बड़े पैमाने पर गैर-दलितों ने मनाई आंबेडकर जंयती; राजनीतिक मजबूरी या सामाजिक बदलाव की चाहत?

अखिलेश मौर्या बताते हैं कि वो कांशीराम, पेरियार ललई, जगदेव बाबू कुशवाहा सबका जन्मदिन मनाते हैं। सम्राट अशोक जयंती पर भी उन्होंने आयोजन किया था। वो बहुजन विचारधारा मनाते हैं। कई बहुजन संगठन मिलकर 4 जून को चंपादेवी पार्क में बौद्धिक कॉन्क्लेव कराएंगे। अखिलेश कहते हैं कि बाबा साहेब किसी वर्ग या जाति विशेष के नहीं हैं। वो सबके हैं। उन्होंने सबके लिए, स्त्रियों के हक़ के लिए और समाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया।

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संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का 132वां जन्मदिवस 14 अप्रैल को देश भर में धूम-धाम से मनाया गया। गौर करने वाली बात यह रही कि बाबा साहेब के जन्मदिवस महोत्सव में गैर-दलितों ने भी बढ़-चढ़कर भागीदारी की और अपने-अपने स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किये। गैर-दलितों की भागीदारी दो स्तर पर रही। पहला- गांव स्तर पर गैर दलित ग्राम प्रधानों ने कार्यक्रम आयोजित किये, दूसरा- प्रगतिशील व कम्युनिस्ट संगठनों ने कार्यक्रमों का आयोजन किया।

गैर-दलित ग्राम प्रधानों ने मनाई आंबेडकर जयंती

उत्तर प्रदेश के तमाम गांवों में डीजे की धुन पर नाचते-गाते, झांकियां निकालकर आंबेडकर जन्म महोत्सव मनाया गया। गांवों को जातिवाद का गढ़ कहा जाता है। लेकिन अब गांवों में भी यह सूरत बदलते हुए दिखाई पड़ रही है। कई गांवों में गैर-दलित ग्राम प्रधानों ने आंबेडकर जयंती के कार्यक्रम आयोजित किये। तो कुछ गांवों में ग्राम प्रधानों ने आर्थिक मदद व अन्य तरह से भागीदारी निभाई। हालांकि इसमें सामाजिक बदलाव की इच्छाशक्ति कम ‘वोट का स्वार्थ’ ज्यादा दिखता है। यह प्रवृत्ति केन्द्र और राज्य स्तर की राजनीति से होते हुए गांव और कस्बे के स्तर की राजनीति तक पहुंची है।   

प्रयागराज जिले के झझरी ग्रामसभा में बहुत धूमधाम से बाबा साहेब का जन्मदिन मनाया गया। ग्राम प्रधान सुरेश जायसवाल ने डीजे, पोस्टर, बैनर, पानी आदि का खर्च वहन किया। इसी तरह ज़ाफरपुर ग्राम सभा के प्रधान भाले पटेल ने भी आंबेडकर जन्म महोत्सव का आयोजन किया और डीजे का पूरा ख़र्च वहन किया।

आंबेडकर जयंती पर ग्राम प्रधान सुरेश जायसवाल ने निकाली शोभायात्रा

फूलपुर ब्लॉक के पूर्व ब्लॉक प्रमुख और गिरधरपुर ग्राम निवासी मसूरियादीन यादव ने आंबेडकर महोत्सव का आयोजन किया। उनके गांव गिरधरपुर से डीजे और झांकी निकाली गई। पीछे-पीछे लोग नाचते गाते बाज़ार तक गए और वहां जनसभा की गई। सभा में बिरहा गायकों ने बाबा साहेब के संघर्षों और संदेशों पर बिरहा और जनगीत पेश किये। तमाम वक्ताओं ने सभा को संबोधित किया।   

पाली ग्रामसभा निवासी व ग्रामसभा के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक द्वारिका नाथ पांडे ने आंबेडकर जन्म महोत्सव में भागीदारी की। वो जनचौक को बताते हैं कि उनके कई शिक्षक साथी जाटव समाज से आते हैं। साथ ही गांव के जाटव समुदाय के प्रति वो भाईचारे की भावना रखते हैं। द्वारिका नाथ बताते हैं कि कार्यक्रम और आयोजन में उनकी भागीदारी मित्रता के नाते ही है।

