ये बच्चा कैसा बच्चा है!

इब्ने इंशा का जन्म पंजाब के जालंधर जिले के फिल्लौर कस्बे में हुआ था। इब्ने इंशा का असली नाम शेर मोहम्मद खान था। इब्ने इंशा ने 1946 में पंजाब यूनिवर्सिटी से बीए की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने कराची यूनिवर्सिटी से एमए किया। उन्होंने रेडियो पाकिस्तान, मिनिस्ट्री ऑफ नेशन बुक सेंटर ऑफ पाकिस्तान और कुछ समय के लिए संयुक्त राष्ट्र के लिए भी काम किया।

इब्ने इंशा पाकिस्तान के मशहूर कवि, पत्रकार, लेखक और व्यंग्यकार थे। इब्ने इंशा छोटे-छोटे जुमलों में बड़ी से बड़ी और गहरी बात कह जाने का हुनर रखते थे। कुछ लोग इब्न ए इंशा को बतौर शायर जानते हैं तो कुछ उनके सफ़रनामों को याद करते हैं। फिर उनके व्यंग्य लेखन को कैसे भूल सकते हैं?

इन तीनों विधाओं में उन्होंने जो भी लिखा उसमें एक तरह की सादगी और साफगोई है। गंगा जमुनी तहज़ीब से भिगोयी उनकी लेखनी में जब आप इंशा के भीतर का शख़्स टटोलने की कोशिश करते हैं तो उनके बारे में कोई राय बना पाना बेहद मुश्किल होता है।

उर्दू की आख़िरी किताब के हर पन्ने को पढ़ कर आप उनके मजाकिया व्यक्तित्व से निकलते हर तंज़ पर दाद देने को मजबूर हो उठते हैं, वहीं चाँदनगर में उनकी शायरी को पढ़कर लगता है कि किसी टूटे उदास दिल की कसक रह रह कर निकल रही है।

ये बच्चा किसका बच्चा है, बगदाद की इक रात, सब माया है जैसी कृतियाँ उनके वैश्विक, सामाजिक और आध्यात्मिक सरोकारों की ओर ध्यान खींचती हैं। जब जब लोगों ने उनसे इस सिलसिले में प्रश्न किये उन्होंने बात यूँ ही उड़ा दी या फिर साफ कह दिया कि मुझे उन बातों को सबसे बाँटने की कोई इच्छा नहीं।

मैं जिस मध्यवर्गीय समाज का हिस्सा हूँ उसमें अक्सर गरीबों और उनकी परेशानियों के प्रति कोई संवेदना नहीं दिखती। जब मैं उनसे इस बाबत बात करता हूँ तो वे तुरंत सरकारी सुविधाओं की बात करने लगते हैं। दलित आदिवासियों की बात हो तो उन्हें आरक्षण नजर आता है। और किसानों की बात करो तो सब्सिडी ध्यान आ जाती है|

उन्हें ये बातें बहुत खटकती हैं लेकिन अमीरों और पूंजीपतियों के बचाव में खड़े रहते हैं। अब तो मंहगाई और बेरोजगारी से भी उन्हें कोई शिकायत नहीं है। वे सत्ता के साथ हैं। यह विडंबना है।

भारत ही नहीं पूरी तीसरी दुनिया में गरीबी और भुखमरी का गहरा रिश्ता है। बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 के अनुसार भारत के बच्चों में कुपोषण की स्थिति गंभीर है। जीएचआई जिन चार पैमानों पर मापा जाता है उसमें से एक बच्चों में गंभीर कुपोषण की स्थिति भी है, जो भारत में इस बार 19.3 फ़ीसदी पाया गया है जबकि 2014 में यह 15.1 फ़ीसदी था। इसका अर्थ है कि भारत इस पैमाने में और पिछड़ा है।

अन्य पैमानों की बात करें तो, बच्चों के विकास में रुकावट से संबंधित पैमाने में भारत 2022 में 35.5 फ़ीसदी है जबकि 2014 में यह 38.7 फ़ीसदी था। वहीं बाल मृत्यु दर 4.6 फ़ीसदी से कम होकर 3.3 फ़ीसदी हो गई है। हालांकि जीएचआई के कुल स्कोर में भारत की स्थिति और ख़राब हुई है। 2014 में जहाँ ये स्कोर 28.2 था वहीं 2022 में यह 29.1 हो गया है।

बच्चों की यह स्थिति क्यों है, जबकि भारत के विश्व गुरू बनने और बनाने के रोज़ दावे किए जाते हैं। इसी बात को शायर इब्ने इंशा अपने अंदाज़ में बच्चोें की तरफ़ से पूछते हैं- इस बच्चे की कहीं भूक मिटे (क्या मुश्किल है हो सकता है)/ इस बच्चे को कहीं दूध मिले (हाँ दूध यहाँ बहतेरा है)/ इस बच्चे का कोई तन ढाँके (क्या कपड़ों का यहाँ तोड़ा है)/ इस बच्चे को कोई गोद में ले (इंसान जो अब तक ज़िंदा है)।

