पिछले दो वर्षों में सार्वजनिक साधारण बीमा कंपनियों के 1,000 से अधिक कार्यालय बंद

संयुक्त सचिव सौरभ मिश्रा, DFS (Lateral Entry) के मौखिक निर्देश व भारी दबाव के पश्चात विगत दो वर्ष में देश भर में सार्वजनिक साधारण बीमा कंपनियों के 1,000 से अधिक कार्यालय बंद हो गए हैं, जिससे पॉलिसी धारक, कर्मचारी और बड़े पैमाने पर आम नागरिक प्रभावित हुए है। साथ ही गैर जिम्मेदाराना ढंग से पुनर्गठन और K.P.I को एकतरफा रूप से लागू करने के लिए प्रबंधन को मजबूर करके इस असंवैधानिक कदम द्वारा देश के एक महत्वपूर्ण व सशक्त सार्वजनिक क्षेत्र को कमजोर किया जा रहा है, फलस्वरूप सार्वजनिक क्षेत्र की सामान्य बीमा कंपनियों में भारी अशांति व्याप्त और श्रृंखलावद्ध विरोध प्रदर्शन के पश्चात लगभग 50,000 कर्मचारियों और अधिकारियों ने 4 जनवरी, 2023 को पूर्ण हड़ताल पर जाने के लिए मजबूर हैं।

सार्वजनिक क्षेत्र के सामान्य बीमा और जीआईसी का एक लाख बीस हजार करोड़ (120 हजार करोड़) का उद्योग और सार्वजनिक क्षेत्र की इन कंपनियों यानि नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और जीआईसी के लगभग 50,000 कर्मचारी व अधिकारी, दिनांक 4 जनवरी, 2023 को एक दिन की पूर्ण हड़ताल का आह्वान करने के लिए मजबूर हैं क्योंकि पुनर्गठन के नाम पर बड़े पैमाने पर कार्यालयों (लाभदायक कार्यालयों सहित) की बंदी व विलय के खिलाफ और K.P.I.(Key Performance Indicator) की पालिसी को मनमाने तथा एकतरफा तरीक़े से थोपने के विरोध में दिनांक 14, 21 व 28 दिसंबर, 2022 को संयुक्त मोर्चा के बैनर तले पूरे देश में भोजनावकाश के समय प्रदर्शन की एक श्रृंखला आयोजित की गई थी, परन्तु GIPSA प्रबंधन व DFS द्वारा इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया।

वित्तीय सेवा विभाग (DFS) के संयुक्त सचिव सौरभ मिश्रा के मौखिक निर्देश पर भारत सरकार की नीति यानी वित्तीय समावेशन के विरुद्ध (KPI) पालिसी लाकर( GIPSA) प्रबंधन के माध्यम से कंपनियों पर सैकड़ों कार्यालय बंद/विलय करने का अनैतिक दबाव बनाया जा रहा है। परिणामस्वरूप, पिछले 1 से 2 वर्षों में चार सार्वजनिक क्षेत्र की साधारण बीमा कंपनियों के लगभग 1000 कार्यालय पहले ही बंद हो चुके हैं। ये कार्यालय मूल रूप से भारत के द्धितीय व तृतीय वर्ग के शहरों में थे। सैकड़ों कार्यालयों के बड़े पैमाने पर बंद करने और विलय का यह एकतरफा व असंवैधानिक कदम न केवल पॉलिसीधारकों और आम नागरिकों को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रहा है, बल्कि निजी बीमा कंपनियों को इन शहरों में बीमा बाजार पर कब्जा करने के लिए अनुचित व खुला रास्ता भी दे रहा है।

