Friday, March 29, 2024

स्वामी प्रसाद मौर्या की हत्या पर इनाम की घोषण क्यों संविधान की आत्मा के ख़िलाफ़ है?

रामचरितमानस को बकवास करार देने, इस पर प्रतिबंध लगाने और इसकी कुछ पंक्तियों को बदलने के संदर्भ में सार्वजनिक बयान देने के बाद से समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्या लगातार सत्ता पक्ष और सत्ता समर्थित फ्रिंज समूहों के निशाने पर हैं। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में जगह-जगह उनके पुतले जलाए जा रहे हैं। इतना ही नहीं उनकी हत्या और अंग-भंग करने पर पुरस्कार रखा जा रहा है।

8 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को चिट्ठी लिखने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्या ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चुनौती दी कि वो उन साधु संतों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज़ करें जिन्होंने उनकी जीभ,नाक,सिर और गला काटने के लिये इनाम की घोषणा की है। साथ ही उन्होंने चुटकी भी ली है कि मुख्यमंत्री को मोहन भागवत के ख़िलाफ़ रासुका और मुक़दमा दर्ज़ करवाना चाहिए।

बता दें कि मोहन भागवत ने चार दिन पहले कहा था ‘ऊंच नीच की श्रेणी भगवान ने नहीं बल्कि ब्राह्मणों ने बनाई है।’ अब ज़रा एक नज़र डालते हैं कि आखिरकार मौर्या को किस-किस ने धमकियां दी हैं।

हत्या और अंग भंग करने पर इनाम
अयोध्या के हनुमान गढ़ी के महंत राजू दास ने 29 जनवरी को ऐलान किया था कि जो भी स्वामी प्रसाद मौर्या का सिर काटेगा उसे 21 लाख रुपए इनाम दिया जाएगा। इसके बाद ही अयोध्या की छावनी स्थित अखाड़े के जगद्गुरु परमहंस आचार्य ने स्वामी प्रसाद का सिर काटने वाले को 500 रुपए इनाम की घोषणा की। इतना ही नहीं उन्होंने स्वामी प्रसाद की तस्वीर को तलवार से काटते हए चेतवानी दी थी कि वो नहीं सुधरे तो वे खुद हाथों से उनका सिर कलम कर देंगे।

इतना ही नहीं हत्या को जस्टिफाई करते हुए परमहंस आचार्य ने यह भी कहा था कि राक्षसों का वध करना हमारी संस्कृति है। निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि ने धमकी दी कि वो सुधर जाएं वर्ना नागा संन्यासी उन्हें ठीक कर देंगे। वहीं बाराबंकी में 1 फरवरी को हिंदू सुरक्षा सेवा ट्रस्ट ने ऐलान किया था कि स्वामी प्रसाद मौर्या का सिर लाने वाले को 42 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा।

श्रावस्ती जिला मुख्यालय पर 1 फरवरी को हिंदू जागरण मंच की ओर से स्वामी प्रसाद मौर्या के पुतले को पहले गधे पर बिठाया गया और फिर जला दिया गया। हिंदू जागरण मंच के जिला संयोजक वेद प्रकाश मिश्रा की ओर से स्वामी प्रसाद मौर्या का सिर कलम करने वाले को 11 लाख रुपए का इनाम देने की घोषणा की गई । वहीं 24 जनवरी को अखिल भारत हिंदू महासभा के पदाधिकारी सौरभ शर्मा की ओर से एलान किया गया कि स्वामी प्रसाद मौर्या की जीभ काटने वाले को 51 हजार रुपए का चेक दिया जाएगा।

7 फरवरी को ब्राह्मण स्वाभिमान एकता मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिनेश तिवारी ने अमेठी में विरोध मार्च निकालने और एसडीएम को ज्ञापन सौंपने के बाद मीडिया के सामने ऐलान किया कि स्वामी प्रसाद मौर्या के चेहरे पर कालिख पोतने वाले को 25 हजार रुपए इनाम दिया जाएगा। इतना ही नहीं उस व्यक्ति के पोस्टर अमेठी में हर जगह लगाए जाएंगे।

