झारखंड: स्पंज आयरन कंपनियाें के प्रदूषण से ग्रामीण सांस और फेफड़े की बीमारियों से परेशान

झारखंड। सरायकेला-खरसांवा जिला अंतर्गत चांडिल के 40 किमी की परिधि में आने वाले क्षेत्र के गांवों के हजारों लोग सांस व आंखों की बीमारी से पीड़ित हैं। वजह है क्षेत्र के ‘कांड्रा चौका’ मेन रोड पर स्थित 9 ‘स्पंज आयरन’ कंपनियाें का प्रदूषण जो इन गांवों की आबादी का प्रभावित कर रहा है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक इससे क्षेत्र के 40 प्रतिशत से अधिक लोग सांस की बीमारी, अस्थमा (दमा) और आंखों की परेशानी झेल रहे हैं। उन्हें सांस और फेफड़ों से संबंधित बीमारियां हैं और कुछ लोगों में ये बीमारियां गंभीर हैं, आखों में जलन होती रहती है।

यह प्रदूषण केवल लोगों के स्वास्थ्य को ही प्रभावित नहीं करता है बल्कि इसका असर खेतों पर भी पड़ रहा है। इन गांवों में फसलों की पैदावार नहीं के बराबर है। ग्राउंड वाटर लेवल काफी नीचे चला गया है। कुएं का पानी काला हो गया है। इससे लोगों को पीने के पानी के लिए भी जूझना पड़ रहा है। ऐसी समस्या से सबसे ज्यादा रघुनाथपुर, रायपुर, कुचीडीह, पालगम, खूंटी गांव के लोग प्रभावित हैं।

ग्रामीण बताते हैं कि धुंआ इतना जहरीला है कि सांस लेने में तकलीफ हाे गई है। किस-किसी काे आंखों की भी परेशानी हाे गई है। गांव का पानी दूषित हाे गया है। खेत में पैदावार कम हो गई है। पेड़-पाैधे सूख रहे हैं। गांव के अधिकतर लोग सांस की बीमारी से ग्रसित हैं।

बच्चे खेलने के लिए जाते हैं तो उन्हें आंखों में जलन होती है। उन्हें सांस लेने में भी तकलीफ होती है। कई बार अस्पताल तक जाना पड़ता है।

‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज’ (पीयूसीएल) ने चार साल पहले प्रदूषण से जनजीवन प्रभावित हाेने का हवाला देकर 2019 में हाईकाेर्ट में ‘पीआईएल’ दायर किया था। 21 मार्च 2023 काे चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा व आनंद सेन की डबल बेंच ने कांड्रा चौका मेन रोड स्थित नौ कंपनियाें काे बंद करने का नाेटिस दिया था।

स्पंज आयरन कंपनी

मामले की पुनः सुनवाई 18 अप्रैल 2023 काे हुई

18 अप्रैल 2023 को झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा और न्यायाधीश आनंद सेन की बेंच में पीयूसीएल द्वारा दायर पीआईएल रिट (जनहित याचिका) संख्या 3434-2019 की फिर सुनवाई हुई। राज्य सरकार के तरफ से उनके अधिवक्ता ने फिर से दुहराया कि मामले को ग्रीन ट्राइब्यूनल में भेजा जाना चाहिए तथा यह भी कहा कि जो भी हो पर इस मामले में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जवाब देना है। ‘राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ के अधिवक्ता सुनवाई में नदारद रहे। राज्य सरकार की तरफ से हलफनामा दाखिल किया गया। पर कंपनियों की तरफ से कोई हलफनामा नहीं दाखिल किया गया।

