जो कानून बना है वो सिर्फ संविधान की किताबों के पन्नों में ही सिमट कर रह गया है। संयुक्त ग्राम सभा मंच झारखंड के चंद्रभूषण सिंह, मास्को मुर्मू, पंकज हेम्ब्रम, विजय तंतुबाई, बिमल टुड्डू, सुनिल मार्डी, बुधूराम मुर्मू, रवि मुर्मू आदि कहते है कि मंच मांग करता है कि चंपा व रजनी को जंजीरों से आजाद करो!

चंपा व रजनी के हिस्से का भोजन कौन खा रहा है व उनके स्वास्थ्य की स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है? उस पर जांच करते हुए कठोर से कठोर कार्रवाई हो।

(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

विशद कुमार
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