ग्राउंड रिपोर्ट: हेलंग बन गया उत्तराखंड के अस्मिता का सवाल

उत्तराखंड के चमोली जिले के सुदूरवर्ती गांव हेलंग में महिलाओं से घास छीनने की घटना को करीब एक महीना गुजरने को है। इस दौरान पूरे उत्तराखंड की हुई गतिविधियों पर नजर डालें तो साफ नजर आ रहा है कि राज्य के जागरूक लोगों के बाद अब यहां के आम लोग भी इस लड़ाई में शामिल होने लगे हैं और अब यह मुद्दा हेलंग गांव में घास छीने जाने की एक घटना न रहकर राज्य की अस्मिता के साथ ही राज्य में जन अधिकारों और पर्यावरणीय सुरक्षा का मसला भी बन गया है। उत्तराखंड में एक्टिविज्म के तमाम चेहरे पहले ही दिन से इस आंदोलन से जुड़ गये थे और अब राज्यभर के महिला संगठन और पर्यावरणविद भी इससे जुड़ गये हैं। इस बार के आंदोलन में एक खास बात यह नजर आ रही है कि राज्य में जन संघर्षों के लिए पहचाने जाने वाले लगभग सभी संगठन इस आंदोलन का हिस्सा बने हैं और इस लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं।

पुलिस और सीआईएसएफ द्वारा महिलाओं से घास छीने जाने का 15 जुलाई का वीडियो 18 जुलाई तक राज्य का हर जागरूक नागरिक देख चुका था। एक दिन बाद ही 19 जुलाई को देहरादून सहित राज्य में दर्जनभर जगहों पर प्रदर्शन किये गये और डीएम अथवा अन्य सक्षम अधिकारियों के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपे गये। इस बीच हेलंग एकजुटता मंच का वर्चुअल गठन हुआ और 24 जुलाई को हेलंग चलो का आह्वान किया गया। 24 जुलाई को हेलंग में राज्यभर के दर्जनों संगठनों के सैकड़ों प्रतिनिधियों के अलावा स्वतंत्र आंदोलनकारियों ने भी हिस्सा लिया। राज्यभर से जो लोग नहीं पहुंच पाये, उन्होंने अपने-अपने शहरों-कस्बों और यहां तक कि गांवों में भी धरने-प्रदर्शन किये।

हेलंग आंदोलन को मिला जन गायक सतीश धौलाखंडी की डफली का साथ। और बगल में खड़े हैं चर्चित नेता इंद्रेश मैखुरी।

उत्तराखंड आंदोलन के बाद यह पहला मौका था, जब राज्यभर के आंदोलनकारी एक ही मकसद के लिए एक जगह एकत्रित हुए या फिर अपनी-अपनी जगहों पर धरना प्रदर्शन किया। हेलंग में पहले आंदोलनकारी घटनास्थल पर एकत्रित हुए और वहां से नारे लगाते और जनगीत गाते हुए टीएचडीसी के गेट तक पहुंचे, जहां एक सभा की गई। सभा में राज्यभर से आये आंदोलनकारियों ने महिलाओं के साथ इस तरह के बर्ताव की निन्दा की। इस बैठक में हेलंग के मामले को लेकर पांच मांगें रखी गईं। डीएम चमोली को हटाया जाय और उन्हें किसी सार्वजनिक पद पर नियुक्ति न दी जाए। महिलाओं से बदसलूकी में शामिल पुलिस और सीआईएसएफ के कर्मचारियों पर कार्रवाई की जाए। हेलंग ग्राम पंचायत की जमीन टीएचडीसी को देने के फैसले की वैधानिकता की जांच हो, मलबा नदी में डालने के लिए टीएचडीसी पर मुकदमा दर्ज हो और 15 जुलाई की घटना की हाईकोर्ट के सेवारत अथवा सेवानिवृत्त जज से जांच करवाई जाए।

इन पांच मांगों को लेकर 1 अगस्त को एक बार फिर से पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन किये गये। जिन 35 जगहों पर प्रदर्शन हुए, उनमें मुख्य रूप से जोशीमठ, कर्णप्रयाग,, श्रीनगर गढ़वाल, नई टिहरी, उत्तरकाशी, मसूरी, देहरादून, सतपुली, रामनगर, रूद्रपुर, भवाली, भीमताल, चैखुटा, कोकीलबना, बड़ेत, धूमाकोट, सल्ट, भिकियासैण, अल्मोड़ा, थलीसैंण, गरूड़, बागेश्वर , मुनस्यारी, पिथौरागढ, टनकपुर, चंपावत, थराली, मिदनापुर दिनेशपुर, नैनीताल, पौड़ी, गोपेश्वर, सामा और पोखरी शामिल थे।

हेलंग में मंदोदरी देवी ने सुनाई आपबीती।

ऐतिहासिक अगस्त क्रांति के मौके पर 9 अगस्त को हेलंग को लेकर प्रदर्शन का एक और दौर शुरू हुआ। इस बार महिला शक्ति की ओर से हेलंग कूच का आह्वान किया गया। 8 अगस्त को देर रात तक राज्यभर से कई महिला संगठनों के लोग हेलंग पहुंच गये। उनके समर्थन में कई पुरुष आंदोलनकारियों ने भी जोशीमठ का रुख किया। 9 अगस्त को राज्यभर के आंदोलनकारी जोशीमठ मुख्य बाजार में जुटे। नारों और जनगीतों के साथ पूरे जोशीमठ बाजार में जुलूस निकाला गया। इसके बाद आंदोलनकारी महिला संगठन और अन्य आंदोलनकारी हेलंग रवाना हुए। हेलंग में इस बार की सभा घास छीनने की घटना की पीड़ित मंदोदरी देवी के आंगन में किया गया। इस सभा की शुरुआत सतीश धौलाखंडी के जनगीत से हुई।