पीयूसीएल के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने बेंच का ध्यान अखबार में छपी एक रपट की तरफ दिलाया जिसमें उक्त समाचारपत्र के द्वारा किये गये सर्वे के मुताबिक लगभग 20 हजार लोग उस क्षेत्र में प्रदूषण जनित बीमारियों के शिकार हैं। उन्हें सांस और फेफड़ों से संबंधित बीमारियां हैं और कुछ लोगों में ये बीमारियां गंभीर हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने प्रत्युत्तर में कहा कि अखबार की रपटें अतिश्योक्तिपूर्ण भी होती हैं। इस पर ‘पीयूसीएल’ के अधिवक्ता ने कहा कि उन्हें व्यक्तिगत तौर पर उसकी जानकारी है, क्योंकि वे उस इलाके में गये हैं। उन्होंने आगे कहा कि चौका से कान्ड्रा जाने के स्टेट हाईवे में काले धुंए का एक गुबार मिलता है और रास्ता दिखाई नहीं देता है। इस हालात से उस सड़क से यातायात करने वाले लोग हर रोज रूबरू हो रहे हैं।

अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने खंडपीठ को पुनः बताया कि उक्त कंपनियां पानी के पुन: उपयोग के मानदंडों का उल्लंघन कर गहरे बोरिंग के माध्यम से अवैध रूप से भूजल निकाल कर भूजल में अप्रत्याशित कमी करने और जमीन की उर्वरता को नष्ट करने, ठोस और तरल कचरे के द्वारा जमीन की ऊपरी सतह को प्रदूषित कर उसे कृषि के लिए अनुपयुक्त बनाने का काम कर रही हैं। साथ ही वायु प्रदूषण द्वारा ग्रामीणों के स्वच्छ वायु और जीवन के बुनियादी अधिकारों का राज्य सरकार और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मिलीभगत से वर्षों से उल्लंघन कर रही हैं।

उन्होंने अदालत से दरख्वास्त किया कि एक स्वतंत्र समिति बनाकर इलाके की प्रदूषण की स्थिति की अद्यतन रपट मांगी जाए, ताकि अदालत प्रदूषण से हो रहे गंभीर और मारक परिस्थितियों से आमलोगों को निजात दिलाने के लिए जरूरी आदेश पारित कर सके। इसपर बेंच ने अगली सुनवाई के उपरांत कुछ अस्थायी दिशा-निर्देश जारी करने का भरोसा दिलाया।

पीयूसीएल ने अपनी पिटीशन में झारखंड सरकार द्वारा पर्यावरण नियमों का एकमुश्त उल्लंघन कर स्पंज आयरन कंपनियों को स्थापित करने और प्रदूषण मानकों का घोर उल्लंघन कर स्पंज आयरन बनाने वाली और ग्रामीणों के पानी के बुनियादी अधिकार के साथ उनके जीवन के बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन करने वाली कंपनियों- ‘सिद्धि विनायक मेटकॉम लिमिटेड’, ‘नरसिंह इस्पात लिमिटेड’, ‘जय मंगला स्पंज आयरन प्राईवेट लिमिटेड’, ‘कोहिनूर स्टील प्राईवेट लिमिटेड’, ‘जूही इंडस्ट्रीज प्राईवेट लिमिटेड’, ‘चांडिल इंडस्ट्रीज प्राईवेट लिमिटेड’, ‘डिवाईन एलॉयज एंड पावर लिमिटेड’ तथा ‘एम्मार एलॉयज प्राईवेट लिमिटेड’ को तत्काल बंद करने की मांग की है।

इससे पहले की सुनवाई में उच्च न्यायालय ने मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन के मद्देनजर एडवोकेट जनरल के ‘नेशनल ग्रीन ट्राईब्यूनल’ में मामले को भेजने के तर्क को खारिज कर इस संवेदनशील मामले का संज्ञान लिया और भारत सरकार, राज्य सरकार, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित तमाम दोषी कंपनियों के खिलाफ नोटिस निर्गत किया।

