बिहार चुनाव में बच्चे भी हुए शरीक, कहा- चुनें उन्हें जो बचपन बचाएं!

बिहार विधानसभा चुनाव का घमासान जारी है। अगले तीन चरणों में होने वाले चुनाव के पहले चरण की वोटिंग बुधवार को होने वाली है। ऐसे में राजनीतिक दलों ने वोटरों को लुभाने की घोषणाओं की झड़ी लगा दी है। कोई 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने का वादा कर रहा है, तो कोई 19 लाख। कोई वोट देने पर मुफ्त में कोरोना वैक्‍सीन देने का वादा कर रहा है, तो कोई संविदाकर्मियों को स्‍थायी कर देने का। जाहिर है ये वादे और घोषणाएं उनके लिए की जा रही हैं जो वोटर हैं। बच्‍चे वोटर नहीं हैं तो उनके लिए राजनीतिक दलों के डब्‍बे खाली हैं, जबकि बिहार का हर दूसरा व्‍यक्ति बच्‍चा है और सबसे ज्‍यादा असुरक्षित भी बच्‍चे ही हैं।

ऐसे में कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेंस फाउंडेशन (केएससीएफ) द्वारा संचालित ‘मुक्ति कारवां’ जन-जागरूकता अभियान को संचालित करने वाले बाल और बंधुआ मजदूरी एवं दुर्व्‍यापार (ट्रैफिकिंग) से मुक्‍त युवाओं ने अपना एक मांगपत्र पेश किया है। इस मांगपत्र के जरिए उन्‍होंने बिहार विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेने वाले सभी राजनीतिक दलों के उम्‍मीदवारों तथा वोटरों से बाल मित्र बिहार बनाने का आह्वान किया है। उन्‍होंने राज्‍य के जागरूक मतदाताओं से खास अपील की है कि ‘चुनें उन्‍हें जो बचपन बचाएं, सुरक्षित और शिक्षित बिहार बनाएं।’

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, बिहार से वर्ष 2017 में 18 वर्ष से कम उम्र के कुल 395 बच्चों का दुर्व्‍यापार किया गया, जिनमें 362 लड़के और 33 लड़कियां शामिल थीं। इनमें से 366 से जबरिया बाल श्रम कराया कराया जाता था। बिहार पुलिस ने 2017 में बच्चों का दुर्व्‍यापार करने वालों के खिलाफ 121 एफआईआर दर्ज की, लेकिन एक भी आरोप-पत्र दायर नहीं किए जाने के कारण कार्यवाही आगे नहीं बढ़ी तथा मामलों का निष्‍पादन शून्य रहा।

बाल और बंधुआ मजदूरी एवं दुर्व्‍यापार से मुक्‍त युवाओं ने अपने मांगपत्र के माध्‍यम से जितनी भी मांगें पेश की हैं, सभी की सभी बाल मित्र बिहार बनाने के दृष्टिकोण से उपयुक्‍त और महत्‍वपूर्ण हैं। पंचायतों में विलेज माइग्रेशन रजिस्‍टर रखवाने, सभी जिलों में मानव दुर्व्‍यापार विरोधी इकाई (एएचटीयू) का गठन और उसकी जवाबदेही सुनिश्चित करने तथा गांव, जिला और राज्‍य स्‍तर पर बाल दुर्व्‍यापार को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की उन्‍होंने जो मांग की है, वे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और लॉकडाउन के दौर में काफी प्रासंगिक हैं। विलेज माइग्रेशन रजिस्‍टर में गांव में आने वाले और जाने वाले प्रत्‍येक बच्‍चों का विवरण रखा जा सकेगा तथा सभी बच्‍चों की निगरानी संभव हो पाएगी। फिर उसके आधार पर मानव दुर्व्‍यापार विरोधी इकाई (एएचटीयू) और पुलिस प्रशासन के सहयोग से दुर्व्‍यापार किए गए बच्‍चों को बचाया जा सकेगा।