इब्ने इंशा ने ये कविता सत्तर के दशक में आए इथिपोया के अकाल में पीड़ित एक बच्चे का चित्र देख कर लिखी थी। बच्चे की इस अवस्था ने इब्ने इंशा जी को इतना विचलित किया कि उन्होंने उस बच्चे पर इतनी लंबी कविता लिख डाली।

सात छंदों की इस कविता में इब्ने इंशा बच्चे की बदहाली का वर्णन करते हुए बड़ी खूबी से पाठकों के दिलों को झकझोरते हुए उनका ध्यान विश्व में फैली आर्थिक असमानता पर दिलाते हैं और फिर वे ये संदेश भी देना नहीं भूलते कि विभिन्न मज़हबों और देशों की सीमाओं में बँटे होने के बावज़ूद हम सब उसी आदम की संताने हैं जिससे ये सृष्टि शुरु हुई थी। लिहाज़ा दुनिया का हर बच्चा हमारा अपना बच्चा है और उसकी जरूरतों को पूरा करने का दायित्व इस विश्व की समस्त मानव जाति पर है।

इस कविता को पढ़ना अपने आप में एक अनुभूति है। शायद इसे पढ़ सुन कर आप भी इब्ने इंशा के ख़यालातों में अपने आप को डूबता पाएँ।

1.

ये बच्चा कैसा बच्चा है

ये बच्चा काला काला सा

ये काला सा मटियाला सा

ये बच्चा भूका भूका सा

ये बच्चा सूखा सूखा सा

ये बच्चा किस का बच्चा है

ये बच्चा कैसा बच्चा है

जो रेत पे तन्हा बैठा है

ना इस के पेट में रोटी है

ना इस के तन पर कपड़ा है

ना इस के सर पर टोपी है

ना इस के पैर में जूता है

ना इस के पास खिलौनों में

कोई भालू है, कोई घोड़ा है

ना इस का जी बहलाने को

कोई लोरी है, कोई झूला है

ना इस की जेब में धेला है

ना इस के हाथ में पैसा है

ना इस के अम्मी अब्बू हैं

ना इस की आपा ख़ाला है

ये सारे जग में तन्हा है

ये बच्चा कैसा बच्चा है

2.

ये सहरा कैसा सहरा है

ना इस सहरा में बादल है

ना इस सहरा में बरखा है

ना इस सहरा में बाली है

ना इस सहरा में ख़ोशा है

ना इस सहरा में सब्ज़ा है

ना इस सहरा में साया है

ये सहरा भूक का सहरा है

ये सहरा मौत का सहरा है

3.

ये बच्चा कैसे बैठा है

ये बच्चा कब से बैठा है

ये बच्चा क्या कुछ पूछता है

ये बच्चा क्या कुछ कहता है

ये दुनिया कैसी दुनिया है

ये दुनिया किस की दुनिया है

4.

इस दुनिया के कुछ टुकड़ों में

कहीं फूल खिले कहीं सब्ज़ा है

कहीं बादल घिर घिर आते हैं

कहीं चश्मा है कहीं दरिया है

कहीं ऊँचे महल अटारीयाँ हैं

कहीं महफ़िल है कहीं मेला है

कहीं कपड़ों के बाज़ार सजे

ये रेशम है ये दीबा है

कहीं ग़ल्ले के अम्बार लगे

सब गेहूँ धान मुहय्या है

कहीं दौलत के संदूक़ भरे

हाँ ताँबा सोना रूपा है

तुम जो माँगो सो हाज़िर है

तुम जो चाहो सो मिलता है

इस भूक के दुख की दुनिया में

ये कैसा सुख का सपना है

वो किस धरती के टुकड़े हैं

ये किस दुनिया का हिस्सा है

5.

हम जिस आदम के बेटे हैं

ये उस आदम का बेटा है

ये आदम एक ही आदम है

ये गोरा है या काला है

ये धरती एक ही धरती है

ये दुनिया एक ही दुनिया है

सब इक दाता के बंदे हैं

सब बंदों का इक दाता है

कुछ पूरब पच्छम फ़र्क़ नहीं

इस धरती पर हक़ सब का है

6.

ये तन्हा बच्चा बे-चारा

ये बच्चा जो यहाँ बैठा है

इस बच्चे की कहीं भूक मिटे

(क्या मुश्किल है हो सकता है)

इस बच्चे को कहीं दूध मिले

(हाँ दूध यहाँ बहतेरा है)

इस बच्चे का कोई तन ढाँके

(क्या कपड़ों का यहाँ तोड़ा है)

इस बच्चे को कोई गोद में ले

(इंसान जो अब तक ज़िंदा है)

फिर देखे कैसा बच्चा है

ये कितना प्यारा बच्चा है

7.

इस जग में सब कुछ रब का है

जो रब का है वो सब का है

सब अपने हैं कोई ग़ैर नहीं

हर चीज़ में सब का साझा है

जो बढ़ता है जो उगता है

वो दाना है या मेवा है

जो कपड़ा है जो कम्बल है

जो चाँदी है जो सोना है

वो सारा है इस बच्चे का

जो तेरा है जो मेरा है

ये बच्चा किस का बच्चा है

ये बच्चा सब का बच्चा है!

(शैलेन्द्र चौहान स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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