स्पंज आयरन कंपनी

याचिकाकर्ता ‘पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज’ (पीयूसीएल) ने चौका, चांडिल और उसके आसपास के लगभग 2-3 वर्ग किमी क्षेत्र में स्थित उपरोक्त 9 कंपनियों के खिलाफ पर्यावरण दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर स्पंज आयरन प्लांट स्थापित करने, ग्रामीणों को पानी से महरूम करने, जमीन की उर्वरता बरबाद करने, हवा के उत्सर्जन मानदंडों का घोर उल्लंघन कर क्षेत्र को प्रदूषित करने और प्राकृतिक जल धाराओं को दूषित करने के खिलाफ 2019 में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल किया था।

‘पीयूसीएल’ के तरफ़ से अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव, रोहित सिंह और मंजरी सिंहा ने सुनवाई में हिस्सा लिया। अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने बताया कि 18 अप्रैल को ही झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की बेंच में इसकी सुनवाई हुई। केंद्र सरकार की तरफ से हलफनामा दाखिल किया गया। जबकि राज्य सरकार की तरफ से अभी हलफनामा नहीं दिया गया है। कंपनियों की तरफ से हलफनामा नहीं दाखिल किया गया है और अगली सुनवाई 27 जून 2023 को होगी।

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार के 30 मई 2008 के नोटिफिकेशन के अनुसार ‘स्पंज आयरन प्लांटों’ की स्थापना राज्य सरकार द्वारा घोषित ‘इंडस्ट्रियल एरिया’ में और आबादी से कम से कम एक किमी दूर, केन्द्र और राज्य हाईवे से आधा किमी दूर होना चाहिए तथा दो ‘स्पंज प्लांटों’ के बीच 5 किमी की दूरी होनी चाहिए, जबकि चौका में लगभग दो से तीन वर्ग किमी के अंदर नौ कंपनियों के प्लांट स्थापित हैं।

‘केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ की वायु की गुणवत्ता मानक पर 18 नवम्बर 2009 के नोटिफिकेशन में जो गुणवत्ता मानक तय किये गये हैं, उनका घोर उल्लंघन ये कंपनियां कर रही हैं और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जिसे हर वर्ष 104 दिनों की वायु गुणवत्ता माप करनी है, ने इस इलाके में वायु प्रदूषण/ उत्सर्जन की जांच करने वाली कोई व्यवस्था स्थापित नहीं की है।

उल्लेखनीय है कि ‘स्पंज आयरन कंपनियां’ आयरन ओर की पिसाई करके उसका बुरादा बनाती हैं, जिसका कुछ भाग स्पंज आयरन बनाने में इस्तेमाल करती हैं बाकी को बाहर की कम्पनियों को बेच देती हैं।

सरायकेला-खरसांवा जिला के चांडिल के 40 किमी की परिधि के आने वाले क्षेत्रों में वैध-अवैध दर्जनों ऐसी कंपनियां हैं जो इस धंधे में लगी हैं। इन्हें पर्यावरण की कोई परवाह इसलिए नहीं है कि इन्हें सीधे तौर पर सत्ता और प्रशासन का बरदहस्त प्राप्त है।

इस क्षेत्र में प्रदूषण की समस्या पिछले चालीस साल से भी पहले की है। क्योंकि ‘स्पंज आयरन कंपनियों’ के अस्तित्व के पहले यह क्षेत्र पत्थर माफियाओं के गिरफ्त में था। पत्थरों का अवैध उत्खनन व कारोबार के बाद जब क्षेत्र के पहाड़ समतल हो गए यानी पत्थर गायब हो गए, तब उन्हीं माफियाओं ने अपना कारोबार बदल दिया और दो दशक पूर्व इन्होंने आयरन ओर पर कब्जा जमाया तथा ‘स्पंज आयरन कंपनी’ बनाकर आयरन ओर के अवैध कारोबार में लग गए, जो आजतक निर्बाध रूप से चल रहा है। जो आज क्षेत्र के लोगों के जीवन ही नहीं उनके जीवन-यापन के लिए भी खतरनाक हो गया है।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट)

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