प्रलेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में लेखक जाहिद खान की दो किताबों का हुआ विमोचन

जबलपुर। प्रगतिशील लेखक संघ का 18वां राष्ट्रीय सम्मेलन 20, 21 और 22 अगस्त को जबलपुर में सम्पन्न हुआ। यह तीन दिवसीय सम्मेलन देश के प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई को समर्पित रहा। अनेक वैचारिक सत्रों में बंटे, इस अधिवेशन में वर्तमान के ज्वलंत मुद्दों के अलावा साहित्य और संस्कृति से जुड़े सवालों पर भी विस्तृत चर्चा हुई। जिसमें प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े देश भर के अलग-अलग भाषाओं के लेखकों ने बड़े पैमाने पर हिस्सेदारी की।

अधिवेशन में वैचारिक सत्र के अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत जनगीत, लोकसंगीत, कला प्रदर्शनी, पोस्टर प्रदर्शनी, कार्टून प्रदर्शनी और नाटकों का मंचन भी हुआ। राष्ट्रीय अधिवेशन के तक़रीबन हर सत्र में साहित्यिक लघु पत्रिकाओं के ख़ास विशेषांकों और नई किताबों के विमोचन हुए। लेखक-पत्रकार ज़ाहिद ख़ान की भी दो नई किताबों ‘रूदाद-ए-अंजुमन एवं तहरीक-ए-आज़ादी’ और तरक़्क़ीपसंद शायर’ का विमोचन हुआ।

 ‘अंजुमन तरक़्क़ीपसंद मुसन्निफीन’ मुम्बई शाख के जलसों (साल 1946-47) की रूदाद (वृतांत) पर केंद्रित किताब ‘रूदाद-ए-अंजुमन’ का विमोचन वरिष्ठ आलोचक वीरेन्द्र यादव, इप्टा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष नाटककार राकेश वेदा (उत्तर प्रदेश), लेखक स्वर्ण सिंह विर्क, प्रोफ़ेसर हरभगवान चावला (हरियाणा), कवि-पत्रकार नथमल शर्मा (छत्तीसगढ़), कवि-नाटककार कुलदीप सिंह ‘दीप'(पंजाब), कहानीकार जितेन्द्र विसारिया (मध्य प्रदेश) और प्रगतिशील लेखक संघ के नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष पी. लक्ष्मीनारायण (आंध्र प्रदेश) ने किया।

‘लोकमित्र प्रकाशन’ से प्रकाशित लेखक-पत्रकार हमीद अख़्तर की किताब ‘रूदाद-ए-अंजुमन’ मूल रूप में उर्दू में लिखी गई है। जिसका शायर इशरत ग्वालियरी की मदद से ज़ाहिद ख़ान ने लिप्यांतरण किया है। इस साल उर्दू से हिन्दी लिप्यांतरण की यह उनकी दूसरी किताब है। इससे पहले मई महीने में रांची में आयोजित ऑल इंडिया उर्दू कन्वेंशन में अज़ीम अफ़साना निगार कृश्न चन्दर के क्लासिक रिपोर्ताज ‘पौदे’ का विमोचन हुआ था।

जबलपुर अधिवेशन के दूसरे सत्र में ज़ाहिद ख़ान की दूसरी किताब ‘तहरीक-ए-आज़ादी और तरक़्क़ीपसंद शायर’ का विमोचन महादेव टोप्पो, रणेन्द्र (झारखंड), अमिताभ चक्रबर्ती (पश्चिम बंगाल), डॉ. राहुल कौशाम्बी (महाराष्ट्र), डॉ. मोहनदास (केरल), डॉ. रबीन्द्रनाथ राय (बिहार), सुभाष मनसा (हरियाणा), वंदना चौबे (उत्तर प्रदेश), अर्जुमंद आरा (नई दिल्ली) और डॉ. ईश्वर सिंह दोस्त (छत्तीसगढ़) जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों एवं चिंतकों ने किया।

(विज्ञप्ति पर आधारित।)

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