क्या कोविड-19 पीड़ितों के शव जीवितों के लिए खतरा हैं?

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कोविड-19 महामारी जहां जीते-जी लोगों को आपस में दूर रहने पर मजबूर कर रही है वहीं इसका ख़ौफ़ इस क़दर लोगों के ज़हन पर हावी है कि कोरोना संक्रमण से जान गवां चुके अपने प्यारों के अंतिम संस्कार भी लोग नहीं कर पा रहे हैं। संक्रमण के आतंक और ग़लत जानकारियों व अफवाहों के चलते बहुत से मामलों में देखा गया है कि संक्रमण के डर से घर वाले ही संस्कार की रस्मों से पीछे हट जा रहे हैं। कहीं-कहीं समाज-व्यवस्था ऐसा करने में बाधा बन रही है।

लिहाजा नगरपालिका कर्मचारियों को अंतिम संस्कार करना पड़ रहा है। कोविड-19 न सिर्फ़ शरीर बल्कि भावनाओं, पर भी प्रहार कर रहा है। क्या वाकई इस हद तक डरने की ज़रूरत है कि कोई महामारी इंसानियत को शर्मशार कर दे? प्रयास हेल्थ ग्रुप और पूना सिटिज़न डॉक्टर फोरम ने कोविड-19 पीड़ितों के शवों के अंतिम संस्कार के लिए एहतियाती उपायों से संबंधित सवालों के जवाब दिए हैं–

कोविड-19 एक रेस्पीरेटरी यानि सांस से फैलने वाला रोग है। ये वायरस छींकने, खांसने आदि से फैलता है। लेकिन जब  मरीज की मृत्यु हो जाती है तो ये संक्रमण बंद हो जाता है। मृत शरीर से संक्रमण न हो इसके लिए एकमात्र सुरक्षा उपाय है शरीर की सतह और इसके स्रावों पर मौजूद वायरस से दूर रहना। ये वायरस हवा में नहीं रहता और अपने दम पर नहीं फैल सकता। इसलिए बिना हाथ के दस्ताने पहने शव और उसके मुंह और नाक के स्राव को छूने से बचने की जरूरत है।

स्वास्थ्य कर्मियों और पीड़ितों के रिश्तेदारों की सुरक्षा पर जोर देते हुए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने अस्पताल के कर्मचारियों के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं कि वे शवों को रिश्तेदारों को सौंपते समय सुरक्षा के उपाय करें। उदाहरण के लिए – सोडियम हाइपोक्लोराइट घोल (ब्लीचिंग सॉल्यूशन) में डुबो कर पीड़ित के नाक और मुंह में डाली गई नलियों को डिस्पोज़ करना, नाक, मुंह या खुले शरीर के किसी भी स्राव को पोंछते समय उचित सावधानी बरतना, प्लास्टिक बैग में शव को रोल करना, ब्लीचिंग से बैग को पोंछ कर उस पर दूसरा कवर लगाना, शेष कपड़े, सामान आदि को साफ करना।

अस्पताल के कर्मचारी इन सब चीजों का ध्यान रखेंगे। इसके बाद मृत शरीर के साथ यात्रा करने में किसी के लिए कोई जोखिम नहीं है। हाथ के दस्ताने पहनने के बाद शव को उठाने के साथ-साथ अंतिम संस्कार करने में भी कोई ख़तरा नहीं है। बस नंगे हाथों से शरीर को नहीं छूना है। कब्रिस्तान-श्मशान घाट जाकर अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने, देखने से संक्रमण का कोई ख़तरा नहीं है। और न ही अस्पताल के आईसीयू के डॉक्टरों की तरह किसी भी ‘कवर ऑल सूट’ की मदद से अपने आप को सिर से पैर तक ढंकने की जरूरत है। 

किसी अपने के दूर चले जाने के ग़म में आंखों में आंसू आना स्वाभाविक है। आपसी सहयोग और आराम के लिए किसी के परिजनों और रिश्तेदारों को गले लगाएं लेकिन कुछ सावधानियों का पालन करने की ज़रूरत है। जैसे- सीधे आंख- नाक-मुंह को हाथ से न छूकर अपनी आस्तीनों से पोंछे। मास्क का उपयोग करें। हाथ साबुन से धोएं, दूसरे व्यक्तियों से 6 फीट की दूरी बनाए रखें, घर आते ही स्नान करें और साबुन के पानी में कपड़े डुबोएं। 

ध्यान दें – दाह संस्कार के बाद या लाश जहां दफन हो जाती है, वहां विषाणु राख में नहीं बच सकते। इस लिए राख या दफनाने की जगह पर कीटाणुनाशक स्प्रे करने की आवश्यकता नहीं है।

चालीस साल पहले एचआईवी पीड़ित के शव का निस्तारण करते समय कुछ ऐसा ही डर था। कोई भी अंतिम संस्कार करने या अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए तैयार नहीं था। लेकिन लोगों में जागरूकता लाने और लोगों को मिलने वाले व्यवहारिक अनुभव के साथ यह डर दूर हो गया। कोविड-19 के मामले में एक महीने के भीतर ऐसा होना चाहिए।

(नोट-ये सुझाव प्रयास हेल्थ ग्रुप के डॉ. विनय कुलकर्णी और पूना सिटीज़न डॉक्टर फ़ोरम से जुड़े डॉ. अनंत फड़के, डॉ. अरुण गाड़ी, डॉ. शारदा बापू, और डॉ. श्रीराम गीत ने दिए हैं।)


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