पंजाब में शराब की दुकान पर जमावड़ा।

पंजाब में शराब को लेकर घमासान

कोरोना वायरस के बाद शराब इन दिनों पंजाब में सबसे बड़ा मुद्दा है। सूबे की समूची सियासत मानों इस मुद्दे के नशे में सराबोर हो गई है। शराब को लेकर इससे पहले राजनीति इस हद तक कभी नहीं गरमाई थी। राज्य की ब्यूरोक्रेसी का एक प्रभावशाली बड़ा हिस्सा भी शराब से वाबस्ता गंभीर विवादों में संलिप्त है। उधर, घनघोर सुरा-प्रेमी पंजाब में कोरोना टैक्स के अतिरिक्त भार के साथ तमाम जगह शराब के ठेके खुल गए हैं लेकिन उन पर सदा रहने वाली रौनक सिरे से गायब है। वर्षों से शराब के कारोबार में एकमुश्त वर्चस्व रखने वाले ठेकेदार भी अब इस धंधे से किनारा करना चाह रहे हैं। कोरोना वायरस के चलते लागू सख्त कर्फ्यू और लॉकडाउन ने आश्चर्यजनक ढंग से राज्य के चप्पे-चप्पे में शराब तस्करी का कुजाल फैला दिया। भरोसेमंद जानकारों की माने तो पंजाब में शराब पीने वालों की कुल तादाद में से अब आधे से ज्यादा लोग तस्करी की शराब पी रहे हैं, जो उन्हें अधिकृत ठेकों की बजाय घर बैठे सस्ते दामों पर सहज उपलब्ध हो जाती है।                           

पिछले दिनों नई शराब नीति को लेकर मुख्य सचिव करण अवतार सिंह और वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल की अगुवाई में कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्री आपस में भिड़े थे। मुख्य सचिव मंत्रिमंडल की बैठक और औपचारिक सहमति के बगैर ही नई शराब नीति बना कर ले आए और कहा कि पॉलिसी बनाना नौकरशाहों का काम है। मनप्रीत सिंह बादल और अन्य मंत्रियों ने इसका तीखा विरोध करते हुए कहा कि नीतियां जनप्रतिनिधि बनाते हैं और अफसरों का काम उन्हें सिर्फ लागू करना होता है। यह विवाद मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से होता हुआ कांग्रेस आलाकमान तक भी पहुंचा। मुख्यमंत्री के ‘किचन कैबिनेट’ के सदस्यों ने भी चीफ सेक्रेटरी से नाराज मंत्रियों और विधायकों का साथ दिया। पंजाब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुनील कुमार जाखड़ भी खुलकर खफा वजीरों के पक्ष में हैं। वह कहते हैं, “मुख्य सचिव को शराब नीति बनाने का कोई अधिकार नहीं है। उनका सुलूक एतराज भरा था।

समझ नहीं आ रहा कि मुख्यमंत्री को उन्हें हटाने में क्या दिक्कत आ रही है।” मुख्यमंत्री के खिलाफ एक सशक्त लॉबी का नेतृत्व करने वाले पूर्व प्रदेश कांग्रेसाध्यक्ष और राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा खुलकर कहते हैं कि राज्य में नाजायज शराब माफिया को कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनके खासमखास आला प्रशासनिक अधिकारियों का खुला संरक्षण हासिल है। बाजवा के मुताबिक, “हमारी सरकार में पनपा शराब और नशा माफिया अब पूरे तंत्र पर हावी है। हालात पिछली अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार से भी बदतर हैं।”         

नई शराब नीति पर हुई मुख्य सचिव और कैबिनेट मंत्रियों की तकरार के बाद दो दिन पहले मुख्यमंत्री ने मंत्रियों और विधायकों की ‘लंच मीटिंग’ बुलाई थी लेकिन वह बेनतीजा रही। इस बीच कांग्रेस आलाकमान के करीबी माने जाने वाले, अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और तीन बार के विधायक राजा वडिंग अमरिंदर सिंह ने मुख्य सचिव पर संगीन आरोप लगाया कि उनका बेटा शराब के अवैध कारोबार में संलिप्त है और शराब बेचने वाली कुछ बड़ी कंपनियों के साथ उनकी हिस्सेदारी है। मुख्य सचिव ने इससे इंकार किया है लेकिन विधायक अपने आरोप पर कायम हैं और कहते हैं कि वे तमाम सुबूत सार्वजनिक करेंगे जो यह जाहिर करेंगे कि निजी हितों के लिए चीफ सेक्रेटरी की ज्यादा गहरी दिलचस्पी पंजाब की शराब नीति में है। राजा वडिंग के पास मुख्यमंत्री के सलाहकार का ओहदा भी है।               

