उफ़! योगी अपनी गलती को स्वीकार ना करते हुए महाकुम्भ मेले में हुई दो भगदड़ों को सनातन के ख़िलाफ़ साज़िश बता रहे हैं। वह भी घटना के पांच दिन बाद। आज तक वे भगदड़ में हुई 30 मौतों पर स्थिर हैं। जबकि कई वाहन कुंभ क्षेत्र के बाहर अपने लोगों की प्रतीक्षा में खड़े बाट जोह रहे हैं। हज़ारों लोग अपने लोगों की तलाश में कुंभ क्षेत्र से हटाए जाने के बाद बदहाली में प्रयागराज में घूम रहे हैं।
कहते हैं, इन पांच दिनों में योगी जी यानि बुलडोजर बाबा ने वहां का कचरा जिसमें भगदड़ में मारे गए दोनों क्षेत्र का कचरा यानि उनका सामान समेट कर ट्रैक्टर के ज़रिए गंगा तट पर दूर जला दिया है। ऐसा क्यों हुआ उस सामान से ही तो मृत और गुमशुदा की रायशुमारी हो सकती थी।
झूंसी क्षेत्र से रिपोर्टर बराबर बता रहे हैं कि यह काम इतनी फुर्ती से हुआ कि भक्तों की लाशें और उनका सामान फूंकने में देर नहीं की गई। इसलिए उस घटना का कोई उल्लेख प्रशासन और मुख्यमंत्री नहीं कर रहे।
एक वीडियो की रिकॉर्डिंग बता रही है कि जो लोग कथित कचरे को जला रहे थे उनमें लाशें देख दो लोग भागते हैं उन्हें पुलिस पकड़ लेती है। उनका क्या हाल हो रहा होगा? हम सब जानते हैं। अनेकों चित्र स्पष्ट तौर पर सच दिखा रहे हैं उनकी सरासर अनदेखी हो रही है।
अब सवाल इस बात का है जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जी कह रहे हैं ये सनातन के ख़िलाफ़ साज़िश है तो कौन कर रहा है उसे स्पष्ट करना होगा। मुसलमान तो भीड़ में कोई नहीं था। सब सनातनी ही तीर्थ क्षेत्र में प्रविष्ट हुए थे। वे सब भक्तिभाव में डूबे लोग थे।
ये ज़रूर किसी ऐसे कुछ मदमस्त उद्दंड भक्तों का कारनामा हो सकता है जिसने भीड़ को संगम नोज़ पर हो रहे नागा साधु संत द्वारा किए जा रहे अमृत स्नान उर्फ शाही स्नान देखने का ढिंढोरा पीटकर भक्तों को उकसाया। जिससे वे सोते और कहीं उनीदें लोगों को कुचलते और गिरते-पड़ते बढ़ते रहे।
दूसरी ओर दोषी तो संघ द्वारा पोषित कथावाचक भी इस घटना के जिम्मेदार हैं जिन्होंने इस दिन के अमृत स्नान का ज्ञान देकर मौनी अमावस्या को करोड़ों लोगों को यहां एकत्रित होने का हुक्म दिया। लेकिन सबसे ज़्यादा जिम्मेदार तो खुद योगी-मोदी सरकार ही है जिन्होंने इस महाकुंभ को विश्व का सबसे बड़ा मेला बनाने की कुचेष्टा की।
विदेशियों को यहां लाने वीवीआईपी घाट बनाकर विश्व में अपना रुतबा कायम कर सनातन परम्परा को तोड़ा। उनकी देखरेख और सुरक्षा में समूचा प्रशासन लगा रहा। आम जनता को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया। देश भर में बड़े-बड़े इनके पोस्टरों ने भी भीड़ को आमंत्रित किया।
अफ़सोसनाक यह है कि इन दर्दनाक घटनाओं की जानकारी संतों और साधुओं तक नहीं पहुंचाई गई उन्हें धोखे में रखा गया और कूटनीति के तहत उनके शाही स्नान करवाए गए। यह कैसा महाकुम्भ जहां दो तरफ़ हाहाकार और चीत्कार हो वहां गंगा में शाही स्नान जारी रखा गया। आखिरकार वे सब भी तो पवित्र स्नान करने आए थे और लातों जूतों से कुचले गए जिनमें ज़्यादातर मां बहनें थीं।
इतना सब होने के बावजूद शर्मसार तब और होना पड़ा जब 77 देशों से आए विदेशी मेहमानों की भरपूर खातिरदारी करने फटाफट इस परिक्षेत्र को साफ़ करके पहली जिम्मेदारी पूरी शिद्दत के साथ निभाई।
माननीय उपराष्ट्रपति भी भगवा पोशाक में उनके साथ नमूदार थे। उनकी खुशगवार तस्वीरें देखकर किसी को भी रोना आ जाएगा। खैरियत ये रही कि मोदी जी ने इस स्थिति से अपने को दूर कर लिया, वे स्नान हेतु नहीं गए। चूंकि प्रयागराज में योगी मोदी हाय-हाय नारे लग चुके थे। इसलिए योगी हवाई सर्वे किए और मोदी ने दिल्ली चुनाव का बहाना बना लिया जिससे उनके स्नान का मतदान के दिन होने वाला इवेंट धरा रह गया।
ये स्थितियां बताती हैं कि वहां के हालात कितने विकराल हैं। ऐसी कठिन परिस्थितियों में एक बार फिर क्षेत्र के मुस्लिम भाइयों ने तीर्थयात्रियों की खिदमत हेतु मस्जिद और अपने घर के दरवाजे खोले और हिंदुओं ने वहां शरण ली खाया पीया। उसने भी इस उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को गहरी चोट पहुंचाई है।
अब अपनी गलती मानने की जगह वे इन घटनाओं को सनातन विरोधियों की साज़िश मान रहे हैं उन्हें शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद की बात का भरोसा करना चाहिए जो साफ़ तौर पर इसे प्रशासन की ग़लती मान रहे हैं।
शंकराचार्य को यह मलाल है कि इतनी बड़ी घटना को अंधेरे में रखकर सरकार ने नागा साधु-संतों को मौनी अमावस्या पर स्नान कराने का यश लिया जो अपयश बन गया। जबकि कई अखाड़ों के महामंडलेश्वर स्नान ना करने की घोषणा कर चुके थे।
इस सबके बावजूद योगी जिस तरह रामभद्राचार्य और अन्य संत लोगों से मिले जो योगी की तारीफ कर रहे हैं वह डरावना सच है तथा आज की सनातन संस्कृति का पुख्ता प्रमाण है।
कुल मिलाकर, अब जो परिवर्तन कुंभ क्षेत्र में हो रहा वह यह सिद्ध करता है कि इससे पहले ठीक-ठाक व्यवस्था नहीं थी। यह स्वत: सिद्ध करता है कि करोड़ों आम भक्तों को कुंभ में राम भरोसे छोड़ दिया गया था। वरना यह त्रासद स्थिति ना बनती। अब देखना यह है बड़ी तादाद में गुमशुदा लोगों के बारे में सरकार कोई सूची जारी करती है या नहीं।
हालांकि मात्र 30 मृत लोगों की जानकारी मिलने से इन दुखी लोगों को कोई उम्मीद नहीं है। साज़िश का राजनीतिकरण करने की आशंकाएं बलवती हैं। अभी तो 45-50 करोड़ लोगों का कोटा पूरा करने की तैयारी जारी है। अब ऐसी सोच से अंधभक्तों पर क्या कुछ असर होता भी है या नहीं यह महत्वपूर्ण होगा।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)
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