क्या हरेन पांड्या और सोहराबुद्दीन हत्या मामले का आखिरी गवाह भी मार दिया जाएगा?

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गुजरात के पूर्व गृह राज्यमंत्री हरेन पंड्या की हत्या मामले में आरोपी बनाए गए सोहराबुद्दीन, तुलसी प्रजापति समेत कई लोगों की मुठभेड़ में हत्या कर दी गयी थी। इन्हीं मामलों से जुड़ा एक शख्स अभी भी जिंदा है। उसका नाम आजम खान है और वह राजस्थान की उदयपुर जेल में बंद था लेकिन अब उसका अजमेर की जेल में तबादला कर दिया गया है। इस तबादले को लेकर वह और उसके परिजन बेहद आशंकित है। उनका कहना है कि तुलसी प्रजापति की तरह जेल से कोर्ट के रास्ते में उसका भी एनकाउंटर कर दिया जाएगा। उन्होंने तबादले को रुकवाने की पुरजोर कोशिश की। शुरू में वो कामयाब भी रहे लेकिन आखिर में हार गए। ऐसे में यह सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या यह आखिरी गवाह भी अब नहीं बचेगा? 

क्या है आजम खान की कहानी आइये आपको विस्तार से बताते हैं। आजम खान तुलसी प्रजापति का मित्र था। बाद के दिनों में जब पुलिस ने सोहराबुद्दीन के एनकाउंटर का फैसला लिया तो उसमें उसने तुलसी प्रजापति की मदद ली थी। पुलिस की मंशा को समझ कर सोहराबुद्दीन पहले ही भूमिगत हो गया था। और सघन तलाशी अभियान के बावजूद पुलिस उसका कोई पता-ठिकाना नहीं लगा पा रही थी। इसी कड़ी में पुलिस ने तुलसी प्रजापति की मदद ली। उसने प्रजापति से कहा कि सोहराबुद्दीन को मारा नहीं जाएगा। चूंकि ऊपर से दबाव पड़ रहा है। इसलिए उसे एक बार हिरासत में लेना जरूरी है। पुलिस ने प्रजापति से कहा कि उसे कुछ दिन जेल में रख कर और फिर पूछताछ के बाद छोड़ दिया जाएगा। प्रजापति पुलिस के इस झांसे में आ गया और उसने सोहराबुद्दीन का पता बता दिया। जिसके बाद सांगली के रास्ते में बस से जा रहे सोहराबुद्दीन, उसकी पत्नी कौशर बी और तुलसी प्रजापति को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। और गिरफ्तारी के बाद उन्हें पहले उदयपुर लाया गया और फिर उदयपुर से आगे सोहराबुद्दीन और कौशर बी  को एक साथ एक गाड़ी में बैठाकर अहमदाबाद की ओर रवाना कर दिया गया जबकि तुलसी प्रजापति को उदयपुर की जेल में रख दिया गया।

और फिर अहमदाबाद ले जाकर सोहराबुद्दीन और कौसर बी को मुठभेड़ में मार दिया जाता है। चूंकि ये सब कुछ प्रजापति की निशानदेही पर हुआ था लिहाजा वह अपनी उस गलती के लिए पश्चाताप करता था। तुलसी प्रजापति और आजम खान को उदयपुर जेल में एक साथ रखा गया था। और कोर्ट में सुनवाई के लिए दोनों को एक साथ ले जाया जाता था। और वहीं साथ रहते ये सारी बातें प्रजापति ने आजम खान को बतायी थीं। लेकिन उसी बीच तुलसी प्रजापति को भी रास्ते से हटाने का फैसला ले लिया जाता है। तुलसी प्रजापति इस बात को जान जाता है। लिहाजा परिवार के साथ मिल कर पुलिस से लेकर कोर्ट तक में वह अपनी रक्षा की गुहार लगाता है। 

