आदिवासी सरकार में भी क्यों हो रहे हैं आदिवासी पुलिसिया उत्पीड़न के शिकार?

Estimated read time 1 min read

झारखंड अलग राज्य गठन के 21 साल हो गए, एक रघुवर दास को छोड़कर राज्य के सभी मुखिया आदिवासी हुए हैं बावजूद इसके राज्य में आदिवासियों पर पुलिसिया उत्पीड़न की घटनाएं लगातार घटती रही हैं। 

हाल ही में बोकारो जिले में गोमिया के चोरपनिया गाँव के एक आदिवासी बिरसा मांझी की दयनीय स्थिति पर बात केन्द्रित करना चाहेंगे। बिरसा मांझी को दिसम्बर 2021 में जिले के जोगेश्वर विहार थाना बुलाकर थाना इंचार्ज द्वारा कहा गया कि वह एक 1 लाख रु का ईनामी नक्सल है और उसे सरेंडर करना होगा।

पुलिस के अनुसार बिरसा मांझी पिता बुधु मांझी तथाकथित एक लाख रुपए का ईनामी नक्सल है, जबकि इस बिरसा के पिता का नाम रामेश्वर मांझी है। बिरसा ने थाने में इस बात को बताया था एवं लगातार यह भी कहा कि उसका माओवादी पार्टी से जुड़ाव नहीं है, फिर भी उसे सरेंडर करने को कहा गया। बिरसा मांझी अभी डर में जी रहा है कि कहीं उसे इस फ़र्जी आरोप पर गिरफ्तार न कर लिया जाए या उसे किसी हिंसा का शिकार न बना दिया जाए। 

बताते चलें कि बिरसा व उसके परिवार की आजीविका मज़दूरी पर निर्भर है। परिवार के सभी वयस्क सदस्य अशिक्षित हैं। बिरसा व उसका बड़ा बेटा मजदूरी करने ईट भट्टा जाते हैं या बाहर पलायन करते हैं। इसके अलावा परिवार के अन्य सदस्य गाँव में ही रहते हैं, परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत कमज़ोर है। बिरसा मांझी व गाँव के कई लोगों पर 2006 में एक रिश्तेदार ने डायन हिंसा सम्बंधित मामला (काण्ड से 40/2006 पेटरवार थाना) दर्ज करवा दिया था। इन पर लगे आरोप गलत थे। उस मामले में अधिकांश लोग आरोप मुक्त हो चुके हैं। बिरसा के अनुसार पिछले कुछ सालों में उस पर माओवादी घटना से सम्बंधित आरोप लगाया गया, लेकिन मामले की जानकारी उसे नहीं है। 3-4 साल पहले इसकी कुर्की जब्ती भी की गयी थी। लेकिन आज तक बिरसा को पता नहीं चला कि किस मामले में कुर्की जब्ती की कार्यवाही हुई थी। उसे कार्यवाही से पूर्व किसी प्रकार का नोटिस कुछ भी नहीं दिया गया था।

बिरसा मांझी का माओवादी पार्टी से जुड़ाव नहीं है। इस बात की पुष्टि इसके पड़ोसी भी करते हैं। इसके बावजूद उसे एक ईनामी नक्सली करार देना एवं इसे सरेंडर करने के लिए कहना पुलिस की कार्रवाई पर कई सवाल खड़े करता है। मज़दूर वर्ग के एक गरीब व अशिक्षित आदिवासी पर इस प्रकार का गलत आरोप लगाना कोई नयी बात नहीं है। बिरसा को न उसके विरुद्ध मामले की जानकारी है और न आरोपों को गलत सिद्ध करने के वास्ते लम्बी क़ानूनी लड़ाई के लिए संसाधन है।

इस बाबत झारखंड जनाधिकार महासभा ने बोकारो एसपी को 4 जनवरी 2022 को एक पत्र देकर मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। महासभा का मानना है कि बिरसा मांझी पर ईनामी नक्सल होने का आरोप बेबुनियाद है। ऐसा प्रतीत होता है कि स्थानीय पुलिस द्वारा किसी माओवादी घटना के लिए आरोपी ढूंढने के क्रम में हवा में तुक्का मारा गया, जिसमें निर्दोष बिरसा मांझी को फंसाया गया।

महासभा मांग करती है कि बिरसा मांझी पिता रामेश्वर माझी का नाम ईनामी नक्सलों की सूची से हटाया जाए एवं इस पर माओवादी होने के सम्बन्ध में लगे गलत आरोपों को वापस लिया जाए। गोमिया क्षेत्र में ऐसे कई निर्दोष आदिवासी-मूलवासी हैं जिन पर माओवादी होने के गलत आरोप है। बताते चलें कि आदिवासियों के साथ यह कोई पहली घटना नहीं है, पुलिस द्वारा ऐसे अनेक लोगों को लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है। कभी उनकी नक्सली बताकर हत्या कर दी जाती है तो कभी नक्सल का आरोप लगाकर जेल में बंद कर दिया जाता है।

पिछले एक साल के दौरान राज्य के विभिन्न भागों में सुरक्षा कर्मियों द्वारा आम जनता पर हिंसा की वारदातें होती रही हैं।

दूसरी तरफ राज्य में आदिवासियों, गरीबों व सामाजिक कार्यकर्ताओं पर माओवादी होने का फर्जी आरोप लगाने का सिलसिला जारी है। पिछले कई सालों से UAPA के मामलों में लगातार वृद्धि हुई है। यह दुःखद है कि पुलिस द्वारा UAPA के बेबुनियाद इस्तेमाल कर लोगों को परेशान करने के विरुद्ध हेमंत सोरेन सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है, बोकारो के ललपनिया के कई मजदूरों, किसानों, जो आदिवासी-मूलवासी अधिकारों के लिए संघर्षरत रहे हैं, के खिलाफ माओवादी होने का आरोप लगाकर UAPA के तहत मामला दर्ज किया गया है। वे पिछले कई सालों से बेल एवं अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

please wait...

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments