मोदी जी आप और आपकी संघी जमात होगी इजरायल के साथ, देश नहीं!

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच लड़ाई की बात जब चलती है तब हमारे जेहन में पता नहीं क्यों बार-बार महाभारत का युद्ध याद आता है। आपके साथ भी तो ऐसा नहीं होता है? भारत में रहने वाले और फिलिस्तीन के इतिहास को जानने वाले हर शख्स के साथ शायद ऐसा हो रहा हो। आखिर मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं? महाभारत में कौरवों और पांडवों के बीच लड़ाई का आखिर क्या कारण था? जमीन ही तो थी जिसको पांडव मांग रहे थे। अपने हिस्से की जमीन। अपने हक की जमीन। जमीन जो उनके वजूद से जुड़ी थी। इस धरती पर अगर कोई पैदा हुआ है तो धर्म, जाति, नस्ल, क्षेत्र समेत तमाम पहचानों से इतर उसका जमीन के कम से कम एक टुकड़े पर तो अधिकार बनता ही है। वह एक फुट हो या फिर उसकी कब्र के बराबर एक गज ही क्यों न हो। लेकिन उसका अधिकार बनता है।

यह उसका प्राकृतिक अधिकार है। इसको कोई नहीं छीन सकता। न कोई ताकतवर सत्ता, न ही कोई बड़ा से बड़ा भीमकाय इंसान और न कोई बड़ी से बड़ी जमात। लेकिन अगर उसी को देने से किसी को इंकार कर दिया जाए फिर तो इससे बड़ा अन्याय कुछ और नहीं हो सकता है। यह युद्ध के लिए एक तरह का खुला आमंत्रण है। आखिर पांडव क्या मांग रहे थे? अपने रहने के लिए जमीन का एक टुकड़ा ही तो? लेकिन दुर्योधन ने उसका क्या जवाब दिया? सूई की एक नोक के बराबर भी जमीन नहीं मिलेगी। दुर्योधन के इस बयान के बाद ही महाभारत का युद्ध होना लगभग तय हो गया था। और फिर जो हुआ वह पौराणिक कथाओं में दर्ज है।

यहां तो तस्वीर ही बिल्कुल उलट है। 1948 के पहले जहां आज इजरायल बसा है, वहां उसका नामोनिशान नहीं था। वह फिलिस्तीन नाम का देश हुआ करता था। यूएन के पुराने नक्शों में उसकी पूरी तस्वीर उसके पूरे वजूद के साथ आज भी देखी जा सकती है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जब पश्चिमी देशों को यहूदियों के लिए कुछ अलग से करने की सूझी तो उन्होंने साजिशन कहिए या फिर जबरन येरूशलम के इस इलाके को चुना और अरबों के इस इलाके में यहूदियों को बसाना शुरू कर दिया। कहा तो यहां तक जाता है कि यहूदी पहले यहां अपने रहने के लिए फिलिस्तीनियों जिन्हें अरब भी कहा जाता है से याचना की। और उन्हीं के रहमोकरम पर रहना शुरू कर दिया।

जर्मनी में हिटलर द्वारा चलाए गए यहूदियों के खिलाफ अभियान ने बहुत सारे यहूदियों को बेघर कर दिया था। लिहाजा बड़े स्तर पर पश्चिमी देशों से यहूदियों का यहां पलायन हुआ और फिर उन्होंने यहां अपना डेरा-डंडा डाल दिया। और इसी बीच 1947 में यूएन से पश्चिमी देशों ने उसको इजरायल के नाम से मान्यता दिला दी। और इसी के साथ इजरायल नाम का एक ऐसा देश बन गया जो उसके पहले धरती पर कहीं था ही नहीं। और फिर पश्चिमी देशों की मदद और उनके बैकअप से इजरायलियों की ताकत लगातार बढ़ती गयी। 1948 में हुए अरब-इजरायल युद्ध ने सबसे ज्यादा तबाही मचाई और उस समय तकरीबन 700000 फिलिस्तीनियों को भाग कर गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक, लेबनान, जार्डन समेत दूसरे इलाकों में शरण लेनी पड़ी। और फिर इस तरह से इजरायली धीरे-धीरे अरबों को किनारे लगाते गए। फिर 1967 और 1973 के युद्ध के बाद उन्होंने उसके बड़े इलाके पर कब्जा कर लिया।

और इस तरह से फिलिस्तीनी केवल गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक और गोलन हाइट तक सिमट कर रह गए। और अब स्थिति यहां तक पहुंच गयी है कि इजरायली उनको वहां से भी खदेड़ देना चाहते हैं। और पूरी फिलिस्तीन की जमीन को अपने कब्जे में ले लेना चाहते हैं। और इसको लागू करने के लिए वह लगातार अभियान छेड़े हुए है। पिछले एक साल में फिलिस्तीनियों की हुई मौतें बताती हैं कि इजरायल उनके खिलाफ किस तरह से हिंसक अभियान छेड़े हुए था। नौ हजार से ज्यादा इजरायली जेलों में कैद फिलिस्तीनियों की संख्या बताती है कि इजरायल कितने बड़े स्तर पर इस अभियान को संचालित कर रहा है।

नटसेल में पूरी कहानी यह है कि एक शख्स ने इंसानियत बस किसी मेहमान को अपने घर में रहने की इजाजत दी और फिर उसी मेहमान ने एक दिन पूरे घर पर कब्जा कर लिया। और अब मालिक को ही पूरी तरह से घर से बेदखल करने पर लग गया है। इजरायल की मौजूदा स्थिति यही है कि वह सूई की नोक के बराबर भी जमीन फिलिस्तीनियों को नहीं देना चाहता है। जबकि इलाके में दो राज्य को स्थापित करने का फैसला बहुत पहले यूएन में हो चुका है। और कई मंच और देश इस पर अपनी सहमति भी जता चुके हैं। मैड्रिड से लेकर ओस्लो तक इस पर समझौते हुए हैं और फिलिस्तीन के तौर पर एक देश और उसकी जमीन के हक को देने का प्रस्ताव पारित किया जा चुका है। यहां तक कि कुछ इलाकों को छोड़ने के लिए इजरायल से कई बार कहा गया है लेकिन कागज पर पास हुए ये प्रस्ताव कभी जमीन पर नहीं उतर सके। क्योंकि इजरायल के मन में खोट है। और वह पूरी की पूरी जमीन को ही हड़प जाना चाहता है।

हमास का हमला और फिर उस पर इजरायल की जवाबी कार्रवाई के बाद पीएम मोदी ने तुरंत बयान जारी कर इजरायल के साथ होने का ऐलान कर दिया। और अभी कल उन्होंने ट्विटर पर बताया कि इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का फोन आया था और उन्होंने युद्ध का अपडेट दिया। साथ ही पीएम मोदी ने उनसे यह भी कहा कि भारत के लोग इजरायल के साथ खड़े हैं। तो मोदी जी आप साथ खड़े होंगे। आपकी संघी जमात खड़ी होगी। और आपके चितपावनी भाई खड़े होंगे। लेकिन देश नहीं खड़ा है इजरायल के साथ। आप शायद भूल गए हैं और इतिहास की वैसे भी आपको जानकारी कम ही होती है।

फिलिस्तीन को आधिकारिक तौर पर अरब के अलावा जिस पहले देश ने मान्यता दी थी। वह भारत था। पीएलओ और उसके नेता यासिर अराफात के साथ भारत के रिश्ते को भला कौन नहीं जानता है। अराफात भारत को अपना दूसरा घर कहते थे। पक्ष हो या कि विपक्ष सभी नेताओं से उनके निजी संबंध थे। इंदिरा गांधी को तो वह अपनी बहन ही मानते थे। और भारत को लेकर उनकी चिंता किस स्तर की हुआ करती थी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इंदिरा गांधी की हत्या से पहले उन्होंने इसकी आशंका जता दी थी। और उनसे होशियार रहने के लिए कहा था।