पीड़ित मंदोदरी देवी और लीला देवी से उनके अनुभव सुनने के बाद आंदोलन की रूपरेखा को लेकर सभा में मौजूद लोगों ने अपनी बात रखी। संचालन अतुल सती ने किया और समापन इंद्रेश मैखुरी के सुझावों के साथ हुआ। इस सभा में मुख्य रूप में पर्यावरणविद प्रो. रवि चोपड़ा, वरिष्ठ पत्रकार और एक्टिविस्ट राजीव लोचन साह, उत्तराखंड महिला मंच की अध्यक्ष कमला पंत निर्मला बिष्ट, डॉ. उमा भट्ट, गंगा असनोड़ा, शिवानी पांडे, रेशमा पंवार, पीड़ित ललिता देवी आदि ने अपने विचार रखे। आसपास के गांवों के लोग जो घटना के बाद इस मामले से दूरी बनाने का प्रयास में जुटे हुए थे, 9 अगस्त की सभा में अच्छी-खासी संख्या में पहुंचे। आसपास की ग्राम सभाओं और वन पंचायतों के प्रतिनिधियों ने इस सभा में अपनी बात रखी और सरकार और प्रशासन के खिलाफ अपना जोरदार विरोध दर्ज किया। 

आंदोलन से जुड़े लोगों और संगठनों ने अब इस आंदोलन को लेकर हर तहसील मुख्यालय पर प्रदर्शन करने और गांव-गांव जाकर लोगों से संपर्क करने का प्रस्ताव रखा है। 8 अगस्त को जोशीमठ पहुंचने वाले संगठनों ने अपने-अपने रास्ते में इस तरह के प्रयास किये भी। देहरादून से रवाना हुई 20 लोगों की टीम ने यह सिलसिला़ ऋषिकेश से शुरू किया। ऋषिकेश में जनगीतों के साथ जुलूस निकाला गया और पर्चे बांटे गये। व्यासी और देवप्रयाग में भी पर्चे बांटे गये। श्रीनगर मुख्य बाजार में प्रदर्शन के साथ पर्चे बांटे गये। यह सिलसिला रुद्रप्रयाग में भी जारी रहा। रुद्रप्रयाग में वरिष्ठ पत्रकार और एक्टिविस्ट रमेश पहाड़ी और एक्टिविस्ट मोहित डिमरी ने दून से रवाना हुई टीम का स्वागत किया। यहां प्रो. रवि चोपड़ा, कमला पंत, निर्मला बिष्ट और त्रिलोचन भट्ट ने प्रेस के सामने इस आंदोलन के उद्देश्य और भावी रणनीति के बारे में बातचीत की। 

हेलंग आंदोलन बेशक महिलाओं से घास छीने जाने की एक घटना से शुरू हुआ हो, लेकिन अब यह राज्य में जल, जंगल और जमीन के आंदोलन का रूप लेने लगा है। हेलंग की पांच मांगों के अलावा अब इसमें राज्य की वे मांगें भी शामिल होने लगी हैं, जिन्हें लेकर राज्य स्थापना के बाद से ही छिटपुट रूप से आंदोलन होते रहे हैं। इनमें प्रमुख रूप से राज्य के भूकानून की मांग शामिल है। 2018 तक राज्य में 12 बीघा तक जमीन खरीदने का नियम लागू था। लेकिन, 2018 में इस कानून में बदलाव करके असीमित भूमि खरीदने और कृषि भूमि का लैंड यूज अपनी बिना किसी औपचारिकता के बदलने की छूट दे दी गई। इस नये नियम के बाद पहाड़ों में जमीनों की खरीद-फरोख्त का सिलसिला तेजी से बढ़ा और लालच में आकर लोगों ने कई जमीनें बेच दी। हेलंग आंदोलन में यह बात बार-बार सामने आई कि यदि जमीनों की खरीद-फरोख्त इसी तरह जारी रही तो यहां के मूल निवासियों के पास अपनी जमीन नहीं रह जाएगी। लिहाजा इस आंदोलन में उत्तराखंड के लिए हिमाचल प्रदेश जैसा भूकानून बनाने की मांग भी शामिल हो गई है।

राज्य में हाल में चर्चा में आये ट्री प्रोटेक्शन एक्ट का मसला भी हेलंग आंदोलन के साथ जुड़ने लगा है। दरअसल इस कानून में राज्य सरकार बदलाव करना चाहती है। अब तक निजी भूमि पर पेड़ बिना इजाजत नहीं काटे जा सकते थे, लेकिन अब इसकी खुली छूट देने की तैयारी की जा रही है। राज्य में आमतौर पर यह माना जा रहा है कि यह बदलाव उन लोगों के हक में किया जा रहा है, जिन्होंने यहां जमीनें खरीदी हैं। इन जमीनों पर रिसॉर्ट बनाने की प्रक्रिया में जमीनों पर बेशकीमती पेड़ खड़े हैं। अब तक लागू नियम के अनुसार इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों को काटने की इजाजत मिल पाना संभव नहीं है। ऐसे में सरकार इस तरह के नियम को खत्म करने की फिराक में है, ताकि जमीनों के खरीदार बिना इजाजत बड़ी संख्या में पेड़ काट सकें। हेलंग आंदोलन में यह मामला प्रमुखता के साथ उठाया जाने लगा है।

(हेलंग से वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

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