Tuesday, March 19, 2024

जटिल मनःस्थितियों की उलझी हुई कविताएं

कवर के अंतिम पृष्ठ पर कवि का परिचय पढ़ते हुए बहुत प्रभावित हुआ और कुछ ऐसा ही प्रभाव पड़ा पहले फ्लेप को पढ़ते हुए। अंतिम फ्लेप लिखी छोटी सी कविता पढ़ते हुए ही लग गया था कि कवि बहुत ही कल्पनाशील है और अपनी बातें प्रतीकों में करता है और उन प्रतीकों को डिकोड करना इतना आसान नहीं है। मुझे शिवप्रसाद जोशी जी मुक्तिबोध स्कूल के कवि लगे। इन्हें समझने के लिए पाठक के पास ‘ज्ञानात्मक संवेदना’और ‘संवेदनात्मक ज्ञान’दोनों की भरपूर मात्रा की आवश्यकता पड़ेगी । ‘अपने पहले संग्रह के बारे में कुछ बातें’लिखते हुए जोशी जी कहते हैं- “कविताएं कम छपी हैं, जरा तवज्जो की परवाह नहीं की, शायद इनकी फितरत ही कुछ ऐसी रही, बचती फिरी मानो पकड़ी गईं तो मज़ाक बनेंगी।”

जोशी जी के इस संकलन में आई कविताएं एक बड़े दिक-काल को समेटे हुए हैं जो समय के रूप में सन् 1991 से लेकर सन् 2021 के बीच रची गईं हैं। यह कविता संग्रह भारत सहित पूरे विश्व को अपने विषय के रूप में समेटे हैं । ये इस काल के मानव संघर्ष की कविताएं हैं । ये कविताएं आम आदमी की पक्षधर हैं । कवि के शब्दों में इनमें आत्मा की बेचैनियां हैं, प्रेम की उधेड़बुन हैं, फ़जीहतें हैं, दुरूहताएं हैं और उनमें अपना रास्ता खोजने की कोशिशें हैं। ये कविताएं विषयवस्तु के हिसाब से अपने में समाज,धर्म, संस्कृति, राजनीति, अर्थव्यवस्था के परिवेशों को समाए हुए हैं । इस संग्रह में साहित्य और संगीत, अन्य कलाओं और उनसे जुड़े व्यक्तियों के बारे में लिखी गईं कविताएं भी हैं। भविष्य में इन कविताओं के आधार पर इस काल का इतिहास बोध निर्मित किया जा सकेगा ।

कवि को दर्द है कि इतना विराट फलक और समझ लिए हुए उनकी ये कविताएं प्रायः पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित नहीं हो सकीं, लौटा दी गईं। विचारणीय विषय है कि क्यों ? शायद संपादकों की समझ यह रही हो कि उनके पाठकों को ये कविताएं समझ में नहीं आयेंगी । मुक्तिबोध आज तक भी जबकि उनको इतना पढ़ाया जा चुका है, आम पाठक की समझ से बाहर हैं और समकालीन दुष्यन्त कुमार जन-जन की जुबान पर हैं। क्या कवि ने कभी इस बात पर विचार किया है कि वह किन लोगों के लिए लिख रहा है? किन के पक्ष में लिख रहा है? THE ART IS MEANT FOR THE PEOPLE. क्या वह केवल स्वांतःसुखाय है और यदि है तो फिर इस बात का दुःख क्यों कि रचनाएं लौटा दी गईं ?

यह सही है कि स्वयं कवि का एक विराट अध्ययन है, तत्कालीन समाज की, राजनीति और अर्थसत्ता की विस्तृत समझ, भाषा का अच्छा ज्ञान है पर क्या पाठक उनकी कविताओं में प्रयुक्त हुए बिम्बों और प्रतीकों को समझ पा रहे हैं । जोशी जी अपनी रचनाओं में काल सापेक्ष हैं । जिन घटनाओं को केन्द्र में रख कर / प्रेरित हो कर वे लिख रहें क्या वे पाठक के स्मृति पटल पर विद्यमान हैं ? काल सापेक्ष से आगे बढ़ कर कालजयी रचनाओं का रचनाकार होने के लिए कवि को एक लम्बी यात्रा करनी होती है । निश्चय ही जोशी जी उस यात्रा के पथिक हैं । परन्तु इसके लिए पहले उन्हें अपने पाठकों की समझ की परख कर, उन तक पहुँचना होगा और फिर पाठकों की समझ का विस्तार करते हुए उन्हें अपनी समझ तक लाना होगा । यह भी एक जनपक्षधर साहित्यकार( जो कि जोशी जी हैं) के दायित्वों का हिस्सा है ।