पंजाब में जारी कर्फ्यू और लॉकडाउन में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के गृह जिले राजपुरा और खन्ना में नकली शराब फैक्ट्रियां पकड़ी गई थीं और उसके बाद गांव पबरी में भारी मात्रा में ईएनए की बरामदगी हुई। ये बहुत बड़े मामले थे और राज्य के उच्च राजनीतिक गलियारों तथा अफसरशाही हलकों में खुली चर्चा है कि तार बहुत दूर तक जुड़े हुए हैं। एक पुलिस अधिकारी ने इस पत्रकार से कहा कि नकली शराब फैक्ट्री का पकड़े जाना इसलिए संभव हुआ क्योंकि आरोपियों की मुखबिरी उनके ही कुछ पुराने साथियों ने की थी। मामला बहुत आगे तक चला गया, इसलिए कार्रवाई हुई।

शिरोमणि अकाली दल का आरोप है कि पंजाब सरकार द्वारा मिलीभगत के कारण नशे के सौदागरों को बचाने की कोशिश की जा रही है। पूर्व अकाली मंत्री सुरजीत सिंह रखड़ा के अनुसार राजपुरा की नकली शराब फैक्ट्री के मामले में जिन लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है, वे कांग्रेसी विधायक के घर छिपे हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ घन्नौर से कांग्रेस विधायक मदनलाल जलालपुर कहते हैं कि पबरी में पकड़ी गई हजारों लीटर ईएनए जिस कोल्ड स्टोर से बरामद की गई है, वह घोषित रूप से भाजपा नेता की है।                                             

पंजाब में बच्चा-बच्चा जानता है कि पिछली सरकार के कार्यकाल से ही नाजायज शराब का धंधा चप्पे-चप्पे में फैला हुआ है। यह सब मिलीभगत से हो रहा है। एक अनुमान के मुताबिक लॉकडाउन और कर्फ्यू के बीच ही तकरीबन 3 हजार करोड़ की नाजायज शराब का अवैध कारोबार पंजाब में हुआ। फैक्ट्रियां पकड़े जाने के बाद सरकार की खासी किरकिरी हुई और शराब के मामले में खुद वरिष्ठ मंत्रियों और कांग्रेसी विधायकों ने सीधे मुख्यमंत्री की कार्यशैली पर सवाल उठाए तो कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पुलिस विभाग को सख्त हिदायतें जारी करने की कवायद की कि जिस इलाके में नाजायज शराब का कारोबार सामने आया है, उस इलाके के अफसर पर कार्रवाई की जाएगी। जमीनी सच्चाई यह है कि शराब तस्करी बंद नहीं हुई और आप किसी भी ब्रांड की शराब ठेके से सस्ते दाम पर सूबे के किसी भी हिस्से से आसानी के साथ खरीद सकते हैं।                               

अब आलम यह है कि पौने दो महीने शराब के ठेके बंद रहे और खुले हैं तो पिछले साल की तुलना में 35 से 40 प्रतिशत के लगभग ही शराब की बिक्री हो रही है। लुधियाना में सबसे ज्यादा ग्रुप चला रहे एक शराब कारोबारी ने बताया कि अधिकृत ठेकों पर शराब की बिक्री में बेतहाशा कमी आई है। 21 मई को चंडीगढ़ में पंजाब के कुछ बड़े ठेकेदारों और आबकारी विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी के बीच लंबी बैठक हुई है। इस बैठक में ठेकेदारों ने जोर देकर कहा कि राज्य सरकार आबकारी नीति में अहम परिवर्तन करते हुए उन्हें राहत दे। लंबी अवधि तक शराब के ठेके बंद रहे और तब की भी पूरी फीस सरकार की ओर से वसूली जा रही है। अतिरिक्त कर लगाए गए हैं। जबकि पड़ोसी राज्यों ने अपनी नीतियां बदलते हुए शराब कारोबारियों को राहत दी है। जालंधर के एक बड़े शराब कारोबारी का कहना है कि सरकार ने तत्काल राहत न दी तो ठेकेदार इस धंधे से किनारा करने लगेंगे। ठेकेदार डूबेंगे तो सरकार को भी जबरदस्त राजस्व हानि होगी। 

(अमरीक सिंह पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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