चाईबासा, पश्चिमी सिंहभूम। मनरेगा को खत्म करने की मोदी सरकार की साजिश के खिलाफ झारखंड के ग्रामीण मनरेगा मजदूर अब आन्दोलित होने लगे हैं। इसी कड़ी में 25 अप्रैल को पश्चिमी सिंहभूम के चाईबासा में स्थित उपायुक्त कार्यालय पर मजदूरों ने धरना-प्रदर्शन कर अपना विरोध व्यक्त किया।
खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच के बैनर तले हुए इस कार्यक्रम में ज़िले के मजदूरों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। मजदूरों के इस धरना-प्रदर्शन का जिला मुखिया संघ ने भी समर्थन किया है। राज्य के कई संगठनों के प्रतिनिधि भी धरना-प्रदर्शन में शामिल हुए।
इस मौके पर आयोजित सभा को संबोधित करते हुए खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच के रामचंद्र मांझी ने कहा कि “मोदी सरकार मनरेगा को ख़त्म करने की साजिश के साथ इसे लगातार कमज़ोर कर रही है। सरकार द्वारा 2023-24 के मनरेगा बजट को पिछले साल की तुलना में 33% कम किया गया है।”
मांझी ने कहा कि “इस साल ऑनलाइन मोबाइल हाजरी प्रणाली (NMMS) को मज़दूरों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए तानाशाही तरीके से अनिवार्य कर दिया गया है। साथ ही, सरकार ने भुगतान के लिए आधार आधारित भुगतान प्रणाली (ABPS) को भी अनिवार्य कर दिया है। इन दोनों तकनीकों के कारण बड़े पैमाने पर मनरेगा मज़दूर काम व अपनी मज़दूरी से वंचित हो रहे हैं।”
मनरेगा मेट कौशल्या हेम्ब्रम ने बताया कि “NMMS के कारण मज़दूरों की परेशानियां और बढ़ गयी हैं। अब काम खत्म होने के बाद भी फोटो के लिए मज़दूरों को सुबह और दोपहर कार्यस्थल पर रहना पड़ता है। NMMS में विभिन्न तकनीकि समस्याओं व इन्टरनेट नेटवर्क की अनुपलब्धता के कारण कई बार न हाजरी चढ़ पाती है और न फोटो। इसके कारण मज़दूरों द्वारा किए गए मेहनत का काम पानी हो जाता है और वे अपनी मज़दूरी से वंचित हो जाते हैं।”
वहीं अस्रिता केराई ने बताया कि “NMMS के माध्यम से मज़दूरों द्वारा किए गए काम व उपस्थिति को MIS में कम करना या जीरो कर देना आम बात हो गयी है। इससे मज़दूर अपने मेहनत की मज़दूरी से ही वंचित हो जाते हैं।”
भोजन के अधिकार अभियान से जुड़े बलराम ने कहा कि “NMMS इस सोच पर बनी है कि मज़दूर व ग्राम सभा समेत सभी स्थानीय लोग चोर हैं और केवल केंद्र सरकार ही ईमानदार है। यह ग्राम सभा, पांचवी अनुसूची और लोकतंत्र का अपमान है।”
मंच के मानकी तुबिड ने कहा कि “अगर केंद्र सरकार इतनी पारदर्शिता की पक्षधर है तो NMMS को सरकारी पदाधिकारियों और मंत्रियों की हाजरी और वेतन के लिए जोड़ देना चाहिए, तब उन्हें मज़दूरों के मुद्दे समझ में आएंगे।”
मंच के प्रतिनिधि संदीप प्रधान ने कहा कि “जो मज़दूर ABPS से लिंक्ड नहीं हैं, उन्हें तो अब स्थानीय प्रशासन द्वारा काम भी नहीं दिया जा रहा है। अगर मस्टर रोल में कुल मज़दूरों में केवल एक भी ABPS लिंक्ड नहीं है, तो सभी मज़दूरों का भुगतान रोक दिया जा रहा है।”
उन्होंने कहा कि “जहां पूरे राज्य में मनरेगा मज़दूरों की संख्या लगभग एक करोड़ है, वहीं पश्चिमी सिंहभूम जिले में मनरेगा मजदूरों की संख्या 4,83,874 है, जिनमें से केवल आधे ही ABPS लिंक्ड हैं। मतलब साफ है कि आधे मजदूर अपने हक अधिकार से वंचित हो गए।”
मुखिया संघ के अध्यक्ष हरिन तामसोय ने कहा कि “इन तकनीकों के कारण अब पंचायत स्तर पर सब कुछ सही से करने के बावज़ूद भी मज़दूर भुगतान से वंचित हो रहे हैं। मनरेगा में अब पूरा केन्द्रीकरण हो गया है। पारदर्शिता के बहाने मनरेगा योजना को ही खत्म करने की केंद्र सरकार की साजिश है।”