23 जनवरी को कासगंज में अखंड आर्यावर्त निर्माण संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने स्वामी प्रसाद मौर्या को 5 जूते मारने वाले को 5100 रुपए इनाम देने की घोषणा की थी। कानपुर स्थित जनसंघ पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री राकेश दीक्षित की ओर से 31 जनवरी को घोषणा की गई थी कि जो भी स्वामी प्रसाद मौर्या को जूते मारेगा उसे प्रति जूता एक लाख रुपया दिया जाएगा।  

इसके अलावा प्रदेश के तमाम प्रांतों में हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा सपा एमएलसी के पुतले जलाए गए। ग़ाज़ियाबाद में हिंदू युवा वाहिनी के जिला अध्यक्ष आयुष त्यागी के नेतृत्व में विरोध रैली और पुतले को फांसी पर लटकाया गया। आजमगढ़ में हिंदू जागरण मंच द्वारा स्वामी प्रसाद मौर्या के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करके उनका पुतला दहन किया गया। अमेठी में अधिवक्ताओं द्वारा 1 फरवरी को स्वामी प्रसाद मौर्या का पुतला दहन किया गया।

मुरादाबाद में करणी सेना के प्रदेश अध्यक्ष योगेंद्र सिंह राणा के नेतृत्व में स्वामी प्रसाद मौर्या का पुतला दहन किय़ा गया। श्योपुर में हिंदू सेना द्वारा पटेल चौक से जय स्तंभ तक विरोध रैली निकालकर उनका पुतला दहन किया गया। बनारस में हिंदू सनातन रक्षक सेना अध्यक्ष पूनम मिश्रा की अगुवाई में सपा एमएलसी के पुतले का दहन किया गया। कानपुर में अखिल भारतीय मंदिर मठ समिति के बैनर तले कथित संतों के समूह द्वारा सिद्धनाथ मंदिर के महंत के साथ स्वामी प्रसाद मौर्या के खिलाफ़ विरोध रैली निकालकर उनके 10 सिरों वाले पुतले का दहन किया गया।

हत्या और अंग-भंग की घोषणा पर सरकार और प्रशासन की चुप्पी

स्वामी प्रसाद मौर्या की हत्या और उन्हें अंग-भंग करने के लिए हिंदुत्ववादी संगठनों ने जिस तरह इनाम की घोषणा की है वो संविधान में दिए गए अभिव्यक्ति के अधिकार पर हमला है। कई हिंदुत्ववादी संगठन और भाजपा नेता हिंदू जनभावनाओं को इस कदर भड़का रहे हैं कि सपा के राष्ट्रीय महासचिव मौर्या के साथ कभी भी किसी भी घटना को अंजाम दिया जा सकता है।

तो क्या अब इस देश में क़ानून और व्यवस्था इस कदर बिगड़ चुकी है कि कोई भी समूह और संगठन एक नेता की हत्या की सार्वजनिक घोषणा कर देगा और उसके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई तक नहीं होगी? आखिर उत्तर प्रदेश में प्रशासन के हाथ किसने बांध रखे हैं? प्रशान्त कनौजिया जैसे कई दलित और मुस्लिम पत्रकार, एक्टिविस्टों के सोशल मीडिया पोस्ट पर यूपी पुलिस की चुस्ती देखने वाली थी, ऐसे में यूपी पुलिस के पास अब क्या तर्क है भगवा आतंकियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई न करने की?

सपा एमएलसी की हत्या और अंग भंग की घोषणा करने वाले ज्यादातर लोग ब्राह्मण और ठाकुर जाति से हैं। कहीं इन अपराधियों की जाति तो क़ानून और व्यवस्था के पालन में आड़े नहीं आ रही?