GIPSA प्रबंधन पर संयुक्त सचिव डीएफएस, सौरभ मिश्रा जिन्हें डीएफएस में पार्श्व प्रविष्टि (Lateral Entry) के माध्यम से नियुक्त किया गया था, द्धारा लगातार अनुचित दबाव डाला जा रहा है। संयुक्त सचिव के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले उक्त संयुक्त सचिव कुछ ब्रोकर और निजी बीमा फर्मों के साथ काम कर रहे थे। सार्वजनिक सरकारी साधारण बीमा कम्पनियों के मौजूदा कार्यालयों की संख्या को कम करने व KPI नीति के माध्यम से अनुचित दबाव पूरी तरह से भारत सरकार की वित्तीय समावेशन नीति के खिलाफ है और एकतरफा रूप से बड़े पैमाने पर GIPSA प्रबंधन पर दबाव बनाना सम्मानित संयुक्त सचिव की मंशा पर सवालिया निशान भी लगाता है। उक्त संयुक्त सचिव इन कंपनियों में एक समानांतर प्रशासन चलाने की कोशिश कर रहे हैं और हर स्तर पर हस्तक्षेप कर रहे हैं जैसे अंडरराइटिंग, दावा, पुनर्बीमा व्यवसायों, कार्मिक मामलों और यहां तक ​​कि नियमित पदोन्नति और स्थानांतरण में भी अपनी मर्जी और पसंद के अनुसार अपने प्रियजनों को उपकृत करने के लिए हस्तक्षेप करते हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है। सूत्रों से यह भी पता चला है कि इन कम्पनियों के प्रमुखों पर महत्वपूर्ण स्थानों पर अपनी कंपनी की संपत्तियों को बेचने का भी भारी दबाव है। डीएफएस द्वारा पूरी तरह से जांच शुरू करने के बाद, उनके खिलाफ सत्ता के दुरुपयोग और घोर अनियमितताओं के बारे में कई तथ्य स्पष्ट हो जायेंगे।

इन कंपनियों में बीडीई/बीडीएम की शुरूआत भी एक विफलता है और इसे एक कंपनी की बोर्ड बैठक के दौरान सचिव वित्त द्वारा स्वयं ही इंगित किया गया था, इसके बावजूद भी डीएफएस के एक वर्ग द्वारा इसका पालन किया जा रहा है और लागू करने के लिए लगातार दबाव डाला जा रहा है।

रिकॉर्ड के अनुसार, इन सभी पद्धतियों की सफलता दर बहुत ही नकारात्मक है और पूर्ण रूप से विफल साबित हुई हैं, इसलिए इस तरह की कवायद काल्पनिक, असंवैधानिक और सार्वजनिक साधारण बीमा उद्मोग को एक बीमार उद्योग बनाने के लिए निर्णायक कदम है ताकि बड़े प्रीमियम आधार के लाभ, प्रशिक्षित स्टाफ और स्थापित इंफ्रास्ट्रक्चर को निजी हाथों में सौंपा जा सके। संयुक्त मोर्चा ने एक सलाहकार के रूप में M/s. E & Y के एकतरफा और मनमाने चयन पर कड़ी आपत्ति जताई है क्योंकि यह सलाहकार, मुख्य सुझाव के रूप में वर्ष 2017 में सार्वजनिक क्षेत्र की साधारण बीमा कंपनियों के विलय की वकालत करने वाली अपनी स्वयं की रिपोर्ट का पूरी तरह से खंडन कर रहा है और ऐसा लगता है कि आज वे डीएफएस में किसी व्यक्ति विशेष के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। उक्त सलाहकार का एक खोटा ट्रैक रिकॉर्ड है क्योंकि उन पर घोर अनियमितताओं और कदाचार के लिए हजारों करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है।