तो आप इस समय जो अपने चुनावों को ध्यान में रखते हुए और मुस्लिम विरोधी घृणा को आगे बढ़ाने के एक और मौके के तौर पर इसका इस्तेमाल कर रहे हैं वह बेहद घातक होने जा रहा है। भारत और इंडिया कभी भी मूल्यों से नहीं हटे। विदेशी मोर्चे पर सत्य, अहिंसा और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व ही भारत का उसूल रहा है। और सबसे खास बात यह कि वह हमेशा तीसरी दुनिया के देशों के साथ खड़ा रहा है। लेकिन आप इन सारे मूल्यों और भारत की परंपरागत विदेश नीति को ठुकराते हुए देश को एक ऐसे मुकाम पर खड़ा कर दे रहे हैं जहां इसके हाथ कुछ नहीं आएगा।

दरअसल आपकी पूरी विदेश नीति देश की अंतर्राष्ट्रीय जरूरतों और उसके मुताबिक स्टैंड लेने की जगह अपनी आपकी अपनी घरेलू राजनीतिक जरूरतों के मुताबिक तय होती है। अब इसी मामले में देखिए आपने क्या किया? अभी तक हम फिलिस्तीन और उसके हितों के साथ खड़े थे और इस तरह से अरब समेत दूसरे तीसरी दुनिया के देशों के साथ हमारा भाईचारा था। लेकिन आपकी इस मौजूदा पोजीशन ने कैसे भारत को पूरी दुनिया और अपने पुराने मित्रों से अलग-थलग करने का रास्ता साफ कर दिया है। आपके इस स्टैंड से सबसे पहले अरब वर्ल्ड से हमारे रिश्ते खराब होंगे। उसके बाद रूस और चीन जो अमेरिका के खिलाफ पूरी मजबूती से फिलिस्तीनियों के पक्ष में खड़े हैं, उनसे भी दूरी बनेगी। 

अफ्रीका से लेकर लैटिन अमेरिका तक जिन्होंने पश्चिमी देशों के वर्चस्व और उनकी साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ लड़ते हुए अपने कई दशक गुजार दिए उनसे भी एक दूरी बनना तय है। क्योंकि वो भी इस मसले पर इजरायल नहीं बल्कि फिलिस्तीनियों के साथ हैं। ऐसे में आपके पास केवल और केवल अमेरिका का साथ होगा। यहां तक कि यूरोप में भी इसको लेकर डिवीजन है। स्पेन, फ्रांस से लेकर लक्जमबर्ग समेत तमाम यूरोपीय देशों ने फिलिस्तीन को दी जाने वाली सहायता पर रोक का खुला विरोध किया है। जिसका नतीजा यह है कि यूरोपियन यूनियन को अपना बयान वापस लेना पड़ा है जिसमें उसने कहा था कि वह फिलिस्तीन को दी जाने वाली सहायता को निलंबित कर रही है। बाद में उसने कहा कि उसका ऐसा करने का कोई इरादा नहीं है। और अपने विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए यूनियन ने अगर इजरायल के विदेश मंत्री को आमंत्रण भेजा तो उसने फिलीस्तीन के विदेश मंत्री को भी अपनी बात रखने का न्योता दिया है। 

लेकिन आप ने भारत की पुरानी विदेश नीति और उसकी विरासत को लात मारकर शुद्ध रूप से अपनी पार्टी के हितों और उसमें भी संघ के चितपावनी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए जो काम किया है वह इतिहास के काले पन्नों में दर्ज हो चुका है।

(महेंद्र मिश्र जनचौक के फाउंडर एडिटर हैं।) 

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