स्वामी प्रसाद के ख़िलाफ़ दर्जनों एफआईआर

हैरानी की बात ये है कि धमकी देने वालों के खिलाफ़ तो कार्रवाई नहीं की गई लेकिन खुद मौर्या के खिलाफ़ मुकदमे ठोक दिए गए हैं। विश्व हिंदू परिषद विधि प्रकोष्ठ के प्रांत संयोजक अरविंद मिश्रा के मुताबिक स्वामी प्रसाद मौर्या के ख़िलाफ़ अब तक विहिप की ओर से राजधानी लखनऊ में दो मुकदमों के अलावा, गोरखपुर, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, कुंडा, झांसी, कानपुर और प्रयागराज में मुकदमे दर्ज करवाए गए हैं। राजधानी दिल्ली में भी महादेव सेना अध्यक्ष पंकज नंदा ने केस दर्ज़ करवाया है। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हिंदू महासभा द्वारा उनके खिलाफ़ एफआईआर दर्ज की गई है।

अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(क) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। मेनका गांधी बनाम संघ मामले में न्यायमूर्ति ने वाक स्वतंत्रता पर बल देते हुए कहा था कि लोकतंत्र मुख्य रूप से बातचीत और बहस पर आधारित है। सुप्रीमकोर्ट ने विचार और अभिव्यक्ति के मूल अधिकार को ‘लोकतंत्र के राज़ीनामे का मेहराब’ तक करार दिया था, क्योंकि लोकतंत्र की नींव ही असहमति के साहस और सहमति के विवेक पर निर्भर है। लेकिन सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्या के मामले में स्पष्ट दिख रहा है कि सरकार और राज्य उनके अभिव्यक्ति के अधिकारों का दमन करने वालों के साथ खड़ी है।

असहमति को अस्वीकार्य बना रही भाजपा

उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और राष्ट्रीय कद के नेता द्वारा एक साहित्यिक पुस्तक के आपत्तिजनक दोहों पर असहमति व्यक्त करने के बाद से जिस तरह वह सत्ताधारी दल औऱ सरकार के निशाने पर हैं, वो लोकतंत्र और संविधान को कलंकित करने वाला है।

लोकतंत्र में प्रतिपक्ष की व्यवस्था सिर्फ़ संसद या विधानसभा में विपक्षी सदस्यों की संख्या का नहीं बल्कि उनकी विचारधारा, संस्कृति, भाषा, नस्ल और वैचारिक असहमति का भी प्रतिनिधित्व होता है। लेकिन खुद सत्ता पार्टी और सरकार में शामिल लोगों द्वारा उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी को अस्वीकार करके उन्हें शत्रुवर्ग घोषित किया जा रहा है।

भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने मौर्या को ‘राक्षस’बताया है। यूपी भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने स्वामी प्रसाद मौर्या को सपा का राष्ट्रीय महासचिव बनाने पर सपा प्रमुख को मोहम्मद गौरी और गजनी बताते हुए कहा था कि उनके इस फैसले से साबित हो गया कि वे स्वामी प्रसाद मौर्या के हिन्दू आस्था और सनातन संस्कृति पर प्रहार करने वाले बयान के साथ हैं। सपा प्रमुख के कार्य मोहम्मद गजनी और मोहम्मद गौरी की याद दिलाते हैं।

इससे पहले खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सपा एमएलसी के बयान का विरोध करते हुए 2 फरवरी को कहा था कि “ओबीसी समाज पहले भी हिन्दू था और आज भी हिन्दू है। अनावश्यक रूप से एक नई बहस को जन्म देने का प्रयास किया जा रहा है।”

कुछ इसी तरह का बयान ग़ाजीपुर जिला मुख्यालय में कल मीडिया को संबोधित करते हुए डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या ने देते हुए कहा कि समाज की एकता से घबराकर ऐसा किया जा रहा है। स्वामी प्रसाद की कोई हैसियत नहीं है और वो अखिलेश यादव और सैफई के इशारे पर यह कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम के बयानों से जाहिर है भाजपा भयभीत है कि स्वामी प्रसाद मौर्या द्वारा रामचरित मानस के विवादित दोहों के मुद्दे से जातीय विभाजन बढ़ेगा और बहुजन जातियां हिंदुत्व और ब्राह्मणवाद के खिलाफ़ गोलबंद होंगी जिससे भाजपा के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशों को गहरा धक्का लगेगा। लेकिन सवाल अब भी वहीं है कि क्या राजनीतिक हित-अहित के लिए  देश के कानून व व्यवस्था को ताक पर रखकर सांप्रदायिक हिंसा को स्वीकृति प्रदान की जा रही है।

(यूपी से सुशील मानव की रिपोर्ट)

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