द्वारिका नाथ पांडे कहते हैं कि शिक्षक समाज निर्माता होता है। बाबा साहेब ने देश का संविधान बनाया और शिक्षक देश का नागरिक गढ़ता है। अतः हर शिक्षक को आंबेडकर जन्मोत्सव में ज़रूर भाग लेना चाहिए ताकि समाज में यह सन्देश जाये कि बाबा साहेब देश और समाज के हर तबके के नेता हैं। भाईचारा और बराबरी और समाजिक न्याय के बाबा साहेब के सपने को साकार करने के लिए एक दूजे का हाथ पकड़कर हम एक साथ चल रहे हैं।  

नैनी के वॉर्ड नं 81 में मौर्या स्वीट्स के नरेंद्र मौर्या की तरफ से झांकी निकालने वाले लोगों के लिए नाश्ते आदि की व्यवस्था की गई थी।

आंबेडकर जयंती पर मिठाई का वितरण

सहसों में सुबह 8-10 बजे तक प्रथामिक स्कूल के सामने जीटी रोड पर आंबेडकर जंयती मनायी गयी। रवीन्द्र सिंह राजपूत, रमाकान्त मौर्या, संजय सम्राट आदि ने कार्यक्रम को संबोधित किया। संचालन धर्मेंद्र यादव ने किया। इसके बाद मेडुआ गांव से डीजे निकला। जुलूस में गांव के बच्चों ने आंबेडकरवाद क्यों ज़रूरी है, इस विषय पर घूम-घूम कर प्रचार किया और लोगों को जागरूक किया।  

गोरखपुर जिले के कई गांवों, कस्बों और शहरों में भी ग़ैर-दलित बिरादरी के लोगों ने आंबेडकर जन्मोत्सव का आयोजन किया। गोरखपुर शहर के निवासी और छात्र अखिलेश मौर्या के पिता दूध कारोबारी हैं और ‘अवध राव वॉटर’ नाम से पानी का प्लांट चलाते हैं। उनके चाचा पार्षद का चुनाव लड़ रहे हैं। अखिलेश मौर्या ने शहर में आंबेडकर जंयती का आयोजन किया।

अखिलेश मौर्या बताते हैं कि वो कांशीराम, पेरियार ललई, जगदेव बाबू कुशवाहा सबका जन्मदिन मनाते हैं। सम्राट अशोक जयंती पर भी उन्होंने आयोजन किया था। वो बहुजन विचारधारा मनाते हैं। कई बहुजन संगठन मिलकर 4 जून को चंपादेवी पार्क में बौद्धिक कॉन्क्लेव कराएंगे। अखिलेश कहते हैं कि बाबा साहेब किसी वर्ग या जाति विशेष के नहीं हैं। वो सबके हैं। उन्होंने सबके लिए, स्त्रियों के हक़ के लिए और समाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया।

अखिलेश मौर्या कहते हैं कि मानव को मानव ही माना जाये। रंग, जाति, ऊंच-नीच आदि में जकड़कर न देखा जाए। आंबेडकर जंयती मनाने के पीछे के प्रयोजन के बाबत पूछने पर वो बताते हैं कि इस तरह के आयोजन से अंधविश्वास के खिलाफ़ चेतना बढ़ रही है। बहुजनवर्ग तैयार हो रहा है। जिसके काउंटर में सत्तावर्ग रिफॉर्मेशन तेज करेगा। स्यूडो हिंदुइज्म 2014 से पहले कहीं नहीं था। EWS और तमाम दूसरे तरीकों से हमारी हकमारी हो रही है। शिक्षा संस्थानों के एडमिशन में खेल चल रहा है।

आंबेडकर जयंती पर कार्यक्रम

गोरखपुर के कटसिकरा गांव के निवासी शैलेश यादव पिछले कई साल से मिलजुल कर आंबेडकर जयंती मनाते आ रहे हैं। वो बताते हैं कि भाईचारा के नाते सभी जातियों के लोग मिलकर बाबा साहेब की जयंती मनाते हैं। वो बताते हैं कि दलित, ओबीसी और ठाकुर बिरादरी के लोगों ने मिलकर आंबेडकर जंयती मनाई।

