मुंबई आतंकी हमले के अनसुलझे रहस्यों से क्या कभी उठ सकेगा पर्दा?

क्या आप जानते हैं कि मुंबई में 26 नवंबर (26/11) 2008 को हुए आतंकी हमले में एकमात्र पाकिस्‍तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को जिंदा पकड़ा गया था और कसाब के पास से एक मोबाइल बरामद हुआ था। इस मोबाइल को अहम सबूत के तौर पर जब्‍त किया गया था, लेकिन मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्‍त परमबीर सिंह ने उसे नष्‍ट कर दिया था। इस मोबाइल को कभी भी जांच के लिए पेश नहीं किया गया। मुंबई के ताज होटल, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस समेत कई स्‍थानों पर आतंकवादियों ने ताबड़तोड़ गोलियां बरसायी थीं, जिसमें 160 से अधिक लोग शहीद हो गए थे और पूरा देश ही नहीं बल्कि दुनिया इस घटना से सहम गई थी। दिल दहला देने वाली इस घटना को 13 साल पूरे हो चुके हैं।

इस संबंध में सेवानिवृत्त एसीपी शमशेर खान पठान ने जुलाई में एक पत्र लिखा था जिसमें परमबीर सिंह को सबूतों को नष्‍ट करने के आरोप में एनआईए द्वारा गिरफ्तार करने की मांग की गई थी। पत्र में लिखा है कि उसने इस सबूत को आईएसआईएस को बेच दिया होगा या जबरन वसूली के लिए जानकारी का इस्तेमाल किया होगा।

100 करोड़ जबरन वसूली मामले में मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्‍त परमबीर सिंह के खिलाफ मुंबई पुलिस की अपराध शाखा जाँच कर रही है। परमबीर सिंह को मार्च 2021 में मुंबई पुलिस आयुक्‍त के पद से हटाया गया था और उनके स्‍थान पर वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी हेमंत नगराले को आयुक्‍त बनाया गया था।

अपनी शिकायत में पठान ने कहा है कि डीबी मार्ग थाने के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक एनआर माली ने उन्हें सूचित किया था कि उन्होंने कसाब के पास से एक मोबाइल फोन जब्त किया है। फोन को कांबले नाम के कांस्टेबल को सौंपे जाने की बात कही थी। पठान ने आरोप लगाया कि आतंकवाद निरोधक दस्ते के तत्कालीन डीआईजी परमबीर सिंह ने कांस्टेबल से मोबाइल फोन ले लिया था।उन्होंने शिकायत में दावा किया है कि फोन आतंकी हमले के जांच अधिकारी रमेश महाले को सौंपा जाना चाहिए था, लेकिन सिंह ने ‘साक्ष्य के महत्वपूर्ण टुकड़े को नष्ट कर दिया।’

 इस पूरे मामले पर परमबीर सिंह की टिप्पणी सामने नहीं आयी है। कसाब को 13 साल पहले मुंबई में कई जगहों पर हुए आतंकी हमले के दौरान जिंदा पकड़ा गया था। सुप्रीम कोर्ट में उसकी मौत की सजा पर सुनवाई हुई। मामले में संलिप्तता साबित होने के बाद उसे नवंबर 2012 में फांसी दे दी गई थी।

गिरीश मालवीय के अनुसार कामा हॉस्पिटल के सामने रंगभवन लेन में हुई मुठभेड़ और उन 45 मिनट का सच जनता के सामने कभी आया ही नहीं। मुंबई पुलिस ने भी इस मामले में पूरी तरह से चुप्पी साध रखी है। महाराष्ट्र के आईजी रहे एस.एम. मुशरिफ़ ने लिखी है, किताब का नाम है करकरे के हत्यारे कौन ? भारत में आतंकवाद का असली चेहरा ।इस किताब में ऐसे ऐसे खुलासे किए गए हैं जिसको लेकर हंगामा मच जाना चाहिए था। लेकिन इस देश मे हंगामा सलमान खुर्शीद की किताब को लेकर तो मच सकता है लेकिन आईजी एस.एम. मुशरिफ़ की किताब से नहीं मचता। इस किताब में मुंबई क्राइम ब्रांच की मुठभेड़ की कहानी में झोल को साफ साफ इंगित किया गया है।

कुछ साल पहले सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीजी कोलसे पाटिल ने भी हेमंत करकरे की हत्या के मामले में बड़ा गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे की मौत कसाब की गोली से नहीं बल्कि महाराष्ट्र पुलिस की गोली से हुई है। बीजी कोलसे पाटिल ने कहा कि हेमंत करकरे को महाराष्ट्र पुलिस ने पिस्टल, ‘प्वाइंट नाइन’ के साथ पीठ में गोली मारी थी।

यह पहली बार नहीं है जब करकरे की हत्या पर सवाल उठे हैं। साल 2009 में वरिष्ठ वकील फ़िरोज़ अंसारी ने एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे की मृत्यु के पीछे षड्यंत्र पर शक जताते हुए आरटीआई के तहत मुंबई पुलिस आयुक्त हसन गफूर से पूछा था कि जब कामा अस्पताल में पुलिस दल मौजूद था तो आतंकवादी ऑपरेशन के दौरान उन्हें क्यों बुलाया गया था? उन्हें आख़िरी फोन करने वाला पुलिसकर्मी कौन था? करकरे को कितनी गोलियाँ लगी थीं? गोलियाँ कितनी दूरी से मारी गई थीं? गोलियाँ किस हथियार से लगी थीं आदि।

यह भी सवाल उठाया गया कि जब मालेगाँव धमाके की जाँच करने वाले करकरे को जान से मारने की धमकियाँ मिल रही थीं तो उन्हें क्यों नहीं विशेष सुरक्षा दी गई और हमले के दिन क्या वह बुलेट प्रूफ़ गाड़ी में जा रहे थे? फ़िरोज़ अंसारी ने यह भी सवाल उठाया है कि जब करकरे कामा अस्पताल के लिए रवाना हुए थे तो उनके पास कौन से हथियार थे? उन्होंने क्या आतंकवादियों पर गोलियाँ चलाई थीं? 

सबसे खास बात यह है कि हेमन्त करकरे को बुलेट प्रूफ जैकेट पहने होने के बाद गोली कैसे लगी ? क्या बुलेट प्रूफ जैकेट खराब था । एक ओर थ्योरी यह है कि उन्हें गर्दन पर ऐसी जगह गोली लगी जहां बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं था । लेकिन ये गोली उस हथियार की नहीं थी जो कसाब के पास बताया जा रहा था । हेमन्त करकरे की पत्नी और बेटी ने भी इस बारे में सवाल खड़े किए थे कि उनकी बुलेटप्रूफ जैकेट का क्या हुआ! उनकी बेटी का बयान है कि मेरे पिता के पोस्टमार्टम के वक्त की लिस्ट में काफी सामान था, लेकिन बुलेटप्रूफ जैकेट गायब थी । मैं भी हैरान थी कि यह कैसे हुआ? जबकि वो बुलेटप्रूफ जैकेट पहन कर ही निकले थे ।

यही नहीं, महाराष्ट्र पुलिस के एक पूर्व आईजी ने करकरे की मौत की दोबारा जाँच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। जुलाई 2018 में कोर्ट ने जाँच कराने से इनकार कर दिया था।इससे पहले भी बिहार के पूर्व विधायक राधाकांत यादव ने उनकी मौत की जांच की मांग की थी। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले के दौरान करकरे की मौत की साजिश दक्षिणपंथी चरमपंथियों द्वारा रची गई थी। लेकिन न्यायालय ने सभी याचिकाओं का निपटारा कर दिया था। 

अशोक कामटे की पत्नी विनीता ने एक किताब लिखी थी। इस किताब का नाम ‘टू द लास्ट बुलेट’ है, इस किताब में अशोक कामटे की पत्नी विनीता कामटे ने राकेश मारिया पर इल्ज़ाम लगाया है कि उन्होंने उनके पति को कामा अस्पताल भेजने का निर्देश देने से इंकार किया था। राकेश मारिया पुलिस के ऑपरेशन को लीड कर रहे थे ।

‘द लास्ट बुलेट’ में विनिता ने सवाल उठाया है कि राकेश मारिया ने इस बात का पता होने से इनकार क्यों कर दिया कि एडिशनल पुलिस कमिश्नर (पूर्व) अशोक काम्टे कामा अस्पताल कैसे गए। विनीता ने इस सिलसिले में तब के पुलिस कमिश्नर हसन गफूर से मुलाकात की। वे अपनी किताब में लिखती हैं’जब मैंने हसन गफूर से मुलाकात की, तो उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता कि अशोक कामा अस्पताल कैसे पहुंचे, जबकि उन्होंने खुद उन्हें ट्राइडेंट होटल बुलाया था।विनीता काम्टे ने सूचना के अधिकार के तहत मुंबई हमले की रात कंट्रोल रूम और उस वैन के बीच हुई वायरलेस बातचीत का पूरा ब्यौरा मांगा था, जिसमें उनके पति के साथ ही एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालसकर मौजूद थे।

किताब में राकेश मारिया पर यह भी आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अशोक कामटे समेत महाराष्ट्र के आतंक-निरोधक स्क्वाड के प्रमुख हेमंत करकरे और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर को पर्याप्त सुरक्षा कवर नहीं दिया और वे लोग कामा अस्पताल के पास मारे गए थे । विनीता कामटे की किताब के मुताबिक उनके पति के बार-बार कहे जाने के बाद भी कंट्रोल रूम ने उन्हें रीएनफोर्समेंस (मदद) नहीं भेजी। अगर दी होती तो शायद अशोक कामटे समेत वो तीनों अफसर नहीं मारे जाते, जिनकी हत्या आतंकी कसाब और इस्माइल ने रंग भवन के पास की थी।

किताब में दावा किया गया है कि 40 मिनट तक तीनों अफसरों के शव सड़क पर पड़े रहे लेकिन किसी ने उनकी सुध नहीं ली। और तो और वहां से गुजरने वाली मुंबई पुलिस की गाड़ी में मौजूद लोगों ने भी उन्हें देखने की जमहत तक नहीं उठाई।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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