एक सुनवाई के दौरान तुलसी प्रजापति और आजम खान को उदयपुर से अहमदाबाद ले जाया गया। आम तौर पर एटीएस उदयपुर से ले जाने के बाद उन्हें पहले अहमदाबाद की जेल ले जाती थी और उसके बाद फिर वहां से कोर्ट में उनकी पेशी होती थी। लेकिन उस दिन जेल की जगह एटीएस सबसे पहले उन्हें अपने दफ्तर ले गयी। उसी समय दोनों को एनकाउंटर की आशंका सताने लगी लिहाजा दोनों मिलकर हंगामा शुरू कर देते हैं। और इस मामले को उसी दिन कोर्ट में उठाते हैं। हालांकि वे बच जाते हैं। लेकिन यह मोहलत कुछ दिनों की ही थी। क्योंकि 25 दिसंबर, 2006 को एक बार फिर पुलिस तुलसी प्रजापति को उदयपुर जेल से अपने साथ अकेले ले गयी और किसी दूसरे मामले में पूछताछ के बहाने आजम खान को प्रजापति से अलग कर दिया गया। पुलिस अधिकारी दिनेश एमएन पूछताछ का हवाला देकर उसे अपने साथ ले गए।

तुलसी प्रजापति और आजम खान जब एक दूसरे से अलग हो रहे थे तो उसी समय उनको इस बात की आशंका हो गयी थी कि शायद दोनों या फिर उनमें से कोई एक जिंदा उदयपुर जेल नहीं लौटेगा। और फिर वही हुआ जिस बात की आशंका थी। अहमदाबाद कोर्ट से सुनवाई के बाद वापस आते समय 28 दिसंबर को रास्ते में तुलसी प्रजापति का एनकाउंटर कर दिया गया। इस तरह से इन मामलों से जुड़ा अकेला केवल आजम खान है जो अभी जिंदा है। 2010 में मौजूदा गृहमंत्री अमित शाह के जेल में बंद रहने के दौरान और फिर उनकी जमानत के लिए आजम खान पर अपना बयान बदलने का बहुत ज्यादा दबाव बनाया गया था। 

और इसके लिए बाकायदा उसके परिवार की घेरेबंदी की गयी। यहां तक कि उसके परिजनों को राजस्थान की पुलिस एक हफ्ते थाने में रख दी थी। और जब आजम खान उनके मुताबिक बयाने देने के लिए तैयार नहीं हुआ तो उसे प्रताड़ित किया जाता रहा। यहां तक कि मनचाहे बयान के लिए आजमखान को एक महिला थाने ले जाकर उसका जमकर टार्चर किया गया। इस प्रताड़ना के बाद आजम खान टूट गया और वह पुलिस के मुताबिक एफिडेविट देने के लिए तैयार हो गया। और फिर उसी बिना पर सोहराबुद्दीन शेख और कौसर बी एनकाउंटर मामले में अमित शाह को जमानत मिली।

ऊपर लिखी गयी बातों से समझा जा सकता है कि इन सारे मामलों में आजम खान कितना अहम गवाह है। उसे उदयपुर जेल से कई बार दूसरे जेल में स्थानांतरित करने की कोशिश की गयी। लेकिन उसके और उसके परिजनों के विरोध के चलते पुलिस कामयाब नहीं हो पायी। लेकिन अभी कुछ दिनों पहले पिछली 23 मई को उसे कड़ी सुरक्षा में रखने के नाम पर उदयपुर से अजमेर की जेल में स्थानांतरित कर दिया गया। अजमेर में उसे तनहा सेल में रखा गया है जहां उसे किसी से मिलने की इजाजत नहीं है। 

राजस्थान पुलिस के इस फैसले के बाद आजम खान और उसके परिजन बेहद चिंतित हैं। उनका कहना है कि तुलसी प्रजापति की तरह आजम खान की भी कोई मुठभेड़ दिखाकर हत्या की जा सकती है। वैसे भी जब उसके खिलाफ मामले उदयपुर में हैं तो भला उसे अजमेर शिफ्ट करने का क्या तुक बनता है। लेकिन पुलिस के इस फैसले से आजम खान की चिंता बढ़ गयी है। और अगर उसकी आशंका सही साबित हुई तो इस मामले का आखिरी गवाह भी खत्म हो जाएगा।

(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)

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