नरेगा वॉच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज ने कहा कि “मनरेगा मज़दूरों की ऐसी स्थिति सिर्फ पश्चिमी सिंहभूम तक ही सीमित नहीं है बल्कि पूरे देश में है। झारखंड समेत पूरे देश के मनरेगा मज़दूर पिछले 60 दिनों तक दिल्ली के जंतर-मंतर पर इन मुद्दों पर धरना दिए, लेकिन केंद्र सरकार का मज़दूर विरोधी रवैया जारी है।”
मंच के सिराज दत्ता ने कहा कि “मोदी सरकार एक तरफ अडानी व चंद कॉर्पोरेट घरानों को तरह तरह के फायदे पहुंचा रही है और दूसरी तरफ मनरेगा समेत अन्य सामाजिक व खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों को लगातार कमज़ोर कर रही है। जाहिर है केंद्र सरकार का यह कदम जनविरोधी है।”
मंच के प्रतिनिधियों ने कहा कि दुःख की बात है कि अभी तक राज्य सरकार ने केंद्र सरकार की इन मज़दूर विरोधी नीतियों का विरोध नहीं किया है और मनरेगा को बचाने की लड़ाई में मज़दूरों के साथ खड़ी नहीं दिख रही है। 2019 चुनाव के पहले वर्तमान सत्तारूढ़ दल बढ़-चढ़ कर मनरेगा मज़दूरों के अधिकारों की बात करते थे। लेकिन अब उनकी जुबान हिल भी नहीं रही है।”
धरना में आए लोगों ने मनरेगा मज़दूरों के प्रति राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन की उदासीनता पर अपनी बातें रखीं। लोगों ने कहा कि ज़िला से हर साल की तरह इस साल भी रोज़गार की तलाश में व्यापक पलायन हो रहा है।
बनमाली बारी ने कहा कि “अभी मज़दूरों को काम की ज़रूरत है लेकिन ज़िले के अनेक गावों में कई महीनों से एक भी कच्ची योजना का कार्यान्वयन नहीं किया गया है। काम की मांग करने के बाद भी समय पर सभी मज़दूरों को काम नहीं दिया जाता है। बड़े पैमाने पर भुगतान बकाया है।
खूंटपानी की मज़दूर रानी जामुदा ने बताया कि “उनके 62 दिन काम का भुगतान बकाया है।” हाट गम्हरिया के मज़दूर मुदुई सुंडी ने कहा कि “एक साल पहले 40 दिन काम किया था, जिसका भुगतान अभी भी बकाया है।” तांतनगर की पूर्ति, जिनका कई महीनों से भुगतान बकाया है ने कहा कि “कैसे बिना मज़दूरी भुगतान के भूखे पेट काम किया जा सकता है।”
लोगों ने कहा कि बिचौलियों और स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत से बड़े पैमाने पर फ़र्ज़ी मस्टर रोल निर्गत कर चोरी की जा रही है जिसके कारण कागज़ पर काम दिखता है लेकिन धरातल पर नहीं। शिकायतों पर कार्रवाई भी नहीं की जाती है, जिससे प्रशासन की मिलीभगत स्पष्ट है।
धरने के अंत में मंच द्वारा मुख्यमंत्री को संबोधित मांग पत्र एवं उपायुक्त को ज़िला स्तरीय समस्याओं से सम्बंधित मांग पत्र दिया गया, जिसमें कई मांगों को रखा गया….
- ऑनलाइन मोबाइल हाजरी व्यवस्था व आधार आधारित भुगतान प्रणाली तुरंत रद्द किया जाए।
- मनरेगा बजट को बजट बढ़ाने के साथ-साथ मनरेगा मज़दूरी दर को कम-से-कम 600 रु प्रति दिन किया जाए।
- सरकार हर गांव में मनरेगा के अंतर्गत पर्याप्त संख्या में कच्ची योजनाओं का कार्यान्वयन शुरू करे।
- लंबित भुगतान का सर्वेक्षण करवा कर मुआवज़ा सहित मज़दूरी भुगतान किया जाए।
- ठेकेदारी और भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए एवं दोषी कर्मियों व पदाधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। शिकायतों पर भी कार्रवाई हो।
- किसी भी परिस्थिति में काम किए गए मस्टर रोल को MIS में जीरो न किया जाए। ऐसा करने वाले दोषी कर्मियों के विरुद्ध कार्रवाई की जाए।
- किसी भी परिस्थिति में बिना भौतिक व ग्राम सभा के सत्यापन के बिना कोई भी जॉबकार्ड रद्द न किया जाए।
(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट)