भारत के अटॉर्नी जनरल (एजी) के के वेणुगोपाल के इस कथन को कि उच्चतम न्यायालय निषिद्ध क्षेत्रों में प्रवेश कर रहा है, क्या उच्चतम न्यायालय को चेतावनी माना जाय या धमकी? आसान भाषा में इसे कहा जाए तो ‘उच्चतम न्यायालय अपनी सीमाएं लांघ रहा है’। उनका कहना है कि न्यायपालिका विधायिका की शक्तियों को बाधित कर रही है।
केरल के पूर्व महाधिवक्ता एमके दामोदरन की स्मृति में आयोजित एक वेबिनार में अपने संबोधन में वेणुगोपाल ने कहा कि 1967 की अवधि के बाद, न्यायपालिका और संसद के बीच टकराव हुआ लेकिन आज न्यायपालिका मजबूत है और इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि सरकार क्या सोचती है या क्या महसूस करती है।
उन्होंने कहा कि वर्ष 1967 के बाद, न्यायपालिका और संसद के बीच टकराव की अवधि थी। हालांकि, हमारे पास आपातकाल भी था जो 1975 में लगाया गया था जो उच्चतम न्यायालय पर हमला था। अब यह इतिहास का एक हिस्सा है कि आपातकाल घोषित किया गया था और न्यायपालिका इस स्थिति में नहीं थी कि यह पूछ सके कि क्या हुआ है, लेकिन आज हमारे पास एक बहुत मजबूत न्यायपालिका है जो कि सरकार क्या सोचती है या क्या महसूस करती है इसकी चिंता नहीं करती। यह अपने निर्णयों पर कायम रहती है,जिसमें निषिद्ध क्षेत्र भी शामिल हैं।
वेणुगोपाल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय विधि अधिकारियों से कहता है कि यह सही नहीं है और वह सुझाव देता है कि संसद में क्या पारित होना चाहिए और क्या पारित नहीं होना चाहिए। यह स्पष्ट रूप से, विधायिका की शक्तियों को बाधित करना है।
एजी ने हाल ही में बनाए गए ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट को लेकर न्यायपालिका और संसद के बीच संभावित टकराव का भी संकेत दिया। एजी ने कहा कि ट्रिब्यूनल के सदस्यों की अवधि और न्यूनतम आयु योग्यता नीति का मामला है, जिसमें न्यायपालिका हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
एजी ने ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स को लेकर उच्चतम न्यायालय और संसद के बीच शह और मात होने के कई उदाहरणों का वर्णन करते हुए, जैसा कि रोजर मैथ्यू और मद्रास बार एसोसिएशन के मामलों में हुआ था,कहा कि अब इसका मतलब यह है कि एक निश्चित तौर पर संसद भी आश्चर्य करती है कि अगर न्यायपालिका इस हद तक हस्तक्षेप कर रही है तो क्या हमारे पास कोई शक्ति नहीं है? यह नीति का मामला है, चाहे चार साल या पांच साल। नीति में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।
ये टिप्पणियां उस पृष्ठभूमि में प्रासंगिक हो जाती हैं जब उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से पूछा था कि ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स बिल को उन्हीं प्रावधानों के साथ क्यों पेश किया गया, जिन्हें मद्रास बार एसोसिएशन के फैसले से हटा दिया गया था। भारत के मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से विधेयक को पेश करने में मंत्रालय द्वारा बताए गए कारणों को बताने को कहा था।
एजी ने वेबिनार में कहा कि यह इंतजार करने और देखने लायक होगा अगर ट्रिब्यूनल बिल पर नए सिरे से खींचतान होगी।
हल्की हंसी के साथ, एजी ने कहा कि इसलिए, शायद टकराव होगा, लेकिन मुझे उम्मीद नहीं है, जैसा कि मैंने यह कहकर शुरू किया कि वे दोनों संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हैं। इसलिए, यह इंतजार करने और देखने लायक होगा।
(वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)