पहले वो शहर रहते थे तो वहां मनाते थे। अब वह अपने गांव कटसिकरा में बी आर आंबेडकर जंयती आयोजित करते हैं। दो साल पहले उन्होंने अपने गांव में बुद्ध की मूर्ति लगवाई है। शैलेश विचार से आंबेडकरवादी हैं और दिखावे और आडंबर से दूर रहते हैं। वो कहते हैं कि सामाजिक भाई-चारे और समानता के रास्ते पर पूरा समाज चले यही सोच लेकर आगे बढ़ने का प्रयास किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि बाबा साहब के विचार को समाज में स्थापित करके ही संविधान के समानता, समाजिक न्याय और भाईचारा के मूल्यों को समाज में स्थापित किया जा सकता है। शैलेश ज़ोर देकर कहते हैं कि इसके पीछे उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा या एजेंडा नहीं है। वहीं देवीपुर गांव के अम्बरीश ने भी अपने गांव में बहुत धूम-धाम से आंबेडकर जयंती का आयोजन किया।

प्रगतिशील संगठनों ने मनाई आंबेडकर जंयती

दूसरे स्तर पर तमाम प्रगतिशील व मार्क्सवादी संगठनों ने बाबा साहेब के जन्मदिवस पर अपने अपने स्तर से कार्यक्रम आयोजित किए। ‘जय भीम, लाल सलाम’ की नीति व नारे के साथ आयोजित इन कार्यक्रमों में तमाम दलित, ग़ैर-दलित जनसमुदाय की भागीदारी रही। आंबेडकर को लेकर वाम संगठनों की दो बातें हैं। पहला, “अम्बेडकर ने अगस्त 1936 में अपनी पहली राजनीतिक पार्टी इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (ILP) बनायी। जिसे क्रिस्टोफर जाफ़रलॉट ने भारत की पहली वामपंथी पार्टी के रूप में वर्णित किया है।”

सीपीएम ने मनाई आंबेडकर जंयती

दूसरी, वजह यह हो सकती है कि भारत में क्लास से ज्यादा कास्ट मायने रखती है और कम्युनिस्ट संगठन जिस जनसमुदाय के बीच काम करते हैं वो हाशिये के लोग हैं, जिनमें बहुतायत दलित हैं। राजनीतिक तौर पर हाशिए पर पहुंच चुके वाम दलों को अपने सामाजिक और सांगठनिक अस्तित्व को बनाये रखने के लिए भी बाबा साहेब आंबेडकर की ज़रूरत है।

बीरकाजी गांव में इफको के मज़दूरों ने आंबेडकर जयंती का आयोजन किया। ऐक्टू से संबद्ध इफको ठेका मज़दूर संघ ने कार्यक्रम को आयोजित किया था। इफको ठेका मज़दूर संघ के अध्यक्ष विजय सिंह ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। इस मौके पर ऐक्टू के राष्ट्रीय सचिव और इंडियन रेलवे इम्प्लाइज फेडरेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कमल उसरी ने कहा कि बाबा साहेब ने मनमांड़ में रेलवे कर्मचारियों को संबोधित करते हुए कहा था कि मज़दूरों का शोषण पूंजीवाद और ब्राह्मणवाद दोनों करते हैं। वर्णव्यवस्था न केवल श्रम का बंटवारा करती है बल्कि श्रमिकों का भी बंटवारा करती है। 

जौनपुर जिले के मछलीशहर बाज़ार में कई सालों से आंबेडकर जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। यहां युवक- युवतियां लोगों से चंदा मांगकर आयोजन करते हैं। प्रभा बताती हैं कि चूंकि चुनाव का माहौल है, इस वजह से भी सभी जातियों के लोग मंच पर आये। वो बताती हैं कि सवर्ण और दूसरी बहुत सी जातियों के बच्चे और जवान लोग दोस्ती-यारी में आये और सहयोग किया।  

वन अधिकार संघर्ष समिति के बैनर तले आंबेडकर जंयती का कार्यक्रम

आदिवासी समाज के लोगों ने भी बाबा साहेब का जन्मदिन मनाया। वन अधिकार संघर्ष समिति के बैनर तले कई गांवों के आदिवासी कोरांव तहसील के किहुनी गांव में इकट्ठा हुए और धूमधाम से बाबा साहेब का जन्मदिन मनाते हुए सभा की। सभा में बाबा साहेब के संघर्षों और उनकी प्रतिज्ञाओं को दोहराया गया। बारी बारी से तमाम वक्ताओं ने सभा को संबोधित किया।    

(प्रयागराज से स्वतंत्र पत्रकार सुशील मानव की रिपोर्ट)

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