समय स्‍वर: ‘हम ऐसे भी हैं और हैं वैसे भी’

“मैं बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार जी को अपना परम पूज्‍य गुरु मानता हूं। राजनीतिक परिस्थियों का संतुलन करने में वे माहिर हैं। ऐसे ही थोड़े पिछले बीस साल से मुख्‍यमंत्री बने बैठे हैं।”

मैंने उन्‍हें बीच में ही टोकते हुए कहा- “यार, तुम मोदी जी की बुराई क्‍यों करते रहते हो। देश के प्रधानमंत्री हैं। इस प्रजातंत्र के बेताज बादशाह हैं। अगर उनके किसी भक्‍त ने सुन लिया तो हो सकता है वह तुम्‍हें देशद्रोही घोषित कर यूएपीए के तहत जेल भिजवा दे। वैसे भी बहुत बड़े न सही तुम पर छोटे-मोटे घोटालों, हेराफरी और भ्रष्‍टाचार के आरोप तो हैं ही।”

वह मंद-मंद मुस्‍कुराए जैसे मैंने कोई बच्‍चों वाली बात कह दी हो। फिर उवाचे- “ये राजनीति के दांव-पेंच तुम नहीं समझोगे यार। राजनीति में कोई किसी का न स्‍थायी मित्र होता है और न स्‍थायी शत्रु। मोदी जी हमारी पार्टी की बुराई करने में कोई कोर कसर छोड़ते हैं। और फिर हम जैसे छुट भैये नेता तो समय की नजाकत देख कर ही बात करते हैं। मैं बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार जी को अपना परम पूज्‍य गुरु मानता हूं। राजनीतिक परिस्थियों का संतुलन करने में वे माहिर हैं। ऐसे ही थोड़े पिछले बीस साल से मुख्‍यमंत्री बने बैठे हैं।…

… तो मैं उनसे प्रेरित होकर अवसर के अनुकूल जब जैसा बोलना होता है बोलता हूं। समयानुसार किसी की तारीफ या बुराई करता हूं। इसलिए मुझ पर कोई आंच नहीं आएगी। और ऐसा कुछ हुआ भी तो अपना क्‍या है। अपन अभी वाली पार्टी छोड़ के बीजेपी ज्‍वाइन कर लेंगे। फिर न ईडी का भय, न सीबीआई का और न इनकम टैक्‍स वालों का। बीजेपी वालों के पास ऐसी वाशिंग मशीन है जहां सारे दाग धुुल जाते हैं।” इतना कह कर वह उनकी भाभी जी (मेरी पत्‍नी) द्वारा पेश की चाय की चुस्कियां लेने लगे।

वह मेरे घर से थोड़ी-सी दूर एक बस्‍ती में रहते हैं और स्‍कूल टाइम के सहपाठी रहे हैं। शुरू से ही तेजतर्रार पर्सनालिटी के धनी हैं। अपना काम निकलवाने में उनका कोई जबाव नहीं। जब दरवाजे पर दस्‍तक हुई उस समय मैं अपने स्‍टडी रूम में कुछ लिखने का प्रयास कर रहा था। दरवाजा पत्‍नी ने खोला तो अभिवादन के बाद उन्‍होंने कहा- “भाभी जी, एक कप गर्मागर्म चाय पिलाइए।” फिर मेरे स्‍टडी रूम में प्रवेश कर मेरे सामने वाली कुर्सी हथियायी। उसके बाद अभिवादन और कुशल-क्षेम पूछी। मैंने कहा- “बहुत दिन बाद आना हुआ, सब ठीकठाक तो है।”

बोले- “बस सब ठीक है। यूं ही इधर से गुजर रहा था तो सोचा तुम से मिलता चलूं।” वैसे वह ‘यूं ही’ कहीं से नहीं गुजरते इसलिए यह अंडरस्‍टुड था कि किसी काम से आए हैं।

मुझे याद है जब हम नौंवी-दसवीं कक्षा में सहपाठी थे। उनके पिता की परचून की दुकान थी। जब मैं दुकान से सामान लेने जाता और वह अकेले दुकान पर बैठे होते तो मुझ से राशन के पैसे नहीं लेते। कहते- “यार, तुम से पैसे क्‍या लेना। आखिर दोस्‍त ही दोस्‍त के काम आता है।” मेरे आग्रह करने पर भी पैसे लेने से इनकार कर देते। फिर स्‍कूल में परीक्षा के समय मेरे पीछे बैठते। कहते- ”यार, ये पढ़ाई-वढ़ाई मेरे पल्‍ले तो पड़ती नहीं। नकल करा के मेरी भी नइया पार लगवा दो। आखिर दोस्‍त ही दोस्‍त के काम आता है।”

वह व्‍यवहार कुशल हैं। लेने और देने में विश्‍वास करते हैं। कभी किसी से मदद लेते हैं तो कभी किसी की मदद कर भी देते हैं। चुस्‍त दिमाग के धनी बचपन से ही हैं। एक बार कक्षा में परीक्षा के दौरान उनके एक मित्र ने उनसे जापान की राजधानी पूछी। क्‍लास में अध्‍यापिका बैठी हुईं थीं। वह बोले- “यार मुझे डिस्‍टर्ब न कर, अब टोका सो टोका अब मत टोकियो।” टीचर भी उनकी इस स्‍मार्टनेस पर मुस्‍कुरा कर रह गईं थीं।

