पुन्नी सिंह का साहित्य प्रेमचंद की परंपरा को आगे बढ़ाता है- वीरेन्द्र यादव

शिकोहाबाद। उत्तर प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ की शिकोहाबाद इकाई ने वरिष्ठ कथाकार पुन्नी सिंह के नये उपन्यास ‘साज कलाई का, राग ज़िंदगी का’ के लोकार्पण और इस पर केन्द्रित एक परिचर्चा का आयोजन रखा। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता जाने-माने समालोचक वीरेन्द्र यादव थे, तो वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता भारतीय जन नाट्य संघ यानी इप्टा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष नाटककार राकेश वेदा ने की। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि या अन्य वक्ता थे- डॉ. महेश आलोक, डॉ. रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’, अरविंद तिवारी, डॉ. विजय, ज़ाहिद खान, अख़लाक़ खान और डॉ. पुनीत कुमार।

शिकोहाबाद स्थित ‘द एशियन सी.से.स्कूल’ में आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी तादाद में स्थानीय लोगों के साथ साहित्यकार और विधार्थी भी मौजूद थे। कार्यक्रम की शुरुआत गोरख पांडेय और शैलेन्द्र के जनगीतों के गायन से हुई। उसके बाद अतिथियों ने उपन्यास का विमोचन किया। किताब विमोचन के बाद न सिर्फ़ उपन्यास ‘साज कलाई का, राग ज़िंदगी का’ पर विस्तृत बातचीत हुई, बल्कि पुन्नी सिंह के व्यक्तित्व और साहित्यिक अवदान पर भी विचारोत्तेजक चर्चा हुई। प्रगतिशील लेखक संघ और इप्टा दोनों ही संगठनों में उनके योगदान की सम्यक विवेचना की गई।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता जाने-माने प्रगतिशील समालोचक वीरेन्द्र यादव ने कहा कि ”पूंजीवाद और निजीकरण की नीतियों से हमारे घरेलू उद्योग आख़िरी सांसे गिन रहे हैं। चूड़ी उद्योग‌ भी‌ उसकी गिरफ़्त में है। कथाकार पुन्नी सिंह ने अपने नवीनतम उपन्यास ‘साज कलाई का, राग जिंदगी का‌’ में इसे कथात्मक दक्षता के साथ दर्ज किया‌ ‌है। आज जब इतिहास का शुद्धिकरण किया जा रहा है और भारतीय समाज को एकरंगी बनाया जा रहा है, तब इस उपन्यास में कम्युनिस्ट लीडर कामरेड सुल्तान बेग और चूड़ी कारीगर नसीर खां ‌समेत कई मुस्लिम पात्रों की जीवंत उपस्थिति से समाज की विविधवर्णी छवि अपने जीवंत रूप में उपस्थित है।”

वीरेंद्र यादव ने आगे कहा कि ”पुन्नी सिंह का साहित्य प्रेमचंद की परंपरा का अग्रगामी विकास है। पुन्नी सिंह के साहित्य के बारे में सभी को पर्याप्त जानकारी है, लेकिन उसकी केन्द्रीयता और उसका जो विश्लेषण होना चाहिए, उसे आलोचकों के माध्यम से साहित्य को समृद्ध किया जाना चाहिए, वह काम अभी बाकी है। आज के इस आयोजन ने इस कमी को दूर करने की छोटी सी कोशिश की है।”

पुन्नी सिंह का नया उपन्यास ‘साज कलाई का, राग ज़िंदगी का’

लेखक-पत्रकार ज़ाहिद खान ने पुन्नी सिंह के कथा साहित्य पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ”पुन्नी सिंह हिंदी के उन कथाकारों में से एक हैं, जिनके कथा साहित्य में गांव-जोहार बार-बार आता है। किसान-खेतिहर मज़दूर, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक पुन्नी सिंह के विपुल कथा साहित्य के केन्द्र बिंदु रहे हैं। उनकी कहानियों में किसानों और आदिवासियों की समस्याएं, उनके सुख-दुख, राग-द्वेष पूरी प्रमाणिकता के साथ उभरकर सामने आए हैं।

कहानी ‘विस्थापन’ और ‘उद्घोषणा’ में अपनी ज़मीनों से विस्थापित होते किसानों से लेकर, उनकी कहानी ‘मुक्ति’ में कर्ज़ में डूबे किसान का आत्महत्या करने का दृश्य पाठकों को अंदर तक भिगो जाता है।” उन्होंने कहा, ”बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में उत्तर प्रदेश के गांवों का क्या स्वरूप, जातिगत समीकरण, सामाजिक और राजनीतिक माहौल था?, पुन्नी सिंह के ‘त्रिया तीन जन्म’, ‘मंडली’, ‘सेतुबंध’ आदि उपन्यासों को पढ़कर जाना जा सकता है। अपने लोकेल को न सिर्फ़ वे बहुत अच्छी तरह से आब्जर्व करते हैं, बल्कि उसे प्रमाणिकता के साथ पेश भी करते हैं। हां, उसमें एक विचार साथ-साथ चलता है। वे इससे कहीं विमुख नहीं होते। इसी मायने में वे दीगर रचनाकारों से जुदा हैं।” 

