अडानी मामले पर जांच के लिए सेबी की सर्वोच्च न्यायालय से और 6 महीने की मांग के चलते एक बड़ा खुलासा सामने आ गया है। एक बार और यह बात पुख्ता हुई है कि अडानी समूह को किसी भी मुश्किल से बचाने के लिए मोदी सरकार झूठ पर झूठ बोल सकती है।
हुआ यूं कि सोमवार 15 मई को सुप्रीमकोर्ट में सेबी को अपना पक्ष रखना था। सेबी ने अडानी-हिंडनबर्ग मामले पर अपनी जांच पूरी करने के लिए कोर्ट से 6 महीने का अतिरिक्त समय मांगा था। लेकिन मोदी सरकार ने जुलाई 2021 में लोकसभा में खुद जानकारी देते हुए कहा था कि अडानी ग्रुप के बारे में सेबी 2016 से जांच कर रही है। याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च अदालत में इस तथ्य को सामने लाकर तर्क रखा कि जब सेबी 2016 से अडानी ग्रुप की जांच कर रही है, तो उसे 6 महीने समय देना सही नहीं होगा।
याचिकाकर्ताओं का यह तर्क पूरी तरह से जायज था। लेकिन सेबी की ओर से सुप्रीमकोर्ट में एक एफिडेविट दाखिल करते हुए जो दावा पेश किया गया है, उसने एक बड़े विवाद को जन्म दे दिया है। सेबी की ओर से एफिडेविट में कहा गया है कि उसकी ओर से 2016 से अडानी ग्रुप की कंपनियों की कोई जांच नहीं चल रही है। ये सभी दावे तथ्यात्मक तौर पर पूरी तरह से निराधार हैं।
अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या 19 जुलाई, 2021 में मोदी सरकार में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी द्वारा दिया गया बयान तथ्यात्मक रूप से झूठा था और संसद को गुमराह किया गया? उस जवाब में कहा गया था कि अडानी ग्रुप के खिलाफ सेबी की ओर से वर्ष 2016 से जांच चल रही है।
19 जुलाई 2021 को लोकसभा में तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा अडानी समूह पर सवाल पूछने पर राज्य मंत्री पंकज चौधरी की ओर से लिखित जवाब में कहा गया, अडानी समूह की छह कंपनियां देश के मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हैं और ट्रेड कर रही हैं। इन कंपनियों में एफपीओ द्वारा शेयरों की खरीद दिन-प्रतिदिन के स्तर पर हो रही है। महुआ मोइत्रा के दूसरे प्रश्न पर लिखित जवाब में कहा गया, “जी महोदया, सेबी नियमों के तहत अडानी ग्रुप की कुछ कंपनियों पर सेबी की जांच चल रही है। इसके अलावा डीआरआई के द्वारा अभी इसके अधिकार क्षेत्र के तहत अडानी समूह की कुछ कंपनियों में जांच का काम चल रहा है।”
कांग्रेस सेवा दल की हरमीत कौर ने इस केंद्र सरकार के इस लिखित पत्राचार को टैग करते हुए अपने ट्वीट में कहा है, “शुरू में केंद्रीय राज्य मंत्री, पंकज चौधरी ने 19 जुलाई, 2021 को लोकसभा को जानकारी दी कि सेबी द्वारा अडानी समूह की कंपनियों की जांच की जा रही है।
अब सेबी सुप्रीम कोर्ट से यह कहकर और समय मांग रही है कि अडानी के खिलाफ उसकी ओर से किसी भी गंभीर आरोपों की जांच नहीं की जा रही है!
सवाल उठता है कि वे इसे छिपाने के लिए इतना बैचेन क्यों हैं?
तब केंद्र सरकार ने सेबी के नाम पर खुद को बचाने के लिए इस्तेमाल तब संसद को गुमराह करने के अपराध में वित्त मंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार का नोटिस दिया जा सकता था। फिर सेबी क्यों झूठा शपथपत्र सर्वोच्च न्यायालय में आज दाखिल कर कह रही है उसने अडानी समूह की कंपनियों की जांच नहीं की है?
इसमें से कौन झूठ बोल रहा है?
या भारत सरकार और सेबी दोनों कुछ छिपा रही हैं।
इस बीच तथ्य तो यह है कि समूचे भारत में आईपीओ विभिन्न स्रोतों से फण्ड जुटा रही है जिसके बारे में सेबी अब कह रही है कि उसे पता नहीं है। क्या यह बहुत बड़ा जोखिम नहीं है?
जहां तक सेबी द्वारा दाखिल शपथपत्र का प्रश्न है, सर्वोच्च न्यायालय के नियम के मुताबिक भारत सरकार के संयुक्त सचिव से नीचे के पद पर बैठे व्यक्ति को ही इसे दाखिल करना चाहिए। लेकिन एक असिस्टेंट मैनेजर द्वारा शपथपत्र दाखिल किया गया है।
साफ़ दिख रहा है कि मामले को उलझाया जा रहा है। लेकिन किसके इशारे पर?
और इस बीच कोर्ट की सुनवाई के दौरान अडानी समूह के 10 कंपनियों में से 9 के शेयर लोअर सर्किट पर चले गये हैं।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने इस सवाल की गंभीरता की ओर ध्यान दिलाते हुए मोदी सरकार पर चुटकी ली है:
बड़ा सवाल यह है कि क्या वाकई में सेबी जैसी नियामक संस्था देश के लाखों निवेशकों के साथ छल कर रही है, और मामले को लंबा खींचते हुए सिर्फ समय काट रही है? यदि ऐसा है तो यह उन चुनिंदा भारतीय मध्य और कुलीन वर्ग के साथ भी एक धोखा ही होगा, जो आज भी इस सरकार के सबसे बड़े समर्थक और खेवनहार बने हुए हैं। सेबी के जवाबी हलफनामे ने खुद सरकार को सांसत में डाल दिया है। सरकार की ओर से आज भी जवाब में यही कहा गया है कि वह अपने 2021 के संसद में दिए गये लिखित जवाब पर कायम है।
यदि दोनों अपनी जगह पर कायम हैं तो इनमें से एक तो पक्का झूठ बोल रहा है। दोनों संस्थाएं आज अडानी समूह को बचाती दिख रही हैं। दोनों इस चक्कर में एक दूसरे के खिलाफ बोल रही हैं। और इस नूराकुश्ती में सर्वोच्च न्यायालय के सामने सब कुछ बेपर्दा होता जा रहा है। भारत ही नहीं विश्व में सेबी और सरकार की किरकिरी हो रही है। ऐसे में भारत में विदेशी निवेश और एफडीआई का दावा चिंदी-चिंदी नहीं होगा तो क्या होगा? यह सवाल आज देश के सामने मुहं बाए खड़ा है।
( रविंद्र पटवाल जनचौक की संपदाकीय टीम के सदस्य हैं।)