अपने आलेख के अंत में जोशी जी रघुवीर सहाय जी के शब्दों में कहते भी हैं “कविता शब्द का निरा संस्कार नहीं है। न वह वर्तमान की निरी व्याख्या, न इतिहास का पुनरवलोकन और न अतीत से भविष्य के निरे अंतरावलंबन का औचित्य। इन सब के समेत वह कुछ है तो साहस है जो हमारे जाने बिना दूसरे को मिलता है बशर्ते वह दूसरा हमारी कविता में हो।”

‘करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान’। ऐसा नहीं है कि बार बार पढ़ने के बावजूद भी जोशी जी कविताएं समझ में ही न आती हों । हां उन्हें उलट पलट कर पढ़ना पड़ता है। मतलब यह कि यदि एक कविता समझ में न आती हो तो उसके बाद की कविता पढ़ने लगो । उदाहरण के लिए यदि कविता ‘रिक्त स्थान’समझ में आए तो ‘गिरना’शीर्षक की कविता पढ़ने लगो ।

जनवरी में सफदर गिरा
दिसम्बर में मस्जिद
दरमियान गिरा पड़ोस
अर्थ और मर्म क्यों न गिरते
कायरता और शर्म के साथ
आँसू गिरते रहे
किसी ने कहा : अरे आसमान तो नहीं गिरा ।
हम गिरते चले गए
एक साल से दूसरे साल में ।

इस कविता में संकेत और संदेश दोनों मिल जायेंगे और वो भी वार्तालाप करते हुए। परन्तु अधिकतर कविताओं में अंत तक पहुँचते पहुँचते कविता किस बारे में/ किसके बारे में बात कर रही है इसके संकेत मिल ही जाते हैं और कविता का संदेश भी ।अंत तक पहुँचने के बाद‘इन दिनों’ शीर्षक के अंतर्गत संकलित – शिशिर, बर्फ, पतझड़, हेमंत आदि कविताएं आसानी से समझ में आ जाती हैं।ठीक ऐसा ही सांकेतिक सूत्र है‘कोशिश’ कविता में बल्व में फिलामेंट का टूट कर गिर जाना । यह हमारी आंतरिक टूटन है और इस तरह इस टूटन को समझने का रास्ता भी हमारा आंतरिक ही होगा।

उनकी इस संग्रह में संकलित बहुत सारी कविताओं पर बातें की जा सकती हैं परन्तु यहाँ उद्देश्य जोशी जी की कविताओं को समझने के लिए सूत्र प्रदान करना नहीं है और भी बहुत सारे सूत्र और अर्थ हो सकते हैं उनकी कविताओं के । मैं यहाँ सिर्फ यह कहना चाह रहा हूँ कि ये जन-पक्ष में लिखी गई कविताएं खाली लौटाने के लिए नहीं हैं। ये एक मेहनतकश कवि की जिन्दगी भर की कमाई हैं। इनका गहन शास्त्रीय अध्ययन और मूल्यांकन किया जाना चाहिए ।

जोशी जी ने अपनी इन कविताओं के माध्यम से हमसे बिछुड़ गये कवियों, साहित्यकारों, संगीतकारों और उनकी रचनाओं को याद किया हम उनके ऋणी हैं ।

अंत में उनकी गद्य कविता ‘किनारे किनारे दरिया’ जो उन्होंने जर्मनी के वॉन शहर की नदी राइन के लिए लिखी है जिसमें उदार संवेदनशील कवि उऋण हुआ है, मुझे भागीरथी और भीलांगना नदियों की याद दिलाती है । अंत में शिवप्रसाद जोशी जी को बधाई देते हुए यह कहना चाहता हूँ कि अभी हम चुनौतियों के पार नहीं हुए हैं। खतरा अभी हमारे सर पर मंडरा रहा है और पाठक से सीधे संवाद की आवश्यकता है।

कविता संग्रह –
रिक्त स्थान और अन्य कविताएं
कवि- शिवप्रसाद जोशी
प्रकाशक –
काव्यांश प्रकाशन,
ऋषिकेश, देहरा दून
मूल्य – 150 रुपये

(रामकिशोर मेहता की समीक्षा।)

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