Friday, March 31, 2023

लक्षद्वीप को बीजेपी क्यों कर रही है बर्बाद

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आज पिछले एक महीने से लक्षद्वीप अशांत है, वहां के लोग एक नई मुसीबत में फंस गए हैं। जो क्षेत्र अब तक अनजाना और अछूता सा था  एकाएक उबलने लगा है। आम भारतीयों के लिए तो यह द्वीप अब तक मंगल ग्रह से ज्यादा कुछ नहीं है। एक सुदूर द्वीप जो केरल से 500 किमी (समुद्री दूरी) दूर है और मात्र 70,000 की आबादी वाला केंद्र शासित प्रदेश है। प्राचीनकाल से कोच्चि बंदरगाह और सौदागरों की बस्ती के कारण यह एक मुस्लिम बहुल प्रदेश है। यहां की 99% आबादी मुस्लिम मछुआरों की है और केवल यही एक पेशा यहां सम्भव है। यहां एक संसदीय सीट भी है।  

काफी शांत और सुकून भरे इस द्वीप में कोई बड़ी घटना नहीं होने के कारण यह समाचारों में कभी नहीं आ पाता है। अभी प्रमुख न्यूज पेपर The Hindu में आदर्श विश्वनाथ का एक यात्रा संस्मरण छपा है जिसमें वो एक बड़ा सा शिव मन्दिर की पिक लगाए हुए हैं  और इसकी साफ सफाई, शानदार बिल्डिंग की तारीफ कर रहे हैं कि एक ऐसे प्रदेश जहां 99% मुस्लिम हों वहां इतना शानदार मन्दिर एक मिसाल है, जबकि यूपी में सरकारी स्तर पर रोज मस्जिद तोड़ी जा रही हैं। तो शांति और सद्भावना का नायाब नमूना है लक्षद्वीप,  लेकिन पिछले छह माह से राजनैतिक हस्तक्षेप और धार्मिक एजेंडे की वजह से लक्षद्वीप जल रहा है। मछुआरों की बस्ती में बुलडोजर चलने लगे हैं, गरीब  मछली बेचने वाले POTA और UAPA जैसे कानूनों के दायरे में आने लगे हैं। लोगों के खान-पान पर पाबंदी थोपी जा रही है और पुलिस तथा  सरकारी एजेंसियां अब बस्ती में पेट्रोलिंग कर रही हैं। NCRB की रिपोर्ट के अनुसार यहां अपराध दर शून्य है, जी हां जीरो अपराध लेकिन कड़े कानून ठोक दिए गए हैं। लोग शराब बंदी और गोमांस पर प्रतिबंध के खिलाफ गोलबंद हो रहे हैं, सरकारी तोड़ फोड़ के खिलाफ आंदोलनरत हैं। 

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आखिर छह माह में ऐसा क्या हो गया कि एक शांत प्रदेश जलने लगा है और मुख्य भाग के न्यूज पेपर,  एक्टिविस्ट गोमांस और शराबबंदी पर ही केवल क्यों बोल रहे हैं । लक्षद्वीप वाले मामले को समझने में हम कहीं कोई भूल तो नहीं कर रहे हैं? 

यह भले ही अभी क्षेत्र विशेष की समस्या लगती हो लेकिन कई कड़ियों को जोड़ा जाए तो समस्या के मूल तक पहुंचा जा सकता है। वहां जो चार कानून लाये गए हैं उसमें गोमांस और शराब वाली बात पर सभी लिख रहे हैं, लेकिन यहां कुछ न कुछ छूट रहा है। क्योंकि गोहत्या और शराबबंदी हमेशा से विवादस्पद मुद्दे रहे हैं जिसे सत्ता अपनी सुविधा के अनुसार प्रयोग करती है। पिछले अनुभव बताते हैं कि पहले जिन कानूनों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है वो हैं लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण को अनन्त शक्तियां देना और अपराध नियंत्रण के नाम पर पुलिस को असीमित शक्ति देना। इतिहास में ऐसे कानूनों को हमेशा स्थानीय पूंजीपतियों के शह पर ही लागू किया जाता है। वहां स्थानीय पूंजीपति तो हैं नहीं लेकिन आस पास के बड़े व्यवसासियों (कर्नाटक महाराष्ट्र के बिजनेस टाइकून) की नजर यहां “मालदीव पर्यटन मॉडल” से होने वाली जबरदस्त कमाई पर जरूर है ।

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और ऐसे में स्थानीय निवासियों के प्रतिरोध (जमीन और अन्य  संसाधनों के लिए) की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। इन्हीं बातों को ध्यान में रख कर ये दोनों कानून पास कराए गए होंगे।  विश्व में अन्य जगहों पर भी पूंजीवादी लाभ के लिए  संसाधनों का दोहन इन दो कानूनों के सहायता से ही शुरु की गया है। अरब सागर के तटों पर “सी हाउस” जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर बहुत ही बड़े लाभ का सौदा साबित होंगे, अंतरराष्ट्रीय टूरिज्म से आमदनी डॉलर्स में होगी, लेकिन स्थानीय निवासियों के हक की जमीन, पानी, बिजली और ऐसी सुविधाएं छीने बिना ये सम्भव नहीं है। ऐसे में ये दो कानून बहुत मददगार होंगे, विकास प्राधिकरण के हाथ को निरंकुश बना कर किसी भी स्ट्रक्चर और आप्राकृतिक लक्सरी केंद्र को खड़ा किया जा सकता है। जब जनता विरोध करे तो पुलिस के हाथ में असीम ताकत है, किसी को भी जेल में ठूसा जा सकता है। 

लोगों का ध्यान इस दो कानून से भटकाने के लिए शराब बंदी और गोमांस वाले कानून लाये गए हैं। ताकि मामला धार्मिक सियासी लगता रहे, और वैसा ही विरोध होता रहे और इसके नीचे से वो दोनों काम (निर्माण और विस्थापन) आराम से हो जाये। 

अगर ये लक्षद्वीप में सफल रहे तो जल्द ही अगला कानून वहां आएगा “कश्मीर में प्लॉट खरीदने का” और पुलिस-सेना खोजेगी लक्षद्वीप के “पत्थरबाजों” को और आप इंटरनेट पर विज्ञापन देखेंगे “लक्षद्वीप सी रिजॉर्ट” – 1250 डॉलर पर नाइट ओनली।

(सुकेश झा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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