बीएसएनएल का दफ्तर।

BSNL श्रमिकों को नहीं मिला पिछले 13 महीनों से वेतन, भुखमरी के कगार पर पहुंचे परिवार

देहरादून। बीएसएनएल के श्रमिकों को पिछले तेरह महीनों से वेतन नहीं मिला है। लॉकडाउन के चलते उनकी जिंदगी और मुश्किल हो गयी है। हालात ये हो गए हैं कि समाजसेवी इनको भोजन पहुंचा कर इनकी मदद कर रहे हैं।

ये मामला भी तब सामने आया जब एक समाजसेवी संस्था ने अपनी फेसबुक स्टेटस में डाला कि आज बीएसएनएल के श्रमिकों को मदद पहुंचाई जिन्हें साल भर से वेतन नहीं मिला है ।

कुशल श्रेणी के ये करीब 170 श्रमिक हैं जो डाटा ऑपरेटर, केबल मेंटिनेंस, लाइन मेंटिनेंस, मोबाइल टावर आदि फील्ड वर्क से संबंधित काम करते हैं। काम का समय भी निश्चित है सुबह 10 से शाम 5 बजे, पर शोषण का हाल यह है कि यह सारे काम सुबह 7 बजे से रात भर भी कराए जा सकते हैं ।

ये सब पहले विभागीय कर्मचारी थे जिनकी नियुक्तियां वर्ष 1996-97 से हुई हैं। पर वर्ष 2005 आते-आते ठेकेदारी प्रथा शुरू होने के चलते विभाग ने इन्हें ठेका मजदूर बनने पर मजबूर कर दिया।

उर्बा दत्त मिश्रा, ललितेश प्रसाद, कैलाश चंद्र, जगदीश प्रसाद, आशीष कुमार, जगत सिंह जीना, शंकर लाल, पंकज दुर्गापाल, चंद्रशेखर पांडे, नवीन कांडपाल बताते हैं कि पहले तो 13 माह से पगार ही नहीं मिली है जो करीब सात हजार रुपए प्रति माह होती है। इसमें अनियमितताओं का हाल यह है कि जब वर्क रेट 11600 रुपए प्रति श्रमिक था तब भी 7 हजार मिलते थे अब वर्क रेट 13500 है तब भी 7 हजार ही मिलते हैं वो भी 13 महीनों से दिए ही नहीं गए हैं ।

ये बताते हैं कि इसकी शिकायत भी जब इन लोगों ने जिलाधिकारी से की तो उन्होंने श्रम विभाग को लिख दिया, अब तब से वहां के चक्कर लगाना भी उनके काम में जुड़ गया है । मुश्किल यह है कि ठेकेदार से उनका कभी सामना होता नहीं है और विभाग से तनख्वाह की बात करो तो बाहर किए जाने की आशंका बनी रहती है। ऐसी अनियमितताओं के चलते करीब 150 स्थाई श्रमिक भी स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ले चुके हैं ।

ये सब तब है जब बीएसएनएल के कई एक्सचेंज ( बरेली रोड, लामाचौड़, चोरगलिया, रानीबाग, काठगोदाम आदि जगहों ) में स्थायी श्रमिक नहीं हैं, जिनकी जिम्मेदारी भी इन्हीं पर है जहां ये हर तरह की सेवाएं देने को मजबूर हैं ।  

इस मामले पर जब कर्मचारियों ने ‘सब डिविजनल इंजीनियर’ हेमन्त प्रसाद से बात की तो उनका कहना था कि बेशक ये समस्याएं बनी हुई हैं पर हमारे पास फंड्स की कमी के चलते ये सब हो रहा है, क्योंकि सारी नीतियों का निर्धारण हमारे कॉरपोरेट आफिस दिल्ली से होता है । हम तो अपनी पगार से कुछ कटौती कर इनको भुगतान की बात भी कह चुके हैं ।

अब ऐसी स्थिति में ये श्रमिक कितने समय तक और ऐसी परिस्थितियों का सामना कर पाएंगे, कैसे अपना परिवार संभाल पाएंगे ये किसी भी अधिकारी के जेहन में नहीं है।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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