वे अपनी युवा अवस्‍था में ही एक पार्टी से जुड़ गए थे। शुरू में वे पार्टी कार्यकर्ता थे। बाद में बस्‍ती के छुट भैये नेता बन गए। अपनी बस्‍ती में राजनीतिक-सामाजिक गतिविधियां कराते रहते हैं। वे खुद काे सामाजिक कार्यकर्ता भी कहते हैं। इन दिनों उनकी पत्‍नी एक एनजीओ चला रही हैं।

मौजूदा राजनीति पर चर्चा करने के बाद मैंने उनसे पूछ लिया और सुनाइए- “क्‍या सामाजिक गतिविधियां चल रही हैं आजकल?”

वह बोले- “देखो यार, मैं तो समाज सेवक हूं। जनता की सेवा करता रहता हूं। मैंने जनहित और जनसेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। अभी हाल-फिलहाल में गरीब कन्‍याओं का सामूहिक विवाह सम्‍मेलन कराया था।”

“लेकिन वह तो भाभी जी के एनजीओ की तरफ से आयोजित किया गया था।”

“एक ही बात है। सबसे ज्‍यादा भाग-दौड़ तो मैंने ही की थी।”

“सुना है जिन लड़कियों का तुमने विवाह कराया था उनमें से कई उन लड़कियाें की बेटियां थीं जिन से युवा अवस्‍था में तुम्‍हारी सैटिंग थी।”

“छोड़ो यार, ये पुरानी बातें हैं।”

“तुम्‍हें याद है कोरोना के समय मैंने कितने मज़दूरों, गरीबों को मुफ्त में राशन वितरित किया था। कोरोना टूलकिट और दवाइयां बांटीं थीं।”

“लेकिन वह तो भाभी जी के एनजीओ की तरफ से था।”

“बेशक था, पर देश-विदेश से फंड जनरेट मैंने ही किया था।”

“उस फंड के दुरुपयोग को लेकर भी मामला उछला था, खासकर तुम्‍हारी विरोधी पार्टी ने भ्रष्‍टाचार के आरोप लगाए थे।”

“यार विरोधी पार्टी का तो काम ही विरोध करना है। पर तुम बताओ कि हम मज़दूरों और गरीबों का पेट भर रहे हैं। पर स्‍वयं भूखे रहकर कोई कल्‍याणकारी कार्य हो सकता है। धार्मिक कार्य भी नहीं हो सकता। वाे कहावत तो सुनी होगी कि ‘भूखे भजन न होंहि गोपाला।’ हमने अपने हिस्‍से का फंड अपने हिसाब से रख लिया तो क्‍या गलत किया।”

“लेकिन यार, विरोधी पार्टी ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया था। उसका एक कार्यकर्ता तुम्‍हारे खिलाफ कुछ साक्ष्‍य जुटाकर थाने में रपट लिखाने बाइक से जा रहा था पर रास्‍ते में उसका एक्‍सीडेंट हो गया। वह थाने जाने के बजाय अस्‍पताल पहुंच गया।”

“उसे अस्‍पताल पहुंचाया गया। यार तुम से क्‍या छिपाना। उसका एक्‍सीडेंट कराना पड़ा। हालांकि किसी को इसकी भनक न लगी। लोगों ने उसे सामान्‍य एक्‍सीडेंट ही समझा। वह अपाहिज हो गया। उसके परिवार वालों को मैंने अच्‍छी खासी आर्थिक सहायता दी। इससे अपनी गुडविल बनी। राजनीति में ये सब करना/कराना पड़ता है। खैर छोड़ो। अभी हाल ही में बस्‍ती में मेरे द्वारा आयोजित 26 जनवरी समारोह की तुमनेे अखबारों में रिपोर्ट देखी?”

“नहीं देख पाया।”

“तुम्‍हें देखनी चाहिए थी। इस बार मैंने मज़दूरों/गरीबों की बस्‍ती में गणतंत्र दिवस समारोह रखा। उसमें गरीबों कों कंबल वितरित किए। बच्‍चों के लिए कपड़े, मिठाइयां, खिलौने और किताबें बांटी। बस्‍ती में मेरी वाहवाही हो रही है। पार्टी की तरफ से जनता के अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए जनजागरूकता अभियान के लिए प्रचार सामग्री तैयार करने को कहा गया है।…

… इसके लिए तुम्‍हें अच्‍छे-अच्‍छे स्‍लोगन पोस्‍टरों और कटआउट के लिए गढ़ने हैं। बैनर और होर्डिंग की सामग्री तैयारी करनी है। पर्चे तैयार करने हैं। तुम तो जानते हो मैं ये नहीं कर सकता पर तुम्‍हें इसमें महारत हासिल है। इतना तुम्‍हें करना ही होगा। मैं भी तुम्‍हारा ख्‍याल रखूंगा। आखिर दोस्‍त ही दोस्‍त के काम आता है। अच्‍छा चलता हूं। कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग भी रखी है।” और वे मेरे जबाव का इंतजार किए बिना चले गए।

(राज वाल्‍मीकि का लेख।)

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