रामनवमी पर सांप्रदायिक हिंसा और पाठ्यक्रमों में काट-छांट के खिलाफ वाराणसी में विरोध प्रदर्शन

वाराणसी, यूपी। वाराणसी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर सैकड़ों छात्र-छात्राओं और नागरिकों ने बिहार के नालंदा में कट्टरपन्थियों द्वारा की गई हिंसा, मदरसा व पुस्तकालय जलाए जाने और पाठ्यक्रमों में सांप्रदायिक दृष्टि से काट-छांट किये जाने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान नागरिकों ने माइक से सद्भावना जिंदाबाद; हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, बौद्ध-जैन आपस में हैं भाई भाई; धर्मनिरपेक्षता जिंदाबाद जैसे नारे लगाए, और उक्त स्लोगन लिखी तख्तियां और पोस्टर लहराए।

प्रदर्शन में वक्ताओं ने सवाल उठाया गया कि जिन्होंने इस मदरसे को जलाया है उनकी शत्रुता क्या केवल उर्दू ज़ुबान से है? ऐसा नहीं है कि सिर्फ उर्दू से ही दिक्कत है। ये विध्वंसक काम करने वाली सोच दक्षिणपंथी विचारधारा की है। धार्मिक त्योहारों और शोभायात्राओं का सांप्रदायीकरण भाजपा-आरएसएस की फितरत है। युवाओं से रोजगार छीनकर उन्हें दंगाई बनाने की घिनौनी साजिश चिंता का विषय है। अल्पसंख्यक समाज पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं। मस्जिदों-गिरजाघरों को हिंसक भीड़ के हवाले किया जा रहा है। ऐसी घटनाएं सभ्य और लोकतांत्रिक समाज के खिलाफ जाती हैं। बिहार की घटना भी इसी सिलसिले की ताजा कड़ी है जो हमें शर्मसार करती है।

रामनवमी जुलूस ने जलाया मदरसा

दरसअल, 31 मार्च 2023 यानी रामनवमी का दिन था। रामनवमी जुलूस के दौरान बिहार शरीफ में हिंसा भड़क उठी। इसी दौरान कुछ उपद्रवियों ने बिहार शरीफ के मुरारपुर इलाके में स्थित 3 एकड़ में फैले बिहार शरीफ़ के सबसे पुराने मदरसे मदरसा अज़ीज़िया को पूरी तरह जला कर ख़ाक कर दिया। इस आग में सौ साल की एक पूरी तारीख़ (पुस्तकालय) जल कर ख़ाक हो गई। आग में रेयर फ़र्नीचर, रेयर अलमीरा और उसमें उस वक़्त की रेयर किताबें भी जल गईं। ये बिहार में ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी के इलावा इकलौता ईदारा था, जिसका पूरा स्ट्रक्चर वही था, जो इसके खुलने के वक़्त था।

बीएचयू गेट पर विरोध प्रदर्शन

शिक्षा विरोधी सरकार

प्रदर्शन में वक्ताओं ने आगे कहा कि “पढ़ाई का बोझ कम करने के नाम पर पाठ्यक्रम में कटौती की जा रही है। मध्यकालीन भारत के इतिहास में मुगल काल के सारे पाठ काट दिए गए हैं। अब 1857 की क्रांति के मुखिया बहादुर शाह जफर रहे यह बच्चे कैसे जानेंगे? उस दौर को नहीं पढ़ाएंगे तो कबीर, रैदास, सूर, तुलसी को पढ़ना-समझना भी कैसे हो पाएगा, ये समझ से परे है? इसी क्रम में खबर आई है कि निराला, सुमित्रानंदन पन्त और फिराक गोरखपुरी के पाठ भी हटाए जा रहे हैं। यहां तक अखबारों में आ रहा है कि सुरेंद्र मोहन, गुलशन नंदा के सड़कछाप उपन्यासों को पढ़ने-पढ़ाने की भी बात चल रही है। तो ऐसे में ये लोग सिर्फ उर्दू विरोधी नहीं है। असल में ये शिक्षा विरोधी हैं। ज्ञान विरोधी हैं।

बनारस की कारमाइकल लाइब्रेरी विस्थापित

बनारस की बात करें तो एक लाख से ज्यादा किताबों से भरी कारमाइकल लाइब्रेरी बनारस के बौरहवा विकास की जद में आने के कारण विस्थापित कर दी गयी। राजा शिवप्रसाद सितारे-हिन्द इस लाइब्रेरी के पहले अध्यक्ष रहे। सन 1872 में ये बनारस की पहली सार्वजनिक लाइब्रेरी थी। मुंशी प्रेमचंद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हजारीप्रसाद द्विवेदी समेत कई विद्वान पुस्तकालय हॉल की रौनक हुआ करते थे। डा. संपूर्णानंद के अलावा कमलापति त्रिपाठी तीन दशक तक इसके अध्यक्ष रहे थे। इस लाइब्रेरी को धरोहर के रूप में संरक्षित करने की जरूरत थी। इसे संरक्षित करने की जगह इसे विस्थापित कर दिया गया।

बीएचयू गेट पर प्रदर्शन

ये रहे शामिल

प्रदर्शनकारियों ने कहा कि रामनवमी शोभायात्रा के आयोजन के बाद से ही लगातार हिंसा की खबरें आना चिंतनीय है। बंगाल और बिहार में राज्य सरकारों को सख्त कदम उठाने चाहिए और उपद्रवियों पर कार्रवाई करनी चाहिए। प्रदर्शन में प्रमुख रूप से अविनाश, विकास आनंद, धर्मेंद्र, शांतनु, अर्शिया, चेतना, इंदु, सानिया, राजेश, अनुपम, इम्तियाज, वल्लभाचार्य पांडेय, नीति, राजेश, रचना, राजकुमार गुप्ता, महेंद्र, विश्वजीत, शशि, धनंजय, रोशन, राजेंद्र, मुरारी, आरिफ, रवि शेखर, रामजनम आदि समेत सैकड़ों छात्र-छात्राएं और नागरिक मौजूद रहे।

(वाराणसी से पवन कुमार मौर्य की रिपोर्ट)

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