संयुक्त मोर्चा ने सार्वजनिक और निजी कम्पनियों को समान अवसर उपलब्ध नहीं कराने और निजी खिलाड़ियों के कदाचार से निपटने में विफल साबित होने, वहीं सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों पर अनेकों प्रतिबंध लगाने के लिए नियामकों/डीएफएस का कड़ा विरोध किया । यहां तक ​​कि कुछ निजी बीमा कंपनियों द्वारा जीएसटी में हजारों करोड़ की लूट के खिलाफ भी कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की गई। संयुक्त मोर्चा ने टीपीए व ब्रोकर्स सहित इन निजी कंपनियों का विशेष ऑडिट कराने की मांग की और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के संबंध में निजी कंपनियों द्वारा की जा रही अनियमितताओं का भी सीएजी से विशेष ऑडिट कराने की मांग की है।

संयुक्त मोर्चा ने एकतरफा रूप से अधिसूचित प्रदर्शन आधारित वेतन अवधारणा को खारिज कर दिया और बजट 2018 की बजट स्वीकृति के अनुसार तीन कंपनियों के विलय की मांग की, सभी वर्ग के कर्मचारियों और विशेष रूप से मार्केटिंग में भर्ती , सभी के लिए पुरानी पेंशन योजना, पारिवारिक पेंशन में 30% की एक समान दर से वृद्धि की मांग, एनपीएस में नियोक्ता के अंशदान को बढ़ाकर 14% करना, गैर वेतन लाभों का निपटान और पूर्व टीएसी/एलपीए कर्मचारियों के लिए पेंशन के अंतिम विकल्प का विस्तार की माँग की।

सार्वजनिक क्षेत्र की साधारण बीमा कम्पनियों का गठन राष्ट्रीयकरण के बाद समाज और बड़े पैमाने पर आम जनता की सेवा के लिए राष्ट्रीय हित में किया गया था और इन कंपनियों ने सभी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया भी है, साथ ही विनाशकारी क्षति पर भारी मात्रा में भुगतान किया, गरीब व निम्न वर्ग का उत्थान किया, देश के हजारों नागरिकों को रोजगार दिया है और देश, समाज और जनता की बेहतरी के लिए भारत सरकार को हजारों करोड़ रुपये का भारी लाभांश दिया है । यह गंभीर चिंता का विषय है कि आज जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है वहीं सार्वजनिक क्षेत्र की साधारण बीमा कम्पनियों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिन्होंने पिछले कई वर्षों में सरकार को अच्छा लाभ व लाभांश दिया और आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, कोरोना कवच नीति, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, स्वास्थ्य बीमा योजना जैसी विभिन्न सरकारी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया, साथ ही कॉर्पोरेट दायित्वों को पूरा किया और ग्रामीण व फसल बीमा का कार्य सफलतापूर्वक किया ।

यह उल्लेखनीय है कि सार्वजनिक साधारण बीमा उद्योग को नीति आयोग द्वारा रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया गया है। इन कंपनियों का एकमात्र उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है बल्कि अधिक महत्वपूर्ण पहलू सरकार की कई सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करना है।

संयुक्त मोर्चा मांग करता है कि प्रबंधन प्रत्येक नीतिगत मामले में क्रियान्वयन से पूर्व संगठनों के केंद्रीय नेतृत्व के साथ सार्थक परामर्श करे। सौरभ मिश्रा, संयुक्त सचिव के उपरोक्त असंवैधानिक व अवैधानिक कृत्यों से भारत सरकार व वित्त मंत्रालय की छवि भी दागदार हो रही है, अतः संयुक्त मोर्चा भारत सरकार, माननीय वित्त मंत्री और अन्य वैधानिक निकायों से उद्योग, कर्मचारियों, पॉलिसी धारकों, एजेंटों और बड़े पैमाने पर नागरिकों के सर्वोत्तम हित में सार्वजनिक साधारण बीमा उद्योग की वर्तमान स्थिति पर गंभीरता से ध्यान देने तथा शीघ्र व उचित समाधान का आग्रह करता है ।

(त्रिलोक सिंह, संयोजक, ज्वाइंट फोरम आफ ट्रेड यूनियंस एंड एसोसिएशन, उत्तरी क्षेत्र द्वारा जारी।)

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