‘मुक्तेश्वर टू मुंबई’ तैयार हुई समोसा एंड सन्स

उत्तराखंड राज्य में रहकर मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के लिए यह फ़िल्म बनाना ‘समोसा एंड सन्स’ के मेकरों के लिए आसान नहीं रहा था। इसके बारे में बात करते फिल्म के डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी और फिल्म की निर्देशक शालिनी शाह के पति राजेश शाह बताते हैं कि इस फिल्म का निर्माण कोरोना काल में हुआ था, जब बहुत सारी पाबंदियां लागू थीं और उन सब के बीच अपने कलाकारों और सामान को मुंबई से मुक्तेश्वर लाना बड़ा मुश्किल काम था। संजय मिश्रा, बृजेंद्र काला जैसे बड़े नाम ने इस फ़िल्म में काम करने के लिए हामी भरी, तो फिल्म बनाने का सपना पूरा होता चला गया।

शालिनी शाह और राजेश शाह के साथ फिल्म के लेखक दीपक तिरुआ ने उत्तराखंड से बॉलीवुड में जो दस्तक दी है, वह उत्तराखंड में फिल्म निर्माण के जरिए बॉलीवुड तक पहुंचने का सपना देखने वालों के लिए एक प्रेरणा बन सकते हैं।

राजेश शाह इस बारे में बात करते हुए कहते हैं कि जब मैं 1989 में पुणे एफटीआईआई पढ़ने गया था तो मेरी मां रात भर रोई थी कि ये कौन सा भविष्य बनाने चला गया।

आज इतने सालों बाद भी फिल्म मेकिंग को एक अच्छे करियर के तौर पर नहीं जाना समझा जाता है, हर कोई डॉक्टर, इंजीनियर, फौजी बनना चाहता है। उत्तराखंड के कॉलेजों को अभी मुंबई, बंगाल से फिल्म मेकिंग की बराबरी करने में बहुत काम करना है क्योंकि ये अभी इन बड़े शहरों से फ़िल्म से जुड़ी पढ़ाई के मामले में पीछे हैं और यहां पर इनसे जुड़ी पढ़ाई कराई जानी बहुत जरूरी है।

समोसा एंड सन्स की कहानी

ओटीटी प्लेटफॉर्म जिओ सिनेमा पर आई फिल्म ‘समोसा एंड सन्स’ की कहानी का मुख्य पात्र चंदन है, जिसके ऊपर अपने पिता का इतना प्रभाव है कि वह अपनी जिंदगी के हर निर्णय उनको ध्यान में रख कर ही लेता है। भारतीय समाज में लड़के को ही परिवार आगे बढ़ाने वाला माना गया और इसी सोच से कहानी के मुख्य पात्रों पर पड़ते असर को दिखाते कहानी आगे बढ़ती रहती है।

किसी विशेष क्षेत्र को बैकग्राउंड में लेकर तैयार की गई कहानी में अगर वहां के क्षेत्रीय शब्दों के उच्चारण में कलाकारों द्वारा गलती की जाए तो यह बड़ी खलती है पर इस फिल्म में चंदन बिष्ट के पिता बने संजय मिश्रा ने ‘ओ ईजा’ शब्द जिस तरह बोला है, वह उत्तराखंड के दर्शकों को खुश कर देगा।

श्री नारायण सिंह की साल 2018 में शाहिद कपूर अभिनीत फिल्म ‘बत्ती गुल मिटर चालू’ में सही उच्चारण न करने की यह गलती देखने को मिली थी पर इस फिल्म में साल 2000 में अपनी फिल्म ‘फ्रॉम द लैंड ऑफ बुद्धिज़्म टू द लैंड ऑफ बुद्ध’ के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त निर्देशक शालिनी शाह द्वारा इन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखा गया है।

सामाजिक वर्जना तोड़ रही हैं निर्देशक शालिनी शाह

भारतीय समाज में पत्नी को अक्सर लंबाई में पति से छोटा ही बेहतर समझा जाता है पर यहां निर्देशक अभिनेत्री नेहा गर्ग को चंदन बिष्ट से लंबाई में ज्यादा दिखाकर, इस सामाजिक वर्जना पर प्रहार करती हैं। पिछले साल ‘एम एक्स प्लेयर’ में आई एक शॉर्ट फिल्म ‘टार्गेट’ से चर्चा में आई नेहा ने एक शहरी बिंदास लड़की के साथ-साथ पतिव्रता स्त्री का किरदार बड़ी ही खूबसूरती के साथ निभाया है।

फिल्म की शुरूआत में हल्के-फुल्के मूड में वह संवाद अदायगी में अन्य कलाकारों की अपेक्षा थोड़ा कमतर लगती हैं पर बाद में गम्भीर किरदार निभाते नेहा गर्ग अपनी इस कमी को पूरा कर लेती हैं।

महिलाओं की वास्तविक स्थिति पर ध्यान खींचते संवाद

‘ये क्या मालती! पांच लड़कियां तुम्हारी पहले से हैं, दो बार तुम एबॉर्शन करा चुकी हो और अब फिर लड़के के लिए’ संवाद से हमारे आसपास लड़के की चाहत के लिए व्याकुल समाज दिखाई देता है।

‘एक बात हमेशा ध्यान रखना, बेटी हमेशा पराया धन होती हैं, अपना धन होता है अपनी औलाद, अपना बेटा’ संवाद भारतीय समाज में बेटों को लेकर रूढ़िवादी सोच की सच्चाई हमारे सामने लेकर आता है। निर्देशक ने इस दृश्य को फिल्माया भी बड़े ही नाटकीय अंदाज में है, पेड़ में रस्सी से बंधे चंदन और रस्सी पकड़े संजय मिश्रा वाला यह दृश्य अपने आप में अनोखा है।

वेशभूषा पर बढ़िया काम तो संगीत और छायांकन में झलकता पहाड़

कलाकारों की वेशभूषा पर भी बेहतरीन काम किया गया है। नेहा को शादी के अवसर पर उत्तराखंड का लोकप्रिय पिछोड़ा पहनाया गया है, साथ ही संजय मिश्रा की टोपी भी ध्यान खींचती है।

समोसा एंड सन्स का बैकग्राउंड स्कोर इसे पहाड़ के करीब लाते हुए खास बना देता है। पहाड़ की खूबसूरती जब भी दिखती है, तब उसके साथ बजता हुआ मधुर संगीत भी मंत्रमुग्ध करता है और साथ में पक्षियों की चहचाहट भी फ़िल्म देखते सुखद अनुभव देती है।

‘प्यार क्या बला, कभी जाना ना’ गाने के बोल बड़े ही प्यारे हैं और इसकी कोरियोग्राफी भी ठीक-ठाक है।

संजय मिश्रा और नेहा गर्ग के बीच एक दृश्य में नेहा के पहने हेलमेट के अंदर से संजय मिश्रा पर कैमरा फोकस है, यह छायाकार की रचनात्मकता का उदाहरण है।

‘तू बावरी नदी शहरी’ गाने में भी तीन खिड़कियों के बीच नेहा गर्ग और चंदन बिष्ट वाला दृश्य दिखने में शानदार है।

फिल्म में ड्रोन से भी सही कार्य किया गया है, कुछ दृश्य तो ‘वाह’ निकलवाने में कामयाब रहे हैं।

कहानी ज्यादा समय एक घर में ही फिल्माई गई है, जिसमें लाइट्स का प्रयोग देखने में प्रभावित करता है।

(हिमांशु जोशी लेखक और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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