‘शैलेन्द्र… हर ज़ोर-ज़ुल्म की टक्कर में’ का विमोचन

नई दिल्ली। विश्व पुस्तक मेले में सैकड़ों किताबों और हज़ारों पाठकों के बीच कवि-जनगीतकार शैलेन्द्र के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित एक महत्वपूर्ण किताब ‘शैलेन्द्र… हर ज़ोर-ज़ुल्म की टक्कर में’ का विमोचन सम्पन्न हुआ। ‘उद्भावना’ से प्रकाशित इस किताब का संपादन लेखक-पत्रकार ज़ाहिद खान ने किया है।

प्रगति मैदान स्थित विश्व पुस्तक मेले के हॉल नम्बर 1 स्टॉल संख्या आर 22 में ‘गार्गी प्रकाशन’ पर आयोजित इस विशेष आयोजन में विमोचन के बाद किताब पर एक परिचर्चा भी हुई।

चर्चित साहित्यिक पत्रिका ‘उद्भावना’ के संपादक अजेय कुमार ने किताब प्रकाशन की पृष्ठभूमि का ब्यौरा देते हुए कहा, शैलेन्द्र की जन्मशती के समापन वर्ष में ‘उद्भावना’ ने उन्हें याद करते हुए एक छोटी सी किताब प्रकाशित की है। जिसमें शैलेन्द्र पर बहुत मानीख़ेज़ लेख शामिल हैं। किताब में उनके कुछ चर्चित जनगीत, फ़िल्मी गीत और कविताएं भी हैं। जाहिद खान ने बहुत कम समय में इतनी महत्वपूर्ण किताब को ‘उद्भावना’ के लिए तैयार किया है। शैलेन्द्र की अधिकांश कविताएं और गीत सामाजिक सरोकार, सत्य और मानवीय संवेदनाओं से लबरेज़ हैं।

हिन्दी-उर्दू ज़बान के बड़े अदीब, अनुवादक जानकी प्रसाद शर्मा ने कहा, शैलेन्द्र के गीतों और कविताओं में आम आदमी के सुख दु:ख और ज़िन्दगी के संघर्ष शामिल हैं। इन्हीं बातों ने उन्हें जनकवि बनाया है। ‘किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार,किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार’ दूसरे के दर्द को अपना समझने की बात, एक बड़ा कवि ही कर सकता है।

लेखक-पत्रकार भाषा सिंह ने कहा, जाहिद खान द्वारा संपादित इस किताब में डॉ. इंद्रजीत सिंह के लेख से मुझे जानकारी मिली कि कवि शमशेर बहादुर सिंह के कारण शैलेन्द्र को पहली बार मुंबई के मंच पर कविता पाठ का अवसर मिला। शैलेन्द्र की कविताओं की प्रासंगिकता इसलिए है कि उनमें आम आदमी के जीवन संघर्ष शामिल हैं। संघर्षशील लोग उनसे प्रेरणा लेते हैं।

शैलेन्द्र पर चार किताबों के लेखक इंद्रजीत सिंह, जिनकी पहचान शैलेन्द्र के शैदाई के तौर पर है, उन्होंने कहा, शैलेन्द्र इश्क़, इंक़लाब और इंसानियत के महाकवि हैं। सरल और सहज शब्दों में गहरी और बड़ी बात कहने के कारण उन्हें गीतों का जादूगर कहा जाता है। शैलेन्द्र के सम्पूर्ण गीत लोकप्रियता और कलात्मकता के अद्भुत संगम हैं। कथाकार हरियश राय ने परिचर्चा के समापन पर गीतकार शैलेन्द्र की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए, सभी का आभार व्यक्त किया।

किताब विमोचन-परिचर्चा के इस गरिमामयी आयोजन में ‘बनास जन’ के संपादक आलोचक पल्लव, प्रोफेसर माधव हाड़ा, लेखक और अनुवादक यादवेन्द्र, कथाकार एसआर हरनोट, राजेन्द्र लहरिया, कवि-संस्कृतकर्मी अजय सिंह, इतिहासकार हितेंद्र पटेल, शायर-पत्रकार मुकुल सरल, पत्रकार नरेश दुदानी समेत कई नामी गिरामी लेखक और पुस्तक प्रेमी मौजूद थे।

(जनचौक की रिपोर्ट)

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