गौरतलब है कि कोविड-19 से बचाव के लिए जब से लॉकडाउन लागू किया गया है तब से लाखों प्रवासी मजदूरों की बिहार के गांवों में वापसी हुई है। लॉकडाउन के कारण उनके पास रोजगार का साधन नहीं रहने से दो जून की रोटी का प्रबंध करने में भी वे अक्षम हैं। ऐसे में मजबूरन उन्‍हें अपने बच्‍चों को बालश्रम के दलदल में धकेलना पड़ रहा है और उनका भारी पैमाने पर दुर्व्‍यापार किया जा रहा है। गौरतलब है कि सिर्फ बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने ही हजार से अधिक बच्‍चों को पिछले छह-सात महीनों के दरमियान बाल शोषण के दलदल में धंसने से बचाया है।

युवाओं ने बिहार के सभी बच्‍चों को 12वीं कक्षा तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने की जो पहली मांग की है वह सबसे महत्‍वपूर्ण एवं दूरगामी है। आमतौर पर गरीबी के कारण ही हाशिए के बच्‍चों की पहुंच शिक्षा तक संभव नहीं हो पाती है और उन्‍हें अपने परिवारों का गुजारा चलाने के लिए बाल मजदूरी करने को मजबूर होना पड़ता है। सभी बच्‍चों की 12वीं कक्षा तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित होने से एक तरफ जहां वे स्‍कूल में होंगे एवं बाल मजदूरी की आशंका भी उत्‍पन्‍न नहीं होगी, वहीं दूसरी तरफ उन्‍हें सुरक्षा भी उपलब्‍ध होगी। सर्वेक्षणों के जरिए यह तथ्‍य छनकर सामने आ रहा है कि लॉकडाउन ने बच्‍चों को घर पर रहने को मजबूर किया है और उन्‍हें अपने परिवार के लोगों द्वारा ही तरह-तरह की हिंसाओं का सामना करना पड़ रहा है।

पॉक्‍सो (यौन अपराधों से बच्‍चों का संरक्षण कानून), दुर्व्‍यापार और बाल मजदूरी के सभी मामलों का एक साल में निपटान से बच्‍चों का न्‍याय सुनिश्चित हो पाएगा। बच्‍चों से संबंधित मामलों का एक साल में निपटान सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि जुवेनाइल जस्टिस अधिनियमों के प्रावधानों को अमल में लाया जाए और अदालतों में पर्याप्‍त अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति की जाए, ताकि लंबित मामलों की जल्‍द से जल्‍द सुनवाई सुनिश्चित हो सके। केएससीएफ की एक शोध रिपोर्ट बताती है कि देश के कई राज्‍य ऐसे हैं जहां बच्‍चों से संबंधित मामलों को निपटाने में 50 से 100 साल का वक्‍त लग जाता है। ऐसे में बच्‍चों को न्‍याय मिलने की संभावना कम हो जाती है।

युवाओं ने देश के अलग-अलग राज्‍यों से छूटे हुए बाल मजदूरों के लिए समुचित शिक्षा और पुनर्वास की व्‍यवस्‍था, बच्‍चों को यौन शोषण से बचाने के लिए बाल मित्र पुलिस चौकी और अदालत के निर्माण की भी मांग की है। बाल और बंधुआ मजदूरी एवं दुर्व्‍यापार से मुक्‍त युवाओं की इन मांगों को ध्‍यान में रखकर यदि काम किया जाए तो कोई कारण नहीं कि बाल मित्र बिहार का निर्माण नहीं किया जा सके तथा बिहार देश के लिए एक मॉडल राज्‍य के रूप में नहीं उभरे।

उल्‍लेखनीय है कि युवाओं का यह मांगपत्र बाल और बंधुआ मज़दूरी से मुक्‍त बच्चों से बातचीत के आधार पर तैयार किया गया है। इस मांगपत्र को बिहार की हाशिए की सभी जातियों, समुदायों और धर्मों के बच्‍चों की प्रतिनिधि आवाज के रूप में देखा-समझा जा रहा है। मुक्ति कारवां अभियान के जरिए युवा एक ओर जहां बाल दुर्व्‍यापार और बाल श्रम के खिलाफ बिहार के कोने-कोने में साईकिल से सघन जन-जागरुकता फैलाने में लगे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर इस मांगपत्र को पेश कर सुरक्षित और शिक्षित बिहार बनाने की भी मांग कर रहे हैं।

  • पंकज चौधरी

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़े हैं।)

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