लेखक-रंगकर्मी डॉ. विजय ने कहा कि ”भारत के दलित साहित्य की भूमि के उर्वरा बीज और फिर उसे महाबोधि वृक्ष में बदलने में समर्थ कथाकार पुन्नी सिंह का साहित्य, श्रम के हरकारों को विचार पुरुष बनाने और विचार को श्रम के धरातल पर उतारने का अनुपम उदाहरण है। अपने रचना कर्म में भाषा की सहजता, प्रेमचंद की गहनता, राहुल सांकृत्यायन और कबीर का आध्यात्म लिए, पुन्नी सिंह अपनी कहानी के पात्रों को कल्पना लोक से नहीं, वरन अपने काम करने वाली जगह से बुलाकर, उन्हें अपने विचार की दृष्टि से देखते हैं। और जब यह विचार उनकी रचना शीलता के प्रिज्म से निकलकर पाठक तक पहुंचता है, तो मनुष्यता के संघर्ष का हर रंग उसमें दिखाई देता है। फिर वो चाहे आदिवासी जीवन हो, पिछड़ी और ख़त्म होती कोई मनुष्य प्रजाति हो, स्त्री, दलित या फिर कोई अकेला मन ही क्यों न हो।”

कवि-रंगकर्मी अख़लाक़ ख़ान ने कहा कि ”चूड़ियों के मधुर संगीत के साथ जीवन के राग को प्रोफेसर पुन्नी सिंह ने अपने इस उपन्यास में बड़े ही ख़ूबसूरती से अभिव्यक्त किया है। उनके सभी उपन्यास और कहानी संग्रह गहन शोध के बाद सर्जित हुए हैं।

लेखक-समीक्षक डॉ. पुनीत कुमार ने कहा कि ”पुन्नी सिंह का पूरा साहित्य आम आदमी के संघर्ष और ‘विजयी भव’ के आर्शीवचनों से भरा पड़ा है। उन्होंने इस इंसानी दुनिया को इंसानों लायक, इंसानों के ज़रिए ही बनाने का यक़ीन अपने साहित्य के ज़रिए जगाने का काम बखूबी किया है।”

उपन्यास ‘साज कलाई का, राग ज़िंदगी का’ का लोकार्पण

कवि, आलोचक डॉ. महेश आलोक ने उपन्यास पर अपनी बात रखते हुए कहा कि ”उपन्यास ‘साज कलाई का राग ज़िंदगी का’, फ़िरोज़ाबाद जनपद के चूड़ी कामगारों के संघर्ष, उनकी अदम्य जिजीविषा और उद्योगपतियों के शोषण-तंत्र को बेनक़ाब करता है। उन्होंने आगे कहा कि ”इस महत्वपूर्ण कृति को यदि हम साहित्यिक यथार्थवाद के खाने में रखकर पड़ताल करेंगे, तो कुछ भी हासिल नहीं होगा। असल में यह सिर्फ़ सामाजिक दृश्य बोध का यथार्थ नहीं है, बल्कि प्रामाणिक अनुभव का संवेदनात्मक यथार्थ है और इसे अभिव्यक्त करने में विश्वसनीयता को कलात्मक संयोग के साथ संयोजित कर दिया गया है। इसलिए यहां अनुभव का जीवन्त स्पंदन है, जिसका ध्वनि कंप उपन्यास के समाप्त होने के बाद भी हमारे भीतर लंबे समय तक बना रहता है। यह उपन्यास सिर्फ़ पॉलीटिकल उपन्यास नहीं, पॉलिटिकली करेक्ट उपन्यास है।”

व्यंग्यकार और उपन्यासकार अरविंद तिवारी और साहित्यकार डॉ. रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ ने भी ‘साज कलाई का राग ज़िंदगी का’ पर विस्तृत चर्चा करते हुए इसे महत्वपूर्ण उपन्यास बतलाया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे इप्टा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष नाटककार राकेश वेदा ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि ”पुन्नी सिंह, प्रेमचंद की परंपरा के कथाकार हैं। जिनके साहित्य में दलित, वंचित, शोषित तबके के पात्र बार-बार आते हैं। उनकी प्रतिबद्धता इस तबक़े के साथ दिखाई देती है।” 

कार्यक्रम के दरमियान पूरे समय बीच-बीच में स्थानीय लोगों द्वारा पुन्नी सिंह का शॉल और फूलमाला पहनाकर सम्मान किया जाता रहा। ज़ाहिर है कि यह उनके प्रति लोगों के सम्मान और स्नेह को जता रहा था। परिचर्चा उपरांत रायगढ़ इप्टा द्वारा निर्मित पुन्नी सिंह की दो कहानियों ‘मुगरा’ और ‘बच्चे सवाल नहीं करते’ पर केंद्रित शॉर्ट फ़िल्मों का प्रदर्शन किया गया। जिसे सभी ने ख़ूब पसंद किया। उनकी सराहना की। कार्यक्रम के आख़िर में पुन्नी सिंह के बेटे वरिष्ठ रंगकर्मी राजेन्द्र यादव ने सभी अतिथियों का शॉल और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। उनका आभार प्रकट किया।

(जाहिद खान, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और समीक्षक हैं)

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