असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों के अधिकारों में गंभीर क़ानूनी कमी:जस्टिस भट

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस रवींद्र भट ने कहा है कि असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों के अधिकारों की बात आती है तो कानून में एक गंभीर कमी दिखती है। इस क्षेत्र में यह और महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्षेत्रीय नियामक हस्तक्षेप करें क्योंकि यदि इस विधायी कमी को दूर नहीं किया गया तो उसके बगैर संवैधानिक मूल्यों और मौलिक अधिकारों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। उन्होंने कहा कि मौलिक स्वतंत्रता को लागू करने के लिए सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देने के वास्ते एक उदार अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका वक्त की मांग है।

एक लीगल न्यूज पोर्टल द्वारा आयोजित द्वितीय प्रोफेसर शामनाद बशीर स्मृति व्याख्यान में जस्टिस रवींद्र भट ने कहा है कि लोगों को उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर मौलिक अधिकारों तक पहुंच से वंचित नहीं किया जा सकता है और यह उचित समय है कि राज्य न्यायसंगतता, समानता और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों के सार्वभौमिक प्रवर्तन को सुनिश्चित करने के लिए एक कानून बनाने पर विचार करे।

जस्टिस रवींद्र भट ने कहा कि मौलिक स्वतंत्रता को लागू करने के लिए सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देने के वास्ते एक उदार अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका वक्त की मांग है। जस्टिस भट ने कहा कि लोगों को उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर मौलिक अधिकारों तक पहुंच से वंचित नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि यह उचित समय है कि राज्य न्यायसंगतता, समानता और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों को सार्वभौमिक रूप से लागू करने के लिये कानून बनाने पर विचार करे। अगर हम इस तरह के कानून को लागू करते हैं तो हम पहले नहीं होंगे। पहला दक्षिण अफ्रीकी विधानमंडल था जिसने समानता अधिनियम लागू किया था।

जस्टिस भट ने कहा कि सरकारों को मौलिक अधिकारों का सम्मान करने वाली संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए, ये उनकी ज़िम्मेदारी भी है।उनकी सहायक भूमिका के अभाव में आबादी का एक बड़ा वर्ग भेदभावपूर्ण प्रथाओं और अन्याय का सामना कर सकता है और ज़्यादातर लोगों को जाति, ग़रीबी, धर्म आदि के आधार पर ये सब भुगतना पड़ सकता है।

उन्होंने कहा कि सरकारों को मौलिक अधिकारों का सम्मान करने वाली संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए, ये उनकी जिम्मेदारी भी है। जस्टिस भट ने कहा कि राज्य की सहायक भूमिका के अभाव में, आबादी का एक बड़ा वर्ग भेदभावपूर्ण प्रथाओं और अन्याय का सामना कर सकता है और ज्यादातर लोगों को जाति, गरीबी, धर्म आदि के आधार पर ये सब भुगतना पड़ सकता है। जस्टिस भट ने कहा कि निजी संस्थाओं या यहां तक कि राज्य के खिलाफ लोगों के अधिकारों को लागू करने के लिए सकारात्मक कानून के रूप में कोई प्रभावी तंत्र नहीं होना एक बहुत ही महत्वपूर्ण कमी है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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